RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सुगी में गाड़ी नहीं जाती – वहां पैदल जाना होता है। खैर, मैं ड्राईवर को पीछे छोड़ कर लगभग भागता हुआ सा सुगी तक पहुंचा। लोग बाग़ जैसे मुझे देखते ही पहचान गए की मैं कौन हूँ; वो सभी लोग मुझे इशारे से किसी रामलाल के घर जाने को कह रहे थे, और रास्ता भी बता रहे थे। खैर, मैं कोई आधे घंटे के अन्दर ही वहां पहुँच गया।
“मिस्टर सिंह?”
“डॉक्टर संजीव?”
हम दोनों एक दूसरे को देखते ही पहचान गए। संजीव इस बात पर हैरान थे की मैं सचमुच आधे घंटे में कैसे वहां पहुँच गया। मैंने उनको सारी बातें विस्तार से बता दीं। वो विस्फारित से नेत्रों से मुझे देखने लगे..
“सचमुच, कुदरत का करिश्मा है तुम दोनों की मोहब्बत!” उन्होंने मुझे बस इतना कहा और मुझे बहुत बहुत बधाइयाँ दीं।
फिर उन्होंने मुझे रश्मि के साथ घटी सारी बातें विस्तार से बताई – उन्होंने मुझे बताया की कैसे लगभग मरणासन्न सी हालत में उसको वहां लाया गया था। उन्होंने बताया की उस अवस्था में रश्मि का गर्भ भी गिर गया। उन्हें वैसे उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन कोई एक महीने के बाद अचानक ही रश्मि की हालत सुधरने लगी। लेकिन वो इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अपने होश में नहीं थी – कोमा में थी। डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के कुछ सहयोगियों ने कुछ नवीन तरीके से रश्मि का इलाज जारी रखा, इसलिए कोमा में रहने के बाद भी, उसकी मांसपेशियों का क्षय नहीं हुआ। बीच बीच में उसकी आँखें खुलती, लेकिन शायद वो किसी तरीके का रिफ्लेक्स रिएक्शन था। वो देखा और सुना हुआ कुछ समझ नहीं पाती थी।
लेकिन कोई आठ दस दिनों पहले.... फिर उन्होंने मुझे कुंदन, और कस्बे में जो घटना हुई, उसके बारे में बताया। सच कहूं, मुझे यह जान कर बिलकुल भी बुरा नहीं लगा, की कुंदन ने रश्मि के साथ सम्भोग किया। उल्टा मुझे उस बेचारे पर दया आई। मेरी नज़र में उसको अपने किये की बहुत ही बड़ी सजा मिली थी.. उसका ऐसा अपराध था भी नहीं।
रश्मि से मिलने से पहले मैंने कुंदन के घर का रुख किया – उसकी बुरी हालत देख कर मेरा दिल वैसे ही बैठ गया। हमारा परिचय हुआ, तो वो हाथ जोड़ कर बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगा। मैंने उसको सहारा दे कर लिटाया, और लेटे रहने का आग्रह किया।
“कुंदन,” मैंने कहा, “तुमने मेरी रश्मि के लिए जो कुछ किया, उसका एहसान मैं अपनी पूरी जिंदगी नहीं भूलूंगा! यह तुम्हारा एक क़र्ज़ है मुझ पर.. जिसको मैं चुका नहीं सकता। मैं तो यही सोच कर रह गया था की वो अब इस दुनिया में नहीं है.... लेकिन वो आज मुझे मिली है, तो बस सिर्फ तुम्हारे कारण!”
“लेकिन...” कुंदन कुछ कहने को हुआ..
“मुझे मालूम है, की तुमने रश्मि के साथ सेक्स किया है। लेकिन वो तुम्हारी नादानी थी। वैसे भी रश्मि को उस बारे में कुछ याद नहीं.. और क्योंकि कल उसी ने तुम्हारी जान बचाई थी, इसलिए मैं मान कर चल रहा हूँ की उसने तुमको माफ़ कर दिया..”
