RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“अरे... ये... कक्या..” अचानक से हुए इस घटनाक्रम से रश्मि भी अचकचा गई। लेकिन मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ, और एक तरह से बढ़िया भी लगा कि रश्मि एक पल को तो हिचकी, लेकिन उसके बाद उसने कोई विरोध नहीं किया, और उस वैद्य/लड़के को अपनी जांच करने दी। लड़के ने रश्मि के भिन्न भिन्न स्थानों पर दबा कर न जाने किस बात का जायजा लिया, उसके सीने पर कान लगा कर कुछ देर धडकनों को सुना, पेट और कमर को दबा कर जाँचा, और अंत में कहा,
“दीदी भी आपकी ही तरह एकदम गुंट है, भैना। आपको बस थोड़ा पूरक की जरूरत है। मेरा मतलब ज़रुरत तो नहीं है, लेकिन अगर लेंगे तो अच्छा रहेगा। यह जड़ी न केवल वीर्य वर्द्धक है, बल्कि आरोग्य और लम्बी आयु के लिए भी ठीक है..“
“ह्म्म्म.. अच्छा.. अगर मैं इसको अभी खरीद लूं, तो बाद में क्या होगा? मतलब एक पुडिया से तो कुछ नहीं होने वाला न?”
“बाद के लिए या तो मैं आपको इसको बनाने की विधि बता दूंगा, या फिर आप मुझे कोई पता बता दीजिए, जिस पर मैं आपको डाक से भेज दूंगा..”
“अच्छी बात है..” कह कर मैंने उसको हमारे साथ होटल आने के लिए बोला।
हमने अपने कपडे पहने, और साथ में होटल चल दिए, जहाँ पर मैंने उससे जड़ी ली, उसको पैसे दिए और सो गए।
'Heading Back home... with huge huge surprise. Love You!'
सुमन अपने फ़ोन के स्क्रीन पर रूद्र के इस मैसेज को बार बार पढ़ रही थी. ऐसा नहीं है कि रूद्र सिलसिले में कभी बाहर नहीं गए - लेकिन ऐसा विचित्र व्यवहार उन्होंने पहले कभी नहीं किया। वो बिना किसी चूक के उससे हर दिन कम से कम बार बात अवश्य करते थे। लेकिन इस बार तो बात ही नहीं हो पाई। बस कभी कभी कोई sms भेज देते थे। और तो और, उसका भी फ़ोन एक बार भी नहीं उठाया! क्या हो गया? क्या सरप्राइज है! उसके मन में कई सारे सवाल थे, लेकिन उनके जवाब रूद्र ही दे सकते थे। तब तक तो इंतज़ार करना ही होगा। अच्छी बात यह थी कि वो बस कुछ ही देर में आने वाले थे।
चार दिन हो चले थे - जैसे चार महीने बीत गए हों! उनके बिना तो मन लगता ही नहीं! इस बार बोलूँगी कि जब वो बाहर जाया करें, तो मुझे भी साथ ले जाया करें! उनका अनवरत साथ उसके लिए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक - उसके तीनों ही प्रकार के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक था।
अगले sms में फ्लाइट नंबर लिखा हुआ था। रूद्र हमेशा ही उसको अपनी फ्लाइट का नंबर लिख कर भेजते थे। एक दिन मज़ाक मज़ाक में उन्होंने कहा था कि अगर कभी मेरी फ्लाइट क्रैश हो जाय तो कम से कम तुमको मालूम तो रहे कि पूछ-ताछ कहाँ करनी है! उनकी इस बात पर सुमन खूब रोई थी; पूरा दिन खाना भी नहीं खा सकी। रूद्र की लाखों मनुहार के बाद ही उसके गले से खाने का एक निवाला उतर सका।
