RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
स्टेशन अभी दूर था, गाड़ी स्लो और स्लो होती जा रही थी कि वो चारों एक-एक करके चलती गाड़ी से ही कूद गये अपना सामान लेकर,
उनके ऑपोसिट साइड में आकर, मे भी उतर गया.
हल्का हल्का अंधेरा होने लगा था. वो लोग समान उठाकर एक तरफ को बढ़ गये,
थोड़ी दूरी बनाकर मे भी उनके पीछे पीछे लग गया और ध्यान रखा कि वो मुझे ना देख पाएँ.
रेलवे ट्रॅक से उतर कर उन्होने एक रिक्शा लिया, मैने भी फ़ौरन एक रिक्शे को हाथ दिया और उसको उस रिक्शे के पीछे-2 चलने को कहा.
वो चारों एक घनी मुस्लिम अवादी वाली बस्ती में पहुच कर एक मदरसे के बाहर उतरे.
मेरा अनुमान एक दम सही निकला, वो जिस इमारत में दाखिल हुए वो सिम्मी का ही एक अड्डा था.
वो चारों अंदर चले गये. मैने रिक्शा कुछ आगे जाके रुकवाया और उसको पैसे देके रवाना किया.
अब मेरे सामने एक सवाल मुँह बाए खड़ा था कि मे अंदर कैसे जाउ..?
बहुत देर तक मे वहीं इधर उधर टहलता रहा और सोचता रहा, कि अब आगे क्या किया जाए..?
कि तभी वो चारों बाहर निकलते दिखाई दिए..
अब उन दो के पास ही बॅग थे, दो अपने-2 बॅग अंदर ही छोड़ आए थे.
मे एक साइड में हो गया जिससे उनकी नज़र मुझ पर ना पड़े. जब वो मेरे पास से गुजर गये तो मे फिर से उनके पीछे -2 चल पड़ा.
लेकिन अब मेरी वाच कोई इंडिकेशन नही दे रही थी, इसका मतलब वो उस एक्सप्लोषन को अंदर ही छोड़ आए थे…..!
कुछ देर बाद वो चारों एक पुराने, लेकिन बड़े से हवेली नुमा मकान के सामने थे, मे भी उनका पीछा करते-2 यहाँ तक पहुँच गया,
ये एक बहुत ही पुराना सा मकान था, जिसकी दीवारों पर से कई जगह पपड़ी और सीलन से उसका प्लास्टर उखड़ चुका था,
दीवारें पान- की पीकों से लाल हो रही थी, जगह-2 पर, ऐसा लगता था मानो इसमें लंबे समय से कोई नही रहता था.
वो चारों बड़े फाटक नुमा दरवाजे के अंदर चले गये, मैने इधर-उधर नज़र दौड़ाई कि कहीं कोई और तो नही देख रहा हमें.
जब अस्वस्त हो गया कि और कोई नही है यहाँ, तो मे भी उस मकान में घुस गया, मेन गेट से तकरीबन 20 फीट तक गॅलरी जैसी थी जिसके दोनो तरफ ओपन बारादरी जैसा ही था.
उसके बाद एक बहुत बड़ा ओपन ग्राउंड जैसा था, उसके बाद बहुत सारे कमरे तीन तरफ.
मे ग्राउंड में ना जाकर उस बारादरी में से खंबों की आड़ लेता हुआ बस अंदाज़े से ही एक तरफ को बढ़ गया,
जहाँ एक तरफ की बारादरी ख़तम होती थी वही से उसके पर्पेनडिक्युलर कमरे शुरू हो जाते थे, और तीन साइड से होते हुए, दूसरी साइड की बारादरी के अंत में मर्ज हो रहे थे.
मे कमरों को च्छुपते-च्छूपाते चेक करता हुआ जा रहा था, उस लाइन में वो लोग मुझे नही मिले, तो दूसरी तरफ, माने मैन गेट के सामने वाले पोर्षन को देखना शुरू कर दिया,
एक के बाद एक कमरे को चेक करता हुआ मे, मेन गेट के सामने तक आ पहुँचा… लेकिन कोई आहट मुझे अभी तक सुनाई नही दी, जिससे ये अंदाज़ा लगा सकूँ कि वो लोग कहाँ हैं.
मैने अपना चेक करने का काम जारी रखा, और एक और कमरा चेक करके आगे बढ़ा ही था, कि अचानक मुझे उन लोगों की बात-चीत करने की आवाज़ सुनाई देने लगी, मे धीरे-2 उस आवाज़ की दिशा में बढ़ गया.
वो एक हॉल जैसे कमरे में कुल 7 लोग थे, जिनमें एक तकरीबन 38-40 साल का आदमी, लंबा चौड़ा, लंबी दाढ़ी, क्रीम कलर का पठानी सूट पहने हुए उन सबके बीच खड़ा था, और उन लोगों को कुछ समझा रहा था, मे समझ गया कि ये इनका लीडर हो सकता है.
मे उस कमरे से लगे दूसरे कमरे की खिड़की से उन्हें बड़े अच्छे से देख और सुन सकता था.
लीडर उन चार लड़कों को, जो दिल्ली से मेरे साथ आए थे शाबासी देते हुए कह रहा था - तुम चारों ने बहुत हिम्मत का काम किया है,
जो बॉम्ब का सामान और बारूद हम इतने दिनो से लाने की सोच रहे थे, वो तुम लोगों ने लाकर हमारी मुसीबत हल कर दी है,
मे इसके लिए रहमान साब से अलग से तुम लोगों को इनाम दिलवाउंगा.
