RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
सेल फोन को छोड़ कर वाकी सभी चीज़ों को मैने दुबारा से बॅग में डाला और अभी उस सेल फोन के वाकी के सिस्टम को समझने के लिए ओपन किया ही था कि सेल की बेल बजी…!
मे एकदम उच्छल पड़ा मानो किसी बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो, कारण था वो बेल जो स्पेशल नंबर पर आई थी.
मैने कॉल पिक की तो उधर से एनएसए चौधरी की आवाज़ कानों में पड़ी..
मैने ईव्निंग विश करके उनको थॅंक्स कहा- फिर वो कुछ देर और ज़रूरी इन्स्ट्रक्षन देते रहे और कल निकलने से पहले एक बार मिलके जाने को बोल कर कॉल कट कर दी.
उसके कुछ देर बाद ही खाना आ गया, मैने खाना खाया और जैसे ही रूम सर्विस बर्तन समेट कर गया, मैने बिस्तर पर बैठ कर फिर से उस सेल के स्पेशल फंक्षन समझता रहा.
इसी में कब 12 बज गये पता ही नही चला, जब आँखें बोझिल होने लगी तो मे उसे बंद करके सो गया,
एसी रूम में ऐसी नींद आई कि रात का पता ही नही चला.
सुबह 7 बजे मेरी नींद खुली, उठकर नित्य कर्म करके नहाया धोया, योगा, प्राणायाम किया, ध्यान लगाने का समय नही था, तो निकलने के लिए रेडी हुआ ही था कि रूम सर्विस ने नाश्ता लाके दे दिया.
एनएसए ऑफीस 10 बजे से पहले तो खुलने की संभावना ही नही थी सो न्यूज़ पेपर पढ़ने में लग गया.
वोही खबरें रोज़ की, कही लूट पाट, कहीं किसी को ठग लिया, कहीं औरत के साथ बलात्कार हो गया. किसी ने प्रॉपर्टी के लिए अपने सगे भाई को मार डाला…
साला पता नही इस देश के लोगों को हो क्या गया है. आराम से मेहनत और ईमानदारी से जिंदगी बसर नही कर सकते किया..?
यही सब सोचते-2 टाइम हो गया तो बॅग उठाया और रूम सर्विस को बोलके निकल गया.
एनएसए ऑफीस के रिसेप्षन पर पहुँचा तो पता चला कि वो अभी तक ऑफीस नही पहुचे थे, कुच्छ देर वहीं बैठ के इंतजार करने लगा, कोई 15 मिनट के बाद वो आए.
मुझे रिसेप्षन में ही बैठा देख कर उन्होने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया, मे उनके पीछे-2 चल पड़ा....
उन्होने मुझसे पता किया, कि बॅग में जो भी समान था, उसके बारे में कोई कन्फ्यूषन हो तो वो क्लियर करले,
जब मैने उन्हें सब कुछ ब्रीफ किया तो वो खुश हुए और मेरी नालेज को अप्रीशियेट करते हुए बोले-
हां तो अरुण, अब क्या प्लान है तुम्हारा..?
मे - सर यहाँ से घर जाउन्गा, जो दो चार दिन बचे हैं, उन्हें घर वालों के साथ गुज़ार के कॅंप के लिए निकल लूँगा..!
वो - याद है ना कि तुम्हारी आइडेंटिटी अब एक इंजिनियर की ही रहेगी दुनिया के सामने, चाहे वो तुम्हारा कितना भी सगा क्यों ना हो..!
मे - डॉन’ट वरी सर, मेरे मुँह से ये राज कभी नही निकलेगा कि मे कॉन हूँ, चाहे मेरी गर्दन ही क्यों ना कट जाए..!
वो - वेरी गुड..! आंड विश यू ऑल दा बेस्ट फॉर युवर फ्यूचर लाइफ..!
मे - थॅंक यू वेरी मच सर ! मैने शेक हॅंड किया और उनका ऑफीस छोड़ दिया…!!
और फिर चल पड़ा अपनी जिंदंगी की एक नयी मंज़िल की ओर जो कि ना जाने कितनी काँटों भरी थी..?
बाहर आकर मैने ऑटो लिया और न्यू देल्ही रेलवे स्टेशन आ गया.
अभी लगभग 1 बजा था, सोचा खाना ख़ाके ही देखते हैं कोन्सि ट्रेन मिलती है,
दिल्ली से कॅल्कटा लाइन सबसे बड़ी लाइन है, सबसे ज़्यादा ट्रेन उसी रूट से गुजरती हैं, तो कोई ना कोई तो मिल ही जानी थी.
