RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
आत्मविश्वास से लबरेज़, उसने अंजू के नितम्बों को दबाना, कुचलना शुरू कर दिया। उसके साथ ही उसकी चड्ढी भी नीचे की तरफ सरकानी शुरू कर दी। अंजू समझ गयी की कुंदन आज रुक नहीं सकता। किसी का कोई डर तो था नहीं! वो थोड़ा सा कसमसाई, लेकिन अपनी हर हरकत के साथ वो बस कुंदन की बाहों में और समाती गयी। वैसे, अंजू को भी अच्छा लग रहा था – पति का संसर्ग तो सबसे सुखद होता है। और वैसे भी अपनी याद में प्रेमालाप का उसका यह पहला अनुभव था।
कुछ ही देर में अंजू पूरी तरह से नंगी हो गई, और कुंदन उसको अपनी गोद में उठा कर बिस्तर तक ले गया। बिस्तर पर लिटा कर उसने अंजू की टाँगें मोड़ कर, उसके घुटने उसके सीने से लगा दिए। इस अवस्था में अंजू की योनि की दोनों फांकें पूरी तरह से खुल गईं, और उनके बीच में से योनि का गुलाबी हिस्सा झाँकने लगा। अंजू को अपने गुप्तांगों का ऐसा निर्लज्ज प्रदर्शन होते देख कर शर्म भी बहुत आई और रोमांच भी! उसकी अवस्था ऐसी थी की कुंदन उसकी योनि के पूरा भूगोल, और यहाँ तक कि उसकी गुदा को भी खूब अच्छी तरह से देख सकता था।
अंजू की रस से भरी, गुलाबी योनि देख कर कुंदन के मुँह में पानी आ गया। उसने बस स्टेशन पर बिकती सस्ती काम-प्रसंगों से भरी पुस्तिकाओं में पढ़ा था की अगर स्त्री की योनि को पुरुष मुख से चाटे, तो उसको बहुत आनंद आता है। लिहाजा, उसने यह काम भी आजमाने का सोचा। अंजू की टाँगों को वैसे ही मोड हुए, उसने झुक कर उसकी योनि की दरार पर जीभ फिराई। वहां से मूत्र की हलकी सी गंध आ रही थी – कुंदन का मन जुगुप्सा से भर गया, लेकिन फिर भी उसने मैदान नहीं छोड़ा। जब ओखली में सर डाल दिया है, तो मूसल से क्या डरना?
दो तीन बार जीभ फिराने के बाद, कुंदन सहज हो गया और तबियत से अंजू की योनि चाटने लगा। उसको योनि की संरचना का कोई ख़ास ज्ञान नहीं था – उसको नहीं मालूम था की बस थोड़ा ऊपर चाटने से उसकी ‘प्रेमिका’ ऐसी पागल हो जायेगी की उसने नाम की माला अपने उम्र भर जप्ती रहेगी। खैर, इस समय वो जो कुछ कर रहा था, वही अंजू के लिए काफी भारी होता जा रहा था। दोनों के सम्भोग का पहला स्खलन अंजू को बुरी तरह कम्पित कर गया।
“ओह कुंदन..” अंजू ने बस इतना ही कहा, लेकिन इतनी कामुक तरीके से कहा की कुंदन का स्खलन होते होते बचा। अंजू कोई दो मिनट तक कांपती रही, तब जा कर वो कुछ संयत हुई। इतनी देर तक वो बस आँखें बंद किये आनंद ले रही थी। जब उसकी आँख खुली, तब उसने अपनी ही तरफ देखते कुंदन को देखा। वो मुस्कुरा रहा था। पहला किला फतह!! अंजू उसको देख कर लज्जा से मुस्कुराई। इस बीच में वो कब निर्वस्त्र हो गया, अंजू को अंदाजा नहीं हुआ।
“रानी – अब मेरी बारी!”
