Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:06 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अब में उसके संतरों को थोड़ा-2 मसल्ने लगा, तो वो पीछे की तरफ को गिरती हुई आँखें बंद करके सीत्कार उठी…

सस्स्सिईईई…..हाइईईईईई…..उउफ़फ्फ़… ऑश…ससुउउऊओ…म्माआ..आअहह..

बहुत मज़ाअ.. आअरराहहाअ.. हाइईइ…और जॉर्रईए…सीईए…ईीई…द.दाब्बाऊओ…हुन्न्ं…

मज़ा आया..? मैने उसके कान में कहा… तो वो शरमा कर बोली- हां बहुत..

मे- और ज़्यादा मज़ा लेना है… तो उसने हां में मुन्डी हिला दी.

मैने उसके कुर्ते को उसके उपर से निकाल दिया, उसकी फक्क गोरी चुचियाँ नुमाया हो गयी, जो एकदम कड़क गोल-गोल जिन्हें देखकर मेरी लार टपकने लगी, 

मैने एक को मुँह में भर लिया, दूसरी को हाथ से सहलाने लगा. जैसे ही मैने उसके कंचे के साइज़ के निपल को जीभ लगाके चाटा, उसकी आँखें बंद होती चली गयी, और सिसकने लगी.

कुछ देर चुचियों पर एक्सर्साइज़ करने के बाद मैने उसको उचका कर उसकी सलवार भी निकलवा दी…

हयईए… रब्बा…मारजावां गुड ख़ाके… लंड तो मस्ती में झूम उठा उसकी गान्ड देखकर, 

क्या सुडौल, गोल-गोल छोटी सी गान्ड गोरी चिटी एकदम मुलायम, 

पाजामा फाड़ने पे उतारू मेरा पप्पू, बुरी तरह फुफ्कारने लगा… जैसे कह रहा हो-खोल पाजामा साले, निकाल मुझे बाहर, 

इस गान्ड पर किस करवा दे मेरे भाई… प्लीज़… पर फिलहाल मैने उसकी माँग ठुकरा दी.

अब मैने भूरी को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी रस छोड़ती मुनिया को हाथ से सहलाया, 

थोड़े-2 बाल आते जा रहे थे, बालों में हथेली का घर्षण बड़ा सुखद लग रहा था, 

उसकी कोरी चूत के होंठ बंद थे, जब मैने अंगूठे से उन्हें खोला, आहह… क्या पतले-2 होठ बिल्कुल जैसे उसके उपर वाले थे बिल्कुल वैसे ही. 

भूरी मस्ती में आँखें बंद किए पड़ी थी. दीं दुनियाँ से बेख़बर दूर कहीं आसमानों में उड़ती हुई………

मैने उंगली को उल्टा करके उसकी मुनिया की दरार पर बहुत ही हल्के से फिराया नीचे से उपर, उपर से नीचे.. ! 

भूरी ने एक बार अपने घुटने मोड़ कर अपनी टाँगों को भींचा और फिर से खोल दिया, उसकी कमर में कंपन सा होने लगा.

जब मैने अपनी जीभ को उसकी बंद होठों वाली मुनिया के उपर चलाया तो उसकी कमर थरथराने लगी, 

मैने अंगूठों की मदद से उसके बंद होठों को खोला और उसके अन्द्रुनि गुलाबी परत को जीभ से चाट लिया…

आअहह….म्म्मा आंम्मिईिइ….ससिईईई..ऊूउउऊऊओह…हाआसस्स्शह..

आयईयीई….भ..आ..ईयी..इय्य्ाआअ…. हाययईई… मत करो…

और उसकी गान्ड हवा में उठाने लगी…, उपर की ओर मौजूद उसकी नन्ही सी भज्नासा (क्लिट) अब खड़ी होने लगी थी और कुक्कु की चोंच की तरह बाहर को आ गई, जिसे मैने अपने होठों में क़ैद करके चूसने लगा…

भूरी का मज़े के कारण बुरा हाल था, उसकी मुनिया पानी बहाने लगी, बूँद-2 करके चुहुने लगी.

