RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“डेढ़ घरवालियाँ हैं आपकी... डेढ़!! वैसे आप चिंता न करिए – ये विडियो मैं इन्टरनेट पर नहीं डालूँगी। बल्कि आप दोनों को मेरी तरफ से गिफ्ट दूँगी। .. और अपने पास भी रखूंगी। जब भी मेरे सेक्सी से जीजू की याद आएगी, इसको देख कर खुश हो लिया करूंगी..।“ उसने निहायत ही नाटकीय अंदाज में यह बात कही। मुझे भी हंसी आये बिना न रही।
“अच्छा, तो तू मेरी आधी घरवाली है.. कम से कम घरवाली का आधा प्यार तो दे!” मैंने उसको छेड़ा। मुझे लगा की इस एक वाक्य से मैंने पहली बार भानु को कुछ समय के लिए निरुत्तर कर दिया। वो कुछ देर अचकचा गयी, लेकिन फिर सम्हाल कर बोली, “क्या जीजू.. इतनी सुन्दर सी बीवी है, और नंगी पड़ी है.. और आप मुझ पर डोरे डाल रहे हैं?”
“क्या करूँ साली साहिबा! इतनी सेक्सी साली का कोई तो फायदा होना चाहिए न!”
“क्या सच में? आपको मैं सेक्सी लगती हूँ?”
“हाँ! सुन्दर, और सेक्सी!” फिर सुमन की तरफ देख कर, “क्यों जानू?”
“हाँ .. बिलकुल! तू तो बहुत सुन्दर है!” सुमन फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोली,
“आपको अगर चांस मिले, तो इसके बूब्स देखिएगा! बहुत सेक्सी हैं!”
“क्या कह रही है तू कमीनी?”
“तू कमीनी है.. यहाँ हम दोनों नंगे पड़े हैं, और तू पूरे कपड़ों में खड़ी है..”
सहेलियों की मीठी तकरार...
“आप ही कुछ कहिए न...”
“हाँ भानु.. वो बात तो है..”
“हाँ.. आप तो कहेंगे ही न.. मेरे कपडे उतर गए तो दो दो नंगी लडकियाँ मिल जाएँगी आपको.. यानी पाँचो उंगलियाँ घी में..”
“नहीं रे.. पाँचों नहीं,” मैंने भानु के वाक्य को सुधारा, “दसों उंगलियाँ.. और घी में नहीं.. या तो मीठे मीठे बन (छोटे, मीठे पाव – मेरा इशारा स्तनों की तरफ था) में.. या फिर शहद में!”
हमारी छेड़खानी सुन कर भानु की जो भी मोरचाबंदी थी, वो जल्दी ही ढह गई।
“क्या सचमुच इसके बूब्स बहुत सेक्सी हैं?” मैंने सुमन से पुछा।
सुमन के कुछ कहने से पहले ही भानु बोली, “कोई सेक्सी वेक्सी नहीं हैं.. जैसा सभी का होता है, वैसा ही है!”
मैंने कहा, “तुम्हारा भी ऐसा ही है क्या?” मैंने सुमन के स्तनों की तरफ इशारा किया।
“आपकी बीवी के बहुत सुन्दर हैं..”
“नहीं.. सच में.. इसके बहुत सुन्दर हैं.. आप खुद ही देख लो..” दोनों लडकियाँ एकदम बच्चों वाली बातें कर रही थीं।
“सच में जीजू.. ये बिलकुल बेशर्म हो गयी है..”
“इधर आओ भानु...” मैंने थोड़ा सीरियस हो कर कहा। न जाने क्या असर हुआ उस पर, वो बिना किसी हील हुज्जत के हमारे पास चली आई।
“बैठो..” वो बैठ गयी।
“मैं तेरे बूब्स छूकर देख लूँ क्या?”
उसने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन हलके से सर हिला कर हामी भर दी।
“पक्का?” वो शर्म से मुस्कुरा दी। बल्कि शरमाना मुझे चाहिए था – नंगा तो आखिर मैं था उसके सामने!
सुमन: “हाँ... छू कर देखिए न!”
