RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैं शाम को सुमन से बात कर रहा था की जिस प्रोजेक्ट को करने निकला हूँ, वो अगर ठीक से हो गया, तो हम दोनों की ज़िन्दगी बदल जाएगी! उत्तर में सुमन ने मुझसे कहा की उसको पूरा यकीन है की मेरा प्रोजेक्ट ज़रूर पूरा होगा। मैंने हंस कर उसकी बात आई गयी कर दी। अगर उसको मालूम होता की मेरा प्रोजेक्ट क्या है, तब भी क्या वो ऐसे कहती? सच में हम दोनों की ही ज़िन्दगी बदल जाएगी! यह बात मैंने पहले सोची ही नहीं। अगर वाकई रश्मि जीवित है, और उसको मिल जाती है, तो सुमन और मेरे वैवाहिक जीवन में बहुत सी जटिलताएं आ जाएँगी! और तो और, हमारे विवाह पर ही एक सवालिया निशान लग जायेगा।
यही सब सोचते सोचते मैं सो गया।
अगले दिन एक घंटे के सफ़र के बाद हम गौचर के इलाके में पहुंचे। मेरी उत्तराँचल यात्रा के समय में मैं यहाँ से हो कर गुजरा था। पुरानी बातें वापस याद आ गईं। एक वो समय था, जब मैंने रश्मि को पहली बार देखा था.. और एक आज का समय है, मैं रश्मि को ढूँढने निकला हूँ।
गौचर का सरकारी अस्पताल ढूंढ निकालने में मुझे अधिक दिक्कत नहीं हुई। लेकिन सरकारी अस्पताल में से सूचना निकालना बहुत ही मुश्किल काम है। इसी चक्कर में कल इतना समय लग गया था। रिसेप्शन पर दो बेहद कामचोर से लगने वाले वार्ड बॉयज बैठे हुए थे। देख कर ही लग रहा था की उनका काम करने का मन बिलकुल भी नहीं है; और वो सिर्फ मुफ्त की रोटियाँ तोडना चाहते हैं।
“भाई साहब,” मैंने बड़ी अदब से कहा, “एक जानकारी चाहिए थी आपसे।“
“बोलिए..” एक ने बड़ी लापरवाही से कहा।
“यह तस्वीर देखिए..” मैंने रश्मि की तस्वीर निकाल कर रिसेप्शन की टेबल पर रख दी,
“इस लड़की को देखा है क्या आपने?”
उसने एक उचाट सी नज़र भर डाली और कहा, “नहीं! क्या साब! सवेरे सवेरे आ गए यह सब करने! देखते नहीं – हम कितना बिजी हैं..”
“अरे एक बार ठीक से देख तो लीजिए!” मैंने विनती करी।
इस बार उसने भारी मेहनत और अनिच्छा से तस्वीर पर नज़र डाली – जैसे मैंने उसको एक मन अनाज की बोरी ढोने को कह दिया हो।
“क्या साब! एकदम कंचा सामान है..” उसके शब्द कपटता से भरे हुए थे, “इसको यहाँ अस्पताल में क्यों ढूंढ रहे हैं?”
इसी बीच दूसरे वार्ड बॉय ने शिगूफा छोड़ा,
“ऐसे सामान तो देहरादून में भी नहीं मिलते हैं.. आहाहाहा!”
“सही कह रहे हो.. जी बी रोड जाना पड़ेगा इसके लिए तो..”
और दोनों ठठा कर हंसने लगे। उन दोनों निकम्मों की धूर्ततापूर्ण बातें सुन कर मेरे शरीर में आग लग गयी। मेरा बायाँ हाथ विद्युत् की गति से आगे बढ़ा और पहले वाले वार्ड बॉय की गर्दन पर जम गया; दाहिना हाथ उससे भी तेज गति से उठा और उसका उल्टा साइड दूसरे वाले वार्ड बॉय के गाल पर किसी कोड़े के सिरे के जैसे बरसा।
तड़ाक!
वह थप्पड़ इतना झन्नाटेदार था की अस्पताल की पूरी गैलरी में उसकी आवाज़ गूँज उठी। वैसे भी सवेरा होने के कारण अधिक लोग वहां नहीं थे।
“लिसन टू मी यू बास्टर्ड्स! तुम जैसे हरामियों को मैं दो मिनट में ठीक कर सकता हूँ। समझे!”
मैंने पहले वार्ड बॉय के टेंटुए को दबाया, दूसरा वाला अभी अपने गाल को बस सहला ही रहा था।
“तमीज से बात करोगे, तो ज़िन्दगी में बहुत आगे जाओगे.. नहीं तो जिंदगी भी आगे नहीं जा पाएगी..”
मैं दांत पीस पीस कर बोल रहा था। मेरी रश्मि की बेईज्ज़ती करी थी उसने। वो तो मैं सब्र कर गया, नहीं तो दोनों की आज खैर नहीं थी।
“ए मिस्टर.. ये क्या हो रहा है..”
