Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:24 AM,
#99
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
अब मैं बहुत सचेत हो कर वो डाक्यूमेंट्री देखने लगा – हो सकता है पुनः दिखाएँ? लेकिन उस अस्पताल का दृश्य पुनः नहीं दिखाया गया। बीच में जब प्रचारों का समय आया तब मैंने डाक्यूमेंट्री का नाम नोट कर लिया। और वापस देखने लगा। अंत तक दोबारा वहां का दृश्य नहीं दिखाया गया। डाक्यूमेंट्री ख़तम होने पर मैंने कैमरामैन, फोटोग्राफर, निर्देशक और निर्माता समेत उस डाक्यूमेंट्री को बनाने में जितने भी सहयोगी थे, सबका नाम लिख लिया।

कुछ देर समझ ही नहीं आ सका की क्या करूँ! कहाँ से शुरू करूँ! कहीं ऐसा तो नहीं की पुराने दुःख के कारण मुझे रश्मि दिखी हो! या वो लड़की रश्मि न हो, कोई और हो? और फिर, सुमन ने भी तो देखा ही था न की रश्मि मर चुकी थी। सुमन से पूछूं? नहीं नहीं! वो बेचारी को फिर से उस बुरी घटना की याद दिलाना बिलकुल ही गलत होगा। वैसे भी वो कितना कुछ झेल चुकी है। नहीं नहीं! सुमन से नहीं।

मैंने जल्दी से लैपटॉप में इन्टरनेट चला कर नेशनल जियोग्राफिक की वेबसाइट खोली, और उनके कॉर्पोरेट ऑफिस कॉल लगाई। अगले एक घंटे तक मैंने एक के बाद एक कई सारे लोगों से वहां बात करी, और सिलसिलेवार तरीके से उनको अपनी आप बीती सुनाई। अंततः, वहां ले एक बड़े अफसर ने मुझसे मिलने का वायदा किया और उसने अपना फ़ोन और ईमेल भी दिया। मैंने झटपट उसके ईमेल पर रश्मि की तस्वीर के साथ, उस डाक्यूमेंट्री का पूरा विवरण लिख कर भेज दिया। सुमन के घर आने से पहले मुझे उनका कॉल आया की उन्होंने डाक्यूमेंट्री देखी है, लेकिन उनको नहीं लगता की वो लड़की रश्मि है! क्योंकि ठीक से कुछ भी नहीं दिखा। लेकिन मैंने अपनी जिद नहीं छोड़ी। उन्होंने अंत में हार मान ली और डाक्यूमेंट्री बनाने वाली टीम से बात करने का वायदा किया। उन्होंने कहा की जो कुछ भी बन पड़ेगा, वो करेंगे। 

कुछ देर में सुमन आ गई। कोई और समय होता, तो मैं सांझ को पहली बार मिलने के अवसर में अगले दस मिनटों में सुमन के साथ गुत्थम-गुत्था हो चुका होता। लेकिन आज मैं काफी शांत बैठा हुआ था – कम से कम सुमन को तो ऐसा ही लगा होगा। लेकिन, मुझे अगले कुछ मिनटों में मालूम होने वाला था की मैं अपनी पत्नी के बारे में काफी कम जानता था – और वो मुझको मुझसे ज्यादा समझती और जानती थी। सुमन ने मुझसे क्या बाते करीं, मुझे याद नहीं, लेकिन वो अन्दर चली गयी। संभवतः चाय बनाने गयी होगी। 
मुझे नहीं मालूम की वो कब वापस आई और उसने क्या कहा – मेरी आँखें तो खुली हुई थीं लेकिन मन न जाने कितने ही कोसों दूर था। अचानक ही मुझे अपने चेहरे पर गरम साँसों और गालों पर नरम उँगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं एक झटके से वापस आया – सुमन मेरी आँखों में झाँक रही थी, मानों प्रयास कर रही हो की मेरे अन्दर क्या चल रहा था। वो प्रत्यक्ष मुस्कुराई, लेकिन वो चिन्तित थी। उसने कुछ कहा नहीं।

“जानू – कॉफ़ी!” उसने एक हाथ से मेरे गाल को छुआ, और उसके दूसरे में कॉफ़ी का मग था।

मैं उल्लुओं की भांति कभी उसकी तरफ तो कभी कॉफ़ी मग की तरफ देख रहा था। उसने फिर दोहराया, “कॉफ़ी..”

