RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-5
गतान्क से आगे……………………
"तुम हटते हो कि नही. मैं गगन को बता दूँगी हट जाओ." मैने चेतावनी दी.
"बता देना. नुकसान तुम्हारा ही होगा. हर कोई मेरी तरह गान्ड से नही खेल सकता."
"शट अप. कुछ तो शरम करो मैं तुम्हारी बेटी के समान हूँ." मैने कहा.
"तुमने बड़ा सम्मान दिया है मुझे. जबसे यहाँ आया हूँ तुम्हारी आँखो में तिरस्कार ही देखा है."
"आहह...छ्चोड़ो मुझे...तुम मुझे यहाँ नही छू सकते." मैने कहा.
मेरे नितंबो के उपर सलवार के कपड़े को अंदर धकेलते हुए चाचा की उंगली मेरे नितंब के छिद्र तक जा पहुँची थी. आज तक किसी ने भी मुझे वहाँ नही छुआ था. मैं थर थर काँपने लगी थी.
"ह्म...बहुत मस्त गान्ड है तुम्हारी. गगन इसके साथ खेलता है कि नही."चाचा ने घिनोनी आवाज़ में पूछा.
"तुम्हे उस से क्या मतलब. छ्चोड़ो मुझे."
चाचा ने मेरी बात अनसुनी करके मेरे नितंब के छिद्र को रगड़ना शुरू कर दिया.
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था चाचा पर मगर जब वो मेरे पिछले छिद्र को उंगली से रगड़ रहा था तो मेरे शरीर में अजीब सी हलचल हो रही थी. सबसे बड़ा झटका मुझे तब लगा जब मुँझे अपनी जाँघो के बीच गीला गीला महसूस हुआ.
मेरे पीछले छिद्र पर हो रही रगड़ के कारण मेरी योनि ने पानी छ्चोड़ दिया था. उस वक्त मैं बिल्कुल खामोस हो गयी थी.
"क्या हुआ अच्छा लग रहा है ना तुम्हे निधि बेटी." चाचा ने बेशर्मी से कहा.
"तुम्हे शरम आनी चाहिए ये सब करते हुए."
"आ रही है पर दिल के हाथो मजबूर हूँ. क्या करूँ तुम्हारी गान्ड ही ऐसी है."
"शट अप."
अचानक चाचा ने कुछ अजीब तरीके से मेरे पिछले छिद्र को रगड़ा जिसके कारण मेरे मूह से खुद ब खुद सिसकी निकल गयी. "आहह..."
चाचा ने मेरे नितंब से अपना हाथ हटा लिया और मेरे मरोड़े हुए हाथ को भी छ्चोड़ दिया.
"आगे से तमीज़ से बात करना मेरे साथ समझी."चाचा ने कहा.
"मैं शाम को गगन को सब बताउन्गि. देखना शाम को तुम्हारी खैर नही." मैं चिल्लाई और भाग कर अपने बेडरूम में घुस गयी. बेडरूम में आते ही मैने कुण्डी लगा ली और बिस्तर पर गिर गयी. मेरा शरीर थर थर काँप रहा था. आज तक कभी भी किसी ने मेरे साथ ऐसी हरकत नही की थी.
मैं अपने बिस्तर पर पड़ी हुई थर थर काँप रही थी. मेरे पिछले छिद्र पर मुझे अभी भी चाचा की उंगली महसूस हो रही थी. मैं विस्वास नही कर पा रही थी कि मेरे साथ मेरे ही घर में ऐसा हुआ है. मैं चाचा को बुरी तरह कोस रही थी.
"आज गगन के सामने इसकी पॉल खोल दूँगी मैं. बड़ा बाल ब्रह्म चारी बना फिरता है. आज इसकी खैर नही." मैने निस्चय किया.
शाम को गगन ने डोर बेल बजाई तो मुझसे पहले चाचा ने दरवाजा खोल दिया.
"कुछ भी करले देहाती आज तू बचेगा नही"मैने मन ही मन कहा.
गगन चाचा के साथ उसके कमरे में चला गया. मैं टाय्लेट में गयी तो मेरी आँखे चमक उठी. टाय्लेट टॅंक पर चाचा की डाइयरी पड़ी थी. मैने वो तुरंत उठाई और चाचा के कमरे में घुस गयी. मैने डायरी गगन को थमा दी और बोली,"
गगन ये चाचा जी की डाइयरी है. देखो इन्होने कितना अच्छा अच्छा लिखा है अपने बाल ब्रहचारी जीवन के बारे में.
गगन ने तुरंत डाइयरी ले ली.
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