RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दोनो ने अपने-अपने कपड़े पहने, तब तक प्रेमा की माँ भी आ गई, उनसे थोड़ी-बहुत बात-चीत हुई, समझाया बुझाया, कि अब ऐसी नौबत नही आएगी..
माँ ने पुछा भी कि इतनी जल्दी ऐसा क्या हो गया जो मान गई…
गोल-मोल जबाब दे के और खाना खा पीक वो दोनो वहाँ से चल दिए, बोलते-बातें करते, एक दूसरे के साथ छेड़-छाड करते हुए, रास्ता आसान हो गया, और रात के अंधेरे में वो अपने खेतों पर पहुँच गये, प्रेमा को गन्ने के खेतों में छोड़ा, और रामसिंघ खुद अपने घर आ गये..
हां !! सही सोचा आपने, और उसका जबाब है, कि प्रेमा वाकई में बहुत बहादुर औरत थी, जो कि अकेली गन्ने के खेत में रात के अंधेरे में रह गई..
थोड़ी सी सोने लायक जगह बनाई, और एक चादर बिच्छा कर लेट गयी…
चूँकि ! रामसिंघ की ज़िम्मेदारी घर के बाहर के कामों की व्यवस्था करना था, सो किसी ने पुच्छने की ज़रूरत नही समझी कि सुबह से कहाँ थे.
पत्नी बेचारी वैसे ही बहुत सीधी-सादी थीं, उनकी तो ज़्यादा बात करने की हिम्मत ही नही होती थी पति से, और वैसे भी उनकी ज़रूरत तो वो चलते-फिरते ही पूरी कर देते थे.
घर से कुत्तों और जानवरों का बहाना करके रोटियों का इंतेजाम किया, कुछ साथ में खाने का बनिया के यहाँ से चीज़ें लेके खेतों पर चले गये, जो कि रोज़ ही वहीं सोते थे लगभग..
जाके प्रेमा को खाना खिलाया और फिर सारी रात उनकी एक-दूसरे की बाहों में कटी, 3-4 बार जमके चुदाई की, और वहीं खेत में गन्नों के बीच ही सो गये,
फाल्गुन का महीना था, ना ज़्यादा गर्मी, सर्दी जा चुकी थी, तो खुले में रात काटना अच्छा लगा…
सुबह रामसिंघ, रामचंद काका के यहाँ पहुँचे, जब उन्हें बताया कि काकी आने को राज़ी हो गयी हैं, और एक-दो दिन में आ जाएगी, किसी को जाने की ज़रूरत नही है…
ये सुन कर काका और परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नही रहा, और वो लोग रामसिंघ को जी भर-भर के दुआएँ देने लगे..
इसी तरह तीन दिन निकल गये, प्रेमा का तो मन ही नही था, लेकिन काफ़ी समझा-बुझाने के बाद वो तैयार हुई और एक शाम को हल्के से अंधेरे में अपना समान उठाए घर पहुँच गई….
जब भी मौका लगता रामसिंघ और प्रेमा की चुदाई चलती रही, इसी तरह समय निकलता रहा, उन दोनो के बच्चे हुए, रामसिंघ के जहाँ अपनी पत्नी से 4 बच्चे थे, वहीं प्रेमा काकी ने भी 7 बच्चे निकाल दिए, 4 लड़के और 3 लड़कियाँ,
जिसमें सबसे बड़ा लड़का ही रामचंद काका के लंड से था, वाकी रामसिंघ और फिर बाद में प्रेमा के देवर से भी एक-दो, और भी… थे, जिनके नाम लेना ज़रूरी नही है.
समय निकलता रहा, परिवार बढते रहे, बड़े भाई के लड़कों और चाचा रामसिंघ में छत्तिस का आँकड़ा था, बड़े भाई चोरी छुपे अपने लड़कों को बढ़ावा देते रहे, जिससे वो बदतमीज़ तो थे ही, बदमाशों की संगत में ख़तरनाक होते जा रहे थे.