“ओह सॉरी! मैं किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।“

उसने कुछ कहा नहीं। बस मेरी बगल आकर मुझसे सट कर बैठ गयी। हम दोनों ही शान्ति से कॉफ़ी पीने लगे। कॉफ़ी समाप्त होने के बाद सुमन ने अपना और मेरा मग सामने की टेबल पर रखा, और वापस आकर मेरी गोद में इस तरह बैठ गयी जिससे की उसकी दोनों टाँगे मेरे इधर उधर रहें। गोद में बैठे बैठे ही उसने अपनी पहनी हुई टी-शर्ट उतार फेंकी। अन्दर कुछ भी नहीं पहना हुआ था – कोमल पहाड़ियों के मानिंद उसके सुन्दर स्तन तुरंत ही स्वतंत्र हो कर मेरे सम्मुख हो गए।

इस बात का असर मुझ पर बहुत ही सकारात्मक पड़ा – उस मुद्रा में मेरा लिंग तुरंत ही खड़ा हो कर उसकी नितम्बों के मध्य की घाटी में अटक सा गया। हम दोनों ने ही इस समय पजामे पहने हुए थे, इसलिए सीधा कनेक्शन नहीं हो सका – लेकिन सुमन मेरे ऊपर पड़ने वाले अपने इस प्रभाव पर हलके से मुस्कुराई। उसने प्यार से मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं, और लिंग के ऊपर अपने नितम्बों को घिसने लगी। कुछ ही देर में मैंने भी देखा की मैं स्वयं भी हलके हलके अपनी कमर चला कर उसका साथ देने लगा था।

हम दोनों ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। मैंने रह रह कर उसके होंठों, गालो, कन्धों और चूचकों पर चुम्बन लिया। इस बीच हम दोनों ही अपने अपने तरीके से तेजी तेजी घिस रहे थे। मेरा लिंग उत्तेजना के मारे फूल कर मोटा हो गया था।

थोड़ी देर में मैंने उससे कहा, “अगर मज़ा ही लेना है, तो ठीक से लेते हैं न...”

तो वो कुछ बोली नहीं, तो मैंने उसको अपनी गोद से उठाया और सामने खड़ा कर दिया। उसके बाद मैंने खुद उठा और अपना पजामा उतार दिया और फिर लगे हाथ सुमन का पजामा भी उसके शरीर से अलग कर दिया। उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। सुमन ने उस समय काले रंग की चड्ढी पहनी हुई थी। मैंने देखा की इतनी देर तक लिंग घिसने के कारण चड्ढी का नरम नरम कपड़ा उसके नितम्बों की दरार में अन्दर घुस गया था। 

मैंने जब उसके चूतड़ों को सहलाया, वो एकदम से कांप गयी। मैंने उसके चूतड़ों को कुछ देर तक सहला कर तीन चार बार दबाया और उसको कमर से खींच के फिर से अपने लिंग पर बैठा लिया। पहली ही बार की तरह इस बार भी सुमन अपनी कमर हिला रही थी। मैं उसी के ताल में उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगा। एकदम चिकनी जाँघें – मक्खन के जैसी! कुछ देर ऐसा ही करने के बाद मैंने एकदम से उसकी चड्ढी को पकड़ा और घुटनों तक खींच दिया। मैंने एक हाथ से अपने लिंग को साधा, और दूसरे से सुमन को फिर से अपनी गोद में बैठा लिया। उस समय मेरे लिंग के उसकी नग्न गुदा के स्पर्श से मुझे मन में आया की क्यों न गुदा मैथुन किया जाय? एक अजीब सा वासना पूर्ण अहसास था वो। मैंने अपने हाथों से उसके चूतड़ों को चौड़ा किया और उनके मध्य अपने लिंग को बैठाया। 

“जानू.. जानू! उसमे नहीं! आपका बहुत मोटा है.. मर जाऊंगी मैं..”सुमन ने मिन्नत करी। 
सचमुच! ध्यान ही नहीं रहा!

“ठीक है.. लेकिन, कभी ट्राई करते हैं!”

“हाँ.. लेकिन आज नहीं! प्लीज!”

“ओके” मैंने कहा और उसको लिटा कर, अपना मुँह उसकी योनि पर रख दिया। लोग उत्तेजित योनि को ‘पाव रोटी’ की उपमा देते हैं.. मुझे यह पसंद नहीं आता। मुझे उत्तेजित योनि को मालपुए की उपमा देनी अच्छी लगती है। मालपुआ रसीला, और मीठा होता है। सुमन की योनि भी उसी तरह की हो रही थी। अब मेरा भी लिंग उत्तेजना के बल को सहन नहीं कर पा रहा था। लेकिन फिर भी फोरेप्ले तो करना होता ही है न! मैं अपनी जीभ उसकी योनि के भीता डाल कर अन्दर के स्वाद और वातावरण को महसूस कर रहा था, और उंगली से उसके भगनासे को छेड़ रहा था। सुमन उस शाम पहली बार स्खलित हुई। उसकी आवाजें अब कामुक सिसकारियों में बदल गई थी।

