RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-12
गतान्क से आगे……………………
"मैने बहुत कोशिश की उसे पटाने की मगर वो नही मानी. बोली की तुम्हारा लंड बहुत बड़ा है. मैं इसे दुबारा अपनी गान्ड में नही ले सकती."
"झूठ ऐसा बोल ही नही सकती कोई लड़की."
"तेरी कसम उसने ऐसा ही बोला था. वो छोटा लंड लेकर ही खुस थी. बड़े लंड का दर्द सहने की उसमे हिम्मत नही थी. मगर जो भी हो साली की गान्ड बहुत मस्त थी."
"एक बात पूछूँ."
"हां बोलो."
"क्या मेरी ये सच में बहुत सुंदर है." मैं ना जाने क्यों ऐसा बोल गयी. बाद में बहुत पछ्तायि मैं.
"मेरी ये क्या...मैं कुछ समझा नही."
समझ में नही आ रहा था कि क्या बोलूं अब.
"तुम जिसके साथ खेल रहे हो उसकी बात कर रही हूँ."
"मैं तो तुम्हारे साथ खेल रहा हूँ. पता नही क्या कहना चाहती हो."
"अरे नितंब की बात कर रही हूँ."
"वो क्या होता है."
"छोड़ो मुझे तुम. बहुत हो गया."
"अरे रूको ना निधि. गुस्सा क्यों होती हो. बताओ ना नितंब क्या होता है."
"ग...गान्ड की बात कर रही थी मैं."
"ओह...इतनी घुमा फिरा कर बात क्यों की तुमने. सॉफ सॉफ पुछ्ती ना कि मेरी गान्ड कैसी है."
मैं शरम से पानी पानी हो गयी.
"निधि तुम्हारी गान्ड की तारीफ़ में जितना कहा जाए उतना कम है. इतनी चिकनी और चमकदार गान्ड मैने आज तक नही देखी. गान्ड के दोनो हिस्से बड़ी मुस्तैदी से एक दूसरे से चिपके रहते हैं. गान्ड के छेद तक पहुँचने का मोका ही नही देते. बहुत प्यारी गान्ड है तुम्हारी. एक बात पूछूँ."
"पहले मुझे छोड़ दो तुम. बहुत हो गया." मैने चाचा की बाहों में छटपटाते हुए कहा.
"क्यों क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा. थोड़ी सलवार नीचे कर लो तो ज़्यादा मज़ा आएगा."
"पागल हो गये हैं आप. गगन अंदर सो रहा है."
"थोड़ी देर की तो बात है. कॉन सा सारी रात हम ये सब करेंगे. मुझ पर तरस खाओ. गाओं वापिस जाकर फिर से तन्हाई ही तन्हाई है मेरे लिए. तुम्हारे सिवा कोई नही मेरे पास अपनी कामुक प्यास बुझाने के लिए."
"क्या तुम्हे पूरी दुनिया में मैं ही मिली थी. किसी और को ढूंड लो. मैं अपने पति के साथ बेहद खुस हूँ."
"तुम खुस रहो गगन के साथ यही दुआ है मेरी. भगवान तुम दोनो की जोड़ी
बनाए रखे. बस मुझ पर तरस खा कर थोड़ी देर आज मुझे अपने नारी योवन का मज़ा ले लेने दे. कल तो मैं जा ही रहा हूँ. तुम्हे बिल्कुल परेशान नही करूँगा कल से. आज बस आखरी बार मुझे थोड़ा सा मज़ा ले लेने दे."
"बाते बनाने में तो माहिर हो तुम. तुम ज़बरदस्ती बहुत मज़े ले चुके हो मेरे साथ. मुझे तुमसे नफ़रत है देहाती." मैं उसे उसकी औकात दिखा रही थी.
"कोई बात नही पर बस आखरी बार मुझे अपनी मस्त जवानी के मज़े लूट लेने दे."
"देखो कैसे गिद्गिडा रहे हो आज. क्योंकि गगन घर हैं नही तो तुम अपनी मन मानी करते थे. अब करके दीखाओ मन मानी."
"उस सब के लिए मुझे माफ़ कर दे बेटी."
"बेटी मत बोलो मुझे. एक तरफ मेरे नितंब मसल रहे हो दूसरी तरफ बेटी बोलते हो. शरम आनी चाहिए मुझे."
"तू कुछ भी बोल बस आज आखरी बार मुझे थोड़ा सा मज़ा ले लेने दे. चल ये कमीज़ उतार दे."
" कमीज़ उतार दूं. पागल हो क्या."
"उतार दे ना मेरे लिए." चाचा ने मुझे बाहों से आज़ाद करके मेरी कमीज़ को कस के पकड़ लिया. मैं उसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर वो मान ही नही रहा था.
"देखो ज़बरदस्ती करोगे तो गगन को आवाज़ लगा दूँगी अभी."
"उतारने दे ना निधि. मत तडपा मुझे इतना." चाचा ने फिर ज़ोर आज़माइश करके मेरी कमीज़ उतार दी. मैं अब सिर्फ़ ब्रा और सलवार में थी. शूकर है ड्रॉयिंग रूम
में अंधेरा था वरना तो मैं शरम से मर जाती.
चाचा ने मुझे दीवार से सटा दिया.
"अगर गगन आ गया तो आपकी खैर नही."
