RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
पूर्ण नग्न हो कर रश्मि वहीँ पत्थर पर पीठ के बल लेट गयी। उस पत्थर के वृत्त पर लेटने से रश्मि का शरीर भी कमानीदार हो गया – अर्द्ध चांदनी में उसके शरीर का भली भांति छायांकन हो रहा था। यह सोच लीजिए जैसे खुलेआम एक बेहद निजी अनावृत्ति! उसके नग्न शरीर को सिर्फ मैं देख सकता था और कोई नहीं। हलकी चांदनी उसके शरीर के हर अंग को दिखा भी रही थी, और छुपा भी रही थी। उसके गाल, उसकी नाक, उसके होंठ, उसके कंधे, और उत्तेजना से जल्दी जल्दी ऊपर नीचे होते उसके स्तन! सपाट, तना हुआ पेट, और उसके अंत में सुन्दर नितम्ब! कुल मिला कर रश्मि के शरीर में बहुत अंतर नहीं आया था – हाँ, कम खाने पीने से वो कुछ पतली तो हो गयी थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं तो हफ्ते भर में ठीक न हो जाय। अस्पताल में सचमुच उसकी अच्छी देखभाल हुई थी।
वो मुस्कुराई, “जब आपका रस अन्दर जाएगा..”
मैंने रश्मि के क्रोड़ की तरफ देखा – उसका योनि मुख – उसके दोनों होंठ फूले हुए थे। घने बालों के बीच से भी यह दिख रहा था। फूले हुए, रसीले भगोष्ठ!
“सचमुच भूल गया!”
“तो अब आप याद कर लीजिए, और मुझे भी याद दिला दीजिए..” रश्मि ने बहुत ही धीमी आवाज़ में यह कहा – फुसफुसाते हुए नहीं, बस दबी हुई आवाज़ में!
“एक तरह से हमारी दूसरी सुहागरात!” उसने एक आखिरी प्रहार किया..
मुझे उस प्रहार की वैसे भी कोई आवश्यकता नहीं थी। मैंने रश्मि के पैर थोड़े से फैलाए। और अपनी उंगली को उसकी योनि की दरार पर फिराने लगा। रश्मि एक परिचित छुवन से कांप गयी। इतने अरसे से दबी हुई कामुक लालसा इस समय उसके अन्दर पूरे चरम पर थी। कुछ देर योनि की दरार पर उंगली चलाने के बाद मैंने अपनी उंगली को अन्दर की तरफ प्रविष्ट किया – उंगली जैसे ही अन्दर गयी, रश्मि की योनि ने तुरंत ही उसके इर्द गिर्द घेरा डाल कर उसे कस कर पकड़ लिया। मैं मुस्कुराया।
“उ उंगली उंगली नहीं जानू..” रश्मि हांफते हुए बोली।
रश्मि की इस बात पर मेरा लिंग जलने सा लगा। मेरे तने हुए जलते लिंग को अगर मैं अमूल बटर की ब्रिक से लगा देता तो उसमें लिंग की मोटाई के समान ही एक साफ़ छेद हो जाता। खैर, मैंने अपनी उंगली को बाहर खींचा और उंगली और अंगूठे की सहायता से उसके योनि-पुष्प की पंखुड़ियों को अलग करने लगा। रश्मि के उत्तेजक काम रसायनों की महक हमारे आस पास की हवा में घुल गयी।
स्वादिष्ट!