इन्ही ख़ुसी और गम के चलते, परिवार के सबसे छोटे लड़के ने जन्म लिया, जिसे हम पहले बता चुके हैं कि किन जटिलताओं में उसका जन्म हुआ.
जन्म दिन की ख़ुसीया भी मनाई गई, चाचा रामसिंघ इन्ही खुशियों को आज अपनी चुदेल काकी प्रेमा के उपर चढ़ कर उसकी गान्ड में लंड डालकर मना रहे थे..
प्रेमा कमर चलाते हुए– रामसिंघ…
रामसिंघ – हॅम..
एक बात कहनी थी तुमसे, तुम्हारे बारे में ही है, लेकिन सोच रही हूँ कैसे कहूँ…, कहूँ भी या नही…..
हां बोलो ना, क्या बात है ? और ऐसे क्यों बोला कि कहूँ या नही… क्या छुपाना चाहती हो मुझसे..?
नही ऐसा नही है, बात ही ऐसी है, पता नही तुम भरोसा करोगे या नही…
क्यों भरोसा क्यों नही करूँगा… आजतक किया ही है ना..
असल में तुम्हारे भतीजों की बात है, तो पता नही तुम मनोगे भी या नही..?
रामसिंघ के कान खड़े हो गये… और वो अपने धक्के रोक कर बोले,, बताओ प्रेमा क्या बात सुनी है तुमने…
में कल रात के करीब 12 बजे पेसाब के लिए उठी, तो सामने रास्ते पर कुछ लोगों को खड़े होके बात चीत करते दिखे, गौर से देखा तो मैने भूरे और जीमीपाल को तो पहचान लिया लेकिन वाकी कॉन थे ये पता नही…
तुमने उनकी बातें सुनी..??
ज़्यादा तो नही… में थोड़े चुपके से उनके नज़दीक गई और उस पेड़ की आड़ में खड़ी हो कर उनकी बातें सुनने लगी, रात के सन्नाटे में उनकी धीमी आवाज़ भी मेरे कानों तक पहुँच रही थी…
तू चिंता मत कर भाई, रामसिंघ चाचा को तो में छोड़ूँगा नही, ये शायद जीमीपाल था,
और दूसरे किसी में दम नही जो हमारा मुकाबला कर सके, जानकी चाचा और उसके लौन्डे तो साले डरपोक ही हैं, वो वैसे भी हमारा विरोध करने लायक नही हैं.
चल फिर ठीक है, कोई ठोस प्लान बनाते हैं उसे मारने का, कहीं फैल हो गये तो फँस जाएँगे…भूरे बोला..
इतना बोलके, वाकी 3 लोग अपनी-अपनी साइकल लेके दूसरे गाँव की तरफ चले गये, और वो दोनो भाई अपने गाँव की तरफ.
मैने जब ये सुना तो में तो एकदम सन्न रह गयी, कि ये तो नाश्पीटे, तुम्हें मारने की साजिश रच रहे हैं, इसलिए थोड़ा सावधान रहना.. कहीं सच में वो ऐसा ना करदें..
रामसिंघ भी सोच में पड़ गये, लेकिन प्रकट में बोले, अरे नही-नही वो ऐसा नही कर सकते, ऐसे ही कुछ बात कर रहे होंगे, किसी को मारना कोई खेल तमाशा नही है, वैसे भी वो कल के लौन्डे हैं मेरे सामने…
प्रेमा थोड़े चिंतित स्वर में…, फिर भी थोड़ी सावधानी से ही रहना…
चल ठीक है, अच्छा किया जो तुमने मुझे बता दिया… अब में चलता हूँ,
रामसिंघ वाकई में सोच में पड़ गये, वो जानते थे कि ये दोनो लड़के किस संगत में हैं आजकल.
अब रामसिंघ सतर्क हो चुके थे, उधर उन दोनो भतीजों को भी कोई मौका नही मिल पा रहा था..
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