RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
कुंदन का पता और फ़ोन नंबर ले कर, सिटी हॉस्पिटल से मैं जैसे ही बाहर निकला, मेरे फ़ोन की घंटी बजने लगी। अनजाना नंबर था – मैंने फोने करने वाले को मन ही मन कोसा, ‘लोग कहीं भी पीछा नहीं छोड़ते...” मुझे लगा की किसी क्लाइंट का फ़ोन होगा। मैंने फ़ोन उठाया, और बहुत ही अनमने ढंग से जवाब दिया, “हल्लो!”
“मिस्टर सिंह..?” उधर से आवाज़ आई।
“स्पीकिंग! हू ऍम आई टाकिंग टू?”
“मिस्टर सिंह, आई ऍम डॉक्टर संजीव! आई वांट टू टॉक टू यू अबाउट योर वाइफ..”
“माय वाइफ?” पहले तो डॉक्टर, और फिर अपनी पत्नी का जिक्र सुन कर मेरे पैरों के तले ज़मीन खिसक गई। क्या हुआ सुमन को? वो ठीक तो है न! मेरे दिल की धडकनें तेज हो गईं। अभी सुबह ही तो बात हुई थी उससे – उस समय तो सब ठीक था.. अचानक.. क्या हो गया? वो कहते हैं न, जब किसी अनिश्चित समय घर से दूर रहने वालों को घर से कॉल आता है तो उनके दिमाग में सबसे पहला ख्याल अमंगल का ही होता है.. वही हाल मेरा था।
“व्हाट हैप्पंड टू हर, डॉक्टर?”
“व्ही फाउंड हर..”
“फाउंड हर? डॉक्टर प्लीज.. ठीक ठीक बताइए.. यह पहेलियाँ न बुझाइए प्लीज..” मैं रिरियाया..
“आई ऍम सॉरी, मिस्टर सिंह! मैं पहेलियाँ नहीं बुझा रहा हूँ.. आपकी पत्नी रश्मि मिल गई हैं..”
“क्या?” रश्मि मिल गई है! ओह प्रभु! आपका करोड़ों करोड़ों धन्यवाद! “कहाँ है वो? कैसी है?”
“जी इस समय गौचर के बगल एक गाँव से बोल रहा हूँ.. सुगी!”
“सुगी से?” वहां तो कुंदन रहता है! मेरे दिमाग में ख्याल कौंधा! मतलब सचमुच रश्मि ही है..!
“जी हाँ.. आप यहाँ कब तक आ सकते हैं?”
“जी एक बार रश्मि से...”
“हाँ हाँ! क्यों नहीं? आप बात कर लीजिए उनसे!” कह कर डॉक्टर संजीव ने फ़ोन रश्मि को पकड़ा दिया।
“जा नू.. मेरे.. रूद्र!”
“ओह भगवान्!” यह आवाज़ सुने एक लम्बा लम्बा अरसा हो गया.. लेकिन अभी फिर से उसकी आवाज़ सुन कर जैसे दिल पर ठंडा पानी पड़ गया हो। भावातिरेक में आ कर मैं सिसकने लगा। एक मुद्दत के बाद दिल की सारी तमन्नाएँ पूरी हो गईं! उसकी आवाज़ सुन कर ऐसा लगा की जैसे ये बरस हुए ही नहीं!
“आप रो रहे हैं?” रश्मि ने पूछा। उसके स्वर में वही जानी पहचानी चिंता!
“नहीं जानू!” मैंने आंसू पोंछते हुए कहा, “क्यों रोऊँगा भला! आज तो मेरे लिए सबसे ख़ुशी का दिन है..”
“आप कहाँ हैं?” मुझे उसकी आवाज़ से लगा की वो मुस्कुरा रही है।
“तुम्हारे बहुत पास!”
“तो जल्दी से आ जाइए...” रश्मि को लग रहा होगा की मैं बैंगलोर में ही हूँ।
“आता हूँ जानू! बहुत जल्दी! बस वहीँ रहना!”
“आई लव यू!”
“सबसे ज्यादा जानू.. सबसे ज्यादा!”
“जी मिस्टर सिंह.. आप कब तक आ सकते हैं?” ये डॉक्टर संजीव थे।
“आप वहां पर कुछ देर और हैं डॉक्टर साहब?”
“जी हाँ.. क्यों?”
“मैं आता हूँ... आधे घंटे में!”
“क्या?”
“जी.. आप रश्मि को मेरे आने की बात न बताइयेगा.. मैं आकर आपसे मिल कर सारी बात बताता हूँ..”
“जी ओके ओके! मुझे भी आपको कुछ बाते बतानी हैं.. आप जल्दी से आ जाइए” इतना कह हर उन्होंने फ़ोन कॉल विच्छेद कर दिया।
मैं भागता हुआ कार के पास पहुंचा..
“ड्राईवर, जल्दी से चलो! जितना जल्दी हो सके!”
“किधर साहब?”
“सुगी.. मैं रास्ता बताता हूँ..”