“मुझे माफ़ कर दीजिए..” उसने फिर से हाथ जोड़े।
“कुंदन, माफ़ी के लिए कुछ भी नहीं है! अगर तुम माफ़ी चाहते ही हो, तो मेरी एक बात सुनो, और हो सके तो अमल करो।“
“बताइए सर!”
“मैं चाहता हूँ की तुम आगे की पढाई करो – इंजिनियर बनो – ढंग के इंजिनियर! तुम्हारी पढाई लिखाई का खर्चा मैं दूंगा। बोलो – मजूर है?”
कुंदन की आँखों में आंसू आ गए।
“जी! मंज़ूर है..” उसने भर्राए हुए स्वर में कहा।
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दुनियादारी से फुर्सत पाकर अब मैं अपनी रश्मि से मिलने चला।
इतने दिनों के बाद.. ओह भगवान् मैं ख़ुशी से पागल न हो जाऊं! पैरों में मेरे पंख जैसे निकल आये..
रश्मि कुछ व्यग्र सी रामलाल के घर के दरवाज़े के ठीक सामने एक चारपाई पर बैठी हुई थी। मन में न जाने कितने सारे विचार आ और जा रहे थे। भले ही किसी ने उसको पूरी बात विस्तार से न बताई हो, लेकिन किश्तों में और छोटे छोटे टुकड़ों में उसको जो सब कुछ पता चला, वो उसको हिला देने वाला था। सबसे पहले तो उसके आँखों के सामने वो दिल दहला देने वाला दृश्य पुनः सजीव हो उठा।
मष्तिष्क के खेल निराले होते हैं – केदारनाथ आपदा के समय जब अभी जीवन अभी मृत्यु जैसी दशा बन आई, तब किस तरह से वो, सुमन और उनके पिता भंवर सिंह जी अपनी जान बचा कर वहां से निकले। माँ को तो उसने आँखों के सामने उस अथाह जलराशि में बह जाते हुए देखा था – बाढ़ में होटल का अहाता बुरी तरह से टूट गया था, और होटल ढलान पर होने के कारण, वहां से पानी भी बड़ी तीव्रता से बह रहा था। पकड़ने के लिए न कोई रेलिंग थी न कोई अन्य सहारा। बहुत सम्हाल कर निकलने के बाद भी माँ का पैर फिसल गया और वो सबकी आँखों के सामने बह गईं। एक पल को आँखों के सामने, और अगले ही पल गायब! कितनी क्षणिक हो सकती है ज़िन्दगी! कितनी व्यर्थ! पिताजी उनके पीछे भागे – बिना अपनी जान की परवाह किये! लेकिन पानी में इतना सारा मिट्टी और पत्थर मिला हुआ था, की उसकी रंगत ही बदल गई थी। माँ फिर कभी नहीं दिखाई दीं। वो कुछ दूर तक गए तो, लेकिन जब वापस आये तो लंगड़ा कर चल रहे थे – टूटे हुए किसी राह पर गलत पैर पड़ गया और उनके में चोट लग गयी।
जान बचाते लोगों ने उनको पहाड़ पर ऊंचाई की तरफ जाने की सलाह दी। काफी सारे लोग वही काम कर रहे थे – मतलब लोग पहाड़ की ढलान के ऊपर की तरफ जा रहे थे। उन्ही की देखा देखी वो तीनों भी ऊपर की चढ़ाई करने लगे। पर्वतों की संतानें होने के बावजूद उस चढ़ाई को तय करने में बहुत समय लग गया। न तो पिताजी ही ठीक से चल पा रहे थे, और न ही खुद रश्मि। वैसे भी गर्भावस्था में ऐसे कठिन काम करने से मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। चलते चलते अचानक ही उसकी हिम्मत जवाब दे गई, और वो वहीँ एक जगह भहरा कर गिर गई। जब होश आया तो उसने देखा की पिताजी उसको पानी पिलाने की कोशिश कर रहे हैं।