मैं फिर उसकी टाँगों के बीच आ गया। मैंने उसकी टाँगें उठा कर अपने कंधों पर रख ली और अपने लिंग को उसकी योनि के मुहाने पर टिका दिया। आप लोग उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। सुमन की कुछ ऐसी हालत थी उसकी जांघें मुड़ कर लगभग क्षैतिज हो गयी थीं, और योनि लगभग ऊर्ध्व! मैंने तेजी से अपना लिंग उसकी योनि में डालना शुरु कर दिया। मैंने गुरुत्व के प्रभाव से सारा काम जल्दी हो गया। और फिर वही चिरंतन चली आ रही प्रक्रिया करने लगा। सुमन भी मस्त हो कर अपनी चुदाई का आनंद लेने लगी । मेरे होंठ उसके मुँह और होंठों को चूस रहे थे। करीब पंद्रह मिनट के बाद मैंने अपना वीर्य सुमन के अन्दर ही छोड़ दिया।

उस पूरे साहचर्य के दौरान मेरे मन में सिर्फ रश्मि की ही छवि घूम रही थी...

*************************

कुंदन आज अंजू को घर ले आया। नर्स सुषमा के कहने पर वह अंजू के लिए कपडे वगैरह खरीद कर ले आया था। उसकी बीवी होती तो कम से कम उसके कपडे इत्यादि तो रहते.. और उसको कुछ आईडिया भी होता की उसकी बीवी की नाप क्या है.. लेकिन आश्चर्य की बात थी की नर्स सुषमा को उसका यह अनाड़ीपन खटका नहीं.. उसने अपने मन में यह कह कर समझा लिया की संभव है की वो अपनी बीवी को नए कपडे पहनाना चाहता हो! यह भी हो सकता है की वो हद से अधिक शर्मीला हो। सुषमा ने ही अंदाजे से उसको अंजू के अधोवस्त्रों की नाप बता दी, और उसको छेड़ा भी की कम से कम अपनी पत्नी का ठीक से जायजा तो लिया कर!

अंजू के लिए ब्रा और चड्ढी खरीदते समय कुंदन बहुत ही उत्तेजित हो गया था। अपनी समझ से उसने बेहद सेक्सी लगने वाली गुलाबी सी ब्रा और उसकी मैचिंग चड्ढी खरीदी थी। और गुलाबी ही रंग के शेड का शलवार सूट भी। एक मैक्सी भी खरीद ली, यह सोच कर की वो घर में क्या पहनेगी! अंजू को देख कर उसको लगा था की वो उम्र में उससे कुछ बड़ी है, लेकिन उसको इस बात की कोई परवाह नहीं थी – अगर बड़ी होगी तो होती रहे! बालिग़ तो अब वो खुद भी है! खैर, वो अस्पताल पहुंचा, और सभी ज़रूरी कागजों पर दस्तखत कर के अंजू को लिवा लाया।

आज अंजू को उसने पहली बार होश में देखा था – बेहोशी की हालत में भी वो अति सुन्दर लगती थी, लेकिन इस समय वो सचमुच की अप्सरा लग रही थी। उस नितांत कमजोरी की हालत में भी। अंजू ने जब कुंदन को देखा तो उसके चेहरे पर न तो ख़ुशी के भाव थे, और न ही दुःख के। वो दरअसल अपने पति को पहचान ही नहीं पाई। नर्स सुषमा ने जब दोनों को ऐसे ‘हिचकिचाते’ हुए देखा, तो प्रसन्न भाव से बोली, “कोई बात नहीं.. घर जा कर आराम से मिलना!” उसने अपने हिसाब से दो बिछड़े हुए प्रेमियों को मिला दिया था और यही सबसे बड़े पुण्य की बात थी। 

डॉक्टर संजीव ने कुंदन को सख्त हिदायद दी थी की अंजू से घर के काम न कराये जांए, और उसको आराम करने दिया जाय। वो अभी भी काफी दुर्बल थी, और कम से कम एक महीना लगेगा उसको वापस अपनी ताकत पाने के लिए। उन्होंने उन दोनों को यह भी कहा था की वो दोनों यदि हो सके तो अगले दो सप्ताह शारीरिक सम्बन्ध न बनायें.. अभी वह सब झेलने की दशा में नहीं थी अंजू। अस्पताल में सबकी नज़रों में दोनों पति-पत्नी थे, इसलिए ऐसी बाते आराम से करी जा सकती थीं। दवाइयाँ इत्यादि समय पर लेते रहें.. और ऐसी ही कई सारी बातें। 

