RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उधर चाकू वाले ने जैसे ही मुझे चाकू मारने की कोशिश की मैने उसका चाकू फल से पकड़ के झटका दिया, अब चाकू मेरे हाथ में था, लेकिन इस दौरान मेरा हाथ घायल हो गया और उसमें से खून बहने लगा.
किसको परवाह थी इस घाव की, मैने देर ना करते हुए बिजली की तेज़ी से घूमते हुए उन दोनो की गर्दन पर चाकू का वार किया, दोनो की गले की नसें कट गयी और वो धडाम से ज़मीन पर गिर पड़े…
जिसकी गर्दन की हड्डी टूटी थी, वो अपनी पूरी चेतना समेट कर झाड़ियों की तरफ भागा और उनमें गायब हो गया, मैने भी उसे ढूँढने की कोई कोशिश नही की.
मेरे हाथ से लगातार खून बह रहा था, वो औरत तो मुँह बाए हमारी लड़ाई में खोई थी, जब वो बचा हुआ गुंडा भी भाग गया, तब उसे होश आया और
मेरे हाथ से खून बहता देख कर मेरी तरफ लपकी, आनन-फानन में उसने अपनी साड़ी की किनारी फाडी और मेरे हाथ पर बांधने लगी.
जब वो साड़ी का टुकड़ा मेरे हाथ पर बाँध रही थी तब मेरी नज़र उस पर पड़ी और मैने उसे गौर से देखा, अंधेरे के कारण सही से तो नही देख पाया पर फिर भी मुझे साड़ी में सुंदर सी लगी.
हम दोनो झाड़ियों से निकल कर बाहर सड़क पर आ गये और शहर की ओर बढ़ने लगे, चलते-2 मैने उससे सवाल किया…!
मे- कॉन थे ये लोग..? और आप यहाँ कैसे पहुँची..?
वो- मे बाज़ार से लौट रही थी, इनमें से एक ऑटो रिक्शे वाला था उसके रिक्शे में बैठी थी, जैसे ही बाज़ार की भीड़ भाड़ कम हुई, उसने रिक्शे की स्पीड तेज कर दी, मैने बोला भी कि भैया इतना तेज क्यों चला रहे हो, आराम से चलो, तो वो बोला- मेम साब मुझे कहीं जल्दी पहुँचना है सो मे जल्दी से आपको पहुँचा कर चला जाउन्गा.
पर जैसे ही मेरे घर जाने वाला मोड निकला, ये नही मुड़ा और सीधा इधर तेज़ी से रिक्शा भगा लाया, और यहाँ अपने साथियों के पास ले आया मुझे, जो शायद इनका पहले से प्लान रहा होगा...!
चलते-2 हम शहर के नज़दीक आ गये और स्ट्रीट लाइट की रोशनी हम पर पड़ना शुरू हो गयी..
हम दोनो एक दूसरे के साथ-2 ही चल रहे थे, रोशनी में आकर मैने उसपर गौर किया..! वो एक लगभग 30 साल की भरे हुए मांसल बदन की गोरी-चिट्टी 5’6” लंबी एक सुंदर सी औरत थी जो देखने में ही किसी अच्छे घर से लग रही थी,
36” का आगे को उभरा हुआ सीना, पतला पेट, 38 की उसकी गोल-2 गान्ड जो सलीके से पहनी हुई साड़ी में थिरक रही ही, मेने थोड़ा सा पीछे रह कर उसके मटकते कुल्हों को देखा तो लगा जैसे वो दोनो एक तरह से कॉंपिटेशन कर रहे हों, कि मे बड़ा कि तू.
मे- हॅम.. ! इफ़ यू डॉन’त माइंड, मे आपको भाभी कह कर बुला सकता हूँ..?
वो- हां..हां क्यों नही..? मुझे अच्छा लगेगा. आप यही बोलिए मुझे..
मे- भाभी ! आपका घर और कितनी दूर है..?
वो- अभी यहाँ से 2 किमी और होगा,
मे- थोड़ा चुटकी लेते हुए..! वैसे भाभी जी उन बेचारे गुण्डों की कोई ग़लती नही थी, आप हो ही इतनी सुंदर की कोई भला मानुस भी अपना ईमान खो दे.
