RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
एक दिन मौका निकाल कर हम फिर मिले, और अपने भविष्य के बारे में सोचने लगे,
रिंकी चिंतित स्वर में- अरुण अब तो तुम्हारे एग्ज़ॅम हो जाएँगे उसके बाद क्या प्लान है,
मे – देखते हैं रिज़ल्ट कैसा आता है, वैसे मैने इंजीनियरिंग डिप्लोमा का सोचा है, फिर देखते हैं, क्या हो पता है समय के हिसाब से.
रिंकी – तो अब हम कभी नही मिल पाएँगे..?
मे – क्यों ? ऐसा क्यों बोल रही हो? क्यों नही मिल पाएँगे..?
रिंकी गंभीर स्वर में, तुम अगर बाहर चले जाओगे तो कैसे मिलेंगे, में तुम्हारे बिना कैसे रह पाउन्गी ?
मे – तुम 4 साल मेरा इंतजार कर सकती हो..?
रिंकी – अरुण मुझे नही लगता है कि हम कभी एक हो पाएँगे, इसलिए में एक बार तुम्हे संपूर्ण रूप से पा लेना चाहती हूँ, क्या तुम ऐसा कर सकते हो??
मे – मतलब ??
अरुण, हम दिल से एक दूसरे के तो हो ही चुके हैं, तो में चाहती हूँ कि तन से भी एक दूसरे के हो जाएँ, फिर जिंदगी में मिल पाए या नही ये कहते हुए रिंकी की आँखे छालछला गयी.
में उसकी आँखों मे छलकते हुए उसके जज्बातो को समझने की कोशिश कर रहा था, जैसे ही मेरे ज़ज्बात उसके जज्बातों से मिले, मैने कस के उसे अपने सीने से लगा लिया.
मैने उसके माथे को चूमा और उसकी झील सी आँखों से निकले मोतियों को पीने लगा,
रिंकी की रुलाई फुट पड़ी, अरुण प्लीज़ कुछ करो ना, में तुम्हे संपूर्ण रूप से पाना लेना चाहती हूँ, फिर चाहे मुझे मौत भी आजाए तो गम नही.
मैने अपने होठ उसके होठों पे रख दिए और एक सॉफ्ट किस करते हुए कहा,
नही जान, मरे हमारे दुश्मन, ईश्वर ने चाहा तो हम एक साथ जिंदगी बिताएँगे… मैने भावुक होकर कहा.
ऐसा संभव नही हो पाएगा अरुण, ये सामाजिक बंधन, हमारे परिवारों की सामाजिक परंपरा कभी इसकी इजाज़त नही देंगी.. वो बोली.
तुम ब्राह्मण परिवार से हो में जैन, दोनो ही एक दूसरे को नही अपनाएँगे.
में सोच मे पड़ गया, … फिर कुछ सोच के..
मे- ठीक है, मेरा सेंटर तहसील टाउन मे है, और पेपर टाइम सुबह 7 बजे से रहेगा तो हम अपने घरों से तो रोज़ जा नही सकेंगे, हमें वहाँ रहने के लिए एक महीने रेंट पर लेना पड़ेगा.
उस बीच तुम मौका निकाल कर वहाँ आ सकती हो..?
रिंकी – उसमें कोई बड़ी बात नही है, मेरे पिता जी की कंपनी वही है, और मेरे एग्ज़ॅम के बाद छुट्टियाँ है, तो में उनके पास चली जाउन्गी.
फिर ठीक है, वही मिलते हैं और पूरा करते हैं अपना अधूरा मिलन.
में मस्त मौला, मेहनत करते करते, इतना बड़ा हुआ, लेकिन सेक्स में एबीसीडी भी नही पता था, मौहोल ही नही था मेरा, परिवार में सब बहुत बड़े-2 थे.
यारों दोस्तों में भी सभी लफंदर थे, मार-पीट में माहिर लेकिन सेक्स से कोसों दूर रहते थे,
एरेक्टेड लंड कैसा होता है ज़्यादा पता नही था, तो औरत के शरीर के बारे में तो बहुत ज़्यादा पता ही क्या होगा.
सबसे बड़ा कारण था घर के संस्कार, गीता भागवत पढ़ने वाला माहौल था, तो सेक्स भी शादी-सुदाओं तक ही सीमित था,
होता होगा, करते होंगे लोग लेकिन चूँकि अपना कोई इंटेरेस्ट नही था, तो ज़्यादा क्यों खोपड़ा लगाए.