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“डॉक्टर बाबू, क्या बात है? क्या हुआ है इस लड़की को? और अचानक ही पिछले कुछ दिन की बात याद क्यों नही है?” संजीव को बाहर कोने में ले जा कर रामलाल ने चिंतातुर होते हुए पूछा।
“देखिए ठीक ठीक तो मैं भी कुछ नहीं बता सकता। आदमी का मष्तिष्क इतनी अबूझ पहेली है, की उसको सुलझाने के लिए कम से कम मेरे पास काबिलियत नहीं है... जहाँ तक इस लड़की का सवाल है, तो मुझे इतना तो समझ आ रहा था की एक लम्बी बेहोशी की वजह से इसकी याददाश्त गायब हुई थी.. कल की घटनाओं के कारण हो सकता है की इसके दिमाग पर इतना जोर पड़ा हो की उसको अपनी पुरानी सब बातें याद आ गईं हों!
“लेकिन, ये किसी को पहचान नहीं रही है न..”
"हाँ! यह बात तो वाकई बहुत निराली है.. ऐसा लग रहा है जैसे पिछले एक सप्ताह की बातें इसके दिमाग की स्लेट से किसी ने पोंछ दी है.. सच कहूं, मेरे पास आपके सवाल का कोई जवाब नहीं है। एक तरीके से अच्छा है.. ये अब अपनी पिछली जिंदगी मे वापस पहुँच गई है। ज़रा सोचिए – अगर इसको सारी बातें याद रहती, तो कुंदन वाला केस बिगड़ सकता था.. और आप लोग भी लम्बा नप जाते! इसलिए अच्छा ही है, की यह बात यहीं दब जाय, और ये लड़की अपने घर वापस चली जाय..”
“और इसके पति को क्या कहेंगे?”
“मैं उसको सब सच सच बता दूंगा.. वो आपका तो कोई नुकसान नहीं करेगा.. आपने तो इस लड़की की सिर्फ मदद ही करी है... हाँ, लेकिन हो सकता है की कुंदन पर केस ठोंक दे।“
“अच्छा ही है.. साला मनहूस नपुंसक जाएगा यहाँ से..”
“रामलाल जी, एक बात कहूँ.. आप बुरा मत मानियेगा.. वो नपुंसक है, तो उसमे उसका कोई अपराध नहीं। आप ठन्डे दिमाग से सोचिएगा कभी... उसने कभी भी किसी का भी नुकसान किया है? इस लड़की को भी उसी ने तो बचाया.. मेरी मानिए, जो हुआ उसको भूल जाइए, और उसको भी इज्ज़त से जीने का मौका दीजिए..”
रामलाल को प्रत्यक्षतः डॉक्टर संजीव की बात अच्छी तो नहीं लगी, लेकिन उसको मलूम था की वो सोलह आने सही बात कह रहे हैं! इसलिए वो चुप ही रहा।
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कुंदन अपने शरीर पर पट्टियाँ बंधवाए, अपने घर में चारपाई पर लेटा हुआ था। कल जिस प्रकार से सारे कस्बे वालों ने जिस बेदर्दी से उसकी ठुकाई करी थी, उसको पूरा यकीन हो गया था की उसको वहां कोई भी पसंद नहीं करता। एक अंजू ही थी – नहीं अंजू नहीं.. रश्मि! हाँ, यही नाम है उसका। एक वही थी, जिसने उसको अपने पास आने का मौका दिया, और उसको वो सुख दिया जो उसे अंजू से पहले कभी नहीं मिल सका, और अब लगता है की जीवन पर्यंत नहीं मिलेगा।
उसने गलत तो किया था – लेकिन न जाने क्यों वो सब करते समय उसको गलत नहीं लग रहा था। कल उसकी जान अंजू के कारण ही बची.. नहीं तो न जाने क्या हो जाता! उसके मष्तिष्क के पटल पर अनायास ही पिछले सप्ताह के सारे दृश्य उजागर होने लगे। कैसी प्यारी सी है अंजू! यह कहना अतिशयोक्ति नहीं थी की इतने कम समय में ही वो उसकी ज़रूरत बन चुकी थी। या यह भी हो सकता है की यह सब कुंदन का विमोह हो! उसको भला किसी स्त्री का संग कब मिला!
किसी ने उसको बताया की अंजू को अब उसके बारे में कुछ याद नहीं है.. इस बात की भी पीड़ा रह रह कर उसके दिल में उठ रही थी। उसकी आँखो मे आँसू आ गये – कुछ शरीर के दर्द के कारण, और कुछ भाग्य के सम्मुख उसकी विवशता के कारण! संभव है, आंसू की कुछ बूँदें पश्चाताप की भी हों!
‘हे बद्री विशाल, आपकी लीला भी अपरम्पार है! अब मैं इस बात पर हंसूं.. की रोऊँ? यह कैसी सज़ा है? अंजू के दिमाग से मेरी सारी स्मृति ही भुला दी? .. वैसे एक तरह से ठीक ही किया। उसकी स्मृतियों की ज़रुरत तो मुझे है.. उसको नहीं! उसका जीवन तो वैसे ही खुशियों से भरा हुआ था! सही किया प्रभु! अंजू की स्मृति मैं उम्र भर सम्हाल कर रखूंगा!’
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