RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
बात शुरू होती है, कुछ महीनों पहले से, आप सभी को याद होगा मेसी के कुछ स्टूडेंट ड्रग मामले में पकड़े गये थे, उन्हें पकड़वाने में इन बच्चों का हाथ था. या यूँ कहा जाए क़ि इन्होने ही पकड़ा था, हमने तो सिर्फ़ उन्हें क़ानून के हवाले किया है बस.
कोई और होता तो बात वही ख़तम कर देता,..! अरुण प्लीज़ कम हियर..! मुझे अपने बगल में खड़ा करके, और मेरे कंधे पर हाथ रख के वो फिर बोले-
ये लड़का, जो अभी मात्र 20 साल का भी नही हुआ होगा, इसने उस बात को ख़तम नही होने दिया, इसकी ज़िद थी की इस बुराई को जब तक जड़ से ख़तम नही करेंगे, ये फिर से खड़ी हो जाएगी, और हमारा ही कॉलेज क्यों, ये शहर क्यों मुक्त नही होना चाहिए इस जहर की खेती से ?
सीमित संसाधनों से, अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए इस साहसी बच्चे ने अपने कुछ साथियों को चुना, जो आप लोगों के सामने खड़े हैं.. अब ये हम नही जानते कि इसने इन बच्चों को किस तरह से इतने बड़े और जोखिम भरे काम के लिया राज़ी किया, इन्हें एक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार भी किया, और मात्र कुछ ही समय में इस कारनामे को अंज़ाम भी दे डाला.
आज इस शहर में ड्रग कारोबार के सबसे बड़े माफ़िया हकीम लुक्का समेत उसके सभी छोटे-बड़े अड्डों को तबाह करके उसके अंज़ाम तक पहुँचाने का काम इन बच्चों ने किया है, पोलीस ने सिर्फ़ अपने भृष्ट लोगों को की पकड़ा है..!
में अब सार्वजनिक रूप से ये घोसित करता हूँ, कि जितना ड्रग हमने इस दौरान जप्त किया है उसकी राशि का सरकार के नियम के मुतविक 10% इनाम इन बच्चों को दिया जाएगा, जो इनका हक़ है, और में मंत्री महोदया से निवेदन करूँगा कि इन बच्चों को पुरस्कृत कर के इनका मनोबल बढ़ाएँ, धन्याबाद.. इतना बोलकर उन्होने अपनी स्पीच ख़तम की.
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा, वहाँ मौजूद हर नज़र हम पर थी, और उनमें प्रसंसा के भाव दिखाई दे रहे थे.
उसके बाद होम मिनिस्टर ने 25-25 हज़ार रुपये का इनाम घोसित किया, और चार शब्द प्रशासा में कहे.. इस तरह से समारोह संपन्न हुआ और हम अपने कॉलेज लौट आए.
एक बार फिर हम लोग अपना ध्यान अपने कोर्स पर केंद्रित करके अपनी स्टडी मे जुट गये, एग्ज़ॅम सर पर आ चुके थे प्रॉजेक्ट वग़ैरह चल रहे थे.
देखते देखते एग्ज़ॅम भी ख़तम हो गये, रिज़ल्ट मे देरी थी, मैने सोचा एक बार घर का चक्कर लगाना चाहिए, लगभग दो साल हो चुके थे, वैसे भी अब मैने पिता जी को लिख दिया था कि पैसे ना भेजें अब मुझे फिलहाल ज़रूरत नही है..
धनंजय का गाँव भी मेरे गाँव के पास ही था, तो वो भी तैयार हो गया साथ में, वाकी दोस्त भी लगभग अपने-2 घर छुट्टियों मे जा ही चुके थे.
सागर और मोहन का तो ये फाइनल ही था, तो वो दोनो तो हमेशा के लिए विदा लेने वाले थे हम लोगों से.
