RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
उंगली की बात सुन कर मेरी योनि भड़क उठी. मगर मैं सोच में पड़ गयी की सोफे की औट में जाना ठीक होगा कि नही.
हाथ पकड़ लिया और मुझे सोफे की तरफ खींचता हुआ बोला, "जल्दी चल...इस से पहले की गगन जाग जाए मुझे मेरा पानी निकाल लेने दे."
"रूको कपड़े उठा लेते हैं यहाँ से."
"ओह हां उठा लो."
मैने अपनी ब्रा,पॅंटीस, कमीज़ और सलवार फर्श से उठा ली. चाचा ने भी अपने कपड़े उठा लिए और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर सोफे के पास ले आया.
थ्री सीटर सोफे के सामने जो टेबल रखी थी चाचा ने वो थोड़ी सरका दी और बोला, "लेट जाओ तुम. मैं आराम से बैठ कर उंगली करूँगा चूत में."
इतनी गंदी बाते सुनना मुझे अजीब सा लग रहा था मगर मैं सुने जा रही थी.
"अरे लेट ना देर मत कर." चाचा ने मेरे कंधे पर दबाव डालते हुए कहा.
मैं चुपचाप बिना कुछ कहे नीचे कालीन पर लेट गयी. मेरे लेटते ही चाचा मेरी टांगे चौड़ी करके उनके बीच बैठ गया. मेरे बाईं तरफ थ्री सीटर सोफा था, बाईं तरफ टेबल थी. मेरे सर की तरफ टू सीटर सोफा था और मेरे पाओं की तरफ भी एक टू सीटर सोफा था. सोफे के पीछे जो दीवार थी वो मेरे बेडरूम की दीवार थी जिसके पीछे मेरा पति सोया हुआ था.
"डाल दूं."
"क्या डालने की बात कर रहे हो."
"उंगली और क्या. मगर उस से पहले एक बार मुझे तेरे उपर लेट जाने दे." चाचा टांगे फैला कर मेरे उपर पसर गया. उसका लिंग मेरी योनि के ठीक उपर था.
"ये क्या कर रहे हो हटो. जो काम करना है वो करो. मेरा वक्त बर्बाद मत करो."
"थोड़ी देर तो ये अहसास पा लेने दे की मैं तेरे उपर चढ़ कर तेरी चूत मार रहा हूँ. ये अहसास मेरा पानी निकालने में मदद करेगा."
"तू एक नंबर का कमीना है देहाती. नीच है..सूअर है. बोलता कुछ है करता कुछ है."
अचानक चाचा ने दोनो हाथो से मेरा मूह ढक लिया और अपनी कमर को उपर करते हुए अपने लिंग के सूपदे को मेरी योनि पर टिकाने की कोशिश करने लगा. क्योंकि उसके दोनो हाथ मेरे मूह पर थे इसलिए उसे दिक्कत आ रही थी. मगर अगले ही पल मेरे होश उड़ गये. मेरी साँस अटक गयी. ज़ोर से चीखना चाहती थी पर मेरे मूह को देहाती ने ज़ोर से बंद कर रखा था. चाचा के लिंग का मोटा सूपड़ा मेरी योनि के छोटे से छिद्र में फँस गया था. चाचा ने बड़ी चालाकी से उसे वहाँ फसाया था. मेरी आँखो से आँसू निकलने लगे और मैं छटपटाने लगी. मैं उसके मूह पर कमर पर हर जगह मुक्के मार रही थी. पर देहाती टस से मस नही हुआ. कुछ देर वो अपने सूपदे को यू ही मेरी योनि में फँसाए पड़ा रहा. बिल्कुल भी नही हिला. ना ही मुझे हिलने दिया. मेरा दर्द कब गायब हो गया मुझे पता ही नही चला.
चाचा ने मेरे मूह पर से अपने हाथ हटा लिए और बोला, "धीरे धीरे डालूँगा चिंता मत कर."
"गगन........" मैं ज़ोर से चिल्लाई.
चाचा ने तुरंत मेरा मूह दोनो हाथो से फिर से दबोच लिया.
"चुप कर. तुझे भरपूर मज़ा आएगा. बस थोड़ी देर रुक जा." चाचा ने ये बोल कर एक ज़ोर का धक्का मारा और चाचा का सूपड़ा मेरी योनि को चीरता हुआ अपने पीछे आधा लिंग भी मेरे अंदर ले आया. मेरा फिर से बुरा हाल हो गया. मैं उसे कहना चाहती थी कि और ज़्यादा मेरे अंदर मत डालना नही तो मैं मर जाउन्गि. पर मेरा मूह उसने दबोच रखा था. मैं थोड़ी देर छटपताई. जब दर्द हट गया तो मैं शांत हो गयी. मुझे शांत देख चाचा की हिम्मत बढ़ गयी और उसने ज़ोर से एक और धक्का मारा और चाचा का पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि के अंदर उतर गया. मुझे इस बात का पता एक बात से लगा. मेरी योनि के द्वार से ठीक नीचे चाचा के अंडकोष टकरा रहे थे. मुझे बहुत ज़्यादा आश्चर्या हो रहा था कि चाचा का इतना लंबा और मोटा लिंग पूरा मेरी छोटी सी योनि में समा गया था. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. मैं छटपटा भी रही थी पर असचर्या ने मुझे इस कदर घेरा हुआ था की मैं सब कुछ भूले पड़ी थी चाचा के नीचे.
क्योंकि मुझे यकीन नही हो रहा था इसलिए मैने अपना हाथ अपनी योनि तरफ बढ़ाया. मैने अपनी योनि के छिद्र के ठीक नीचे अपनी उंगलियों से च्छू कर देखा था चाचा के अंडकोष को वहाँ टीके पाया. मैने तुरंत अपना हाथ वापिस खींच लिया.
"क्या हुआ मेरी जान. च्छू ले ना मेरे आँड को. देख पूरा का पूरा घुसा रखा है तेरी चूत में मैने. बड़े नखरे कर रही थी तू. अब देख तेरा क्या हाल करता हूँ मैं. तेरी चूत का कचूमर ना निकाल दिया तो मेरा नाम बदल देना." चाचा ने ये बोल कर ज़ोर से अपने लिंग को बाहर की तरफ खींचा फिर ज़ोर से दुबारा अंदर धकेल दिया. मैं चाह कर भी चीन्ख ना पाई. कुछ देर वो यू ही करता रहा.
क्रमशः……………….
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