RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रिंकी मेरे लिए खाना भी लेके आई थी, मे कहा, ये तो मस्त हो गया यार, माने पूरा दिन अपना…
मैने रिंकी का लाया हुआ खाना खाया, और फिर हम नीचे लगे हुए बिस्तर पर एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए, एक दूसरे की आँखों मे देखते हुए बातें करने लगे….
मैने अपनी ओर खींच कर रिंकी को गोद में बिठा लिया, क्रॉस करके उसके हाथों की उंगलिया मैने अपने हाथों की उंगलियों फँसा ली, उसका सर मेरे कंधे पर था,
दोनो ही अनाड़ी तो थे ही, जो भी हो रहा था, स्वतः ही होता चला जा रहा था,
रिंकी मेरे कान की लौ अपनी जीभ से टच करती हुई बोली… अरुण आइ लव यू, में तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ,
मे – आइ लव यू टू जान, और उसे कस्के अपने बाहों मे जकड लिया, स्वतः ही मेरे होंठ उसके पतले-पतले, गुलाबी रसीले होंठो पर टिक गये,
हम एक दूसरे के होठों का रस्पान करने लगे. रिंकी ने मेरे हाथों को पकड़ अपने उरोजो पर रख दिया,
में धीरे-2 उसके दशहरी आम जैसे उरोजो को सहलाने लगा,…जो अब रस से लबालब हो चुके थे इन दो सालों में.
आअहह… अरुण, थोड़ा ज़ोर्से मस्लो इनको, रिंकी उत्तेजना मे भरके बोली,
मेरे हाथ अब उसकी शर्ट के बटन खोलने मे जुट गये, शर्ट सामने से खुलते ही जो नज़ारा मेरी आँखों ने पहली बार देखा, वो मेरे लिए अद्भुत था,
रिंकी बिना ब्रा के थी, उसके डाल से पके हुए दशहरी आम जैसे एकदम गोरे दूध जैसे उरोज, बिल्कुल सीधे, ज़रा भी लटकन नही,
एकदम लाल-भूरे रंग के मात्र 1 या 1.5सेमी की गोलाई लिए आधे इंच के करीब उठे हुए उसके चुचक लगता था जैसे दो बर्फ के गोलों पर किस्मिस चिपका दिए हों,
में तो उसके उरोजो की सुंदरता मे ही खो गया, रिंकी की सोख आवाज़ सुनके होश आया,
क्या देख रहे हो अरुण, कभी किसी के देखे नही क्या???
मे – नही,… सच मे रिंकी मैने आजतक किसी के उरोज कम-से-कम इस तरह तो नही देखे,
कभी-कभार ग़लती से किसी औरत को अपने बच्चे को दूध पिलाते दिख गये हों, या बचपन मे अपनी माँ का दूध पीते हुए…
कैसे लगे तुम्हें ये..?
अब क्या बोलता उसे, बस देखे ही जा रहा था…,
जी करता है, चूस कर इन आमों का रस निकल लूं, मे बोला.
तो निकालो ना…, देख क्या रहे हो उल्लुओं की तरह, उसकी आवाज़ मे शोखी थी..
झपट ही पड़ा में उन दोनो आमों पर, लपक के उसके बाए उरोज को मुँह मे भर लिया और, दूसरे को हाथ से मसल्ने लगा.
आहह…. अरुण ….. हहाआअन्न ऐसे ही करो, और ज़ोर ज़ोर से चूसो… दोनो को… आअहह…. म्म्माोआ… बह..अयू..त्त्त…आ..कच्छाा.. लग रहाआ.. है..
में और ज़ोर ज़ोर से उसकी चुचि को पीने लगा बच्चे की तरह, रिंकी का एक हाथ स्वतः ही मेरे बालों मे फिरने लगा, जैसे माँ अपने बच्चे को दूध पिलाते समय फेरती है…
थोड़ी देर के बाद रिंकी ने अपनी दूसरी चुचि मेरे मुँह मे ठूंस दी.. में अब उसकी राइट चुचि को पीने लगा, और लेफ्ट को मसलने लगा..