उसने फिर से फ़ोन की स्क्रीन पर sms पढ़ा। रूद्र का सन्देश, मनो खुद ही रूद्र खड़े हों, और वो उन्हें देख रही हो। शादी सचमुच ही जीवन बदल देती है। रूद्र और सुमन की शादी वैसी नहीं थी, जैसी उसने कभी कल्पना करी थी। न जाने कैसे कैसे सपने संजोती हैं लड़कियाँ अपनी शादी को ले कर... लेकिन यहाँ तो.. सब कुछ एक तरफ़ा मामला ही था; रूद्र ने जैसे बस उसकी इच्छा रख भर ली। उन्होंने इस मामले में न कभी अपनी तरफ से कोई पहल करी और न ही कभी इस प्रकार की गर्मी ही दिखाई, जो अक्सर मंगेतर जोड़े दिखाते और महसूस करते हैं। संभव है कि उनके मन में किसी तरह का अपराध-बोध रहा हो। यह शंका उन्होंने सुहागरात में जाहिर भी कर दी थी। सुमन समझ सकती है - दीदी के जाने के बाद, उन्ही की छोटी बहन के साथ... पहले उसको भी यह अपराध-बोध था। कैसे अपने ही जीजा से प्रेम! सोचने वाली बात यह कि उनको वो पहले दाजू कह कर बुलाती थी...! दाजू और अब..! और ऊपर से पड़ोसियों की कुरेदती हुई निगाहें! फिर उसने निर्णय कर लिया कि बस, बहुत हुआ। यदि प्रेम करना गुनाह है, तो होता रहे। रूद्र को वो अवश्य ही अपने मन की बात कहेगी। आगे जो होना होगा, प्रभु की इच्छा!
उन दोनों के सम्बन्ध की ऊष्णता विवाह के बाद ही तो हुई। यह संभवतः उनके अंदर जगा हुआ एक अधिकार भाव और एक संलिप्त भाव था। दोनों ही बातें, जो विवाह के बंधन में बंध कर होती हैं। विवाह सचमुच एक मायावी सम्बन्ध है - और उसके परिणाम रहस्यमय! आर्थिक और सामाजित स्तर पर देखा जाय, तो उसके पिता की प्रतिष्ठा एक मामूली व्यक्ति की ही थी। मामूली रहन-सहन, मामूली समाज में उठना बैठना, और मामूली आशाएँ और उद्देश्य। पर ऐसे मामूली परिवेश में भी उसने जीवन का एक अहम् रहस्य सीखा था – और वह यह कि अपने जीवन से संतुष्ट रहे, और सुखी रहे। रूद्र में उसको जीवन के रहस्य को साकार करने का यन्त्र मिल गया था। और यह सब कुछ उनकी संपत्ति के कारण नहीं था – संपत्ति न भी होती, तो भी कुछ ख़ास प्रभाव नहीं होना था। प्रभाव था उनके स्नेह का, और उनके प्रेम का! वो संतुष्ट थी, सुखी थी। विवाह के बाद उसको अपने ही अन्दर छुपे हुए कितने ही सारे रहस्य पता चले थे! उन रहस्यों के उजागर होने पर उसको रोमांच भी होता, आश्चर्य भी होता, और लज्जा भी आती। लेकिन फिर भी मन नहीं भरता। रूद्र भी हर संभव तरीके से उसको सुखी रखते थे! ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं, कि विवाह के उपरान्त उसके देह भी भरने लगी है! पुरुष के रसायनों का कैसा अद्भुद प्रभाव होता है!
वो लज्जा से मुस्कुरा दी।
‘पुरुष के रसायन... हा हा’ सुमन मन ही मन हंस दी।
ये भी तो अपने रसायन उसके अन्दर डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं! यह बात तो है, दोनों चाहे कितने भी थके हुए हों, बिना सहवास किए रह नहीं पाते! सहवास करने के बाद की ऊर्जा और ताजगी! रूद्र के साथ की बात याद कर के सुमन के शरीर का पोर-पोर दुखने लगता है। उसका मन करता है कि जल्दी से रूद्र आ जाएँ, और उसे अपने आलिंगन में भींच लें; इतनी जोर से कि उसकी एक एक हड्डी चटक जाए।
हवाई-अड्डे से निकल कर मैंने और रश्मि ने टैक्सी करी और घर की ओर चल दिए। घर की तरफ जाते हुए –
“सुमन है घर पर?” रश्मि ने पूछा।
मैंने सिर्फ सर हिला कर हामी भर दी.