मैंने उसकी खुली हुई योनि को अपने मुख से ढंका और उन रसायनों का आनंद उठाने लगा। रश्मि का रस, सुमन के रस जैसा मीठा नहीं था। खैर, इस बात की मैं कोई शिकायत तो करने वाला नहीं था। मैंने धीरे धीरे से रश्मि की पूरी योनि को चूसना चाटना आरम्भ कर दिया। उतनी जल्दी तो उसकी योनि काम रस बना भी नहीं पा रही थी। जल्दी ही जब इस क्रिया से उसका रस समाप्त हो गया, तब मैं कभी दाहिने, तो कभी बाएँ होंठ को चूसने लगा। हार मान कर उसकी योनि पुनः काम रस का निर्माण करने लगी। और मैं उस रस को सहर्ष पी गया।
रश्मि बड़े प्यार से मेरे बालों में हाथ फिराती हुई मेरा उत्साह-वर्धन कर रही थी। आज एक अरसे के बाद मैं रश्मि की योनि चाट रहा था, इसलिए मुझे बहुत रोमांचक आनंद आ रहा था। थोड़ी ही देर बाद मेरा लिंग खड़ा हो गया।
मैंने कहा, “जानू, लगाता है कि आज तुम मूड में हो।”
रश्मि ने फुसफुसाते और कराहते हुए कहा, “आ ह हाँ, इतने दिनों बाद अपने कामदेव से मिली हूँ.. आज तो मैं सचमुच बड़े मूड में हूँ। आप मुझे चोदिये, और जम कर चोदिये.. जैसे मन करे वैसे.. जितनी बार मन करे, उतनी बार...।”
“तब तो आज खूब मज़ा आयेगा।”
कह कर मैं वापस रश्मि की योनि को चाटने में मग्न हो गया। वो सचमुच बहुत ज्यादा जोश में आ चुकी थी। थोड़ी ही देर में रश्मि स्खलित हो गयी..
फिर आई उसके भगनासे की बारी। मैंने उसके उस छोटे से अंग को देर तक कुछ इस तरह से चूसा जैसे कोई स्त्री अपने प्रेमी के लिंग को चूसती है। इस क्रिया का रश्मि पर नैसर्गिक प्रभाव पड़ा – वो अपने नितम्ब गोल गोल घुमा कर और उछाल कर मुख मैथुन का पूरा आनंद उठा रही थी। खैर, जब तक मैंने उसके भगनासे से अपना मुँह हटाया, तब तक रश्मि तीन बार और स्खलित हो गयी। रश्मि की संतुष्टि भरी आहें वातावरण में गूँज रही थीं।
“ओह गॉड!” उसने कामुकता भरी संतुष्टि से कराहा।
मैंने रश्मि को रतिनिष्पत्ति का पूरा आनंद उठाने दिया। मुझे शंका थी की कहीं रश्मि की आहें और कराहें सुन कर कोई आस पास न आ गया हो। उस जगह निर्जनता तो थी, लेकिन इतनी नहीं की कोई इतनी ऊंची आवाज़ न सुन सके। खैर, कोई देखता है, तो देखे! क्या फर्क पड़ता है! मैंने अपने भी कपडे उतार दिए। मेरा लिंग तो पूरी तरह से तना हुआ था।
मैंने अपने आप को रश्मि की टाँगों के बीच व्यवस्थित किया और उसकी टाँगों को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया। फिर मैंने उसकी योनि के होंठों को फैला कर अपने शिश्नाग्र को वहां व्यवस्थित किया। कोई दो ढाई साल बाद रश्मि की चुदाई होने वाली थी (कुंदन वाला कुछ भी मान्य नहीं होगा) – इसलिए मुझे सम्हाल कर ही सब कुछ करना था।
रश्मि को खुद भी इस बीते हुए अरसे का एहसास था – इसलिए वो भी उत्तेजना के मारे एकदम पागल सी होने लगी। खुले में सम्भोग करने जैसी हिमाकत वो ऐसे नहीं कर सकती थी।
“शुरू करें?” कह कर मैंने लिंग को उसकी चूत में फंसा कर एक जोर का धक्का लगाया। रश्मि के मुँह से चीख निकल पड़ी। उसकी योनि सचमुच ही पहले जैसी हो गई थी – संकरी और चुस्त! मैंने नीचे देखा तो सिर्फ सुपाड़ा ही अन्दर गया था – बाकी का पूरा का पूरा अभी अन्दर जाना बचा हुआ था।
“क्या बात है रानी! आपकी चूत तो एकदम कसी हुई है! ठीक उस रात के जैसे जब हम दोनों पहली बार मिले थे! असल में, उस से भी ज्यादा कसी हुई...।”
पीड़ा में भी रश्मि की खिलखिलाहट निकल गई।
“आप जो नहीं थे, इसके कस बल खोलने के लिए...”