रात गहरा गई थी, और आस पास कोई भी नहीं दिख रहा था। बस इसी बात की आस थी की कम से कम हम तीनो तो बच गए.. लेकिन पिताजी दिन भर उल्टियाँ करते करते मृत्यु से हार गए। एक साथ कितनी यातनाएँ सहती वो? दिन भर के अंतराल में दोनों लड़कियों के सर से माँ बाप का साया उठ गया। अब तक वो भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक – तीनों स्तर पर अपने हथियार डाल चुकी थी। न जाने कहीं से कुछ सड़ा हुआ मांस मिल गया – जिसने कुछ देर और उन दोनों की जान बचाई। जंगली जानवरों की आवाज़ के बीच न चाहते हुए भी उसको नींद सी आ गई – पलकें बंद करते करते उसने नज़र भर सुमन को देखा। रश्मि समझ गयी की अब अंत समय आ गया – उसको दुःख बस इस बात का था, की वो अपनी छुटकी – अपनी छोटी बहन – के लिए कुछ नहीं कर पा रही थी। संभवतः प्रभु के घर उसको अपने माँ बाप के सामने लज्जित होना और लिखा था।
जब खुद का होश हुआ, तो मालूम हुआ की वो यहाँ इस अनजान सी जगह पर है, और डॉक्टर उसकी जांच पड़ताल कर रहे थे। उसको अपने शरीर में हुआ परिवर्तन समझ में आ गया था – रश्मि समझ गयी की रूद्र और उसके प्रेम की निशानी अब नहीं बची। उसका जी हुआ की बुक्का फाड़ कर रोए, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। डॉक्टर उससे सवाल जवाब कर रहे थे.. उसको समझ नहीं आया की उससे ऐसी जवाब-तलबी क्यों करी जा रही है.. लेकिन फिर भी वो पूरे संयम से उनकी बातों का ठीक ठीक उत्तर देती रही। फिर मालूम हुआ की रूद्र यहीं आने हैं.. यह सुन कर उसकी जान में जान आई – कम से कम पूरी बात तो समझ आएगी!
लेकिन रूद्र के आने से पहले उसको लोगों की दबी आवाज़ में कही गई बातें सुनाई दे गईं। उसने डॉक्टर संजीव पर दबाव डाला की वो उसे सब कुछ सच सच बताएं – उसको सब सच जानने का पूरा हक़ था। संजीव और रामलाल ने उसको सारी बातें, हिचकते हुए ही सही, बता दीं। उसको यकीन ही नहीं हुआ की उसके दिमाग में जो बात अभी तक जीवित थी, वो कोई दो साल पुरानी यादें थीं, और यह की पिछले हफ्ता दस दिन तक उसके साथ जो कुछ भी हुआ, वो उसको याद ही नहीं था! उसने यह भी जाना की उसने ऐसे आदमी की जान बचाई थी, जिसने उसकी याददाश्त का फायदा उठा कर उसके साथ शारीरिक ज्यादतियां करी थीं। अब क्या मुँह दिखाएगी वो रूद्र को?
ऐसी ही न जाने कितनी बातें सोचती हुई, उम्मीद और नाउम्मीद के झूले में झूलते हुए, सुमन का अंतर्मन बेहद आंदोलित होता जा रहा था। वो बहुत बेसब्री से रूद्र की प्रतीक्षा कर रही थी।
‘रूद्र!’