मेरा एक हाथ उसकी एक चुचि को मसल्ने लगा, उसके छोटे से छेद के द्वार पर उंगली को रख कर उसका पोर अंदर कर दिया और जीभ अपना काम कर रही थी, 

दो मिनट में ही भूरी अपना आपा खो बैठी, और कमर को हवा में उच्छाल कर उसकी चूत फुदक-2 कर पानी फेंकने लगी. 

कुँवारी चूत का टेस्टी रस मेरे पेट में जाने लगा.

एक मिनट तक लगातार झड़ने के बाद भूरी शांत पड़ गयी.. उसकी आँखें बंद थी और लंबी-2 साँसे भर रही थी.

मैने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे हिलाते हुए पुछा- कैसा लगा भूरी..? मज़ा आया..?

उसने आँखें बंद किए ही हमम्म..में गर्दन हिला दी.

इससे भी आगे जाने का मेरा मन था.. सॉरी !! मेरे लंड महाराज का, लेकिन मुझे पता था, कि ढाई साल के ब्रह्म्चर्य को झेलना इस कच्ची कली के बस का रोग नही है. 

सो मैने भूरी को कहा- भूरी कपड़े पहन और घर जा.

वो एकदम चोंक कर मुझे देखने लगी.. !

मे- ऐसे क्या देख रही है ? तो वो बोली, और करो ना भैया… इसके आगे..का.

मे- क्यों मज़ा नही आया..?

वो- बहुत आया ! पर मे वो तुम्हारा वो लेना चाहती हूँ अपनी इसमें.. , जैसे मेरे भैया भाभी के साथ करते हैं… प्लीज़ भैया दे दो ना..!

मे- वो भी मिलेगा भूरी धीरज रख, अभी वो तेरे लेने लायक नही है, जब होगा तो ज़रूर दूँगा तुझे..! ठीक है…! अब जा..

वो- उउन्न्हुउ… अभी क्यों नही..? अभी उसमें क्या कमी है..?

मे- देख भूरी ज़िद नही करते मेरी गुड़िया.. ! जल्दी दे दूँगा तू चिंता ना कर हां..! अब जा घर.

जैसे तैसे मैने उसको समझा-बुझा कर घर रवाना किया.

भूरी तो चली गयी, लेकिन अब इस लौडे का क्या करूँ ? 

पाजामा फाडे दे रहा है मादरचोद… बैठ साले.. ! मे उसको जितना नीचे को दबाता वो उससे भी दुगनी तेज़ी से उपर को आ जाता.

मैने एक लोटा भरके पानी पिया और खेतों की ओर घूमने निकल गया ये सोच कर कि कुछ मन इधर-उधर लगाके शायद शांत हो जाए.

ज़्यादातर खेतों में गेंहू खड़े थे जो इस समय बाली आने को थे, माने कमर तक उँचाई थी उनकी. 

घूमते-2 दो-तीन खेत आगे निकल गया, एक खेत में एक मजदूर घास काट रही थी अपनी भैंस के लिए. 

मे उसके पीछे जा कर खड़ा हो गया और अचानक से बोला.

मे- अरे फूलवतिया !! तू ! तू यहाँ अकेली क्या कर रही है..?

वो- पंडितजी ! भैंस के लिए घास काट रही हूँ..! 

मे- तो फिर ये अपनी झोली उतार के काट ना, इतनी बड़ी झोली साथ में लटका के काटेगी, तो गेंहू नही टूटेंगे..?

अभी तक उसने मेरी ओर मुड़कर देखा नही था, अब वो उठकर खड़ी हुई और मेरी ओर घूम कर बोली- देखो अभी तक एक भीईीई……, 

जैसे ही उसकी नज़र मेरे पाजामा पर पड़ी, वो बोलते-2 अटक गयी और आँखें फाड़-2 के मेरे उठे हुए पाजामा को देखे जा रही थी.
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