Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:08 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
करीब 25 दिन बाद डीआईजी ऑफीस से एक सरकारी गाड़ी आई मुझे लेने,

प्रेम भाई मेरे साथ आना चाहते थे, लेकिन बिना डीआईजी साब की पेर्मिशन लिए ये उचित नही था…

मे उनके ऑफीस पहुँचा तो वहाँ एनएसए (नॅशनल सेक्यूरिटी एजेन्सी चीफ़) खुद मौजूद थे. उनके अलावा आइजी पोलीस और डीआईजी भी थे. 

एनएसए ने एक बार मेरी फाइल की ओर देखा और फिर मेरी ओर देख कर मुखातिब हुए - सो यंग मॅन व्हाट यू आर डूयिंग नाउ..?

मे - नतिंग सर, जस्ट एजोयिन्ग माइ नेटिव लाइफ..! 

एनएसए - व्हाई..? यू आर एन इंजिनियर, आंड वैस्टिंग युवर वॅल्युवबल टाइम..! ईज़ दिस नोट शोस युवर इररेस्पओनसीबल नेचर..?

मे - यू कॅन से दिस सर, बट इट्स डिपेंड्स ऑन इंडिविजुयल्स नेचर..! आ पॉज़िटिव थॉट कॅन क्रियेटिविटी अट एनी वेर आंड नेगेटिविटी कॅन’ट सर्व ईवन सिट्टिंग इन लग्षूरीयस ऑफीस.

एनएसए - वेरी नाइस..! ब्रिलियेंट आन्सर..! नाउ कम टू दा पॉइंट.., 

आइ सीन दिस फाइल. नो डाउट आपने जो किया है एक आम आदमी तो उसके बारे में सोच भी नही सकता, ईवन जो क्विक डिसिशन लेके आपने जो स्टेप्स लिए वो तो एक ट्रेंड कमॅंडो भी नही ले सकता. हाउ डिड दिस..?

मे - क्यूंकी मुझे कहीं से कोई कमॅंड मिलने वाली नही थी, जो भी करना था मैने खुद करना था, तो समय पर मेरे दिमाग़ ने जो भी डिसिशन लिया, मैने कर दिया. 

अपनी बात को जारी रखते हुए मे आगे बोला – 

और सर ! वहीं एक कॉम्मोडो को उसके उपर से कमॅंड मिलती है तो वो एक डिपेंडेन्सी जैसा फील करते हुए अपना काम करता है, 

हो सकता है वो सेल्फ़ डिसिशन से और अच्छा कर सकता हो, क्योंकि ज़रूरी नही कि उसे कमॅंड देने वाला सर्वगुण संपन्न ही हो.

एनएसए - सही कहा तुमने ! एक आख़िरी सवाल- आपने जो भी किया है पास्ट में, क्या आपको नही लगता कि वो क़ानून को ताक में रख कर किया गया था.

मे- सर ! बिफोर टू आन्सर यू फॉर दिस, क्या मे एक सवाल आपसे पुच्छ सकता हूँ..?
एनएसए ने मुस्कराते हुए कहा - ज़रूर पुछो..!!

मे - आपने मेरी फाइल देखी है, इनमें से कोई भी सिचुयेशन आपको ऐसी लगी, जहाँ मैने क़ानून को अनदेखा किया हो..? जहाँ ज़रूरत लगी वहाँ इन्वॉल्व ना किया हो दो केस को छोड़के.!

क्या डकैती वाले केस में मुझे पोलीस को इनफॉर्म करके उसका इंतजार करना चाहिए था..? जबकि पोलीस के पास खबर पहुँचने के बावजूद भी दो-तीन घंटे के बाद पहुचि…. 

बॉम्ब ब्लास्ट की साजिस वाले केस में भी अगर मे पोलीस को इनफॉर्म करता तो क्या इस तरह की सफलता मिलने की उम्मीद थी..?

सॉरी टू से सर ! बट यू कॅन’ट एक्सपेडाइट ऑल था थिंग्स विदिन दा लॉ, कुछ काम्मों को समाज और ईवन देश की भलाई के लिए आप भी शायद बियॉंड दा लॉ जाते ही होंगे..!

उनकी सिर्फ़ गर्दन ही हां में हिली… कोई जबाब नही दिया.

एनएसए - देश के लिए कुछ करना चाहोगे..? 

उनकी ये बात सुनकर मुझे हल्की सी हँसी आ गयी..! वो मेरी तरफ देख कर बोले.

एनएसए - मेरी बात पर हँसी क्यों आई आपको..? मैने कुछ ग़लत कह दिया,,?

मे - नही सर ! आपने ग़लत तो कुछ नही कहा- लेकिन मे ये समझ नही पाया कि देश के लिए ऐसा क्या काम करना होगा जो मैने अभी तक नही किया है..!

एनएसए थोड़ा झेन्प्ते हुए बोले - ओह्ह.. ! आइ आम सॉरी ! यू आर रिघ्त, ईवन माइ क्वेस्चन वाज़ रॉंग..!

मेरा मतलब है, कि जो देश भक्ति आपके अंदर है, क्या उसे देश की किसी संस्था के दायरे में रहकर करना चाहोगे..? 

जो कि दो तरफ़ा होगा.. तुम देश की हिफ़ाज़त करो, और देश तुम्हारी हिफ़ाज़त करे.

