RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
डाइयरी के पन्नो से:
निधि बहुत सुंदर है. इतनी सुंदर लड़की मैने आज तक नही देखी. भगवान ने बहुत फ़ुर्सत से बनाया लगता है निधि को. मैं तो निधि की सूरत देखते ही उस पर फिदा हो गया था. इतना सुंदर चेहरा हर किसी को नही मिलता.
होन्ट बहुत प्यारे हैं निधि के. हर वक्त कामुक रस टपकता रहता है उसके होंटो से. ख़ुसनसीब है गगन जो कि उसे इतने रसीले होन्ट चूसने को मिलते हैं.
निधि की चुचियों की तो बात ही निराली है. जब वो चलती है तो दोनो चुचियाँ कामुक अंदाज़ में उपर नीचे हिलती हैं. दिल बैठ जाता है मेरा उन्हे यू हिलते देख कर. चुचियों की मोटाई और गोलाई एक दम मस्त है. जो भी उन्हे देखता होगा उसके मूह में पानी आ जाता होगा. जैसे मेरे मूह में आ जाता है.
निधि की गान्ड के बारे में क्या लिखूं कुछ समझ नही आ रहा. कातिल गान्ड है निधि की. मेरे दिल का कतल कर दिया निधि की गान्ड ने. इतनी मस्त गान्ड मैने आज तक नही देखी. जब वो चलती है तो गान्ड के दोनो गोल गोल तरबूज बहुत कामुक अंदाज में हिलते हैं. नपुंसक के लंड को भी खड़ा कर सकती है निधि की गान्ड. मेरा तो निधि की गान्ड के बारे में सोच कर ही बुरा हाल हो जाता है. लंड बिठाए नही बैठता.
मुझे पूरा यकीन है कि इस अप्सरा की चूत भी कम कातिल नही होगी. बल्कि वो तो सबसे ज़्यादा कयामत ढाती होगी.
लेना चाहता हूँ एक बार निधि की पर जानता हूँ कि ये मुमकिन नही है. गगन की बीवी है वो और मेरी बेटी के समान है. इसलिए उसकी लेने का ख्वाब हमेशा ख्वाब ही रहेगा. पर मुझे ख़ुसी है कि ऐसी सुंदर अप्सरा के साथ मुझे एक ही घर की छत के नीचे रहने का मोका मिला.
डाइयरी पढ़ने के बाद मुझे समझ में नही आ रहा था कि कैसे रिक्ट करूँ. मेरे बारे में बहुत गंदी गंदी बाते लिख रखी थी चाचा ने डाइयरी में.
"इसका मतलब ये देहाती हर वक्त मुझे घूरता रहता है. कितना बेशरम है ये." मैने सोचा.
डाइयरी टाय्लेट में ही रख कर मैं बाहर आ गयी. मैं बहुत गुस्से में थी. लेकिन चाह कर भी मैं चाचा को कुछ नही कह सकती थी. मैं अपने बेडरूम में घुस ही रही थी कि चाचा ने पीछे से आवाज़ दी.
"बेटी आज का अख़बार नही मिल रहा. क्या तुम्हारे पास है."
"आप यहाँ अख़बार पढ़ने आए हैं या इलाज कराने. मुझे नही पता की अख़बार कहाँ है."मैने गुस्से में कहा.
"गुस्सा क्यों कर रही हो. तमीज़ से बात करो. घर आए मेहमान से क्या ऐसे बात की जाती है." चाचा ने कहा.
"हे दफ़ा हो जाओ यहाँ से जल्द से जल्द वरना इस से भी बुरा बर्ताव करूँगी मैं. हमारा ही घर मिला था तुम्हे...पूरी देल्ही में." मैं चिल्लाई.
चाचा बिना कुछ कहे मेरी तरफ बढ़ा. उसकी आँखे गुस्से से लाल हो रखी थी.
मैं अपनी जगह खड़ी रही. मैं खुद बहुत गुस्से में थी. जानती थी कि मेहमान के साथ ऐसा बर्ताव नही करना चाहिए पर उसने मुझे मजबूर कर दिया था.
"तुम्हे तमीज़ नही सीखाई क्या तुम्हारे मा बाप ने."चाचा ने कहा.
"उस से तुम्हे कोई मतलब नही है. मेरे मा बाप को बीच में मत लाओ और जल्द से जल्द यहाँ से दफ़ा हो जाओ." मैने गुस्से में कहा.
चाचा ने तुरंत आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और उसे मरोड़ दिया. मैं दर्द से कराह उठी पर वो नही रुका. जैसे जैसे वो हाथ मरोड़ रहा था मैं घूमती जा रही थी और जब वो रुका तब मेरी पीठ उसकी तरफ हो गयी थी.
"छ्चोड़ो मुझे...ये क्या कर रहे हो?" मैने कहा.
"तुम्हे तमीज़ सीखा रहा हूँ. बोलो दुबारा बोलोगि इस तरह मुझसे." चाचा ने कहा.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...छ्चोड़ो मुझे." मैं छटपटा रही थी. मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा था.
अचानक चाचा का दूसरा हाथ मुझे मेरे नितंबो पर महसूस हुआ. मेरे रोंगटे खड़े हो गये.
"छ्चोड़ो मुझे...क्या कर रहे हो."
"बहुत मुलायम है...रोज देखता था इसे प्यार से आज हाथ लगाने का मोका मिला हहेहहे."
"हाथ हटा लो अपना वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा." मैं चिल्लाई.
पर वो नही रुका. वो बारी बारी से मेरे नितंबो की दोनो गोलाइयों को दबोच रहा था. मैं सूट और सलवार पहनी हुई थी जिस कारण वो बहुत अच्छे से मेरे नितंबो को महसूस कर रहा था. अचानक जब मेरे नितंबो की दरार में उसने अपनी उंगली डाली तो मैं सिहर उठी. मैं थर थर काँपने लगी.
क्रमशः………………………
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