एक अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खाया और पास की ही एक गारमेंट शॉप से मैने अपने लिए दो जोड़ी अच्छे से कपड़े खरीदे,
एक अच्छा सा ब्लेज़र और टाइ भी ले लिया क्योंकि अब अपना हुलिया भी समय और मौके के हिसाब से रखना पड़ सकता था.
एक लोकल ट्रेन की टिकेट ली, जो ढाई बजे निकलने वाली थी, करीब रुकते रुकते हरेक स्टेशन पर रात 10 बजे के बाद ही पहुँचनी थी मेरे स्टेशन पर.
ट्रेन प्लेट फॉर्म पर लग चुकी थी, लेकिन अभी उसके च्छुटने में 10-15 मिनट और थे, लोकल ट्रेन थी सो ज़्यादा भीड़ भी नही थी.
सोचा थोड़ा चक्कर लगा लेते हैं प्लेट फॉर्म पर, वो स्पेशल वाच मेरी रिस्ट में बँधी हुई थी.
एंजिन की तरफ से मे पीछे की ओर प्लेट फॉर्म पर चला जा रहा था, कि लास्ट से कोई 3-4 बोगी पहले मेरी कलाई में कुछ वेब्रॅशन महसूस हुआ,
अब एक तो नये-2 एनएसएसआइ एजेंट का भूत सवार था, तो उसका इंप्रेशन कुछ ज़्यादा ही था मेरे उपर,
मैने वाच पर नज़र डाली तो नीली लाइट ब्लिंक हो रही थी, जो इंडिकेट करता था, कि आस-पास कहीं तो कुछ अनवॉंटेड चीज़ है…
मैने एक्सप्लोसिव फंक्षन ऑन किया, तो उसका सेन्सर ब्लिंकिंग करने लगा, किसी शिकारी कुत्ते की तरह मेरे कान तुरंत खड़े हो गये.
मे उस बोगी के पास खड़ा हो गया, सिग्नल भी उसी के अंदर की तरफ इंडिकेशन देने लगी,
मे पीछे मुड़ा और आगे वाले गेट से उस डिब्बे में घुस गया, बॅग मेरे कंधों पर लटका हुआ था.
पॅसेज से गुज़रता हुआ मे आगे से पीछे की ओर आया, तो जहाँ से इंडिकेशन आ रहा था उधर को एक उड़ती सी नज़र डाली, और गुज़रते-2 ही मैने वहाँ का जायज़ा ले लिया और आगे बढ़ गया,
मे एक ब्लॉक छोड़ कर दूसरे ब्लॉक की साइड वाली सीट पर बैठ गया उधर की ओर ही मुँह करके.
वो चार लोग थे जो हाव भाव से ही सिम्मी के मेंबर लग रहे थे .
वो चारों दो-दो के हिसाब से आमने सामने की सीट पर बैठे थे, उनके बॅग सीट के नीचे रखे हुए थे.
मे जानना चाहता था उनके प्लान को, उसकी जड़ तक पहुँचने के लिए बस उनपर नज़र रख कर ही पहुचा जा सकता था.
ट्रेन चल पड़ी, वो चारों आपस में बात-चीत करते हुए बैठे थे,
मे भी दिखाने के लिए अपनी आँखें बंद करके उनके सामने ही बैठा था, जिनमें से दो को ही नज़र आ रहा था, वाकी दो आड़ में थे.
मे उनके दिमाग़ में कोई शक पैदा नही करना चाहता था, एक आम पेसेन्जर की तरह मे अपनी आखे बंद किए बैठा रहा,
ट्रेन अपने शेड्यूल के हिसाब से रुकती रुकती बढ़ी चली जा रही थी. करीब 3 घंटे का सफ़र तय हो चुका था.
मेरे अनुमान के हिसाब से उन लोगों को अलीगढ़ पर उतरना चाहिए था, जो अब आधे घंटे में आ जाना चाहिए.
में अब उनकी गतिविधियों पर नज़र गढ़ाए हुए था, लेकिन कोशिश यही थी कि उनको शक ना हो.
वो स्टेशन भी आनेवाला था, ट्रेन आउटर सिग्नल पर स्लो हो गयी, वो लोग अपना सामान लेकर पिछले गेट पर आ गये,
उनके जाने के बाद मैने उनकी सीट के नीचे चेक किया कि कुछ समान छोड़ तो नही गये हैं, और आगे के गेट पर पहुच गया.
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