Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
12-18-2018, 01:59 PM,
#23
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-9

गतान्क से आगे……………………

चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और खींच कर मुझे सोफे से उठा दिया.

"फोन दो उन्हे मैं उन्हे जल्दी करने को बोलता हूँ. मोच का दर्द बहुत बेकार होता है." गगन ने कहा.

"शुरू करने वाले हैं तुम चिंता मत करो बाए." मैने फोन काट दिया क्योंकि चाचा मुझे खींच कर अपने कमरे तक ले आया था.

"रूको मेरे बेडरूम में चलते हैं." मैने कहा. मेरा प्लान था कि मैं अपने बेडरूम में कॅमरा लगा लूँगी ताकि चाचा की हर हरकत रेकॉर्ड होती जाए.

"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."

"आप थोड़ी देर रुकिये मैं बेडरूम में बिखरे अपने कपड़े समेट लूँ."

"ठीक है"

मैने झटपट अपने बेडरूम में आकर कॅमरा फिट किया. मैं कॅमरा ऑन करके हटी ही थी कि चाचा की आवाज़ आई. "आ जाउ क्या बेटी."

"कितना उतावला हो रहा है मोच के बहाने मेरे साथ छेड़खानी के लिए. आज तुम्हारी खैर नही."

"जी आ जाइए"

चाचा अंदर आ गया और बोला "तुम आराम से बिस्तर पर लेट जाओ. चिंता की कोई बात नही है. अभी मोच उतार देता हूँ."

"देखो पाओं के अलावा कही और हाथ मत लगाना." मैने चेतावनी दी.

"ठीक है...तुम लेटो तो सही."

क्योंकि सब कुछ रेकॉर्ड हो रहा था इसलिए मैं पीठ के बल लेट गयी. चाचा ने मेरे दायें पाओं को दोनो हाथो में लिया तो मेरा शरीर कापने लगा. चाचा ने भी मेरी कप कपि को महसूस किया.

"क्या हुआ? मज़े लेने लगी अभी से. बहुत प्यासी लगती हो. लगता है गगन ठीक से ध्यान नही दे रहा तुम पर."

"बकवास मत करो देहाती. मोच ठीक करने पर ध्यान दो"चाचा ने मेरे पाओं की मालिश शुरू कर दी. 10 मिनिट तक वो मेरे पाओं की मालिश करता रहा पर दर्द में ज़रा भी राहत नही मिली.

"कुछ आराम मिला क्या."

"नही अभी नही. आप रहने दीजिए मैं डॉक्टर को दीखा लूँगी."

"नस बहुत बुरी तरह चढ़ि हुई है एक दूसरे के उपर. तुम पीठ के बल गिरी थी ना?"

"आपने देखा तो था."

"हां देखा था. तुम्हारे चूतरों की नशे भी खींच गयी हैं. इसीलिए सिर्फ़ यहा मालिस करने से बात नही बनेगी."

"ये सब बहाने बाजी है तुम्हारी वहाँ हाथ लगाने के लिए. मैं खूब अच्छे से जानती हूँ."

"जब मुझे हाथ लगाना होता है मैं लगा ही लेता हूँ. तुम्हारी इजाज़त नही माँगता. मैं सच कह रहा हूँ तुम्हारे पाओं के दर्द को दूर करने के लिए मुझे वहाँ हाथ लगा कर देखना ही होगा. वहाँ भी नसे एक दूसरे पर चढ़ि होंगी. तुम्हे हल्का हल्का वहाँ दर्द भी हो रहा होगा."

"दर्द तो गिरने के कारण होगा. वहाँ मोच का क्या मतलब."

"मतलब है निधि. नसे आपस में जुड़ी होती है. जब तक तुम्हारे चूतरों की नशो का खीचव नही हटेगा पाओं की मोच ठीक नही होगी."

"बुलशिट. आइ डोंट बिलीव दिस."

"क्या कहा हिन्दी में बोलो. मुझे इंग्लीश नही आती."

"ये सब बकवास है. रहने दीजिए मैं शाम को डॉक्टर को दिखवा लूँगी."

"तुम्हारी मर्ज़ी. मैं तो तुम्हारे भले के लिए बोल रहा था."

"मेरा कितना भला चाहते हैं आप मैं जानती हूँ. मैं खूब समझ रही हूँ कि आप मोच के बहाने मेरे शरीर के साथ गंदी हरकत करेंगे."

"वो तो मैं वैसे भी कर सकता हूँ. इस वक्त सिर्फ़ तुम्हारा दर्द दूर करना चाहता हूँ मैं. देखो कैसी छम छम बारिस हो रही है. ऐसे में दर्द में पड़ी रहोगी तुम तो बारिश का मज़ा नही ले पाओगि."

दर्द तो मुझे बहुत हो रहा था. दर्द के कारण मेरी जान निकली जा रही थी. चाचा की ये बाते सुन कर मैं सोच में पड़ गयी थी. ये बात सही थी कि चाचा चाहता तो फिर से मेरे साथ ज़बरदस्ती करके मुझे कही भी च्छू सकता था.

