Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:53 AM,
#82
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
यही कारण है कि बुराई का कभी भी किसी भी युग में अंत नही हो पाया, क्योंकि उसका हमने कभी एक जुट होकर मुकाबला ही नही किया.

धनंजय उन लड़कों पर गुर्राते हुए बोला- आए छोड़ो इन्हें, क्यों छेड़ रहे हो..?

1- क्यों..? तेरी बेहन लगती है ये..?

धनंजय- हां मेरी बेहन है ये, लेकिन तेरी भी तो कुछ लगती ही होगी..?

2- इसकी तो ये होने वाली लुगाई है.. अब बोल..

जगेश- अपनी होने वाली लुगाई से ज़ोर ज़बरदस्ती कॉन करता है.. बे.

3- आए… तुम लोग फुट लो यहाँ से वरना …!!! इतना ही बोल पाया था वो, कि धनंजय का वो झन्नाटेदार हाथ पड़ा उसकी कनपटी पर कि उसका उस तरफ का वो कान सुन्न पड़ गया. 

दूसरा लड़का जो शरीर में ठीक ठाक था, अपनी बाजू चढ़ाता हुआ जगेश की ओर लपका, जैसे ही वो उसपे अटॅक करनेवाला था, जगेश ने उसकी बाजू पकड़ी, पलटा, अपनी पीठ पे लिया और वो धोबी पछाड़ मारा कि उसकी कमर ही बोल गयी.

उधर धनंजय ने दो लड़कों के सिर आपस में कड़क कर दिए..

वो तीनों लड़के जो उन लड़कियों को पकड़े हुए थे छोड़ कर उन दोनो की ओर लपके दोनो की टाँगें एक साथ हवा में उठी और धड़ाक से उन दोनो के मुँह पर उनके जूतों की किक पड़ी, लड़कों की नाक से खून बहने लगा.

तीसरा अभी कुछ समझ पाता कि धनंजय का एक जबर्जस्त ठकुराटी घूँसा उसकी कनपटी पर पड़ा और चक्कर खाकर वहीं ढेर हो गया..

जब तक वो लौन्डे उठके खड़े होते कि फिर से उनके कहीं ना कही पड़ जाता, फिर से कोई खड़ा हो फिर पड़े और वो धूल चाटते दिखाई देते. जगेश और धन्नु के हाथ और पैर इतनी तेज़ी से चल रहे थे कि उन लड़कों को संभलने तक का मौका नही मिल पा रहा था, उन सातों लड़कों को लात घूँसों पर ही रख लिया दोनो ने.

10 मिनट में ही वो सभी ज़मीन पर पड़े-2 कराह रहे थे. भीड़ लग गयी वहाँ तमाशा देखने के लिए.

वो तीनों लड़कियाँ और बच्चे उन दोनो से रो कर लिपट गये. उन्हें अपने से लिपटाए हुए धनंजय भीड़ पर गरजा.

क्यों.? क्या देख रहे हो आप सब लोग ? यहाँ कोई तमाशा हो रहा है ? अरे कुछ तो शर्म करो, इतनी भीड़ में कोई भी मर्द नही जो इन बच्चों की मदद को आगे आ सकता हो, क्या सब के सब हिज़ड़े हैं यहाँ पर..?

भीड़ से एक आदमी बोला- आए लड़के ज़ुबान संभाल कर बात कर..

तभी एक बुजुर्ग बोले - क्या ग़लत कहा है उसने, तुम लोग हिज़ाड़ों की तरह खड़े-2 तमाशा ही तो देख रहे थे..! शायद इंतजार कर रहे होगे कि कब इन बच्चियों के कपड़े फटें और इनके नाज़ुक अंगों को देख सको..

अच्छा सबक सिखाया बेटा तुम लोगों ने इन हराम जादो को, और फिर उस आदमी की तरफ घूम कर वो बुजुर्ग बोले - इतना ही मर्द है तो करले दो-दो हाथ इनके साथ.

वो आदमी चुप-चाप वहाँ से खिसक गया और भीड़ में कहीं खो गया.
थोड़ी देर में सब लोग फिर मेला एंजाय कर रहे थे..!

लेकिन अब मेले का एंजाय्मेंट कुछ बदल गया था, नेहा की सहेलियाँ उन दोनो से इतनी इंप्रेस हो चुकी थी कि उनकी नज़रें उनसे हट ही नही रही थी और अब वो तीनो में जगेश और धनंजय से चिपकने की होड़ सी लग गयी. 

वाकी बच्चे अपने-2 में मस्त थे.. और आगे-2 मेले में इधर से उधर घूमते फिर रहे थे. कभी कुछ खाने लगते, तो कभी किसी शो में घुस जाते.

उन दोनो को भी लड़कियों की फीलिंग का आभास हो रहा था, लेकिन वो नेहा से बचना चाहते थे, आख़िर वो थी तो उनके जिगरी दोस्त की छोटी बेहन ही.

पर नेहा के कोमल मन को इससे क्या..? वो तो बस अपनी दोस्तों को फॉलो कर रही थी और सोच रही थी कि इनसे ज़्यादा तो उसका हक़ बनता है इन पर.

नेहा ने धनंजय का हाथ पकड़ रखा था और यथासंभव अपनी बगल में सटा लिया था और चलते-2 बोली- थॅंक यू भैया आप दोनो की वजह से आज हम बच गये, वरना वो बदमाश हमारे साथ ना जाने क्या करते..

धनंजय- अरे नेहा इसमें थॅंक यू बोलने की क्या ज़रूरत है,… तू तो हमारी प्यारी बेहन है, भला हम अपनी गुड़िया को क्यों कुछ होने देते..?

नेहा का चेहरा ये सुन कर कुछ लटक सा गया, लेकिन फिर भी वो उसके बाजू को और अपनी ओर दबाते हुए बोली- ओह्ह्ह.. मेरे प्यारे भैया… आप कितने अच्छे हो..और जानबूझकर उसका बाजू अपनी अमरूद साइज़ की चुचि के साथ टच करा ही दिया.

धनंजय उसकी मासूम हरकतों को समझ रहा था, उसकी नाज़ुक अन छुइ गोलाईयों के स्पर्श से उसके शरीर में भी झुरजुरी सी दौड़ गयी, लेकिन उसने अपने को संभाला और उसके माथे पर एक किस कर दिया.

उधर उसकी वो दोनो सहेलिया भी जगेश के दोनो साइड में चिपकी हुई कुछ ऐसी ही हरकतें कर रही थी. एक ने तो उसे थॅंक यू साथ-साथ गाल पे किसी भी चिपका दिया. 

उन दोनो के चिपकने से जगेश का लंड पेंट के अंदर फनफनाने लगा. इस सिचुयेशन से अभी कैसे बचा जाए, ये सोच रहे थे वो दोनो की तभी सोनू बोला..

भैया चलो झूला झूलते हैं..! उसकी हां में हां मिलाते हुए वाकी बच्चे भी बोलने लगे. 

धनंजय बुदबुदाते हुए बोला- सोनू के बच्चे मरवा दिया ना तूने..!

सोनू – भैया ! कुछ कहा आपने..?

धनंजय - कुछ नही, अब चल झूला झूलते हैं..

झूले की सीटे ब्रेंच टाइप थी, एक सीट पर 3 लोग से ज़्यादा नही बैठ सकते थे..!

जैसे ही बैठने का नंबर आया, दो सीटो को 6 बच्चों ने लपक लिया, एक सीट पर नेहा की दोनो सहेलियाँ बैठ गयी और साथ में जगेश को हाथ पकड़ कर खींच लिया.
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