वो- शरमाते हुए तिर्छि नज़र से देखती हुई…! तो आपका भी ईमान डोल रहा है क्या..? मुझे देखकर..!
मे- मेरा डोलता तो मे आपको आपके घर तक छोड़ने क्यों आता..? मैने तो जो सच है वो कहा है बस.
वो- सच ! तो क्या आपको भी मे सुंदर लगी..?
मे कोई साधु सन्यासी तो नही, जो सुंदरता को सुंदर ना कहूँ, सच कहूँ तो आप सुंदर ही नही, काफ़ी सेक्सी और हॉट दिखती हो..मैने कहा.
वो खिल-खिलाकर हंस पड़ी, और हंसते हुए और भी ज़यादा सुंदर दिख रही थी. और फिर बोली.. हॉट..! और में..?
मे- हां काफ़ी हॉट..! वैसे अभी तक आपने बताया नही अपने बारे में.
वो- मेरा नाम रति है, मेरे पति आलोक वर्मा, मैं मार्केट में गारमेंट का शोरुम चलाते हैं, हमारी शादी 6 साल पहले हुई थी.
शुरू-2 में तो हम अपने सास-ससुर और देवर के साथ ही रहते थे, फिर आलोक ने यहाँ नयी कॉलोने में बांग्ला ले लिया और एक साल पहले ही शिफ्ट हुए हैं. फिर कुछ रुक कर बोली- आप भी तो बताओ अपने बारे में कुछ..
मे- मेरा कोई लंबा चौड़ा इंट्रो नही है, मेरा नाम अरुण शर्मा है, मेसी में थर्ड एअर का स्टूडेंट हूँ, हॉस्टिल में ही रहता हूँ बस इतनी सी पहचान है मेरी फिलहाल.
वो- घर ! घर कहाँ है आपका और कॉन-2 हैं वहाँ..?
मे- घर मेरा **** डिस्ट्रीक में पड़ता है, एक छोटा सा गाँव है, सब हैं माँ-पिता जी, बेहन भाई सब हैं, मे सबसे छोटा हूँ अपने घर में.
बातों-2 में पता ही नही चला और उसका घर आ गया. साडे 9 बज चुके थे, मे उसके दरवाजे तक उससे छोड़ के लौटने लगा तो वो ज़िद करके अपने घर के अंदर ले गयी..
आते ही उसने सबसे पहले मेरे हाथ से साड़ी का टुकड़ा खोल कर डेटोल से घाव को सॉफ किया और फिर उसकी ड्रेसिंग कर दी.
घर क्या था..पूरा एक खूबसूरत बड़ा सा बांग्ला था जिसके आगे एक छोटा सा गार्डन और एक कार पार्किंग सब कुछ, अंदर गये तो एक बड़ा सा हॉल उसे एक साइड में बड़ा सा किचेन दिख रहा था, उसके बाजू में वॉशरूम, फिर दो बड़े-2 से कमरे दोनो में अटॅच्ड बाथ रूम...
हॉल से ही गोलाई लेती हुई सीडीयाँ फर्स्ट फ्लोर को, उपर भी शायद तीन तो कमरे होने चाहिए. कुल मिलाकर, एक मीडियम फॅमिली लायक पूरी सुख सुखसुविधाओ युक्त, एक खूबसूरत घर था उसका.
मे- काफ़ी बड़ा और सुंदर घर है आपका, कितने लोग रहते हैं यहाँ..?
वो- मे और मेरे पति.. बस हम दो ही लोग हैं अभीतक..
मे- बच्चे नही हैं आपके..?
वो थोड़ी मायूस सी दिखी, मैने बात संभालते हुए कहा.. ओह्ह्ह मतलब फॅमिली प्लॅनिंग चल रही है अभी..
वो- नही ऐसी हमने अभी तक कोई प्लानिंग नही की, बस हुए ही नही अभी तक.
वो मुझे हॉल में पड़े एक बड़े से सोफे पर बिठा कर मेरे लिए किचेन से कुछ लाने चली गयी, मे इधर-उधर नज़र दौड़कर हॉल की भव्यता को देखने लगा.
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