रिंकी सिसकियाँ भर रही थी, मुझे भी बहुत मज़ा आरहा था, मेरा लंड फूल के कुप्पा हो गया था, और रिंकी के कूल्हे मे घुसा ही जा रहा था,
रिंकी ने अपना हाथ बढ़ा कर उसे पाजामे के उपर से ही पकड़ लिया और सहलाते हुए बोली…
इसे दिखाओ ना अरुण… मे कहा खुद ही देखले मेरी जान, अब तो ये तेरे लिए ही है, जो जी मे आए वो कर.
हम दोनो खड़े हो गये, उसने मेरे पाजामे का नाडा खोल दिया और मे अंडरवेर मे आगया. वो उसे अंडरवेर के उपर से ही मसल्ने लगी.
मैने उसकी शर्ट को निकाल फेंका, और उसके ट्रौसर की जीप खींच के नीचे कर दी, अब वो मात्र पेंटी मे थी, गुलाबी रंग की पेंटी आगे से गीली हो चुकी थी.
खड़े-2 हम एकदुसरे के होठों को चूसने लगे, मेरा शेर उसकी नाभि के उपर रगड़ रहा था, जिसकी वजह से रिंकी को मस्ती आरहि थी, और उसने घोड़े की लगाम की तरह उसे थाम लिया.
मेरे हाथ पेंटी के उपर से ही उसकी पिंकी को रगड़ने लगे. रसभरी पिंकी मे सुरसूराहट होने लगी और वो और ज़्यादा रस छोड़ने लगी.
मेरा शेर अब बेकाबू होने लगा था, और वो अपनी मांद मे जाने के लिए तड़पने लगा, उसकी मनसा जान, रिंकी ने उसे अंडरवेर की क़ैद से आज़ाद कर लिया और मेरी आँखों मे देखते हुए उसे मसल्ने लगी.
मैने भी हाथ नीचे करके उसकी पेंटी को सरका दिया और उसकी पिंकी को मुट्ठी में कस दिया.
आआययईीीईईई….ससिईईईईईईईयाअहह…… अरुण क्या करते हूऊ, प्लस्सस्स…आईीइसस्साआ….म्मात्त्ट.. कार्ररूव…न्नाअ… आआहह …मईए..म्माअर्र्र्ृिइ…..हहाअययययईए….म्म्माछआअ….उउउऊऊहह
और मेरा हाथ पूरा भिगो दिया उसकी प्यारी मुनिया ने.
रिंकी की मस्ती मे दुबई नशीली आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे, मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल था, दोनो की साँसें भारी होती जारही थी.
हम दोनो की आँखों मे अभी तक वासना का कोई नामो-निशान नही था, थी तो बस एक चाहत, एक समर्पण, एक दूसरे खो जाने की चाह बस...
अरुण प्लीज़ अब कुछ करो ना..प्लस्सस्स.. अब और सब्र नही होता मुझसे, समा जाओ मुझमे मेरे प्रियतम… मेरे हमदम…........
रिंकी बिस्तर पे लेट गयी, और मे उसके साइड मे बैठके उसके पूरे शरीर को जी भरके देखने लगा,
जैसे ही मेरी नज़र पहली बार उसके रस सागर पर पड़ी, अपनी सुध-बुध खो बैठा,
उसकी मुनिया हल्के-2 बालों के बीच अपने होठों को भीछे बड़ी प्यारी सी लगी, कोई 2-2.5” लंबी सेंटर मे एक दरार सी, मानो डेल्टा सा हो जिसमें दरार पड़ गयी हो.
दरार के अंतिम छोर पर उसके कामरस के हल्के सफेद मोटी से टपक रहे थे.