“उसकी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?”
“अच्छी चल रही है..” अब मैं उसको क्या बताऊँ कि पढ़ाई लिखाई के साथ साथ और भी बहुत कुछ चल रहा है, और वो भी बहुत ही अच्छे से!
“उसको कैसा लगेगा!” यह प्रश्न जैसे रश्मि ने खुद से ही किया था।
“कैसा लगेगा? ये क्या बात हुई जानू! वो बहुत खुश हो जाएगी.. और कैसा लगेगा! मैं आपको बता नहीं सकता कि वो कितनी दुखी रही है!”
“हाँ.. आप सही कह रहे हैं! हम दोनों सिर्फ सगी बहनें ही नहीं है.. हमारा रिश्ता बहुत ही गहरा है..”
“इस बात में कोई शक नहीं..”
‘रिश्ता तो गहरा ही है!’
“क्या हुआ जानू.. आप ऐसे सूखा सूखा क्यों बोल रहे हैं?”
“नहीं कुछ नहीं.. थक गया हूँ बस! और कुछ भी नहीं..” अब अपनी सफाई में और क्या ही बोल सकता था?
“ओह अच्छा! कोई बात नहीं.. घर चल कर आपको अच्छी सी चाय पिलाती हूँ, और फिर बढ़िया स्वादिष्ट खाना.. ओके?”
मैं सिर्फ मुस्कुराया! सच में! अगर घर जा कर सचमुच ऐसा ही हो, तो फिर समझो कि मेरी लाइफ सेट हो गई!
घर की तरफ बढ़ते हुए मेरे दिल की धडकनें बहुत तेज हो गईं, गला सूखने सा लगा और बहुत घबराहट हो गई. लगभग कांपती उँगलियों से मैंने कॉल-बेल का बटन दबाया।
कोई बीस सेकंड (जो की मुझे घंटे भर लम्बे लगे) के बाद दरवाज़ा खुला।
“आ गए आ... दीदी? दीदी..??? दीदी!!!! दीदी!!!! तुम जिंदा हो?!!!!!”
सुमन के समक्ष जो परिदृश्य था, वह उसकी समझ से परे था। किसी की भी समझ से परे हो सकता है; लेकिन इस बात के लिए सुमन तैयार ही नहीं थी।
“ओह भगवान्! तुम जिंदा हो! ओह! ओह भगवान्!”
ऐसा कह कर सुमन रश्मि को कस कर अपने आलिंगन में भर लेती है। रश्मि भी खुश हो कर और भावविभोर हो कर सुमन को अपनी बाहों में भर कर उसका चुम्बन लेने लगती है।
“तुम जिंदा हो दीदी! तुम जिंदा हो।“ रश्मि के आलिंगन में बंधी हुई सुमन सुबकने लगी थी। उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू बन्हने लगे थे। “तुम जिंदा हो।“
“हाँ मेरी बच्ची! मैं जिंदा हूँ!” रश्मि भी रोए बिना नहीं रह सकी। “मैं जिंदा हूँ!”