“कोई बात नहीं... अब आपकी ये शिकायत दूर कर दूंगा..”
“वो मुझे मालूम है... अब शुरू कीजिए..”
“क्या?” मैंने छेड़ा।
“चुदाई...” उसने फुसफुसाते हुए कहा और मेरे लिंग को अपनी योनि के मुहाने पर छुआ दिया।
मैंने धीरे धीरे लिंग को अन्दर घुसाया; रश्मि की कराह निकल रही थी, लेकिन उसके खुद में ही उसको ज़ब्त कर लिया। रश्मि की चूत सचमुच संकरी हो गई थी। सुमन से भी अधिक कसावट लिए! उस घर्षण से लिंग के ऊपर की चमड़ी पीछे खिसक गयी – अब मेरा मोटा सुपाड़ा रश्मि की योनि की दीवारों को रगड़ रहा था। हम दोनों का ही उन्माद से बुरा हाल हो गया। मैं अन्दर के तरफ दबाव देता गया जब तक लिंग पूरी तरह से रश्मि के अन्दर समां नहीं गया।
“देख तो! मेरा लंड कैसे तेरे अन्दर फिट हो गया है...”
रश्मि ने सर उठा कर देखा और बोली, “ओ भगवान! शुक्र है की पूरा अन्दर आ गया.. मेरे अन्दर की खाली जगह आखिरकार भर ही गई! उम्म्म.. मुझे डर लग रहा था की शायद न हो पाए! अब बस.. आप जोर से चोद डालिए मुझे... यह भी तो बहुत आतुर हो रहा है..."
मैंने रश्मि की दोनों टाँगे अपने कन्धों पर रख लिया।
“तैयार हो?”
"हाँ... आप ऐसे मत सताइए! मेरे पूरे शरीर में आग सी लगी हुई है। बुरी तरह...”, रश्मि ने कहा।
"क्या सच में!” मैंने पूछा।
मेरे इतना कहने की देर थी कि रश्मि नीचे से खुद ही धक्के लगाने लगी। मैंने कुछ नहीं कहा, बस रश्मि को तेजी के साथ चोदना शुरु कर दिया। हम दोनों ही बहुत जोश में थे और तेजी से मंथन कर रहे थे। अति उत्तेजना के कारण सिर्फ पाँच मिनट में ही रश्मि चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। रश्मि की योनि से कामरस निकलता हुआ देख कर मेरा जोश भी बढ़ गया और मैंने भी अपनी गति बढ़ा दी। मैं उसको तेजी से चोदने लगा। हाँ, यही शब्द ठीक है! जो हम कर रहे थे, वो विशुद्ध सम्भोग था, जिसका सिर्फ एक और एक ही उद्देश्य था – और वो था हमारे शरीरों की काम पिपासा को शांत करना। और इसका सटीक शब्द चुदाई ही था। आगे दो तीन मिनटों में मेरे लिंग ने भी वीर्य छोड़ दिया और रश्मि की योनि भरने लगी। पूरी तरह से स्खलित हो जाने के बाद मैंने अपना लिंग उसकी योनि से बाहर निकाला, और हट गया। रश्मि ने मुझको अपनी तरफ़ खींच लिया, और मेरा लिंग चाटने लगी।
एक और नई बात!
“आज तो मज़ा आ गया।” जब रश्मि ने अपना काम ख़तम किया तो मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया।
“भैना, और मजा आएगा... आप ये जड़ी लिया करें!”
