Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:02 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरा लंड साला शाम से ही उसकी वाट लगी पड़ी थी… चोट-पे चोट झेल रहा था.. तो अब फटने जैसी पोज़िशन हो चुकी थी.. बुरी तरह ऐंठन जैसी हो रही थी उसमें.

मैने कहा थोड़ा बाहर को झुक कर अपनी गान्ड तो उठा ले रानी… अब लेना ही है तो पूरा मज़ा ही कर लेते हैं… जो होगा सो देखा जाएगा…

तो उसने पहले अपनी गान्ड उचका कर अपनी पेंटी निकाल कर अपने हॅंड बॅग में रखली.. फिर पीछे से साड़ी और पेटिकोट उठा कर कमर पर रख कर दूसरी साइड को झुक गयी…

अब उसकी चूत दोनो जांघों के बीच से पीछे को उभर आई..

मैने भी अपना पॅंट और अंडरवेर घुटनो तक किया… और अपना एक घुटना उसकी गान्ड के पीछे सेट किया और दूसरी टाँग को उसकी दोनो टाँगों के बीच से निकाल कर उसकी उपर वाली जाँघ को अपनी जाँघ पर रखा…

उसकी चूत किसी फूल की तरह खिल कर मेरे लंड को नियौता दे रही थी..

मैने आव ना देखा ताव.. अपना सुपाडा उसके छेद पर रखा और एक ही झटके में पूरा लंड उसकी गीली चूत में फँसा दिया….

उसके मुँह से चीख निकल गयी… जिसे उसने अपने हाथ से कसकर दबा लिया…

मेरा लंड उसकी चूत में एकदम कस गया था… वो धीरे से फुसफुसाई..

अहह…तुमने तो दम जान ही निकाल दी मेरी… अब आराम से करना… फिर मैने धक्के स्टार्ट किए… कुछ देर में वो भी खुलकर साथ देने लगी…

उसकी चुचियाँ मसल्ते हुए में उसकी चुदाई में लगा हुआ था…

सारी बस में लोगों के खर्राटे गूँज रहे थे… आज शाम से सी आकड़ा हुआ मेरा लंड इतनी आसानी से हार मानने वाला नही था…

उसकी चूत लगातार रस बहाए जा रही थी.. ऐसे साइड को झुके-2 वो थक गयी तो मैने उसे अपनी गोद में बिठा लिया…

अब हमें कोई जागे या सोए… कोई परवाह नही थी.. बस किसी तरह से पानी निकल जाए बस तो चैन पड़े…

आख़िर कार मेरा लंड अपनी मज़िल पा ही गया.. और उसकी चूत को उसने लबालब भर दिया…

वो अबतक दो बार झड चुकी थी… सुकून उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था..

अपने कपड़े वग़ैरह सही करने के बाद थोड़ी देर हमने आपस में बात-चीत की.. वो उतरने वाली थी…उसने अपना अड्रेस भी दिया…और फिर मिलने का वादा करके वो अपनी मंज़िल पर उतर गयी……

मेरी नयी कंपनी में भी वही प्रॉडक्ट था जो मेरी प्रीवियस कंपनी में था, सो मुझे काम समझने की तो कोई प्राब्लम ही नही थी. 

हां थोड़ी ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ गयी थी यहाँ आकर, मेरा बॉस एक साउत इंडियन टीएन से जो एक निहायत ही इंटेलिजेंट, काम और कूल माइंड बंदा था, 

छोटे से कद का राजशेखरण मेरे उपर बहुत ही भरोसा करने लगा था.

यहाँ भी वर्किंग कल्चर लगभग सेम ही था, फाइनल इनस्पेक्षन के लिए 5-6 पहाड़ी लड़कियाँ थी, एक से एक गोरी-चिटी वही 19-23 साल के बीच की उम्र वाली.

पहाड़ी लड़कियों की चुचियाँ नीबू साइज़ से लेके ज़्यादा से ज़्यादा संतरे के साइज़ की बस इससे ज़यादा रेर्ली किसी की बड़ी हों. हां गान्ड थोड़ी चौड़ी ही मिलेगी, शायद पहाड़ चढ़ते-2 हो जाती होगी. 

इनमें से एक लड़की थी शांति, उम्र 22 साल, वहाँ के अट्मॉस्फियर से उलट थोड़ी साँवली और चुचे और गान्ड 36 के, ना जाने कैसे ? 

थी वो भी पहाड़ी ही. शांति का झुकाव कुछ दिनो बाद ही मेरी तरफ बढ़ने लगा जिसे मे इग्नोर करता रहा.

प्रोडक्षन में एक लड़का था देव जोशी, जो थोड़ा अध्यात्मवादी था उससे मे थोड़ा घुल मिल गया था, कारण था उसकी शुरुआती मदद जो उसने मेरी की थी घर वग़ैरह सेट करने में.

एक दूसरे जोशी जी के ही घर में मैं एक रूम लेकर रहता था, वो एर फोर्स में थे उनकी 5 बेटियाँ थी, उसके बाद एक बेटा जो मेरे सामने ही पैदा हुआ था. 

सबसे बड़ी बेटी उस समय 11थ में ही पढ़ती थी दूसरे नंबर की 9थ में. उसी क्रम में वाकी की सब ….

काफ़ी बड़ा घर था, कई कमरे किराए पर दे रखे थे, ज़्यादातर पढ़नेवाले लड़के और एक डायमंड पॉलिशिंग की छोटी सी वर्कशॉप में काम करनेवाला लड़का था. 

मेरा रूम सबसे बाहर की साइड था, जिसका एक गेट ओपन रोड पर खुलता था, सो बहुत दिनो तक तो मेरा उन सभी घर के मेंबर और किरायेदारो से परिचय भी नही हो पाया था.

देव जोशी शाम को ब्रह्माकुमारी आश्रम में जाता था, जब हम और खुलने लगे एक-दूसरे के साथ तो वो अपने अनुभव मेरे साथ शेयर करने लगा.

उसकी बातों से मुझे भी अध्यात्म में जिगयासा पैदा होने लगी और योग-ध्यान की किताबें कसेट्स का कलेक्षन शुरू कर दिया.

किताबों और ऑडियो प्रवचन से प्रेरित होकर मैने ध्यान योग की तरफ टाइम देना शुरू कर दिया और सरल विधि के आधार को लेकर लाइट मेडिटेशन से शुरुआत की जो स्वामी विवेकानंद की बताई हुई पद्यति थी.

“एक बार शिष्य नरेन्द्रा डट (विवेकानंद) ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्णा परमहंस से पुछा, गुरदेव क्या आपने परमात्मा को देखा है ? 

जबाब में कुछ देर तो उनके गुरु उनकी ओर देखते रहे फिर वो बोले- हां मैने परमात्मा को देखा है और इतना अच्छे से देखा है, जितना मे तुम्हें भी नही देख सकता.” 

उसके आगे उन्होने कोई प्रशण नही किया और जो उनके विवेक ने कहा उसी रास्ते पर वो चल पड़े.

ये लाइन्स यहाँ मैने इसलिए लिखी हैं कि किसी बताए गये सदमार्ग की आलोचना करने की वजाय अगर हम उस पर चलने का प्रयास करें तो शायद हम उसकी अन्भुति कर सकते हैं.

खैर तो मैने वो लाइट मेडिटेशन वाला तरीक़ा अपनाया जो देव को भी उसके आश्रम में बताया गया था.
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 02:02 AM

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