कह कर उसने अपने तने हुए लिंग का सर, उसकी योनि के खुले हुए होंठों के बीच लगा दिया। अब यह शिलाजीत का प्रभाव हो, या फिर कुंदन के आत्म-विश्वास का, इस समय उसके लिंग में अतिरिक्त तनाव बना हुआ था, इसलिए खुद कुंदन को भी अपना आकार और तनाव काफी प्रभावशाली लग रहा था।
कुंदन अनुभवहीन था, यह साफ़ दिख रहा था। किसी लड़की से सम्भोग का यह पहला अवसर था। उसको लगता था की योनि पर लिंग टिका कर बस धक्का लगा देने से काम हो जाएगा। उसने वैसा ही किया – लेकिन बार बार उसका लिंग फिसल जा रहा था। अंत में अंजू ने ही उसकी मदद करी – उसने अपनी योनि के होंठों को उँगलियों की सहायता से हल्का सा फैलाया, और अपने हाथ से पकड़ कर कुंदन के लिंग को प्रवेश कराने में मदद करी। उसका लिंग गर्म था, और साफ़ लग रहा था की बेहद उतावला हो रहा था। चाहे कुछ भी हो – हर स्त्री अपने प्रेमी को – वो चाहे पति के रूप में हो, या सिर्फ प्रेमी के रूप में – अपने लिए ऐसे उतावला होते देख कर ख़ुशी से फूली नहीं समाएगी।
उसने कुंदन के लिंगमुख को अपनी योनि के द्वार पर टिका दिया, और मन ही मन भगवान् का नाम लिया। कुंदन ने रास्ता साफ़ देख कर एक जोरदार झटका दिया – उसका सारा का सारा लिंग एक ही बार में उसकी योनि के भीतर समा गया।
अब भले ही उसका लिंग काफी पतला सा रहा हो, लेकिन अंजू के लिए इतने अरसे के बाद यह पहला सम्भोग था। अपनी गहराई में उस गरमागरम लिंग को उतरते हुए महसूस कर के अंजू की आह निकल गयी।
“ऊह्ह्ह! अह्ह… उईई … आआआअ… ऊऊऊ… उह… ओह्ह…” हर धक्के के साथ अंजू नए प्रकार की आवाज़ निकालती जा रही थी। उसको शर्म तो बहुत आ रही थी, लेकिन फिर भी कामुक उन्माद के सम्मुख वो नतमस्तक थी।
ख़ुशी से उछल पड़ी वह, और फिर जोरों से धक्के मार-मार कर किलकारियां भरने लगी।
उधर कुंदन भी स्वयं के भीतर एक नए प्रकार का जीव उत्पन्न होता महसूस कर रहा था – इतना देर तो वो हस्त मैथुन करते हुए भी नहीं टिक पाता। वो इसी ख़ुशी में पूरे जोश के साथ धक्के लगा रहा था। बीच बीच में वो अंजू के होंठों को चूमता, तो कभी चूचकों का रस पीता। अंजू भी खुल कर अपने प्रथम सम्भोग का आनंद उठा रही थी – उसकी योनि बहुत गीली हो गई थी, और वो खुद भी अपने चूतड़ उचका उचका कर सम्भोग में सहयोग दे रही थी।
अंततः कुंदन ने पूरी ताकत से एक ज़ोर का धक्का लगाया। आखिरी।
“आआआआआआह्ह…”
और इसी धक्के के साथ कुंदन ने अपना पूरा वीर्य अंजू की चूत में खाली कर दिया और उसी अवस्था में अंजू के ऊपर ही पस्त होकर गिर गया।
“अंजू अंजू! मेरी प्यारी! …आई लव यू… तू मेरी जान है! जान!”
