RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-10
गतान्क से आगे……………………
"उफ्फ बहुत टाइट गान्ड है तुम्हारी. उंगली डालने में ही कितनी दिक्कत हो रही है."
"मुझे दर्द हो रहा है हट जाओ. तुम मेरा दर्द कम करने की बजाए मुझे और तकलीफ़ दे रहे हो."
"चुप रहो थोड़ी देर. देखो सारे दर्द अभी गायब हो जाएँगे."
मैं छटपटाती रही पर वो नही रुका.उसने धीरे धीरे अपनी पूरी उंगली मेरे नियंब के छिद्र में डाल दी. कुछ देर रुकने के बाद वो उंगली को बाहर की तरफ खीचने लगा. मुझे लगा कि वो बाहर निकाल लेगा. मगर उसने फिर से उंगली अंदर धकैल दी. मैं शिसक उठी. मेरी शिसक में दर्द, उत्तेजना, शरम और ग्लानि सब कुछ शामिल थे. मगर चाचा किसी भी बात की परवाह किए बिना उंगली मेरे टाइट होल में अंदर बाहर करने लगा.
"कुछ आराम मिला मोच में."
"शट अप ये सब तुम मेरे आराम के लिए नही कर रहे हो."
"बस एक मिनिट और दो मुझे अभी तुम्हारी मोच उतर जाएगी." चाचा ने मेरे नितंब के छिद्र में अपनी उंगली घुमानी बंद कर दी और अपनी उंगली के सहारे से मेरे छिद्र के अंदर कुछ टटोलने लगा. अचानक उसने एक जगह उंगली टिकाई और वहाँ ज़ोर से दबा कर बोला, "हिलना मत थोड़ी देर. वो नस मिल गयी है जो सारे फ़साद की जड़ है. हिलोगि तो फिर से उंगली रगड़नी पड़ेगी इस नस को ढूँडने के लिए इसलिए चुपचाप पड़ी रहो. मुझे चाचा की बात पर यकीन तो नही था मगर फिर भी मैं बिल्कुल स्थिल हो गयी. मैं देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करेगा. चाचा मेरी जाँघो से उतर गया और मेरे दाईं तरफ आ गया. अपने बायें हाथ से उसने मेरे पाओं को पकड़ लिया और वहाँ पर एक जगह किसी नस पर अंगूठा रख कर ज़ोर से दबाया. दबाने के बाद उसके आस पास के एरिया को वो मसल्ने लगा.
फिर उसने मेरे नितंब के छिद्र में उंगली उस एरिया के आस पास घुमानी शुरू कर दी जहाँ उसने उंगली टिका रखी थी.
"दर्द गया कि नही?"
बहुत ही अजीब बात थी. मेरे पाओं से दर्द एक दम गायब हो गया था. दर्द के जाते ही मैं राहत की साँस ली.
"हां दर्द चला गया. जल्दी उंगली निकालो अब."
"रूको उंगली से अभी मालिश करनी होगी अंदर तभी पूरी तरह मोच उतरेगी वरना तो थोड़ी देर में फिर से दर्द शुरू हो जाएगा."
"झूठ बोल रहे हो तुम."
"नही सच बोल रहा हूँ. बस थोड़ी देर और लेटी रहो चुपचाप. मुझे अपना काम करने दो वरना गगन कहेगा कि मैने ठीक से मोच नही उतारी."
चाचा फिर से मेरी जाँघो पर बैठ गया. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ.
"क्या बोलती हो. कर दूं ना मालिश." चाचा ने मेरे नितंब में धँसी उंगली को हल्का सा हिलाते हुए कहा.
उसकी उंगली की हरकत से मेरा छिद्र खुद ब खुद सिकुड़ने और फूलने लगा.
"तुम्हारी गान्ड तो तैयार है. तुम ही नखरे कर रही हो. देखो कैसे बार बार मेरी उंगली को जाकड़ रही है."
मैं शरम से पानी पानी हो गयी. "आ..आ..ऐसा कुछ भी नही है समझे."
"अच्छा ये बताओ मालिश करूँ कि नही." चाचा ने बेशर्मी से पूछा.
"जैसे कि मेरे मना करने से तुम रुक जाओगे. अब तक क्या पूछ कर किया तुमने मुझसे? जो अब करोगे."
"हां ये तो है. ये मैं गगन के कहने पे कर रहा हूँ."
"गगन ने क्या यहा उंगली डालने को कहा था."
"कहा तो नही था पर तुम्हारी मोच उतारने के लिए मुझे डालनी पड़ी. और अगर मोच दुबारा नही चाहती तो चुपचाप मुझे मालिश करने दो इस छेद की."
"जल्दी करो जो करना है." मैं झल्ला कर बोली.
"मरी जा रही हो मज़े लेने के लिए और नखरे इतने दिखा रही हो."
चाचा ने बायें हाथ से मेरे गुम्बदो की दरार को चोडा कर दिया और ज़ोर ज़ोर से अपनी उंगली मेरे छिद्र में घिसने लगा. कुछ देर तक तो मैं चुपचाप पड़ी रही. मगर ना जाने क्यों मेरे मूह से धीमी धीमी सिसकियाँ निकलने लगी. जब मैं उत्तेजित होती हूँ तो खुद को रोक नही पाती हूँ. गगन के साथ मैं खूब चिल्लाति हूँ. मगर मुझे समझ में नही आ रहा था कि मैं उस वक्त क्यों सिसकियाँ ले रही थी. शायद मेरे पीछले छिद्र को आनंद मिल रहा था. जो भी हो ये बात तैय थी कि मैं मदहोश होती जा रही थी.
