RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
सारी रात के जगने के कारण उनमें से एक -दो को झपकी सी आने लगी ! ये मौका सही था हमारी तरफ से उन्हें दबोचने के लिए !
हम बड़े इत्मिनान से एक दम जिन्न की तरह उनके सामने प्रकट हो गए , हमें अपने एकदम सामने देख कर वो लोग हड़बड़ा गए और एकदम खड़े हो गए ..!
में - कौन हो तुम लोग ..?
एक - तुमसे मतलव ..?
में - मतलव है तभी तो पूछा है , यहां छिप कर क्यों बैठे हो ..?
वो लोग खतरे को भांप गए और अपने -2 हथियार इधर -उधर ढूंढने लगे !
में - क्या ढूंढ रहे ..? ये इधर हैं .. और हम चरों की गन उनकी कनपटी पर चिपक गयी !
अब वो हिल भी नहीं सकते थे , लेकिन उनमें से एक फ्री था सो वो होश्यारी दिखने की कोशिश करने ही वाला था की मेरा खंजर उसके पेट में घुस गया !
वो डकारता हुआ धड़ाम से वहीँ ढेर हो गया ! उसका ये हश्र देख कर वाकी चारों की घिग्गी बंध गयी ! और आँखें फाड़ -फाड़ के हमें देखने लगे !
हमने पहले ही ये तै किया हुआ था की जरूरत न हो तब तक फायर नहीं करना है !
में अपने शिकार से बोला - आँखें फाड् -2 के क्या देख रहा है हरामी .. तुम लोग ही जान लेना जानते हो हम नहीं , और उसके साथी के खून से सना खंजर मेने उसके गले में घुसेड़ दिया , थोड़ी देर तक उसके गले से घर्रर —2 की सी आवाज आयी और फिर वो भी शांत हो गया !
इसी तरह हमने बड़ी शांति से उन पांचों का काम तमाम कर दिया और किसी को कानों कान खबर भी नहीं हुई !
उन पांचों को खिंच कर झाड़ियों में पटका , और तेजी से अपने काम में लग गए !
फटाफट सभी बारूद को उखाड़ा , समेटा और वहीँ उनकी लाशों के पास छिपा दिया ! एक बहुत बड़ा संकट टल गया था !
अब हमारे पास सिर्फ 15-20 मिनट ही थे , स्नान शुरू होने वाला था , हम फ़ौरन वहाँ से गोंदिया के अड्डे की तरफ भागे , झाड़ियों ने हमारा रास्ता मुश्किल कर दिया था , ऊपर से अँधेरा , लेकिन कुछ कर गुजरने का जूनून , किसे परवाह थी इन मुश्किलों की , बढ़ते रहे !
अड्डे से बहार पहुँच कर ऋषभ को इशारा किया की वो इंस्पेक्टर का पता करके उसके पास पहुंचे , और जैसे ही फायर की आवाज हो पुलिस एक्शन में आ जानी चाहिए !
फिर में धनञ्जय और जागेश को बोला , तुम दोनों मुझसे 50 कदम दूर रह कर मुझे कवर दो , चारो ओर से सतर्क रहना !
में आगे बढ़ा , मेने अपने मुह पर कपडा लपेट लिया ! थोड़ा आगे बढते ही एक डाकू ऊँघ रहा था , उसे जगाया और उससे बोला - सरदार कहाँ है ? वो बोला क्यों ? सरदार से क्या काम है ? तो मेने कहा - अरे भाई कुछ मत पूछो गजब हो गया , हमारा सारा प्लान चौपट हो गया है और ये बात सरदार को बताना जरुरी है , अभी !
उसने उंगली से इशारा करके जगह बताई , में उस तरफ को बढ़ गया, पीछे से आरहे धनञ्जय और जागेश ने उसको अंतिम यात्रा पर रवाना कर दिया !
में उस डाकू की बताई जगह पर पंहुचा , तो गोंदिया निरदुन्द पड़ा ऊँघ रहा था ! जैसे मेने कद कंठी के हिसाब से उसको पहचान , तुरत रिवाल्वर से फायर कर दिया !
रिवाल्वर के फायर की आवाज सुनते ही पुलिस दल हरकत में आगया गया और पहले से ही तय किये हुए अपने -2 टारगेट को निशाना बनाने लगे !
फायर की आवाज ठीक अपने सर के ऊपर सुन गोंदिया हड़बड़ा कर उठा , और इधर -उधर देखने लगा ! कुछ देर तो उसकी कुछ समझ मैं ही नहीं आया की आखिर हुआ क्या ..? जब तक वो समझ पता की मेरी गन उसकी कनपटी पे टिक चुकी थी !