मैंने आवाज़ की दिशा में देखा – एक अधेड़ उम्र की नर्स या मैट्रन तेजी से मेरी तरफ आ रही थी.. लगभग भागते हुए। मैंने पहले वार्ड बॉय को गर्दन से पकडे हुए ही पीछे की तरफ धक्का दिया, और उस नर्स ले लिए रेडी हो गया। अगर ज़रुरत पड़ी, तो इसकी भी बंद बजेगी – मैंने सोचा।
“ये अस्पताल है.. अस्पताल.. तुम्हारे मारा पीटी का अड्डा नहीं.. चलो निकालो यहाँ से..” उसने दृढ़ शब्दों में कहा।
“मैट्रन.. मुझे मालूम है, ये अस्पताल है! और मेहरबानी कर के इन दोनों को भी यह बात सिखा दीजिए। ये दोनों महानिकम्मे ही नहीं, बल्कि एक नंबर के धूर्त भी हैं..”
लगता है मैट्रन को भी उन दोनों की हरकतों की जानकारी थी.. मैंने उसके चेहरे पर कोई आश्चर्य के भाव नहीं देखे। उल्टा उसने उन दोनों वार्ड-बॉयज को घूर कर खा जाने वाली नज़र से देखा। दोनों सकपका गए।
“तुम दोनों ने मेरा जीना हराम कर दिया है.. दफा हो जाओ.. एडमिनिस्ट्रेशन से कह कर मैं तुम लोगो को सस्पेंड करवा दूँगी नहीं तो..”
दोनों निकम्मे सर पर पांव रख कर भागे।
“अब बताइए.. इन दोनों की किसी भी बात के लिए आई ऍम सॉरी! आप यहाँ कैसे आये?”
“जी मैं यहाँ अपनी पत्नी की तलाश में आया हूँ...”
“पत्नी की तलाश? यहाँ?”
“जी.. एक बार गौर से यह फोटो देखिए..” मैंने रश्मि की तस्वीर मैट्रन को दिखाई,
“आपने इसको कभी देखा अपने अस्पताल में?”
मैट्रन ने तस्वीर देखी – उसकी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गईं।
“ये ये.. फोटो.. आपको..”
“जी ये फोटो मेरी पत्नी की है.. उसका नाम रश्मि है! आपने देखा है इसको?”
मैट्रन की प्रतिक्रिया देख कर मुझे कुछ आस जागी – इसने देखा तो है रश्मि को। मतलब यही अस्पताल था डाक्यूमेंट्री का! मतलब मैं सही मार्ग पर था। मंजिल दूर नहीं थी अब!
“आपकी पत्नी? ये?”
“जी हाँ! आपने देखा है इसको?” मैंने अधीर होते हुए कहा।
“लेकिन लेकिन.. ये तो अंजू है.. कुंदन की पत्नी!”
“कुंदन? अंजू?”
‘हे प्रभु! रहम करना!’
“मैट्रन प्लीज! आप प्लीज मेरी बात पूरी तरह से सुन लीजिए.. प्लीज!” मैंने हाथ जोड़ लिए।
मैट्रन आश्चर्यचकित सी भी लग रही थी, और ठगी हुई सी भी! ऐसा क्यों? मैंने सोचा। मेरी बात पर उसने सर हिलाया और मुझे वहां लगी बेंच पर बैठने का इशारा किया। वो मेरे बगल ही आ कर बैठ गयी।
“मैट्रन, देखिए.. मेरा नाम रूद्र है..” कह कर मैंने उनको सारी बातें विस्तारपूर्वक सुना दीं। बस सुमन और मेरी शादी की बात छोड़ कर। मेरी बात सुन कर मैट्रन को जैसे काठ मार गया। वो बहुत देर तक कुछ नहीं बोली।
“आपने मेरी पूरी बात सुन ली है.. अब प्लीज आप बताइए.. ये अंजू कौन है?”
“जी ये लड़की, जिसकी तस्वीर आपके पास है, हमारे यहाँ भर्ती थी – जब ये यहाँ थी, तब से वो कोमा में थी। जिस डाक्यूमेंट्री की आप बात कर रहे हैं, शायद यहीं की ही हो.. मैं कह नहीं सकती.. लेकिन वो लड़की हूबहू इस तस्वीर से मिलती है। एक कुंदन नाम का मरीज़ भी भर्ती हुआ था उसी लड़की के साथ.. वो खुद को उसका पति कहता था। और उसको अंजू!”
“तो फिर?”
“वो अंजू को ले गया..”
“ले गया? कहाँ? कब?”
“अभी कोई पांच-छः दिन पहले.. रुकिए, मैं आपको उसका डिटेल बताती हूँ..”
‘पांच छः दिन पहले! हे देव! ऐसा मज़ाक!’
कह कर वो एक रिकॉर्ड रजिस्टर लेने चली गयी। जब वापस आई, तो उसके पास एक नहीं, दो दो रजिस्टर थे।
“यह देखिए..” उसने एक पुराना रजिस्टर खोला, और उसमे कुंदन के नाम की एंट्री दिखाई, फिर दूसरे में अंजू के नाम की एंट्री दिखाई – दोनों में ही एक ही दस्तखत थे। मतलब वो सही कह रही है। एंट्री रिकॉर्ड में पता भी एक ही था, और फ़ोन नंबर भी। अंजू के डिस्चार्ज की तारिख आज से एक सप्ताह पहले की थी।
“देखिए मिस्टर...”
