RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
"मुझे ख़ुसी मिल जाएगी और कुछ नही. पूरी नंगी लड़की के साथ जो मज़ा है वो कही नही." मेरी पॅंटीस भी मेरे शरीर से अलग हो गयी. अब मैं थर थर काँप रही थी. मुझे डर लगने लगा था. ड्रॉयिंग रूम में मैं पूरी नंगी चाचा के हाथो का खिलोना बन रही थी. मेरे मन के किसी कोने में शायद बस अपने नितंब और योनि को मसलवाने की इच्छा थी. वो भी कपड़े पहने हुए. थोड़ा सा सरका कर चाचा अपनी उंगलियाँ अंदर डाल देता तो बात बन जाती. बस इतनी ही इच्छा थी बस इतनी ही तड़प थी जिसे लेकर मैं अपने बेडरूम में करवट बदल रही थी. चाचा कल जा रहा था बस आखरी बार उसके हाथो में अपनी योनि और नितंब सौंप देना चाहती थी. पर अब बात कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी थी. मैं सोच में डूबी पड़ी थी. अचानक मैं सिहर उठी. मेरा ध्यान टूट गया. चाचा ने मेरी योनि में एक साथ 2 उंगलियाँ डाल दी थी.
"बहुत चिकनी हो रखी है चूत तुम्हारी उंगलिया बड़ी जल्दी ले ली इसने अंदर."
मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया ये सुन कर. चाचा ने ज़ोर ज़ोर से मेरी योनि के छिद्र को रगड़ना शुरू कर दिया.
"आअहह धीरे आअहह."
"वो तो ठीक है. तू अपनी आवाज़ नीची रख. मेरी बात मान चल मेरे कमरे में आराम से कुण्डी लगा कर मज़े करेंगे."
"नही मैं वहाँ नही जाउन्गि." कमरे में चाचा कुछ भी करता तो मैं रोक ना पाती क्योंकि उस बंद कमरे से बाहर आवाज़ भी नही आती थी. इसीलये मैं वहाँ नही जा रही थी.
चाचा कुछ देर मेरी योनि को ही घिसता रहा. इस दौरान मैं 2 बार झाड़ चुकी थी. अचानक उसने मेरी योनि से उंगलियाँ निकाल ली और मुझे उल्टा घुमा दिया. अब मेरी पीठ चाचा की तरफ थी.
चाचा ने ज़ोर से थप्पड़ मारा मेरे नितंब पर और बोला, "अब तेरी गान्ड की बारी है."
चाचा ने दोनो हाथो से मेरे नितंब की गोलैईयों को कुचलना शुरू कर दिया.
मैं आनंद के सागर में डूबती चली गयी. कुछ देर वो यू ही कुचलता रहा फिर रुक गया. उसने दो उंगलियाँ मेरे नितंब की दरार में घुसा दी और मेरे गुदा द्वार को खोजने लगी. पहले चाचा ने एक उंगली घुसाई फिर थोड़ी देर बाद दूसरी भी घुसा दी. और चाचा की उंगलियों के द्वारा मेरा नितंब मैथुन शुरू हो गया. मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लग गयी. मेरी योनि फिर से एक बार झाड़ गयी. मेरी इच्छा की तृप्ति हो चुकी थी. अचानक चाचा ने मेरे नितंब से उंगलियाँ निकाल ली और मेरी पीठ से सॅट गया. मैं काँपने लगी...क्योंकि उसने अपना लिंग बाहर निकाल रखा था और वो उसे मेरे नितंब की दरार में घुसाने की कोशिश कर रहा था.
"हटो बस बहुत हो गया. अब मैं जा रही हूँ."
"डलवा ले ना एक बार. 2 साल से भूका प्यासा है मेरा लंड."
"किसी और को पटाओ. मैं ये सब नही कर सकती हटो."
"थोड़ा से डाल लेने दे. मेरे प्यासे लंड को शुकून मिल जाएगा." चाचा ने मेरे नितंब की दरार पर अपना लिंग रगड़ते हुए कहा. उसके इस तरह रगड्ने से मेरी दरार गीली हो गयी क्योंकि चाचा के लिंग से लार निकल रही थी. मैने उसे हटाना चाहती थी पर उसने एक हाथ से मुझे दीवार से सटा रखा था.
"हटो." मैं चिल्लाई
चाचा तुरंत हट गया क्योंकि मैं ज़ोर से चिल्लाई थी. मैं वापिस घूम कर सीधी हो गयी और अपने कपड़े उठाने लगी.
"तू बड़ी स्वार्थी है. अपना पानी तो जी भर कर छोड़ लिया मेरी बारी आई तो जाने की बात कर रही है."
"देखो मैं वह सब नही कर सकती. रात बहुत हो चुकी है सो जाओ जाकर."
"चल अंदर मत डलवा...थोड़ा हाथ से हिला दे...मेरा पानी भी निकाल दे नही तो मैं तड़प्ता रहूँगा." चाचा गिद्गिडा रहा था. पर मैं अपने हाथ में उसका लिंग नही थाम सकती थी.
"तुम खुद अपने हाथ से हिला लो. मुझे नींद आ रही है."
"इतनी भी बेरहम मत बनो. कम से कम हाथ से ही कर दे."
"चुप कर गँवार देहाती. अपनी औकात में रहो. मुझे क्या समझ रखा है तुमने." मैं चाचा को नीचा दिखा रही थी. दिखाती भी क्यों ना. उसने भी तो मनमानी की थी मेरे साथ. ये तो गगन घर पर था नही तो इन तीन दिनो में वो मेरे साथ कुछ भी कर सकता था.
"कुछ भी बोल ले पर थोड़ा सा हिला दे पकड़ कर. मेरा पानी निकल जाएगा तो तुम चली जाना."
क्रमशः……………….
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