मैंने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर उसका बायाँ स्तन बहुत हलके से छुआ – ठीक से छुआ भी नहीं था, फिर भी भानु चिहुंक सी गई।
“भानु, डरो मत! मैं कुछ नहीं करूंगा.. नीलू भी तो यही हैं न..!” मैंने उसको स्वन्त्वाना दी।
लेकिन जिस बात को मैं भानु की शर्म सोच रहा था, दरअसल वो उसकी बदमाशी थी। उसका घबराया हुआ, भोला सा चेहरा देखते देखते बदल गया – उसके होंठों पर एक पतली सी मुस्कान आ गयी, और उसने अचानक ही जीभ निकाल कर मुझे चिढाया,
“न न न जी-जा-जी..” उसने एक एक अक्षर रुक रुक कर बोला, “आज के लिए बस इतना ही.. अपनी इस साली को खुश कर के रखिएगा.. क्या पता, आगे और क्या क्या मिल जाए आपको!! ही ही ही!”
कह कर वो आगे बढ़ी और मुझको होंठों पर चूम लिया, फिर मेरे बाद उसके सुमन को भी होंठों पर चूम लिया।
“अब आप लोग थोड़ा नहा-धो लीजिए... मैं आपके लिए नाश्ता बनाती हूँ... ऊओह्ह्ह! देखिए न.. आपकी ये एकलौती साली पहले ही आपसे खुश हो गयी है.. आपको नाश्ता मिल रहा है उससे! हा हा!”
नित्यक्रिया से निवृत्त होने के बाद, सुमन और मैं हम दोनों साथ ही नहाने के लिए गए। नहाते वक्त ऐसी कोई ख़ास बात नहीं हुई – लेकिन जाहिर सी बात है, सुमन भी यह सुनिश्चित कर देना चाहती थी की मैं उसके शरीर के हर कोने से अच्छी तरह से जानकारी कर लूं – उसके शरीर में किस जगह पर कैसे लोच हैं, कैसी गोलाईयां हैं और कैसे मोड़ हैं – उन सबका ज्ञान उसको नहलाते समय साबुन लगाते और फिर पानी से धोते समय मुझे हो गया। उसके शरीर पर कहाँ कहाँ और कैसे कैसे तिल हैं, और कैसा जन्म-चिन्ह है, उसकी गुदा की बनावट और रंग, साथ ही साथ उसकी योनि का विस्तृत विवरण – मतलब सुमन के बारे में वो सभी जानकारियां जिनके बारे में संभवतः सुमन को खुद भी न मालूम हो, उस एक ही स्नान में मुझे हो गई।
हम तीनों ने साथ में बैठ कर नाश्ता किया। वायदे के मुताबिक, सुमन अभी भी नग्न थी – सिवाय एक नव-विवाहिता के समस्त आभूषणों के। मैंने भी उसका साथ देने के लिए कोई कपड़े नहीं पहने थे। भानु ने ‘हाउ क्यूट’, ‘हाउ स्वीट’, और ‘हाउ सेक्सी’ जैसे कई विशेषण हमारी प्रसंशा में जड़ दिए, और हमको बारी बारी से चूमा। नाश्ता करते समय भानु ने हमसे पूछा की हम दोनों अपने हनीमून के लिए कहाँ जा रहे हैं? वाकई! इस बात के बारे में तो मैंने बिलकुल भी नहीं सोचा था। मैंने दिमाग दौड़ाया लेकिन कुछ समझ नहीं आया – इसलिए मैंने सुमन से ही पूछना ठीक समझा। उसने कहा,
“अच्छा... आप ये बताइए कि हम लोग हनीमून में क्या करेंगे?”
“अरे! हनीमून में क्या करना होता है?”
“फिर भी.. बताइए न?”
“भई, मेरे हिसाब से तो हनीमून एक नए युगल के लिए ब्रेफिक्री, आनंद और पारस्परिक अंतर्ज्ञान का एक अवसर होता है! नए नए बने पति पत्नी को एकांत में मिलने का सुख मिलता है, एक दूसरे को समझने का अवसर मिलता है, और सब कुछ अच्छा रहा तो एक नए स्थान में पर्यटन करने का भी मौका मिलता है! और क्या?”
“ओह्हो! आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहे हैं.. हनीमून में करना क्या होता है?”