"बार बार धमकी दे रही हो बुलाओ ना उसे." चाचा ने मेरे दोनो उभारों को ज़ोर से दबाते हुए कहा. मेरी चीन्ख निकलते निकलते बची.
"इतनी ज़ोर से क्यों दबाया."
"इनको ज़ोर से ही दबाया जाता है मेरी रानी. चल ये ब्रा भी उतार दे."
"नहियीईई...." मगर मेरी ब्रा उतर चुकी थी.
"चल मेरे कमरे में चलते हैं. आराम से बिस्तर पर मज़े करेंगे."
"नही मैं कही नही जाउन्गि. वैसे भी रात बहुत हो चुकी है तुम अब सो जाओ. मुझे भी नींद आ रही है."
चाचा जैसे मेरी बात सुन ही नही रहा था. वो तो मेरे नंगे उभारों से खेलने में लगा हुआ था. वो तरह तरह से मेरे नाज़ुक उभारों को दबा रहा था. उसकी इन हरकतों के कारण मेरे निपल्स तन कर हार्ड हो गये थे. जब उसने अपना मूह मेरे दायें उभार की तरफ बढ़ाया तो मैने उसे रोक दिया "नही अपना गंदा मूह मत लगाना इन पर. ये सिर्फ़ गगन के लिए हैं. च्छुने को मिल रहा है उतना क्या काफ़ी नही है तुम्हारे लिए. बेवकूफ़ देहाती." मुझे उसके हाथों की च्छेड़छाड़ ही तो ज़्यादा पसंद थी. इस से ज़्यादा मैं करना चाहती थी. मगर देहाती कुछ और ही इरादे रखता था. उसने मेरे दोनो हाथ कस कर पकड़ लिए और मेरी दाईं उभार को मूह में ले लिया. मैं काँप उठी. पहली बार गगन के सिवा कोई और मेरे उभार चूस रहा था.
"हट जाओ.... अब तुम हद से ज़्यादा कर रहे हो...अपनी औकात में रहो. तुम नही रुके तो मैं सच में गगन को बुला लूँगी."
मगर चाचा नही रुका और ज़ोर शोर से मेरे दोनो नंगे उभारों को चूस्ता रहा.
कब मेरी सिसकियाँ छूटने लगी मुझे पता ही नही चला.
"श्ह्ह धीरे आवाज़ करो गगन उठ जाएगा." चाचा ने मेरे दायें उभार के निप्पल को मूह से निकाल कर कहा. अब मेरे हाथ आज़ाद थे मगर फिर भी मैं चाचा को नही हटा पा रही थी. चाचा एक उभार को हाथ से दबाता था और दूसरे को चूस्ता था. मैं मदहोश होती जा रही थी. इसका असर मेरी योनि पर भी हो रहा था जो की उत्तेजित हो कर पानी में तरबतर हो गयी थी. मेरे एक मन को ये सब पसंद आ रहा था और दूसरे मन को शर्मिंदगी और ग्लानि हो रही थी. मैं चाचा को धकेक कर अपने बेडरूम में भाग जाना चाहती थी पर मेरे हाथ पाओं काम ही नही कर रहे थे. मैं बेहोश सी हो गयी थी. मुझे होश तब आया जब मुझे अपनी सलवार के नाडे पर चाचा के हाथ महसूस हुए.
"नही रूको...."
उतारने दे ना. तेरी चूत और गान्ड भी चाट लेने दे थोड़ी सी."
"तुम पागल हो गये हो क्या देहाती. पास वाले कमरे में मेरा पति शो रहा है और तुम मेरे कपड़े उतार रहे हो."
"चल फिर मेरे कमरे में चलते हैं."
"नही...मैं वहाँ नही जाउन्गि."
"उतार ले ना सलवार भी. बस थोड़ी सी देर की बात है."
मरी तो मैं भी जा रही थी. मेरे नितंब और योनि उसके हाथो की छुअन के लिए तरस रहे थे. पर ड्रॉयिंग रूम में सलवार उतारना मुझे अजीब लग रहा था.
"सलवार के उपर से ही कर लो जो करना है."
"सलवार के उपर से उंगली कैसे डालूँगा तेरी चूत में." चाचा ने एक झटके में नाडा खोल दिया. सलवार फर्श पर गिर गयी. चाचा ने नीचे बैठ कर मेरी सलवार मेरी टाँगो से आज़ाद कर दी. अब मैं सिर्फ़ पॅंटीस में थी. चाचा बैठे बाते ही मेरी जाँघो को चूमने लगा. मैने चाचा के सर पर ज़ोर से थप्पड़ मारा "उठो ये क्या कर रहे हो. मैने इजाज़त दी क्या ये करने की. तुम देहाती भी ना उल्लू होते हो एक नंबर के.
"कुछ भी बोल पर मुझे आज मज़े करवा दे."
"गगन आ गया ना तो तुम्हारे मज़े लग जाएँगे."
"उसकी बात मत कर अब." चाचा ने मेरी पॅंटीस में हाथ डाल दिया और मेरी योनि पर हाथ फिराने लगा. एक हाथ से वो मेरी पॅंटीस को नीचे सरकाने लगा तो मैं गिड़गिडाई, "कम से कम ये तो रहने दो. इसे उतारने की क्या ज़रूरत है."
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