कभी-कभी सुबह अंडरवेर कड़क सा लगता था, जैसे कि चासनी लग्के सुख गयी हो, दोस्तों से पुछा भी तब पता लगा कि ये स्वाभाविक है,
इसको नाइट फॉल कहते हैं, शरीर में जब वीर्य की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, तो सपने में कुछ दिखाई देता है, तो निकल भी जाता है, इसमें चिंता की कोई बात नही है,
मैने कहा, लेकिन मुझे तो कोई सपना नही आया फिर.. दोस्त- तुझे याद नही होगा, आता है, मुझे तो हफ्ते में कई बार हो जाता है.
वैसे तू चाहे तो किसी लड़की या औरत को पटा ले और उसको चोद दे तो फिर नही होगा.
मे कहा ना यार इस चक्कर में नही पड़ना, जब ज़्यादा ज़रूरत होगी तब देखा जाएगा, वैसे भी इन कामों के लिए समय चाहिए, जो अपने पास नही है.
तो फिर एग्ज़ॅम की तैयारी शुरू हो गयी, 1 महीना ही बचा था, पिता जी ने भी एक मजदूर और रखलिया और मुझे सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा,
में भी मन लगाके पढ़ाई मे जुट गया, क्योंकि बिना अच्छे मार्क्स लिए, कहीं इंजीनियरिंग डिग्री या डिप्लोमा में एडमीशन संभव नही था तो सीरियस्ली लग गया.
एग्ज़ॅम से 4 दिन पहले मेरे चाचा दी ग्रेट, मुझे लेके तहसील टाउन पहुँचे और अपने पहचान से एक माँ के मंदिर मे साइड का कमरा खाली था वो मुझे दे दिया रहने को.
कमरा क्या, पूरा हॉल जैसा, आगे बौंड्री वॉल से घिरा हुआ काफ़ी बड़ा आँगन जैसा.
एग्ज़ॅम से एक दिन पहले में वहाँ पहुँच गया, बिस्तर-इस्तर नीचे ज़मीन पर ही लगा लिया, अब एक महीने की ही बात थी, उसमें से भी बीच-2 मे लंबी छुट्टियाँ थी तो घर चले जाना था, तो क्या पलन्ग-वलन्ग का जुगाड़ करते.
वैसे मंदिर के पुजारी जी ने तो बोला भी की, चारपाई चाहिए तो है हमारे पास से ले-लेना, मेने कहा कोई ज़रूरत नही है, अपने को तो पढ़ना ही है ना.
एग्ज़ॅम शुरू हुआ, पहला ही पेपर साला मैथ का, जिसमे गान्ड फटी पड़ी थी, तो डर था कि पता नही कैसा होगा.
माँ की कृपा से ईज़ी पेपर आया और मेरी एक्सपेक्टेशन से अच्छा गया.
रिंकी को में आने से पहले अड्रेस बता के आया था, में जैसे ही पेपर देके वापस आया मुझे मंदिर मे रिंकी मिल गयी,
वाउ! डबल खुशी… पेपर भी अच्छा, और अपनी जान भी अपने पास.
मंदिर मे दोपहर के समय ज़्यादा भीड़ नही थी, पुजारी जी माँ का भोग वग़ैरह लगा के अपने आराम करने मंदिर के पीछे बने हुए कमरे मे चले गये.
हम दोनो दर्शन करके अपने रूम पर आ गये, मैने उसे अपनी बाहों मे कस लिया और पूछा..
कैसे क्या चल रहा है, यहाँ का क्या हिसाब किताब है, तुम्हारे पिता जी का.
रिंकी – पिता जी वैसे तो यहाँ रहते नही है, लेकिन कभी-कभार रुकते हैं तो कंपनी ने ही क्वार्टर दे रहा है, उसी में रुकते हैं.
मैने कहा कि छुट्टियाँ हैं तो कुछ दिन में हवा पानी बदलने के लिया आपके पास आ जाओ, तो वो तैयार हो गये, कि ठीक है, 10-15 दिन रह लो.
दिन में वो सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक फॅक्टरी मे ही रहते हैं. (रिंकी के पिता एक ग्लास फॅक्टरी में मॅनेजर हैं).
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