“अरे! बताया तो..” मैं जान बूझ कर टाल रहा था।
फिर से भानु बीच में टपक पड़ी,
“क्या मेरे भोले जीजू! आप भी न..” फिर सुमन की तरफ मुखातिब होते हुए, “मेरी बन्नो.. हनीमून में जीजू तेरी जम कर चुदाई करेंगे! और क्या? अभी तो तू अपनी मर्ज़ी से नंगी बैठी है, लेकिन जब हनीमून पर जायेगी, तो तुझे ये जबरदस्ती नंगी रखेंगे! और तेरी चूत का...”
“चोप्प्प्प!” मैंने डांट लगाई, “हनीमून में कुछ हो या न हो.. लेकिन कम से कम तू तो नहीं होगी वहाँ.. वही काफी है मेरे लिए..”
“हाय मेरे जीजू! इतनी बेरुखी मुझसे? अपनी एकलौती साली से?” उसने फ़िल्मी अंदाज़ में अपनी दाहिनी बाँह थोड़ा ट्विस्ट करके अपने माथे पर, और बाईं बाँह ट्विस्ट कर के अपनी कमर के पीछे कर लिया और कहा, “हाय री किस्मत! कैसा जीजा मिला मुझे!”
“तेरी तो..”
सुमन ने मुझे बाँह से पकड़ा, और मुस्कुराई, “जानू.. आप इसकी बातें मत सुना करिए! वैसे मैं कह रही थी, कि जो काम हम हनीमून पर करने वाले हैं, वो सच में, अभी भी तो कर ही रहे हैं न! मैं संतुष्ट हूँ पूरी तरह से.. और आपको संतुष्ट रखने की पूरी कोशिश करूंगी..”
“ओये होए मेरी पतिव्रता नारी! वैसे सच कहूं जीजू.. अपनी नीलू तो हमेशा से आपके ही सपने संजोए रही थी। पूरी तरह से आपके प्रति वफादार! बस.. एक बार मैंने ही इसको बहका दिया था..”
“तू तो कुछ भी कर सकती है” मैंने तल्खी से जवाब दिया।
“अरे अरे! आप तो नाराज़ हो गए.. और एक मैं हूँ.. जो आपसे खुश हुई जा रही हूँ..”
“तेरे खुश होने से भी मुझे क्या मिला जा रहा है?”
“अरे! नहीं मिला है तो मिल जायेग! आप तो ऐसे उतावले होंगे तो कैसे चलेगा?”
“क्या? मैं उतावला..!”
“जानू.. आप परेशान मत होइए! इस कमीनी ने मुझसे कहा था की तेरे हस्बैंड को अपने दूध का स्वाद चखाएगी! चल री! कर न.. दे न अपने जीजू को गिफ्ट...”
“अबे! मैंने कब कहा था?”
“कहा नहीं था तूने?”
“न बाबा! तू ही पिला दूध वूध... ये सब मेरे अरुण की अमानत हैं... लेकिन... अपने प्यारे जीजू को भी कुछ न कुछ तो दूँगी ही!”
कह कर उसने मुझे होंठों पर चुम्बन दिया.. और हँसते हुए अन्दर कमरे में भाग गयी।
और इसी के साथ सुमन और मेरी शादी-शुदा जिंदगी चल निकली। एक महीना ऐसे ही हँसते हँसते बीत गया। सच में – जो सब कुछ रश्मि के जाने से खो गया था, वो सब कुछ सुमन के आते ही वापस आ गया। सब कुछ तो नहीं – लेकिन काफी कुछ। दिल का घाव भर तो सकता है, लेकिन उसका चिन्ह कैसे छूटे? इस सब का पूरे का पूरा श्रेय सुमन को ही जाता है। मैंने तो समय से पूरी तरह से हार मान लिया था और उसके सम्मुख अपने सारे हथियार डाल दिए थे। बस इसी बात की तमन्ना रह गई थी की कब मुझे समय अपने अंक में भर के इस धरती से मुक्ति दे दे। लेकिन, वो एक दिन था, और आज का दिन है – जीवन को भरपूर जीने की इच्छा बलवती हो गई है।
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