जवाब में अंजू मुस्कुरा दी, और कुंदन के माथे पर चुम्बन दे कर उसने आँखें बंद कर लीं।
सुमन से आफिस के काम का झूठा बहाना बना कर, दो दिन बाद मैं गुड़गाँव चला गया – नेशनल जियोग्राफिक के ऑफिस, उस अफसर से मिलने, जिन्होंने मुझे अपनी तरफ से सारी मदद देने का वायदा किया था! उन्होंने मुझ पर कृपा कर के उस डाक्यूमेंट्री की सारी अतिरिक्त फुटेज, कैमरामैन और डायरेक्टर – सभी को बुला रखा था। कैमरामैन कुछ निश्चित तौर पर बता नहीं पाया – लेकिन उसका कहना था की हो न हो, यह शॉट गौचर में फिल्माया था। वह इतने विश्वास से इसलिए गौचर का नाम ले रहा था क्योंकि वहीँ पर हैलीकॉप्टर इत्यादि से त्रासदी के पीड़ित लोगों को लाया जा रहा था। सेना ने वही की एयर स्ट्रिप का प्रयोग किया था। इसलिए बहुत संभव है की गौचर के ही किसी अस्पताल की फुटेज रही हो। मैंने बाकी की फुटेज भी देख डाली, लेकिन न तो रश्मि की कोई और तस्वीर दिखी, और न ही उस अस्पताल की!
मैंने उन सबसे बात कर के उनकी डाक्यूमेंट्री बनाते समय वो लोग किस किस जगह से हो कर गए, उसका एक सिलसिलेवार नक्शा बना लिया, और फिर उनसे विदा ली। इस पूरे काम में एक दिन निकल गया। अब जो हो सकता था, अगले ही दिन होना था। शाम को सुमन को फ़ोन कर के मैंने बता दिया की काम आगे बढ़ गया है, और कोई तीन चार दिन और लग जायेंगे। वो अपना ख़याल रखे, और वापसी में क्या चाहिए वो सोच कर रखे। हम खूब मस्ती करेंगे! उससे ऐसे बात करते समय मन में टीस सी भी उठ रही थी की मैं सुमन से झूठ बोल रहा था। वैसे यह उसके लिए भी एक तरह से अच्छा था – अगर उसको पता चलता की मैं रश्मि की खोज में निकला हूँ, तो वो ज़रूर मेरे साथ हो लेती। और मुझे अभी तक नहीं मालूम था की जिस लड़की को मैंने टीवी पर देखा, वो सचमुच रश्मि थी, या मेरा वहम। कुछ कह नहीं सकते थे। ऐसे में, अगर रश्मि न मिलती, तो बिना वजह ही पुराने घाव कुरेदने वाली हालत हो जाती। सुमन बहुत ही भावुक और संवेदनशील लड़की है, ठीक रश्मि के जैसे ही। और मन की सच्ची और अच्छी भी.. ऐसे लोगों को अनजाने में भी दुःख नहीं देना चाहिए। तो मेरा झूठ उसको एक तरह से रक्षा देने के लिए था।
रात में दिल्ली के एक होटल में रुका। वहां पर मेरी कंपनी जिस ट्रेवल एजेंसी का उपयोग करती थी, वहां पर फ़ोन लगा कर एक भरोसेमंद कार और ड्राईवर का इंतजाम किया – दिन रात की सेवा के लिये। वो अगले सुबह छः बजे होटल आने वाला था। शुभस्य शीघ्रम!
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एक बार शेर को खून का स्वाद पता चल जाए, तो फिर उससे पीछा छुड़ाना मुश्किल है। कुंदन का भी यही हाल था – एक तो शिलाजीत का अत्यधिक सेवन, और उससे होने वाले लाभ – दोनों का ही लालच उसको लग गया था। अगले दो दिन उसका यही क्रम चलता रहा। वह दिन भर यौन शक्ति वर्द्धक दवाइयों, खास तौर पर शिलाजीत का सेवन करता, और जैसे कैसे किसी भी बहाने अंजू के साथ सम्भोग!