हिलना भी मत गोंदिया , वार्ना इसकी एक गोली तुझे जहन्नुम पहुंच देगी ..!
वो चोंकते हुए बोला - के के कोन है तू ? क्यों अपनी मौत के मुह में चला आया ..?
मौत तो अब तेरे सर पर नाच रही है गोंदिया , तेरा नदी वाला प्लान तो हमने उखाड़ फेंका , अब तेरी बारी है ! पुलिस ने चारों ओर से तेरे अड्डे को घेर लिया है ..!!
इतना ही बोल पाया में , की चारोँ ओर से फायरिंग की आवाज़ें सुनाई देने लगी , मरने वालों की चीखें गोलियों की आवाजों में दब कर रह गयी !
में थोड़ा असावधान हो गया था ,उसका फायदा उठा कर गोंदिया ने मुझे पीछे को धक्का दे दिया और वहां से भागने लगा !
में इतना भी असावधान नहीं हुआ था , फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और तुरंत एक फायर उसके ऊपर कर दिया , गोली उसकी जांघ को चीरती हुई पार हो गयी , वो कुछ देर चीखता हुआ बैठा रहा लेकिन जल्दी ही उठ खड़ा हुआ और लंगड़ाते हुए भागने ही वाला था की में फिरसे एक बार उसके सर पर खड़ा था !
बचने का कोई रास्ता नहीं है हरामजादे , लोगों की जान को खेल समझने वाले नरपिशाच आज तुझे दिखाता हूँ , मौत का दर्द क्या होता है , और रिवाल्वर का भरपूर बार उसकी नाक पर किया !
गोंदिया घायल भैंसे की तरह डकार मारता हुआ जमीन पर गिर पड़ा , फिर मेने उसे लात घूसों पर रख लिया !
इधर पुलिस का घेरा चारों तरफ से तंग होता जा रहा था ! डाकुओं के हौसले पस्त हो चुके थे !
पिटते -2 गोंदिया बिलकुल अनाज के बोरे की तरह जमीन पर पड़ा रह गया , चीखता रहा , चिल्लाता रहा पर कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं था , और ना ही उसका कोई साथी उसकी मदद के लिए आनेवाला था !
10-15 मिनट की कार्यवाही के बाद ही पुलिस टीम और मेरे दोस्तों ने वहाँ मौजूद लगभग सारे गिरोह को ख़तम कर दिया , जो हाथ उठाये समर्पण कर रहे थे उन्हें अरेस्ट कर लिया गया !
ऋषभ के साथ इंस्पेक्टर और दूसरे पुलिस वालों को मेने अपनी ओर आते देखा , तभी मेने एक गोली गोंदिया के सीने में उतार दी और उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया ….!
हम लोगों की थोड़ी सी सतर्कता और विवेक ने एक बहुत बड़े संकट को ही नहीं टाला जिसमें सैकड़ों जानें जाने का अंदेसा था , अपितु उस पुरे इलाके को एक दुर्दांत हत्यारे डाकू के जुल्मों से हमेशा के लिए मुक्ति दिला दी थी !
पर्व का स्नान शांति पूर्वक संपन्न हुआ , उसके बाद ये बात गांव वालों को बताई गयी , सारे गांव के लोग ख़ुशी से झूम उथे , चारों ओर हर्षो -उल्लाश का माहौल पैदा हो गया था !
SP, DSP, पुलिस के और तमाम आला अफसरों ने हमारी खूब तारीफ़ की और एक बहुत बड़े इनाम का एलान भी सरकार की ओर से कराया जो हमने अपनी ओर से मंदिर के आस -पास नदी के घाट बनाने के लिए दान कर दिया !
एक -दो दिन ऋषभ के घरवालों के साथ व्यतीत किये , इस दौरान जागेश और ऋषभ ने उन दोनों बालाओं के साथ जम कर मस्ती की ! मेरा ये व्यवहार देख कर तृषा और ज्यादा प्रभावित हुयी ! फिर एक दिन हम चरों दोस्त अपने कॉलेज वापस लौट आये अपने फाइनल ईयर की पढ़ाई करने !
लौटते समय तृषा की बोलती नज़रें बहुत कुछ कहना चाहती थी , लेकिन समाज और बड़ों के लिहाज ने उसके होठ सिल दिए और उसके मनोभाव दब कर ही रह गए ! पर उसने मेरा एड्रेस रख लिया , जो मेने रति के घर का लिखवा दिया था !
ऋषभ और जागेश, अपने -2 लंड महाराज की खासी सेवा करवा चुके थे , कच्ची कलियों का रसपान करके , और उन दोनों कन्याओं ने भी कामसूत्र का अच्छा खास ज्ञान प्राप्त कर लिया था !