खैर, कुंदन अंजू को घर ले आया। कसबे में आते हुए वो बहुत चौकन्ना था की कोई देख न ले की वो किसी लड़की को घर ला रहा था। कोई देखता तो हज़ार सवाल पूछते – कौन है, कहाँ से आई है इत्यादि इत्यादि! और वो उनसे झूठ नहीं कह सकता था, क्योंकि वहां सभी को मालूम था की कुंदन की शादी ही नहीं हुई है, तो उसकी बीवी कहाँ से आ जाएगी! उसकी तेज किस्मत कहिए, की जिस समय वो अपने घर आया, उस समय सड़क पर और आस पास कोई भी नहीं मिला। वो जल्दी से अंजू समेत अपने घर में घुस गया, और अन्दर से किवाड़ लगा ली।

वो एक पुराने पहाड़ी तरीके का घर था – जिसमे कुछ फेरबदल कर के आधुनिकीकरण कर लिया गया था। एक कमरा था, एक खुला हुआ सा रसोईघर, उसके बिलकुल विपरीत दिशा में स्नानघर और शौचालय था। एक हाल और एक अहाता जैसा बना दिया गया था। पत्थर, लकड़ी जैसी सामग्री से बना हुआ घर बाहर से पहाड़ी घर दिखता था, लेकिन अन्दर से बिजली और खड्डी स्टाइल के शौच की व्यवस्था थी। 

“अंजू... रर रानी..” कुंदन ने अटकते हुए कहा, “तु तुम.. नहा लो.. अगर चाहो तो..”

अंजू को तो इस समय कोई भी अजनबी लगता। लेकिन यह सामने खड़ा व्यक्ति उसका पति था, ऐसा नर्स सुषमा ने उसको बताया था। इसलिए इस व्यक्ति से कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। लेकिन फिर भी वो संयत नहीं थी। उसने महसूस किया की उसका पति भी संयत नहीं है।

“ज जी!” कह कर उसने कुंदन की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।

“ओ ओह! बाथरूम उधर है.. सब भूल गई?” उसने खींसे निपोरी।

अंजू ने भी खिसियाई हुई मुस्कान डाली! 

‘ओ भगवान! कितनी सुन्दर सी मुस्कान है इसकी! हे बाबा केदार.. हे बद्री विशाल! आपका बहुत बहुत धन्यवाद!’ कुंदन ने मन ही मन अपने सारे इष्टों को धन्यवाद किया।

“नहा लो.. तुम्हारे पुराने कपडे सब खराब हो गए थे.. जल्दी ही और नए कपड़े खरीद लूँगा तुम्हारे लिए..”

अंजू ने हामी में सर हिलाया। वो एक क्षण को हिचकिचाई, फिर कुंदन के सामने ही मुँह फेर कर अपने अस्पताल वाले कपड़े उतारने लगी (नर्स सुषमा ने कुंदन को कहा था की जब वो वापस अस्पताल आये, तो वो कपडे लेता आये)। कुछ ही देर में पूर्ण नग्न अंजू का पृष्ठ भाग कुंदन के सामने था। हाँलाकि अंजू के कमज़ोर शरीर से हड्डियाँ कुछ कुछ झाँक रही थीं, लेकिन उतना दृश्य ही कुंदन के लिए पर्याप्त था। उसका लिंग तुरंत ही तनावग्रस्त हो गया। वो अनिश्चित हालत में अंजू की तरफ बढ़ा, लेकिन उसी समय अंजू स्नानघर की तरफ चल दी। 

जब स्नानघर का दरवाज़ा बंद हो गया, तो कुंदन ने अपनी पैंट के सामने गीलापन महसूस किया – उसके लिंग ने वीर्य उगल दिया था। वो शर्मसार हो गया – कैसी छीछालेदर! क्या लोग सच कहते हैं? उसके मन में एक क्षण शंका हुई.. फिर उसने उस शंका को मन से निकाल दिया – पहली बार उसने एक लड़की इस हालत में देखी थी.. ऐसे तो किसी का भी निकल जाता.. उसने झटपट से अपनी पैंट उतार दी। फिर उसके मन में ख़याल आया की क्यों न आज वो नंगा ही रह ले.. क्या पता अंजू को भी नंगी रहने के लिए पटा सके? अपने इस विचार पर उसको बहुत आनंद आया – उसने झटपट अपनी जांघिया उतार दी।


जब अंजू नहा चुकी, तो उसने पाया की नहा कर पहनने वाले कपडे तो वो लाई ही नहीं। कुछ असमंजस के बाद उसने अपने पति को आवाज़ लगाई,

“सुनिए..?”