वो फिर आगे बोला - देखो, हम वो बॉम्ब दो दिन में तैयार कर लेंगे, मैने एक बॉम्ब एक्सपर्ट को भी बुलाया है,
वो कल ही हमारे ठिकाने पर पहुँच जाएगा, उसके आते ही हम बॉम्ब असेंबल कर लेंगे, तो परसों की रात तुम सब लोग वहाँ ठीक रात 9 बजे तक आ जाना,
वो एक्सपर्ट और रहमान साब भी होंगे, तभी आगे की प्लॅनिंग सेट करके इस काम को अंजाम देंगे.
इंशा अल्लाह अगर हमें इस काम में फ़तह मिल गयी, तो हम इस देश की काफ़िर सरकार को एक बहुत बड़ा झटका देने में कामयाब होंगे.
उनमें से एक बंदा बोला - इंशा अल्लाह हम ज़रूर कामयाब होंगे जनाब..! आप फिकर ना करें, हम अपनी जान की बाज़ी लगाकर इस काम को अंजाम देंगे, और इन काफिरों से अपना हिसाब चुकता करेंगे..
लीडर - शाबास मुझे तुम लोगों से यही उम्मीद थी, अब तुम सब लोग जाओ, और परसों मिलते है, खुदा हाफ़िज़.
वाकी सब – खुदा हाफ़िज़ जनाब..!!
फिर उस लीडर ने कुछ नोटों की गद्दी अपनी जेब से निकाली और उन 6 लोंगों में बाँट दी, और वहाँ से चले गये.
अब मेरे हिसाब से फिलहाल उनलोगों का पीछा करने का कोई मतलब नही था सो मे वहाँ से सावधानी बरतते हुए निकल आया और उस इमारत, जिसमें उनलोगों ने वो एक्सप्लोसिव रखे थे के नज़दीक ही एक छोटे से होटेल में रूम ले लिया.
रूम में पहुँच कर सबसे पहले मैने चौधरी साब को मेसेज किया कि अभी बात हो सकती है या नही, दो मिनट बाद ही उनकी कॉल आ गई ट्रॅन्समिज़्षन लाइन पर.
मैने कॉल पिक की ईव्निंग विश की और फिर एक ही साँस में पूरी घटना उन्हें बता दी अबतक की.
वो सबसे पहले तो ठहाका लगाकर हंसते रहे और फिर बोले - क्या अरुण तुम्हारे पैरों में कोई चक्कर लगता है ?
घर भी नही पहुँचे कि उससे पहले काम पर भी लग गये…!
फिर जल्दी ही सीरीयस हो कर बोले - मामला गंभीर है, सच में ये एक बहुत बड़ी साजिश हो सकती है, और अगर ये लोग सफल हो गये तो बहुत बड़ी जान माल की हानि होने की संभावना है.
मे - अब मुझे क्या करना चाहिए सर..??
वो कुछ देर सोचते रहे..! और फिर बोले - मे वहाँ के कमिशनर को इनफॉर्म करता हूँ, वो लोग इस साजिश को अंजाम दें उससे पहले ही हमें उसे नाकामयाब करना होगा.
मे कुच्छ और ही सोच रहा था सर ! मैने कहा, तो वो बोले- क्या..?
मे - मुझे लगता है, पोलीस कार्यवाही इतनी सीक्रेट्ली नही हो पाएगी, वो लोग चोन्कन्ने हो सकते हैं,
और ये भी संभव है, कि उनका कोई लिंक पोलीस डिपार्टमेंट में भी हो और वो बच निकलें..!
वो - तो फिर क्या करना चाहते हो तुम..?
मे - जिस तरह उनकी बातों से पता चला है, परसों रात 9 बजे वो सब एक जगह इकट्ठे होंगे सभी अंबुनेशन के साथ तो मे किसी तरह से वहाँ पहुँच कर समान के साथ-2 उन सबको उड़ा देता हूँ जिससे किसी के बचने की उम्मीद ही ना रहे,
इससे कम-से-कम उनका एक बड़ा नेटवर्क तबाह हो जाएगा, और कुछ दिनो तक उनके दोबारा उठ खड़े होने की संभावना ख़तम हो जाएगी.
वो - ये बहुत रिस्क वाला काम होगा अरुण..! मे इसके लिए तुम्हें पर्मिज़न नही दे सकता..!
मे - ज़रा सोचिए सर ! अगर मान लो पोलीस उन्हें घेर कर सरेंडर करा भी देती है, और इस योजना को असफल कर भी देती है तो क्या गॅरेंटी है, कि उनमें से कोई बचेगा नही..
अगर एक भी बच गया, तो वो फिर खड़ा हो जाएगा. और ये भी संभव है कि इनके लोग पोलीस में भी हों.
यू कॅन ट्रस्ट मे सर ! मे ये मॅनेज कर लूँगा.
वो - मुझे तुमपर पूरा ट्रस्ट है माइ डियर बॉय, लेकिन…!!!
मे - डॉन’ट वरी सर.. आइ विल बी कम बॅक सून वित गुड न्यूज़..
उन्होने अनमने स्वर में मुझे पर्मिज़न देदि.. और विश करके कॉल कट हो गयी..
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