हम दोनों ही चौंक कर आवाज़ की दिशा की तरफ देखने लगे। एक लड़का, किशोरावस्था में ही रहा होगा वह, अपने कंधे पर एक झोला लटकाए हमारी ही तरफ देख रहा था। जाहिर सी बात है, उसने यह बात भी हमको ही कही थी।
वो न जाने कब से हमारी रति-क्रिया देख रहा होगा, इसलिए मैंने तो अपनी नग्नता छुपाने की कोई कोशिश नहीं करी, लेकिन रश्मि अपने आप में ही सिमट सी गई।
“कौन है?” मैंने पूछा।
“जी मैं जड़ी-बूटी बेचने वाला हूँ... तरह तरह की जड़ी-बूटियाँ बेचता हूँ.. आप लोगों को देखा तो रुक गया।“
“अच्छा तो तू दूसरों को चुदाई करते हुए देखता है?”
“नहीं भैना! लेकिन आप लोग भी तो खुले में...” वो झिझकते हुए बोला।
“अच्छा अच्छा! ठीक है! क्या जड़ी बेच रहे हो?”
“है तो भैना यह कामवर्धक जड़ी.. अरे! पूरी बात सुन तो लीजिए!”
संभवतः उसने मेरे चेहरे पर उत्पन्न होने वाले झुंझलाने वाले भाव देख लिए थे,
“यह जड़ी शुद्ध शिलाजीत, इलाइची, अश्वगंधा और चन्दन से बनी है.. शुद्ध है! आप चाहें तो चख कर देख लें.. ऐसा स्वाद आपने कभी नहीं चखा होगा.. इसका नियमित इस्तेमाल करें.. दीदी खुश हो जाएँगी! ... और आप भी!”
“अभी खुश नहीं थीं?”
“थीं भैना.. खुश थीं... लेकिन और हो जाएँगी! आपका ब्वारू लम्बी देर तक कड़क रहेगा..”
“अच्छा..” अपनी मर्दाना ताकत पर ऐसी टिपण्णी होते सुन कर मुझे अच्छा नहीं लगा, “तू खाता है ये जड़ी?”
“भैना, महँगी जड़ी है.. उतना तो नहीं खा पाता!”
“उतना नहीं..? अरे! तुझे क्या ज़रुरत हुई इस जड़ी की?”
“भैना, मेरी भी घरवाली है! उसको भी खुश रखना होता है न!”
“तेरी शादी हो गई? अरे!”
“हाँ! एक साल हो गया भैना।“
“अरे तू खुद इतना छोटा लग रहा है.. तेरी ब्वारी की उम्र क्या है?”
“यही कोई पंद्रह की, भैना!”
“अरे! बच्ची से..!?”
“बरबरि है भैना वो.. बच्ची नहीं..” कहते हुए वो मुस्कुराया! “मुझे एक बार अपना ब्वारू देखने देंगे? .. मैं वैद्य भी हूँ...”
कह कर वो मेरे लिंग को पकड़ कर, खींच कर, दबा कर जांच करने लगा। न तो उसने मेरी सहमति की परवाह करी और न ही किसी हील हुज्जत की। जब वो अपनी जांच से संतुष्ट हो गया तो बोला, “बहुत गुंट अंग है भैना आपका... थोड़ा सा बांग है.. लेकिन उससे कोई दिक्कत नहीं होगी। आप चाहें तो उसके लिए एक अर्क दे सकता हूँ.. उससे मालिश कर के थोड़ा सा सीधा हो जायेगा.. वैसे उसकी कोई ख़ास जरूरत नहीं है.. आप बस यह जड़ी खाया करें। आप तो ज़रूर लीजिए.. अच्छा स्वास्थ्य है, असर अधिक आएगा..”
“अच्छी बात है.. अब अपनी दीदी की भी जांच कर के बता।“
“जी..” कह कर वो लड़का रश्मि की जांच करने लगा।
|