मेरा हाथ जैसे ही उसकी रस से भरी प्यारी सी मुनिया के उपर गया, रिंकी ने कस्के अपनी जंघे भीच ली, और उसके मुँह से एक लंबी सी सिसकी निकल पड़ी.
मैने धीरे-2 उसकी मुनिया को सहलाया, और फिर अपनी मध्यमा उंगली को उसके चीरे मे डालने की कोशिश की, उसकी टाँगे मेरे हाथ पर कस्ति जा रही थी,
फिर में उठाके उसकी टाँगों के बीच मे आ गया, और ज़ोर लगा के उसकी टाँगों को खोला,
शरमा कर रिंकी ने अपना मुँह एक तरफ को करके आँखों को बाजू से ढक लिया,
उसके निकलते कमरस को चखने का मन किया मेरा, सो मैने अपनी जीभ को दरार के अंतिम सिरे से निकल रहे कामरस को चाट लिया, और फिर अपनी पूरी जीभ को उपर तक लेगया.
आअहह… अरुण, प्लस्सस… ऐसा मत करूऊ…. उउऊवहााहह…ईए तूमम..क्क्याअ…क्कार्र…र्रााहीई…हहूओ…..ससिईईई…आअहनन्न…
में अपनी धुन मे लगा था, उसकी सिसकियों का मज़ा लेते हुए, मैने अपने अंगूठों की मदद से उसके योनिमुख को खोला…
आअहह… क्या नज़ारा था, एकदम गुलाबी रंग की कली सी खिल रही हो मानो…फूल बनाने के लिए…, उपरी भाग पर एक चिड़िया की चोच जैसी उसकी क्लोरिटस,
अपनी खुरदरी जीभ से उसके अंदरूनी गुलाबी भाग को रगड़ दिया…
रिंकी तो मानो कहीं बादलों मे दूर उड़ चली, उसकी कमर स्वतः ही इधर-उधर, उपर-नीचे डॅन्स करने लगी.
उत्सुकतावस अपनी जीभ को उसकी क्लोरिटस से भिड़ा दिया, जैसे ही वो थोड़ा बाहर को निकली हल्के से अपने दाँतों के बीच पकड़ लिया उसे, साथ साथ जीभ से चाटता भी जा रहा था.
तर्जनी उंगली से उसके 5-6एमएम दिया के सुराख को कुरेदने लगा, मुश्किल से दो मिनूट लगे कि रिंकी की कमर लगभग 1 फीट उपर की तरफ उठ गई,
उसका पूरा शरीर बुरी तरह झटके खाने लगा, और उसने चीख मारते हुए ढेर सारा कामर्स छोड़ दिया, जिसे में स्वाद लेकर चाट गया.
करीब 30 सेक के बाद उसकी कमर ने ज़मीन पर लॅंड किया, रिंकी बुरी तरह हाँफ रही थी, मानो मीलों की दौड़ लगाके आई हो.
मैने अपना चेहरा उपर किया और उसको पुछा, क्या हुआ था रिंकी तुम्हें ? क्यों चीखी..??
ऑश…अरुण, इट वाज़ अमेज़िंग, मुझे नही पता था कि चाटने से भी इतना सुख मिल सकता है, क्या तुम्हे पता था ये सब,
मे- नही तो, में तो… बस.. इच्छा हुई और अपने आप होता चला गया.. कैसा लगा तुम्हे..??
मत पुछो, कैसा लगा..?? में बता नही सकती, बस महसूस कर सकती हूँ, स्वर्ग की अगर कोई अनुभूति होती है, तो इससे बढ़के तो नही होगी.
में उसके बाजू मे लेट गया, उसने मेरे सीने पर अपना सर रखलिया, और मेरे लंड को हाथ में पकड़ कर सहलाने और मसल्ने लगी,
मेरा जंग बहादुर तो पहले से ही हुंकार भर रहा था, उसके कोमल हाथ मे आते ही बेकाबू होने लगा…
रिंकी अब बस बहुत हो गया, अब मेरे से नही सहन होगा… जल्दी कुछ करो..?
