Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:51 AM,
#73
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रति अपना सर पीछे की तरफ झुकती चली गयी, जिसकी वजह से उसके पर्वत शिखर और ज़्यादा उँचे दिखने लगे… मे उसकी चुचियाँ देख-देख कर ही बाबला हुआ जारहा था और बुरी तरह मसल रहा था दूसरी को.

मैने जैसे ही अपना मुँह उसकी चुचि से हटाया, रति ने झपट के मेरे मुँह को भर लिया अपने मुँह में. और मेरे होठों को चबाने लगी. मेरे हाथ उसकी साड़ी उतरने में लग गये और उसके हाथ मेरी शर्ट.

जाने कब हम दोनो एकदम नितन्ग नंगे खड़े एक दूसरे में सामने की कोशिश में लगे थे, मेरे हाथ उसकी नंगी पीठ से होते हुए जैसे ही रति की कमर के नीचे कटाव पर पहुँचे… आअहह… क्या उठान था उसके चुतड़ों का, ऐसा लगा मानो दो कलशे उल्टे करके रख दिए हों.

जैसे ही हाथ उन कलषों के शिखर पर पहुँचे, अनायास ही कस गये, और पूरी ताक़त से दबा दिया उन्हें. रति आहह भरती हुई और ज़ोर से चिपक गयी मुझसे.

मे जिग्यासावश बैठता चला गया नीचे की ओर, उसकी नाभि… ऑश.. मेरे मौला… क्या ऐसी भी नाभि हो सकती है किसी की, एकदम गुदाज सपाट पेट में 1 सेनटीमीटर दिया का जैसे ड्रिल मार दिया हो किसी सर्फेस में. 1 इंच गहरी नाभि थोड़ी सी नीचे को झुकी हुई सी.

मेरी जीभ बिना चाटे रह ना सकी उसके अतुल्यनीय नाभि स्थल को.

जैसे ही मे अपनी मंज़िल पर आगे बढ़ा नीचे की ओर.. तो बस…! देखता ही रह गया…!! कुदरत की उस अनमोल कारीगरी को जहाँ से इस सृष्टि का उदगम होता है….!

मे अपने घुटनो पर बैठा हुआ था, उसका मध्यस्थल ठीक मेरी आँखों के सामने था जो किसी अजंता-एलोरा की कला कृति से कम नही लग रहा था.

जंपिंग बाइक के रास्ते जैसा उसकी कमर का कटाव जो उपर से आने पर हल्का ढलान लिए, तुरंत बाद एक परफेक्ट कुर्बे लिए उसके नितंबों का उठान, जैसे जियामेट्री के स्टूडेंट ने कोई आर्क ड्रॉ किया हो.

और नीचे आते ही थोड़े से टेपर के साथ दो खंबे मानो केले के दो तने खड़े कर दिए हों, ऐसी उसकी मांसल एकदम मक्खन जैसी चिकनी जंघें जिनके बीच में जगत का उत्पत्ति स्थल जो अभी तक निष्काम साबित हुआ था किन्ही कारणों से.

बाल विहीन उसकी योनि जो किसी महयोगी की साधना भंग करने में पूर्ण समर्थ हो, दो-ढाई इंच की लंबाई लिए मानो दो रेत के डेल्टा ऑपोसिट में ढलान लिए, जो एक छोटी सी दरार पड़ने से दो भागों में विभक्त हो गये हों मानो ऐसी उसकी योनि.

मैने उसकी टाँगों को हल्का सा एक दूसरे से अलग किया तो वो दरार अब एक संकरे से दर्रे में तब्दील हो गयी, अपनी जीभ को उस दर्रे में उतार दिया… आअहह… खाई में हल्का-2 गीलापन था, जो कुछ खट्टे-मीठे स्वाद जैसा लगा.

जैसे ही मेरी जिभ्या उसकी खाई में उतरके थोड़ा उपर नीचे हुई, रति की आँखें अपने आप बंद हो गयीं, और उसके हाथ की उंगलिया मेरे बालों में खेलने लगी. एक लंब्ब्ब्बबबीइई सी मादक सिसकी उसके मुँह से फुट पड़ी.

सस्सिईईई…..उउउऊओह… म्माआ.. ऊहह..अरुण … आअहह… मट्त्त… कारूव…. ईए.. सुउउ.. हेययय.. भगवान्न्न…ह.

मैने उसकी माल पुए जैसी योनि को अपने मुँह में भर लिया और हल्के से दाँत गढ़ा दिए…!

रति की टांगे काँपने लगी.. और उसका मध्यस्थल स्वतः ही थिरकने लगा.. मुँह से अजीब-2 आवाज़ें निकल रही थी उसके, मे अपनी जीभ की नोक से उसकी योनि को कुरेद रहा था.

एक इंच के करीब उसकी क्लोरिटूस एक कंचे जैसी बाहर निकल आई थी, मैने उसे दाँतों से उसे कुरेद दिया, अपनी एक उंगली उसकी योनि में घुसादी और अंदर बाहर करने लगा.

वो बुरी तरह अपनी कमर हिला-हिला कर मेरे मुँह पर मार रही, दो मिनट के लिए उसने मेरे मुँह को अपनी योनि पर बुरी तरह दबा दिया और एक हाथ से अपने बड़े-2 चुचों को मसल्ते हुए झड़ने लगी.