नेहा बेचारी प्यासी ही रह गयी , धनञ्जय ने अपने मित्र धर्म का पालन पूरी निष्ठां से किया था . वर्ना अगर चाहता तो वो भी उसकी सील को तोड़ चुका होता ! ऐसे आदर्शवादी मित्र आज के ज़माने में कम ही देखने को मिलते हैं !
खैर कुल -मिलाकर हमारा ये वेकेशन एक यादगार वेकेशन रहा जिसमें हमने ये ऐतिहासिक काम किया था !
जब हमने अपनी दास्ताँ प्रिंसिपल को सुनाई तो वो हँसते हुए बोले - जहां -जहां चरण पड़े संतान के तहाँ -तहाँ बंटाधार …है है है लेकिन बुराई का !
Well done my boy's, तुम लोग एक मिसाल हो इस कैंपस के लिए . बहुत दिनों तक तुम्हारी बातें यहां होती रहेंगी, खासकर अरुण की !
ऐसी ही सब बातें करने के बाद प्रिंसिपल बोले - देखो बच्चो ! ये साल तुम लोगों का आखिरी साल है , में चाहता हूँ की, इस साल का प्रेजिडेंट का चुनाव तुम में से ही कोई जीते , जिससे छात्रों में एक नयी जाग्रति आये , आने वाले कुछ सालों के लिए !
कॉलेज प्रशासन और छात्र लीडर जब मिलकर काम करते हैं , तो बहुत कुछ अच्छा कर सकते है आनेवाले भविष्य के लिए !
में - ठीक है सर ! इसमें कोन सी बड़ी बात है , अपना धन्नू सेठ बन जायेगा प्रेजिडेंट ! धनञ्जय मन करने लगा तो प्रिंसिपल सामने से ही बोले !
प्रिंसिपल- में जानता हूँ ! धनंजय , तुम अरुण के रहते प्रेजिडेंट का चुनाव नहीं साधना चाहते , है ना ! पर बेटे, प्रेजिडेंट से ज्यादा उसके कामों को गति देने वाले की इम्पोर्टेंस रहती है , जो पद पर रहते हुए नहीं हो सकती !
और एक बात अरुण ! इतना सरल भी मत समझना चुनाव को ! पूरी तबज्जो देनी होगी तुम्हें , कॉलेज का चुनाव किसी निकाय चुनाव से काम इम्पोर्टेन्ट नहीं होता है ! ये जब तुम लोग इसमें उतारोगे तब पता चलेगा तुम्हें !
बहुत सारे स्टूडेंट्स हैं , जो पूरी ताक़त झोकने को तैयार है ! लोकल लीडर्स का भी सपोर्ट रहता है, उन्हें . मेरी बातें धयान में रखना !
अब जाओ और आज से ही तैयारियां शुरू करदो ! बहुत मेहनत करनी होगी तुम लोगों को , ये चुनाव जीतने के लिए !
बैच शुरू हो चुके थे ! नए स्टूडेंट्स , पुराने स्टूडेंट्स … रैगिंग, इन्ही सब में महीना निकल गया .
हमने धनंजय को प्रेजिडेंट कैंडिडेट प्रोजेक्ट करके न्यूज़ स्प्रेड करदी थी पुरे कैंपस में . वैसे तो कोई सक्षम स्टूडेंट नहीं था जो हमारे ग्रुप को पॉपुलैरिटी में मात देता , फिर भी प्रिंसिपल की अनुभवी बातों ने हमें सोचने पर विवस कर दिया था !
इधर हमारी समिति से 3 लोग कम हो गए थे , वो भी अपडेट करनी थी , तो कुछ उत्सुक लड़कों को ले लिया जिसमें ज्यादातर SY और TY के स्टूडेंट्स थे ! कुल -मिलाकर 12 मेंबर हो गए थे अब समिति में !
सिविल डिपार्टमेंट से एक मंजीत सरदार नाम का कैंडिडेट बड़ी मजबूती से दावा पेश कर रहा था स्टूडेंट्स के बीच !
उसका बाप शहर का जाना मन बिल्डर था , अपनी शानदार गाड़ी से कॉलेज आना , दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना , पैसे का घमंड दिखाना ! उसको शहर के कुछ पॉलिटिशियन और बिल्डर लॉबी फुल सपोर्ट कर रही थी !
हम ठहरे फक्कड़ सज्जन टाइप के लोग , पैसा तो हमारे पास था नहीं बस अपनी सादगी और नेक नीयत के दम पर ही चुनाव जीतना चाहते थे !
वैसे पैसे का सपोर्ट हमें भी मिल सकता था , लेकिन अपनी तो अलग ही स्टाइल थी ! खामोखाँ किसी का एहशान क्यों लिया जाये ?
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