में क्या करूँ ? वो बोली, …जो भी करना है, तुम्हे ही करना है,
मैने फ़ौरन उसकी टाँगों को चौड़ा किया, और उनको अपनी जांघों पे रखके अपने बेकाबू लंड को उसकी लिस्लिसि गुलाबो के उपर रगड़ने लगा,
दोनो हाथों के अंगूठे से उसकी छोटी सी मुनिया की फांकों को खोला और अपना लंड उसके छोटे से सुराख के उपरे रखके दबा दिया,
चूत बहुत चिकनी हो रही थी उसके रस से, सो लंड उपर को फिसलता चला गया,
और जाके उसकी चोंच से जा भिड़ा,
आआययईीीई…. क्या करते हो मेरे अनाड़ी बलम, यहाँ नही, नीचे के छेद मे डालो,,,,
वही तो किया था, लेकिन ये साला उपर को सरक गया में क्या करूँ..
तो हाथ मे पकड़ के डालो, वो जैसे मुझे इन्स्ट्रक्षन दे रही थी.
मैने अपने मूसल महाराज को हाथ मे जकड़ा और दूसरे हाथ के अंगूठे और तर्जनी उंगली से उसकी मुनिया की फांकों को खोला और भिड़ा दिया अपने टमाटर जैसे सुपाडे को उसके सुराख पर,
हल्का सा धक्का मारते ही सुपाडा उसकी सन्करि गली के द्वार मे फिट हो गया.
अब मुझे पकड़ने की ज़रूरत नही थी, रिंकी मीठे दर्द युक्त मज़े मे आँखें बंद किए पड़ी थी, आनेवाले अन्भिग्य पलों के इंतजार मे.
मैने थोड़ा सा अपनी कमर को और धकेला आगे को, तो रिंकी के मुँह से एक चीख निकल पड़ी, साथ ही मुझे भी दर्द का एहसास हुआ अपने सुपाडे के निचले हिस्से में.
क्या हुआ रिंकी..? मैने पुछा उसको, ….अगर नही हो पा रहा तो निकाल लूँ इसे बाहर……
वो तुरंत बोली, नही… बिल्कुल नही, तुम मेरी चिंता मत करो, आगे बढ़ो.
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरा सुपाडा किसी प्लॅटफार्म पे रेस्ट कर गया हो, और उसके आगे का रास्ता ब्लॉक हो.
ये शायद उसकी झिल्ली थी, जो मेरे लंड को आगे जाने से रोक रही थी,
मैने अपने हाथों को ज़मीन पे जमाया, उसके दोनो बगलों से, और एक कस्के धक्का देदिया…..
हम दोनो के ही मुँह से एक दर्दनाक चीख निकल पड़ी, मुझे लगा जैसे मेरा लंड फट गया हो, किसी दीवार की रगड़ से,
रिंकी का तो और ही बुरा हाल था, वो अपने चेहरे को इधर से उधर पटक रही थी, मारे दर्द के उसकी कजरारी आँखों से झर-झर पानी बह रहा था,
बेड शीट को अपनी मुट्ठी में जकड लिया,…और अपने निचले होंठ को दाँतों से चवा डाला…
कितनी ही देर मे दम साढे यूही पड़ा रहा, जब कुछ रिलॅक्स फील हुआ, तो मैने रिंकी से फिर पुछा, जान ! बहुत दर्द हो रहा है ?
वो बहुत बहादुर निकली, और कराहते हुए बोली…ये तो पहली बार सबको ही होता है अरुण, तुम उसकी चिंता मत करो, धीरे-2 अंदर बाहर करो और आगे बढ़ते रहो.
अभी तक मेरा शेर गुफा मे आधे रास्ते तक ही पहुच पाया था,
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