जब वो हमसे विदा हुए तो हम सबकी आँखों में जुदाई के आँसू थे.. जोकि ये स्वाभाविक भी था, इतना बड़ा लाइफ मे काम जो किया था हम सबने मिलकर, जो सपने में भी सोचा नही होगा कभी..
फिर से मिलने का वादा करके वो विदा हुए..!
दूसरे दिन में और धनंजय ट्रेन पकड़के चल दिए घर की ओर, मेरा गाँव पहले पड़ता था, और उसका मेरे बाद कोई 30 किमी आगे.
डिसाइड ये हुआ कि पहले एक हफ्ते हम अपने गाँव मे रहेंगे उसके बाद उसके गाँव जाएँगे.
उसी शाम हम मेरे घर पहुँच गये, देख कर सभी खुश हुए, माँ, पिता जी, चाचा और सभी भाइयों के पैर छुये, मेरे साथ-2 धनंजय ने भी, माँ ने मुझे कितनी ही देर अपने सीने से लगाए रखा उसकी आँखों मे आँसू थे.
पिता जी ने पुछा- तुमने पैसे ना भेजने के लिए क्यों लिखा था ? तो हमने उन्हें सारी कहानी बताई, पिता जी के साथ-2 मेरे कजन, चाचा, श्याम भाई
सभी ने मुझे गले लगा कर शाबासी दी, चाचा ने तो चुटकी लेते हुए कहा—
क्यों रे नालयक, तू तो मेरा भी बाप निकला रे.. मैने कहा- चाचा ये सब आपके सिखाए गये पाठ का नतीजा है.. आपने कभी डरना सिखाया ही नही मुझे.
चाचा ये सुन कर भाव विभोर हो कर मुझे सीने से लगा लिया, जीता रह मेरे शेर.. और ऐसे ही अपने खानदान का नाम रोशन करता रह.
मैने कहा चाचा, इसमे मेरे अकेले का हाथ नही है, मेरे दोस्तों का साथ नही होता तो शायद इतना बड़ा काम नही कर पाता में, उनमें से एक ये है..धनंजय चौहान.
चाचा और पिता जी ने फिर धनंजय के गाँव वग़ैरह के बारे में पुछा, जब उसने बताया तो वो उसके परिवार से परिचित थे. उसके परिवार का भी बड़ा नाम था उसके इलाक़े में.
दूसरे दिन हम दोनो कस्बे में घूमने चले गये, सोचा शायद रिंकी रानी से मुलाकात हो जाए, उसके घर के सामने मेरे पुराने क्लास मेट राजू त्यागी के भाई की रेडीमेड गारमेंट की दुकान थी, सोचा वहीं जाकर बैठते हैं शायद बाहर निकले तो दीदार हो जाएँ.
जब हम उसकी दुकान पर पहुचे, तो हमें राजू ही मिल गया, पता चला 12त के बाद वो भी अपने भाई के साथ उसी बिज्निस में लग गया था.
20-20 किमी तक अकेला बाज़ार था ग्रामीण एरिया का, तो अच्छी-ख़ासी आमदनी हो जाती थी दुकान से. और वैसे भी पढ़ने में वो कुछ खास नही था, सो लग गया उसी धंधे में.
मुझे देखते ही राजू बड़ा खुश हुआ, पूछा क्या कर रहा है, तो मैने उसे बताया, वो बोला चल यार तू तो इंजिनियर बन ही जाएगा, हम तो बस इसी लायक हैं.
मैने कहा- और सुना वाकी सब लोगों का कैसा क्या चल रहा है.. वो बोला- सब ठीक ही है, दो-चार को छोड़ कर वाकी कुछ ज़्यादा नही कर पाए..
और तेरे आस पड़ोस के लोगों के क्या हाल हैं… वो मेरा इशारा समझ गया और हंसते हुए बोला.. कि सीधे बोल ना घुमा फिरा के क्यों पुछ्ता है, मुझे सब पता है तेरा..
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