रूद्र पर निगाह पड़ते ही वो चारपाई पर से उछल कर खड़ी हो गई। रूद्र को देखते ही जैसे उसके मन के सारे संताप ख़तम हो गए। उसके चेहरे पर तुरंत ही राहत के भाव आ गए। रश्मि के मुँह से कोई बोल तुरंत तो नहीं फूटे, लेकिन रूद्र को जैसे उसके मन की बातें सब समझ आ गईं। रश्मि ने सुना तो कुछ नहीं, लेकिन उसको लगा की रूद्र ने उसको ‘कुछ मत कहो’ जैसा कुछ कहा था।
रूद्र ने रश्मि को देखा – अपलक, मुँह बाए हुए! दो वर्ष क्या बीते, जैसे दो जन्म ही बीत गए!
‘हे भगवान्! कितनी बदल गयी है!’ उसका गुलाब जैसे खिला खिला चेहरा, एकदम कुम्हला गया था; सदा मुस्कुराती हुई आँखें न जाने किस दुःख के बोझ तले बुझ गईं थीं।
न जाने क्यों रूद्र का मन आत्मग्लानि से भर गया। रूद्र लगभग दौड़ते हुए उसकी तरफ बढ़ रहे थे; रश्मि भी लपक कर उनकी बाहों में आ गई। आलिंगनबद्ध हुए ही रूद्र उसका शरीर यूँ टटोलने लगे जैसे उसकी मुकम्मल सलामती की तसदीक कर रहे हों!
“ओह जानू!” रूद्र ने कहा।
उनकी आवाज़ में गहरी तसल्ली साफ़ सुनाई दे रही थी – उम्मीद है की दिल का दुःख रश्मि ने न सुना हो। आलिंगन बिना छोड़े हुए ही, रूद्र ने रश्मि के कोमल कपोलों को अपनी हथेलियों में ले कर प्यार से दबाया,
“ओह जानू!”
रूद्र का गला भर आया था। उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे।
“ओह जानू..” कहते कहते वो फफक फफक कर रो पड़े। गले की आवाज़ भावावेश में आ कर अवरुद्ध हो चली थी।
ऐसे भाव विह्वल मिलन का असर रश्मि पर खुद भी वैसे हुआ, जैसे रूद्र पर! रूद्र को अपने आलिंगन में बांधे रश्मि की आँखें बंद हो गईं। वो निःशब्द रोने लगी। उन आंसुओं के माध्यम से वो पिछले दो वर्षों की भयानक यादें भुला देना चाहती थी – अपनी भी, और संभवतः रूद्र की भी। रूद्र को इस तरह से रोते हुए उसने कभी नहीं देखा था – वो कभी कभी भावुक हो जाते थे, लेकिन, रोना!! रश्मि को तो याद भी नहीं है की रूद्र कभी रोए भी हैं! रश्मि को अपने आलिंगन में बांधे रूद्र रोते जा रहे थे। एक छोटे बच्चे के मानिंद! गाँव वाले पहले तो तमाशा देखने के लिए उन दोनों को घेर कर खड़े रहे, लेकिन रामलाल ने जब आँखें तरेरीं, तो सब चुपचाप खिसक लिए।
पता नहीं कब तक दोनों एक दूसरे को थामे, रोते रहे और एक दूसरे के आंसूं पोंछते रहे। लेकिन आंसुओं का क्या करें? थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। रूद्र विगत दो वर्षों की निराशा, दुःख, हताशा, और सब कुछ खो जाने के संताप से रो रहा था, और रश्मि उन्ही सब बातों को सोच सोच कर! वो रूद्र के लिए रो रही थी, सुमन के लिए रो रही थी, अपने माता पिता के लिए रो रही थी, और अपनी अजन्मी संतान के लिए रो रही थी। कैसा था वो समय.. और कैसे होगा आने वाला कल?
रोते रोते एक समय ऐसा भी आता है जब रोने के लिए आँसूं भी नहीं बचते है... उस गहरे अवसाद में रूद्र ने ही सबसे पहले खुद को सम्हाला,
“बस जानू बस.. अब चलते हैं...”