"नही बस.... बस..... रुक..... जाओ...आआहह...ऊऊहह" मेरी योनि ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया था.
"मज़ा आ रहा है ना. ये मस्त गान्ड इसी मज़े के लिए मिली है तुम्हे और तुम नखरे करती है." चाचा ने इंडेक्स फिंगर के साथ अपनी मिड्ल फिंगर भी मेरे छिद्र में डाल दी और बोला, "अब और ज़्यादा मज़ा आएगा."
"रुक जाओ देहाती आअहह."
पर देहाती लगा रहा. उसकी उंगलियाँ बहुत तेज़ी से मेरे पीछले छिद्र में अंदर बाहर हो रही थी और चप चप की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी. एक तरह से उंगलियों से देहाती मेरे साथ नितंब मैथुन कर रहा था. लेकिन मेरे लिए शरम की बात ये थी कि मैं बहकति जा रही थी.
अचानक चाचा रुक गया. उसने धीरे से मेरे छिद्र से उंगलियाँ निकाल ली. मैं वहाँ बेहोश सी पड़ी थी. मेरी साँसे बहुत तेज चल रही थी. आँखो के आगे अंधेरा सा च्छा रहा था.
चाचा ने मेरे नितंब के गुम्बदो को फैलाया और मेरे छिद्र पर थूक गिरा दिया. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या कर रहा है. मुझे होश जब आया जब मुझे अपने नितंब के छिद्र पर कुछ मोटी सी चीज़ महसूस हुई. उस मोटी सी चीज़ ने मेरे छिद्र के आस पास के बहुत बड़े एरिया को घेर लिया था.
"य...य...तो वो है." मुझे ख्याल आया और मैं छटपटाने लगी.
"हटो पीछे...तुमने तो हद कर दी है आज." मैने पीछे गर्दन घुमा कर कहा.
मेरे छटपटाने से उसका लिंग मेरे छिद्र से हट गया था और अब मेरे नितंबो के ठीक उपर मेरी आँखो के सामने झूल रहा था.
"ओह माइ गॉड ये क्या है?"
"लंड है और क्या है...गगन का नही देखती क्या?"चाचा का लिंग गगन के लिंग से दोगुना लंबा था और मोटाई भी उस से काफ़ी ज़्यादा थी. मैने कभी सपने में भी नही सोचा था कि लिंग इतना भीमकाय भी हो सकता है. लिंग का सूपड़ा पूरे लिंग के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही मोटा था. लिंग के नीचे देहाती के अंडकोष भी बड़े थे जो कि घने काले बालों में छुपे थे.
"इतना बड़ा कैसे हो सकता है तुम्हारा."
"तुम्हारी आँखो के सामने है…च्छू कर देख लो….हाहहाहा" चाचा बेशर्मी से हँसने लगा.
"शट अप. तुम क्या करने जा रहे थे."
"कुछ नही इतनी सुंदर गान्ड है तुम्हारी. मेरे इस बेचारे लंड को दर्शन करवा रहा था. इसने आज तक ऐसी गान्ड नही देखी."
मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया. किसी ने भी आज तक मुझे ऐसी बात नही बोली थी.
"देखो बहुत हो गया. हटो अब. मेरे पाओं का दर्द जा चुका है."
"थोड़ी देर और रुक जाओ. बस थोड़ी सी मालिश बाकी है तुम्हारी."
"मुझे और मालिश नही करवानी."
"नही ये ज़रूरी है. दर्द फिर से आ गया तो."
"आ जाने दो. देखा जाएगा. मैं खूब समझ रही हूँ तुम क्या करना चाहते हो. वो मैं नही होने दूँगी."
"पता है मुझे. गगन की बीवी के साथ मैं भी ऐसा कुछ नही करूँगा. यकीन करो मैं ये अंदर नही डालूँगा."
"तुम्हारा कोई भरोसा नही है तुमने रख तो दिया था ना मेरे वहाँ अभी."
"वो बस इसे एक बार तुम्हारी खूबसूरती का अहसास दिलाना चाहता था."
"खूब समझती हूँ मैं तुम्हारे इरादे."
"मैं हाथ से अपना काम कर लूँगा. बाहर रहने दो इसे."
"नही...."
"अगर दुबारा मैं इसे तुम्हारे छेद पर रखूं तो तुम तुरंत मुझे हटा देना. मैं हट जाउन्गा."
चाचा ने दोनो उंगलियाँ वापिस मेरे नितंब के छिद्र में डाल दी और अपने बायें हाथ से अपने मोटे लिंग को हिलाने लगा. चाचा कुछ इस तरह से मेरी तरफ देख रहा था कि मैने शरम से अपनी नज़रे घुमा ली. मैने वापिस अपना सर घुमा कर बिस्तर पर टिका दिया. मेरे नितंब के छिद्र में घूम रही चाचा की उंगलियाँ फिर से मुझे कुछ मजबूर सा कर रही थी और मैं खोती जा रही थी. तुरंत एक और ऑर्गॅज़म ने मुझे घेर लिया और मैं ज़ोर से चील्ला कर झाड़ गयी.
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