“रूद्र.. आप मुझे सिर्फ रूद्र कहिए..”
“रूद्र.. हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी.. लेकिन हमारे पास क्रॉस-चेक करने का कोई तरीका नहीं था.. उस बदमाश ने कहानी ही ऐसी बढ़िया बनाई थी! काश आप हमारे पास पहले आ जाते..”
“मैट्रन! इसमें आपकी कोई गलती नहीं है.. मैं खुद ही रश्मि को भगवान के पास गया हुआ समझ रहा था.. मैं तो बस इतना चाहता हूँ की वो सही सलामत हो, और मेरे पास वापस आ जाय..”
“रूद्र.. आपके पास कोई सबूत है की ये लड़की आपकी पत्नी है?”
“जी बिलकुल है.. ये देखिए..” कह कर मैंने अपना और रश्मि दोनों का ही पासपोर्ट दिखा दिया। ‘स्पाउस’ के नाम के स्थान पर हमारे नाम लिखे हुए थे, और दोनों पासपोर्ट में तस्वीरें हमारी ही थीं। शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।
“थैंक यू मिस्टर रूद्र.. दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है..” कह कर उन्होंने मेरा पता लिख लिया और मुझसे मेरा फ़ोन नंबर माँगा, जिससे की अगर कोई ज़रूरी बात याद आये तो मुझे बता सकें! उन्होंने अपना नंबर भी मुझे दिया।
अगर यह कुंदन कहीं गया न हो, तो अभी कोई देर नहीं हुई है। लगता तो नहीं की वो कहीं जाएगा।
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अंजू जब सो कर उठी, तो उसके सर में भीषण पीड़ा थी। असंख्य विचार उठते गिरते – सब गड्डमड्ड हो रहा था।
“ओह रूद्र! मेरे रूद्र!” यह उठते ही उसके पहले शब्द थे।
“लेटी रह बेटी, लेटी रह.. तुम कल दोपहर अचेत हो गयी थी.. याद है?” रामलाल की पत्नी ने अंजू को पुचकारा।
“कल?” अंजू कुछ समझ नहीं पाई।
“अच्छा कोई बात नहीं.. ये हैं डॉक्टर संजीव.. इनको पहचानती हो?”
‘संजीव? नाम तो सुना हुआ सा है.. कहाँ सुना है?’
प्रत्यक्ष में अंजू ने ‘न’ में सर हिलाया।
डॉक्टर संजीव मुस्कुराए, “हेल्लो! अच्छा, तुमको अपना नाम याद है?”
अंजू ने हामी में सर हिलाया।
“हमको बताओगी?”
“जी क्यों नहीं! मेरा नाम रश्मि है..” उसने बहुत ही खानदानी अंदाज़ में उत्तर दिया।
संजीव मुस्कुराए, “वैरी गुड! और ये रूद्र कौन है?”
“मेरे पति.. हम बैंगलोर में रहते हैं.. मैं कहाँ हूँ?”
“आप गौचर में हैं..”
“गौचर में?” कहते हुए रश्मि सोच में पड़ गयी। “लेकिन, मुझे तो केदारनाथ में होना चाहिए था!”
डॉक्टर संजीव समझ गए की रश्मि / अंजू को अब सारी बातें याद आ गयी हैं। हमारा मष्तिष्क कुछ ऐसे चेकिंग मैकेनिज्म (प्रणाली) लगाता है, जिससे हमको दुर्घटनाओं की याद नहीं रहती। एक तरीके से यह प्रणाली हमारे जीवित रहने के प्रयास में एक अति आवश्यक कड़ी होती है।
“हाँ! हम आपको सारी बातें बाद में विस्तार से बताएँगे.. लेकिन पहले आप एक बात बताइए, आप किसी कुंदन को जानती हैं?”
“कुंदन? नहीं...! पता नहीं.. कुछ याद नहीं आता..”
“आप मुझे जानती हैं? मतलब आज से पहले आपने मुझे देखा है?”
“नहीं डॉक्टर, याद नहीं आता.. सॉरी! लेकिन आप मुझसे यह सब क्यों पूछ रहे हैं?”
“डॉक्टर का काम है मरीज़ को ठीक करना.. मुझे लगता है की आप अब ठीक हो गईं हैं..”
“ठीक हो गयी हूँ? लेकिन मुझे रोग ही क्या था?”
“आई प्रॉमिस! मैं आपको सब कुछ बताऊँगा.. लेकिन बाद में! अच्छा, आपको अपने पति का नंबर याद है?”
“जी हाँ! क्यों?”
“अगर आपकी इजाज़त हो, तो मैं उनसे बात कर सकता हूँ?”
“हाँ! क्यों नहीं!” रश्मि कुछ समझ नहीं पा रही थी की यह सब क्या हो रहा है!
“आप मुझे उनका नंबर बताएंगी?”
“जी बिलकुल.. उनका नंबर है.. नाइन एट, एट जीरो...” कह कर रश्मि ने उनको रूद्र का नंबर बता दिया।
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