इस समय दोनों ही बहने वर्तमान में नहीं थीं। वो दोनों ही उस भयावह अतीत को याद कर रही थीं, जिसको उन्होंने साथ में झेला था। वह अतीत जिसने उनके माँ बाप को लील लिया था। वह अतीत जिसने उन दोनों को अलग कर दिया था। और वह अतीत, जिसने अनजाने में ही दोनों के वर्तमान को भी बदल दिया था। उस भयंकर अतीत को याद कर दोनों ही फूट फूट कर रोने लगीं; एस समय उन दोनों के लिए ही इस बात से बढ़ कर कुछ नहीं था कि वो दोनों ही जीवित थीं, और एक बार फिर से एक दूसरे के साथ थीं। न जाने कितनी ही देर दोनों बहने एक दूसरे को अपनी बाहों में लिए खड़ी रहीं, और फिर आखिरकार दोनों ने अपना आलिंगन छोड़ा।
“बस कर मेरी बच्ची... बस कर! ... कैसी है तू?” रश्मि ने बड़े लाड से पूछा, और बड़े प्यार से सुमन के चेहरे को अपने दोनों हाथ में लिए निहारने लगी।
“अरे! तेरी शादी हो गई?” रश्मि ने सुमन की मांग का सिन्दूर देख लिया।
“वाआह्ह्ह! कब?” रश्मि ने लगभग चहकते हुए कहा। यह प्रश्न जैसे वज्र की तरह गिरा – सुमन पर भी, और मुझ पर भी। इस प्रश्न पर सुमन के पूरे शरीर को मानो लकवा मार गया।
“आपने बताया क्यों नहीं?” रश्मि ने शिकायती लहजे में मुझ पर प्रश्न दागा।
“वो मैं.. मैं..”
“हाँ हाँ ठीक है.. बहाने मत बनाइए। अब आ गई हूँ, तो सब कुछ डिटेल में सुन लूंगी! कहाँ हैं तेरे हस्बैंड?”
स्वतः प्रेरणा से सुमन ने इस प्रश्न पर मेरी तरफ देखा, और मैंने उसकी तरफ। मैंने ‘न’ में सर हिला कर एक दबा छुपा इशारा किया।
“व्व्वो वो दीदी.. तुम आओ तो सही। बैठो, फिर बताती हूँ सब।“
“हा हा.. ठीक है।“ कह कर हँसते हुए रश्मि अन्दर आ गई और सोफे पर बैठ गई। “कहाँ तो मैं सोच रही थी कि मैं तुझे सरप्राइज दूँगी, और कहाँ तूने मुझे ही इतना बढ़िया सरप्राइज दे दिया...!”
“म्म्ममैं चाय बनाती हूँ!” सुमन अपना बचाव करते हुए बोली।
“अरे नहीं! नीलू, तू बैठ। चाय मैं बनाऊँगी।“
कह कर रश्मि ने सुमन का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, और खुद रसोई में चली गई।
रश्मि ने जाते ही सुमन भी उठ खड़ी हुई।
“कहाँ जा रही हो, सुमन?” मैंने पूछा।
“'अपने' कमरे में...” उसने थोड़े से उदास और रुआँसे स्वर में कहा। उसकी आवाज़ में मुझे शिकायत की भी एक झलक सी महसूस हुई।
“अपने कमरे में? अपने?” मुझे समझ आ गया कि सुमन दूसरे कमरे में जाने वाली है। “नीलू.. इधर आओ.. प्लीज!” कह कर मैंने उसको अपनी बाँहों में भर लिया।
सुमन उदास सी मेरे बाहों में आ गई। तो मैंने कहना जारी रखा।
“हमने शादी करी है.. वो भी विधिवत। तुम मेरी बीवी हो। ठीक रश्मि की ही तरह। इसलिए इस कमरे पर, इस घर पर, मुझ पर और मेरी हर चीज़ पर तुम्हारा उतना ही अधिकार है, जितना की रश्मि का है!”
“आप समझ नहीं रहे हैं... बहन से सौतन तो बना जा सकता है, लेकिन सौतन से बहन नहीं। आपको मुझे पहले ही बता देना चाहिए था।“ सुमन ने बुझे हुए स्वर में कहा। “आपने सोचा भी है, कि सच्चाई जानने के बाद दीदी क्या सोचेगी? क्या करेगी?”
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