उसी के कहने पर अंजू घर पर या तो निर्वस्त्र रहती थी, या फिर उस गुलाबी ब्रा-पैंटीज में। अंजू की किसी भी प्रकार की नग्नावस्था का प्रभाव, कुंदन पर एक जैसा ही पड़ता था। जब भी वो उसकी गोरी टाँगे और जांघें देख लेता था, तो उसका मन डोल जाता था। जब अंजू चलती, तो उसके गदराये हुए ठुमकते नितम्ब उसके दिल पर कहर बरपा देते। उसकी कठोर चूंचियाँ देख कर कुंदन सोचता की ऊपर वाले ने बड़ी फुर्सत से जैसे संगमरमर को तराश तराश कर निकाला हो। नमकीन चेहरा, और रसीले होंठ! कोई देख ले तो बस चूमने का मन करे!
सम्भोग के बाद से दोनो ही एक दूसरे को बहुत प्यार से देखते। साथ में हँसी मज़ाक भी करते। कुंदन हंसी मजाक में कभी कभी अंजू के बाल पकड़ लेता, तो कभी कमर पकड़ कर भींच लेता। अंजू उसकी हर बदमाशी पर हंसती रहती। जब वो रोमांटिक हो जाता, तो अंजू को कहता की आज बहुत सुन्दर लग रही हो। अंजू उसकी इतनी सी ही बात पर शर्म से लाल हो जाती। रह रह कर वो अंजू के नग्न नितम्बों पर हौले से चिकोटी काट लेता, तो कभी उसकी चूंचियाँ दबा देता। उसकी इन शैतानियों पर अंजू जब उसको झूठ मूठ में मारने दौड़ती, तो वो उसको प्यार से अपनी गोदी में उठा लेता, और उसके चूचकों को मुँह में भर कर चूमने लगता।
इसके बाद होता दोनों के बीच सम्भोग! भले ही उनकी यौन क्रिया पांच मिनट के आस पास चलती, कुंदन के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उधर अंजू इस बात से संतुष्ट थी की कुंदन उसकी सेवा और देखभाल में कोई कसर नहीं रखता था। अपनी तरफ से खूब प्रेम उस पर लुटाता था। पिछले दो दिनों में उन दोनों ने तीन बार सम्भोग किया था – अंजू को हर बार आनंद आया था। प्रत्येक सम्भोग से एक तरीके से उसको मानसिक शान्ति मिल जाती थी। कुछ तो होता था, की संसर्ग के कुछ ही देर बाद अंजू आराम की अवस्था में आ जाती थी – और कब सो जाती थी, उसको खुद ही नहीं मालूम पड़ता।
बस दो बातें थीं जिनके कारण उसको खटका लगा रहता – एक तो यह की उसके सपनों का पुरुष हर बार दिखता था। इससे अंजू को विश्वास हो गया की वो कोई मानसिक कल्पना नहीं था – बल्कि उसके अतीत का एक हिस्सा था। कब और कैसे, उसको समझ नहीं आता। लेकिन जिस प्रकार से वो दोनों सपनों में निर्भीक हो कर सन्निकट रहते थे, उससे न जाने क्यों अंजू को लगता जा रहा था की अंजू उस पुरुष की पत्नी रही होगी।
लेकिन अगर यह सच था तो कुंदन से उसकी शादी कब हुई? अगर कुंदन से उसकी शादी हुई है, तो फिर इस घर में उसके कोई चिन्ह क्यों नहीं मौजूद हैं? घर को देख कर साफ़ लगता था की यह किसी कुंवारे पुरुष का घर है.. माना की वह इतने लम्बे अरसे तक अस्पताल में रही थी, लेकिन एक शादी-शुदा परिवार और घर में स्त्री का कुछ प्रभाव तो मौजूद रहना ही चाहिए था न?
दूसरा खटका उसको इस बात का लगता था की कुंदन हमेशा उसको पड़ोसियों से छुपा कर रखता था। उसकी इस हरकत का कोई तर्कसंगत विवरण उसके लाख पूछने पर भी उसको नहीं मिल पाता था। यह दोनों ही बातें मन ही मन में अंजू को बहुत अधिल साल रही थीं। उसको यकीन हो रहा था की कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। उसने सच का पता लगाने की ठान ली।
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