सी मिस्टर. अरुण ! ये जो आपने काम किए हैं, या जो करने वाले हो, उन कामों से निकट भविश्य में आपके दुश्मनों की संख्या भी बढ़ती जाएगी…

जिनमें से कुछ तो इतने पवरफुल होंगे, जिनसे आप अकेले मुकाबला ना कर पाओ… 

देश नही चाहेगा, कि आपके जैसा कोई देशभक्त, किसी गंदी राजनीति या माफिया की भेंट चढ़े…

होप यू अंडरस्टॅंड मी….

मे समझ गया सर, लेकिन मे समय के साथ खुद डिसिशन लेने का आदि हूँ, तो ऐसे में किसी की सूपरमिशी आड़े आ सकती है.

एनएसए - वो सब तुम हमारे उपेर छोड़ दो, हम ऐसा कुछ करेंगे जिससे इस तरह की सिचुयेशन ही तुम्हारे सामने पैदा ना हो. 

बस तुम अपना निर्णय बताओ, क्या तुम करना चाहोगे..?

मे - अभी मे इस विषय पर कोई निर्णय नही ले सकता सर !.. आप अपना कॉंटॅक्ट नंबर दे दीजिए, मे आपको कॉंटॅक्ट करके जल्दी ही बता दूँगा.

फिर उन्होने अपना पर्सनल सेल नंबर मुझे दे दिया, उसे लेकर मे अपने घर वापस लौट लिया………!!!!
ध्यान के साथ-2 अब मैने कुछ योगा और प्राणायाम एक्सर्साइज़ भी शुरू करदी थी जिनका इन्स्टेंट असर पड़ना शुरू हो गया. 

योगा प्राणायाम करने के बाद ध्यान गहरा होने लगा, जिससे मेरी डिसिशन पवर, फिज़िकल पवर और भी बढ़ रही थी.

एक दिन सुबह के साडे तीन – चार का वक़्त था, मे ध्यान में बैठा था कि अचानक मेरी आँखों के सामने एक छनाका सा हुआ, 

मेरे आस-पास का वातावरण एक दम हल्की नीलिमा लिए हुए सफेद रोशनी से जगमगा उठा, 

वो रोशनी चारो ओर बिखरती जा रही थी, उसका दायरा बढ़ता चला जा रहा था, अब जहाँ तक मेरी कल्पना शक्ति पहुँच रही थी वाहा तक वो रोशनी मुझे दिखाई दे रही थी.

मे उस रोशनी में नहाया हुआ था, मेरी आँखों के ठीक सामने एक जगह वो रोशनी एक समुंह में इकट्ठा होने लगी, मानो बादल एक जगह ज्यदा गहेन हो गये हों, और उसके आस-पास धुए जैसा बिखरा हुआ हो. 

धीरे - 2 वो रोशनी का समुंह एक आकृति में परिवर्तित होने लगा.

धीरे-2 अब वो आकृति एक मानव शरीर अख्तियार करती जा रही थी, लेकिन पूर्णतः सामान्य मानव जैसी नही..! 

प्रतीत होरहा था मानो कोई परच्छाई सी हवा में तैर रही हो.

अनायास ही वातावरण में कुछ गर्जना जैसी हुई, और उस आकृति से एक आवाज़ उत्पन्न हुई मानो वो मुझे संबोधित कर रही हो.. ! 

मे उस आकृति को विश्मय से देख रहा था.

अपने आप को पहचानने की कोशिश करो हे मानव- जैसे ये शब्द उस आकृति ने मुझसे कहे हों. 

वो आवाज़ मेरे चारों ओर व्याप्त वातावरण में गूँज रही थी. मे सिर्फ़ अपलक उसकी ओर देखे जा रहा था, और उन शब्दों को सुन रहा था. 

तुम असीमित क्षमताओं से युक्त हो, अपनी इस क्षमता को ठीक से पहचानो और उसे मानव जाती के कल्याण में लगाओ इसी में तुम्हरा कल्याण है और यही तुम्हारी नियती भी…! 

मे - लेकिन मे तो सामाजिक सीमाओं में बँधा हूँ, फिर मे इन बन्धनो के रहते कैसे जान कल्याण के कार्य कर सकता हूँ, और उससे मुझे क्या लाभ..?

सत्कर्म करने के लिए कोई सीमा या बंधन तुम्हें रोक नही पाएगा.. बस एक बार निश्चय कर लो..उस परच्छाई ने जबाब दिया ! 

रही बात लाभ की तो वो अपने कर्मों पर छोड़ दो. 

याद करो भगवान श्रीकृष्ण का गीता में दिया हुआ वो उपदेश….!

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ||

तुम सिर्फ़ कर्म करो, फल उसी अनुपात में नियती निर्धारित करती है.

स्वतः ही मेरे होठ हिल रहे थे, मैने फिर उस परच्छाई से सवाल किया- हे देव ! आप कॉन है..?

वो - तुम्हारे अंदर स्थित अलौकिक शक्ति का ही एक स्वरूप हूँ मे..! जब तुम अपने आपको पूर्णतः पहचान लोगे तो पाओगे कि मे तुम ही हूँ. 

सिर्फ़ अपने तीसरे नेत्र को खोलने की ज़रूरत है, जो हर प्राणी-मात्र में विद्यमान होता है…!

जो उसे खोल पाता है, वो स्वतः को पहचान लेता है, और लाभ-हानि के चक्करों से मुक्त होकर निस्वार्थ कर्म करता रहता है…

इतना कह कर वो आकृति लुप्त हो गयी और धीरे-2 वो रोशनी का समुंह मेरे अपने शरीर में ही विलुप्त होगयि. 
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 02:08 AM

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