मगर मैं खुद उसे छुने की इजाज़त नही दे सकती थी. लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा था. मुझे समझ में नही आ रहा था की क्या करूँ. मैं गगन को कोस रही थी. उसने मुझे अजीब मुसीबत में फँसा दिया था.

"सोच क्या रही हो...तुम ऐसे नही मानोगी." चाचा बिस्तर पर चढ़ गया और मुझे कंधो से पकड़ कर बेड पर उल्टा घुमा दिया. पहले मैने रेज़िस्ट करने की कोशिश की पर अपने दर्द का सोच कर मैने अपना रेसिस्टेंसे त्याग दिया.

चाचा मेरे दाईं तरफ मेरे घुटनो के बल बैठ गया.

"देखो सिर्फ़ मोच उतारने पर ध्यान देना. अगर कोई भी ऐसी वैसी हरकत की तुमने तो मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी."

"बता देना जो बताना है. तुम्हारे भले के लिए करूँगा जो भी करूँगा."

चाचा ने मेरे दायें नितंब के गुंबद के शिर्स पर बीचो बीच अपना दायां अंगूठा रख दिया. मेरे नितंब की गोलाई पर चाचा का अंगूठा टिकते ही एक तेज लहर सी मेरे बदन में दौड़ गयी.

"क्या हुआ?"

"क...क..कुछ नही. कितना टाइम लगेगा इसमे."

"ज़्यादा टाइम नही लगेगा घबराओ मत." चाचा ने अंगूठे से मेरे नितंब की दाईं गोलाई को ज़ोर से प्रेस किया और बोला, "कुछ फरक पड़ा पाओं में."

"नही" मैने तुरंत कहा.

चाचा ने अपना दायां अंगूठा मेरे बायें नितंब की गोलाई पर रख कर ज़ोर से दबाया और बोला, "अब कुछ फरक पड़ा."

"नही"

"कोई बात नही अब फरक पड़ेगा." चाचा ने अपने दोनो हाथ फैला कर मेरे नितंबो की गोलाई पर रख दिए और उन्हे ज़ोर से प्रेस किया. मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी चाचा की इन हर्कतो से. मगर फिर भी मैं दम साधे चुपचाप वहाँ पड़ी रही. कुछ देर तक चाचा मेरे नितंब के दोनो गुम्बदो को हाथो से नीचे की और दबाता रहा. मगर अचानक उसने मेरी दोनो गोलैईयों को आटे की तरह गुंथना शुरू कर दिया. उसकी इस हरकत से मेरी साँसे तेज चलने लगी और रह रह कर एक अजीब सी तरंग शरीर में दौड़ने लगी. कब मेरी योनि गीली हो गयी मुझे पता ही नही चला.

"कम्बख़त मेरे अंग इसके हाथो का खिलोना बन जाते हैं. फिर से मेरी गीली हो गयी. ऐसा क्यों होता है मेरे साथ." मैं खुद को कोसने लगी.

"कुछ फरक पड़ा निधि?"

"कुछ फरक नही पड़ा. आप मोच के बहाने अपनी हवस पूरी कर रहे हैं. हट जाओ. मुझे नही उतरवानी मोच तुमसे."

"सय्यम से काम लो निधि. देखो नस एक दूसरे पर चढ़ जाए तो मुस्किल से उतरती है. यहा सबसे बड़ी दिक्कत ये है की कपड़ो के कारण मुझे तुम्हारी नसे दीखाई नही दे रही."

"आ गये ना अपनी औकात पर. अब सब सॉफ हो गया. तुम ये सब अपनी हवस के लिए कर रहे हो. मुझे तो ये समझ में नही आ रहा कि मोच मेरे पाओं में है और तुम कही और ही लगे हुए हो."

"देखो सभी अंग एक दूसरे से जुड़े हैं. तुम देखना पाओं की मोच यही से ठीक होगी. तुम बस थोड़ी सी सलवार नीचे सरका लो."

"एक नंबर की बकवास है ये. मैं यहा दर्द से मरी जा रही हूँ और तुम्हे बस अपने काम से मतलब है."

"ऐसा नही है निधि. थोड़ी नीचे सरकाओ सलवार. जितनी जल्दी नीचे सर्काओगि सलवार उतनी जल्दी तुम्हारा दर्द दूर होगा."

"तुम्हे शरम नही आती ऐसा बोलते हुए. गगन को पता चलेगा तो तुम्हारी खैर नही."

तभी मेरे मोबाइल बज उठा. फोन गगन का था.

"कुछ आराम मिला क्या?"

"नही अभी तक कोई आराम नही मिला."

"क्यों चाचा जी ने मोच नही उतारी क्या अभी तक."

"वो लगे हुए हैं पर कोई फ़ायडा नही हो रहा."

"कोई बात नही चाचा जी पर भरोसा रखो. वो एक्सपर्ट हैं इस काम में."
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