RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-3
गतान्क से आगे……………………
जींदगी में पहली बार मैने ऐसा कुछ पढ़ा था. मेरी योनि गीली हो गयी थी. फिर अचानक मुझे गुस्सा आ गया कि इस देहाती चाचा ने ये डाइयरी टाय्लेट में क्यों रख छ्चोड़ी. मैं डाइयरी टॅंक पर ही रख कर बाहर आ गयी. मैं किचन की तरफ जा रही थी तो चाचा ने मुझे पीछे से आवाज़ दी, ?बेटा मेरी एक डाइयरी नही मिल रही. तुमने देखी क्या कही. ब्लू रंग का कवर है उसका.?
"मैने नही देखी..." कह कर मैं किचन में आ गयी. मैने चाचा के लिए डाइनिंग टेबल पर खाना रख दिया और अपना खाना लेकर अपने बेडरूम में आ गयी.
मैने अपने बेडरूम में ही खाना खाया और खाना खा कर सोने के लिए लेट गयी. रोजाना लंच के बाद मुझे सोने की आदत थी. मगर आज आँखो से नींद गायब थी. डाइयरी में जो कुछ मैने पढ़ा वो मेरे दिमाग़ में घूम रहा था.
"कैसे कोई इतनी गंदी बाते लिख सकता है. ये देहाती बहुत गंदा है. अपने मन की गंदगी निकाल रखी है इसने डाइयरी में. पर इसने वो डाइयरी टाय्लेट में क्यों रख छोड़ी थी. कही वो उसे मुझे तो पढ़ाना नही चाहता."
ये सोचते ही मेरी आँखो में खून उतर आया. मैं ये सोच कर गुस्से से आग बाबूला हो गयी कि उसकी हिम्मत कैसे हुई वो डाइयरी मेरे लिए टाय्लेट में रखने की.
फिर मुझे खुद पर गुस्सा आया कि मैने उसकी डाइयरी के वो 2-3 पन्ने क्यों पढ़े. सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी.
अचानक मेरे बेडरूम पर हुई दस्तक से मेरी आँख खुल गयी. मैने दरवाजा खोला तो मेरे सामने चाचा खड़ा मुस्कुरा रहा था.
"कहिए क्या बात है?" मैने पुचछा.
"कुछ नही निधि बेटी. मुझे चाय की इच्छा हो रही थी. सोचा तुम्हे बता दूं. कही तुम सो तो नही रही."
"जी हां मैं सो रही थी."मैने गुस्से में कहा.
"ओह..फिर तो मैने ग़लती कर दी तुम्हे उठा कर."
"घर में दूध नही है. इसलिए चाय नही बना सकती आपके लिए अभी."
"मुझे काली चाय पसंद है. दूध वाली मैं पीता भी नही."चाचा ने घिनोनी हँसी के साथ कहा.
मन तो कर रहा था कि अभी उसके मूह पर एक थप्पड़ जड़ दूं पर मैं चुप रही. घर आए मेहमान की बेज्जति नही करना चाहती थी मैं.
"ठीक है आप थोड़ा इंतेज़ार कीजिए मैं चाय बनाती हूँ." मैने कहा.
चाचा मूड कर जाने लगा मगर जाते जाते अचानक रुक गया और वापिस मेरी तरफ मूड कर बोला, "अरे हां निधि बेटी वो डाइयरी मुझे मिल गयी थी. टाय्लेट में भूल गया था उसे. तुमने तो देखी होगी वहाँ. कही पढ़ तो नही ली."
"म...म...मैं क्यों पढ़ूंगी आपकी डाइयरी. मैने टाय्लेट में कोई डाइयरी नही देखी थी." चाचा के अचानक पूछने पर मैं हड़बड़ा गयी थी.
"हां बेटी किसी की निजी डाइयरी पढ़नी भी नही चाहिए." चाचा कह कर चला गया.
मैं अपने पाँव पटक कर रह गयी.
मैने गुस्से में काली चाय बना कर चाचा को उनके कमरे में जाकर थमा दी, "ये लीजिए आपकी चाय."
"अरे बहुत जल्दी बना दी. घर के कामों में माहिर हो तुम निधि बेटी. अच्छी बात है. गगन और तुम्हारी जोड़ी बहुत अच्छी है."
"दोपहर को मैं सोई होती हूँ. प्लीज़ दुबारा मेरा दरवाजा मत खड़काना"
"हां हां बेटी आगे से ध्यान रखूँगा. बेटी ये लो मेरी डाइयरी. इसमे मेरे जीवन की कुछ घटनाओ का विवरण है. पढ़ लो और पढ़ कर वापिस दे देना."चाचा ने गंदी सी हँसी के साथ कहा.
"जी नही मुझे कोई शौक नही है आपके जीवन के बारे में जानने का. अपनी डाइयरी अपने पास रखिए." कह कर मैं बाहर आ गयी. मैं गुस्से से तिलमिला रही थी.
"हिम्मत तो देखो इस देहाती की. मुझे अपनी अश्लील डायरी पढ़ने को दे रहा है. चाहता क्या है ये. शाम को मुझे गगन से मुझे बात करनी ही होगी. ऐसे व्यक्ति का हमारे घर में रहना ठीक नही है."
.......शाम को मैने गगन से कहा कि चाचा को जल्दी से यहाँ से रफ़ा दफ़ा करो. मैने ये भी बोल दिया कि उसकी नज़र ठीक नही है.
"अरे निधि चाचा जी भले इंसान हैं. पता है बाल ब्रह्म चारी हैं वो. आज तक उन्होने शादी भी नही की जबकि बहुत रिश्ते आए थे उन्हे."
"बाल ब्रह्म चारी किसने कहा तुम्हे ये."
चाचा जी ने ही बताया. ऑफीस से आकर मैं उनके कमरे में गया था तो उनसे बात हुई थी."
"उनकी डाइयरी पढ़ो तुम्हे सब पता चल जाएगा कि कितना बड़ा बाल ब्रह्म चारी है वो." मैने मन ही मन कहा.
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