जब उसका ओरगिस्म ख़तम हो गया तो उसकी टाँगें काँपने लगी, अब उससे खड़ा नही हुआ जा रहा था.

अरुण बेड पर चलो ना, मुझसे अब खड़ा होना मुश्किल हो रहा है बोली वो..

एक मिनट… थोड़ा घूम जाओ, मैने कहा तो वो घूम गयी… ओह माइ गॉड… उसके नितंब… ! मेरे पास शब्द नही थे उसके नितंबों की बनावट बया करने को…!

क्या भरे-2 दो कलशो जैसे पूर्ण पुष्ट नितंब एकदम गोलाई लिए, बिल्कुल झुकने को तैयार नही. रूई के माफिक एकदम सॉफ्ट. जब मैने उन्हें जोरे से दबा कर फिर से छोड़ा तो वो थिरक उठे.

मे अपना धैर्य खो बैठा और मुँह मार दिया एक चूतड़ में, बुरी तरह से दाँत गढ़ा दिए, उसकी चीख पूरे बंगले में गूँज गयी…

आआययययीीई…. मररर गाययययीीई… मत कतो प्लस्ससस्स… और हाँफने लाफ़ी.. शिकायती लहजे में बोली वो… ऐसे भी कोई काटता है भला..

उस नितंब पर प्यार से सहलाया मैने दाँतों के निशान उसके हल्के लालमी लिए गोरे नितंब पर छप गये थे.

सहलाते-2 मन नही माना तो दूसरे को भी काट लिया.. वो बनावटी गुस्से से मूड कर देखने लगी मुझे..! मानोगे नही..! हां..!!

दोनो हाथों से उसके कलशो को सहला कर में उसके पीछे खड़ा हो गया, बिल्कुल सटके. मेरा मूसल उसकी गान्ड की दरार में लोट रहा था मानो कोई घोड़ा ठंडे रेत में अपनी थकान मिटाने के लिए लोट रहा हो…!

उसके कंधों को सहलाते हुए, उसकी गरदन को चूमा और फिर उसके कान की लौ को होठों में दबा के उसके कान में फुसफुसाया…!

तुम इतनी सुंदर क्यों हो रति…? तुम्हारे इस बदन को देख कर मेरा दिल बार-2 देखते रहने का हो रहा है…!

रति- ये दासी पसंद आई मेरे मालिक को, मेरे लिए यही बहुत है. 

क्या बिदम्बना थी मेरे जीवन की, एक 10 साल बड़ी यौवन से लदी फदि हस्थिनि वर्न की औरत अपने आप को मेरी दासी कह रही थी, वाह रे उपर वाले तेरी महिमा अपरंपार है.

मे- नही जान तुम मेरी दासी नही, मेरे दिल की धड़कन बन चुकी हो अब.

फिर मैने उसे पलंग पर लिटा दिया और टांगे चौड़ा के उसके योनि प्रदेश में एक बार फिर डूब गया..! एक बार बड़े प्यार से हाथ रख कर सहलाया उसकी रस से सराबोर योनि को और फिर उसके बीच में बैठ कर अपने शेर को दुलारते हुए उसकी गुफा पर रख दिया…!

अब और सब्र नही हो रहा है अरुण…! प्लीज़ डाल दो इसे मेरे अंदर तक, मेरी योनि कब्से इंतजार में है इसे पाने के लिए…! मानो रिक्वेस्ट की उसने.

इंतजार की घड़ियाँ ख़तम हुई रानी, ये लो..! और एक भरपूर धक्का लगा दिया अपनी कमर में. 

3/4 लंड एक झटके में चला गया उसकी चिकनी चूत में. उसके मुँह से आहह.. निकल गयी…!

आअररामम से ….! तुम्हारा हथियार थोड़ा मोटा है… आराम से जगह बनाने दो उसे…!

एक और झटका मारा तो उसकी चीख निकल गयी.. पर मेरा शेर पूरा मांद में घुस गया…!

आआययईीीई…म्माआ.. मर्गयि… धीरे… रजाअ… दर्द होता है..!

मे- रानी.. इतने सालों से लंड ले रही हो फिर ये नाटक क्यों..?

रति- आलोक का बहुत छोटा और पतला भी है इसके मुकाबले… तो दर्द तो होगा ही ना..! और तुम इसे नाटक समझ रहे.. हो.. ? 

मे- सॉरी भाभी..! और मैने अपनी कमर को मूव्मेंट देना शुरू कर दिया.. थोड़ी ही देर में उसकी राम प्यारी मेरे पप्पू के हिसाब से सेट हो गयी और वो भी कमर चलाने लगी.

एक हस्थिनि वर्न की औरत जब मज़े में आ जाती है तो वो मर्द का क्या हाल करती है, ये आज मुझे पता लगने वाला था…!

एक लय बद्ध तरीके से मेरे धक्के और उसकी कमर चलने लगे, मे जब अपनी कमर को उपर की ओर लाता तभी वो अपनी गान्ड को पलंग पर रख लेती, और जैसे ही मेरी कमर धक्का मारने को होती वो अपनी कमर को उचका कर मेरे लंड का स्वागत करती.
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