रश्मि की हिचकियाँ बंध गईं थीं। उसके ठीक से बोल भी नहीं निकल रहे थे।
“नी.. नी..ही..ही..अह..लम क..कैसी ..?” हिचकियों के बीच में उसने पूछा।
इस प्रश्न पर रूद्र को जैसे करंट लग गया। अचानक ही उसके मन में अपराध बोध घर कर गया।
‘ओह भगवान्! क्या सोचेगी रश्मि, जब उसको मेरी करतूत के बारे में पता चलेगा! इतना भी सब्र नहीं हुआ? और ऐसा भी क्या की उसी की छोटी बहन पर हाथ साफ़ कर दिया! कितनी ज़िल्लत! सुन कर क्या सोचेगी रश्मि? अपने से चौदह साल छोटी लड़की के साथ! छिः छिः!’
“अच्छी है..”
मेरे गले में अपराध बोध वाली फाँस बन गयी, “बड़ी हो गई है काफी..” जैसे तैसे वाक्य ख़तम कर के मैंने बस यही सोचा की रश्मि अब सुमन के बारे में और पूछ-ताछ न करे।
“म म्मेरी अह अह.. उस उस से अह.. ब बात क क करा..अहइए..” रश्मि ने बंधे गले से जैसे तैसे बोला।
“जानू.. अभी नहीं! अभी चलते हैं.. उसको सरप्राइज देंगे.. ठीक है?”
तकदीर ने साथ दिया, रश्मि मेरी बात मान गयी, और उसने आगे कुछ नहीं पूछा। मैंने जल्दी जल्दी कई सारी औपचारिकताएँ पूरी करीं, सारे ज़रूरी कागज़ात इकट्ठे किए, स्थानीय पुलिस थाने में जा कर रश्मि से सम्बंधित जानकारियों का लेखा जोखा पूरा किया और वहां से भी ज़रूरी कागज़ात इकट्ठे किए और फिर वापसी का रुख किया। निकलते निकलते ही काफी शाम हो गई थी, और गाँव वालों ने रुकने की सलाह दी, लेकिन मेरा मन नहीं माना। मेरा मन हो रहा था की उस जगह से जल्दी निजात पाई जाय – और यह की वहां का नज़ारा दोबारा न हो! मैंने अपने ड्राईवर से पूछ की क्या वो गाडी चला सकता है, तो उसने हामी भरी। हम लोग तुरंत ही वहां से निकल गए।
वैसे तो रात में पहाड़ी रास्तों में वाहन नहीं चलाना चाहिए, लेकिन अभी रात नहीं हुई थी। हमारा इरादा यही था की कोई दो तीन घंटे के ड्राइव के बाद कहीं किसी होटल में रुक जायेंगे, और फिर अगली सुबह वापस दिल्ली के लिए रवाना हो जाएँगे। ड्राईवर साथ होने से काफी राहत रही – रश्मि न जाने क्या क्या सोच सोच कर या तो रोती, या फिर गुमसुम सी रहती। उस मनहूस घटना ने मेरी रश्मि को सचमुच ही मुझसे छीन लिया था – मैं मन ही मन सोच रहा था की अपनी रश्मि को वापस पाने के लिए क्या करूँ! ऊपर से रश्मि के पीछे पीछे मैंने जो जो काण्ड किए थे, उनके रश्मि के सामने उजागर हो जाने की स्थिति में उनसे दो चार होने का कोई प्लान सोच रहा था। लेकिन इतना सोचने पर भी कुछ समझ नहीं आ रहा था।
खैर, मन को बस यही कह कर धाडस बंधाया की अंत में सत्य तो उजागर हो कर रहेगा। इसलिए छुपाना नहीं है। वैसे भी सुमन को अभी तक कुछ भी मालूम नहीं हुआ था। वो तो सब कुछ बोल ही देगी। न जाने क्यों सब कुछ विधि के हिसाब से होने के बावजूद मन में एक अपराधबोध सा घर कर गया था। न जाने क्या होगा!
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