RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
"ज़बरदस्ती ऑर्गॅज़म नही करवा सकता कोई निधि. सच को स्वीकार करो तुम्हे ये सब अच्छा लगता है. गगन को ये सब बता दोगि तो नुकसान तुम्हारा ही होगा. फिर ये सब एंजाय करने को नही मिलेगा."
"मैं कोई एंजाय नही कर रही हूँ. सब कुछ मुझ पर थोपा जा रहा है."
"हां ये सच है की सब कुछ थोपा जा रहा है पर ये मत भूलो कि तुम्हे ये सब अच्छा लगने लगा है. देखा था ना तुमने. जब तुम खिड़की में खड़ी थी तब तुम्हारी योनि चाचा की छेड़खानी सोच कर ही गीली हो गयी थी."
"वो इत्तेफ़ाक था"
"हहेहहे खुद को धोका दे रही हो तुम. और चाचा सिर्फ़ तुम्हे छेड़ता ही तो है.
असली में सेक्स तो करने की कॉसिश नही कर रहा है वो. फिर क्यों गगन को सब कुछ बता कर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारती हो."
"आज उसने उंगली डाल दी थी अंदर. और क्या रह गया. मैं ये सब नही होने दे सकती."
"बस उंगली ही तो डाली थी उसने. अपना मोटा वो तो नही डाला ना. और उसने अपनी डाइयरी में लिखा भी था की वो तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नही करेगा क्योंकि तुम गगन की बीवी हो."
"बुलशिट. अंदर उंगली डालना कोई छ्होटी बात नही होती. जो भी हो मैं ये सब नही होने दूँगी मेरे साथ और चाचा के चेहरे से उसका झूठा नकाब हटा कर रहूंगी. मैं दुबारा कॅमरा लगा कर सब कुछ रेकॉर्ड करूँगी. इस बार खाली मेमोरी कार्ड लगाउन्गि कॅमरा में."
"सोच लो. फिर ये एंजाय्मेंट नही मिलेगा तुम्हे. छोड़ो कॅमरा को और सब एंजाय करो. वैसे भी सिर्फ़ कुछ ही दिन की बात और है फिर वो चला जाएगा."
चाचा के कारण मेरे मन में अंतर्द्वंद हो गया था. मेरा मन दौ हिस्सो में बॅट गया था.
"निधि कहाँ हो तुम?" बाहर से गगन की आवाज़ आई तो मेरा ध्यान टूटा.
"मुझे इस देहाती से नफ़रत है और मैं इसका पर्दाफाश करके रहूंगी." मैं दृढ़ निश्चय करके टाय्लेट से बाहर आ गयी.
गगन को अपने ऑफीस की एक फाइल नही मिल रही थी. इसीलिए मुझे ढूंड रहे थे.
अगले दिन दोपहर को अचानक मूसलाधार बारिस शुरू हो गयी. छत पर कपड़े सुख रहे. कपड़े उतारने के लिए मैं तुरंत छत की तरफ भागी. कपड़े उतार कर मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ी ही थी कि मेरा पाँव फिसल गया और मैं धडाम से नीचे गिर गयी. मेरी कमर ज़ोर से नीचे टकराई थी. दर्द की लहर पूरे शरीर में दौड़ गयी थी.
धडाम की आवाज़ सुन कर चाचा उपर दौड़ कर आया. तब तक मैं पूरी भीग चुकी थी.
"अरे निधि बेटी क्या हुआ?" चाचा मुझे उठाने के लिए आगे बढ़ा.
"दूर रहो मुझसे. मैं खुद उठ जाउन्गि." मैं चिल्लाई.
किसी तरह मैं धीरे से उठी. मेरी कमर दायें पाँव में बहुत दर्द हो रहा था. मेरे पहने कपड़े भी भीग गये थे और जो कपड़े में उतारने आई थी वो भी भीग गये थे. कपड़े गीले होने के कारण मेरे शरीर से चिपक गये थे जिसके कारण मेरे उभारों और नितंबो की शेप बिल्कुल सॉफ दीखने लगी थी. चाचा की आँखे चमक रही थी ये नज़ारा देख कर. वो एक तक मुझे घुरे जा रहा था.
"कमीना कही का. मोके का फ़ायडा उठा रहा है है." मैं सोचा.
मैने जब सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाया तो मुझे दायें पाओं में बहुत दर्द महसूस हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे की पाओं में मोच आ गयी हो. बड़ी मुस्किल से मैं नीचे उतरी.
मैने गरम पानी से नहा कर कपड़े चेंज किए मगर फिर भी दर्द से राहत नही मिली. पाओं में दर्द बढ़ता ही जा रहा था. जब दर्द असहनीय हो गया तो मैने गगन को फोन मिलाया और उन्हे सारी बात बताई.
"क्या ज़रूरत थी इतनी तेज बारिस में तुम्हे छत पर जाने की." गगन मुझे डाँटने लगे.
"कपड़े थे ना उपर. वो उतारने गयी थी. दर्द तो कमर में भी है पर पाओं की ये मोच बहुत परेशान कर रही है."
"तुम ऐसा करो फोन चाचा जी को दो."
"क्यों...वो सो रहे होंगे."
"दोपहर को नही सोते हैं वो. जाओ मेरी बात कर्वाओ उनसे."
"पर बात क्या है?"
"उन्हे पाओं की मोच उतारनी आती है. मैं उनको बोल देता हूँ वो मोच उतार देंगे."
"वॉट...तुम होश में तो हो. मैं उनसे अपनी मोच नही उतरवाउन्गि."
"क्यों...वो एक्सपर्ट हैं. एक बार गाओं में जब मेरे पाओं में मोच आ गयी थी तो उन्होने झट से मोच उतार दी थी. तुम उन्हे फोन तो दो."
मरती क्या ना करती. मैं चाचा के कमरे की तरफ चल दी. चाचा अपने बिस्तर पर आँखे बंद किए पड़ा था. मैने दरवाजा खड़काया तो वो उठ कर बैठ गया.
"अरे निधि बेटी आओ आओ"
"गगन आपसे बात करना चाहते हैं." मैने फोन चाचा को थमा दिया और बाहर आकर ड्रॉयिंग रूम में बैठ गयी. चाचा फोन पे बात करता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला.
"तुम चिंता मत करो गगन बेटा. मैं अभी निधि बेटी की मोच उतार देता हूँ. तुम अपने काम पर ध्यान दो."
चाचा ने मुझे फोन देते हुए कहा, "यही मोच उतारू तुम्हारी या तुम्हारे कमरे में"
"मुझे कोई मोच वॉच नही उतरवानी. आप अपना काम कीजिए."
"नखरे मत करो. एक पल में दर्द गायब हो जाएगा तुम्हारा.लाओ पाओं आगे करो."
"दूर रहो मुझसे." मैने चाचा को डाँट दिया.
तभी फिर से गगन का फोन आ गया.
"चाचा को बोल दिया है मैने. उन्होने शुरू की पाओं की मालिश."
"नही अभी नही."
क्रमशः…………………………………
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