बाहर कुंदन नंगा खड़ा हुआ था – क्या वो अंजू को पसंद आएगा? वो उसको देख कर ‘डर’ तो नहीं जायेगी? वह यह सोच ही रहा था की अन्दर से अंजू की आवाज़ आई।

“ह हाँ?” कुंदन अचकचा गया। 

“मेरे कपडे..”

“बाहर आ जाओ..” उसने कहा, फिर अपनी शैतानी स्कीम के अंतर्गत उसने कहा, “तुम वैसे भी घर में ऐसे ही रहती हो..”

‘ऐसे रहती हूँ? नंगी? अच्छा!’ अंजू ने सोचा। 

कुंदन ने देखा की कुछ देर में स्नानघर का दरवाज़ा खुला, और पूर्ण नग्न अंजू बाहर निकली! वो उसको देखता ही रह गया...

‘ओह प्रभु! यह तेरी कैसी कलाकृति है! इतनी सुन्दर! कैसे सुन्दर स्तन! 

अंजू ने देखा की कैसे उसका पति उसको प्यासी दृष्टि से देख रहा है.. वो हलके से मुस्कुरा दी। नर्स सुषमा ने बताया था की वो महीनो से बेहोश पड़ी है.. इतने दिनों तक कैसे इस बेचारे ने जीवन व्यतीत किया होगा! उसकी दृष्टि अपने पति के जनन क्षेत्र पर पड़ी। 

“इधर आओ..” अंजू ने कुंदन को कहा।

कुंदन यंत्रवत उसकी तरफ चल दिया। अंजू वही रखे पीठे पर बैठ गई।

“अभी कुछ दिन सब्र कर लो.. लेकिन तब तक..” उसने अपने स्तन की तरफ इशारा किया, “आपको दूध पिलाती हूँ..”

अंजू की कही हुई बात कुंदन को मिश्री जैसी मीठी लग रही थीं। कहाँ तो एक लड़की मिलनी दुश्वार थी, और कहाँ आज ऐसी बला की खूबसूरत लड़की के रसीले स्तनों का पान करने को मिलेगा! इस विचार के साथ ही कुंदन को लगा की जैसे वो गलत कर रहा है – वो लड़की उसको अपना पति समझ कर यह सब कर रही थी। लेकिन वो जान बूझ कर उसका फायदा उठा रहा था। लेकिन कुंदन ने अपने मन को यह कह कर समझा लिया की बाद में वो अंजू को समझा देगा। फिलहाल तो ये मीठे मीठे दूध पिए जांए!


“सुनिए...?” अंजू की आवाज़ दोबारा सुन कर कुंदन की तन्द्रा टूटी! 

‘ओ तेरी! ये तो सपना था!’ यह सोच कर उसने आवाज़ की दिशा में देखा। अंजू स्नानघर के दरवाज़े की ओट से झांकती हुई उसी की तरफ देख रही थी। 

“क क्या?”

“जी मुझे कपड़े दे दीजिए पहनने के लिए..”

“अच्छा..” कह कर जब वो उठा, तो उसने देखा की वो कमर के नीचे पूरी तरह नंगा था। 

‘धत्त तेरे की..’ वो नंगा होते ही लगता है सपना देखने लगा था! एक पल को वो हाथों से अपने छुन्नू को छुपाने को हुआ, लेकिन फिर रुक गया – बीवी से क्या छुपाना?

अपने पति को ऐसे अपने सामने नंगा घुमते हुए देख कर उसको थोड़ी सी शर्म आई, और हंसी भी! बेर के आकार के अंडकोष, और छुहारे के जैसा लिंग! दिखने में भी, और आकार में भी! अंजू को कहीं याद आया की लड़को का ऐसा होता है.. उसको नहीं मालूम था, की आदमियों का भी ऐसा ही होता है। या कहीं, उसका पति अभी लड़का ही तो नहीं? अगर ऐसा है, तो उसकी खुद की उम्र क्या है?

कुंदन अन्दर कमरे में जा कर अंजू की मैक्सी ले आया। फिर उसको एक शैतानी सूझी,

“यहाँ बाहर आ कर ले लो..”

“दीजिए न..”

“नहीं.. आज तो बाहर आ कर ही लेना पड़ेगा..”

अंजू ने उसको कुछ देर देखा, फिर वापस अन्दर हो कर उसने स्नानघर का दरवाज़ा बंद कर लिया।

‘ओये! ये क्या हो गया..’
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RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - by sexstories - 12-17-2018, 02:24 AM

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