RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“सुबह सुबह उठते ही आपको इसकी याद आ गई?”
“और नहीं तो क्या? नई नवेली और जवान बीवी की चूत की याद नहीं आएगी तो और किस चीज़ की याद आएगी?”
“छी! आप कैसे बोलते हैं!”
“पहले बता, और किसकी याद आएगी?”
“अरे! भगवान की.. और किसकी?” वो मुस्कुराई।
“तुमको याद आती है?”
उसने हामी में सर हिलाया।
“किस भगवान् की?”
“अरे...! सबकी!”
“अरे... सबकी का क्या मतलब? मेरा मतलब.. कोई ख़ास भगवान?”
“भगवान शंकर..”
“हम्म... मतलब तुमको शिव-लिंग की याद आ रही है! अब उतना मोटा तो नहीं, लेकिन, इस समय मेरे ही लिंग की पूजा कर लो...” मैंने उसको छेड़ा!
मुझे लगा की वो शरमा जायेगी, या कुछ विरोध करेगी.. लेकिन मेरी इस बात पर सुमन एकदम से गंभीर हो गई।
“मैं आपसे एक बात कहूँ?”
‘ओह्हो! जब लड़कियाँ सीरियस होती है तो कुछ न कुछ गड़बड़ होता है..’ मैंने सोचा।
“हाँ!”
“आप प्रॉमिस करिए की मैं जो कुछ कहूँगी, और करूंगी, आप करने देंगे?”
“ऐसे बिना सुने, जाने कैसे प्रॉमिस कर दूं?”
“आपको अपनी बीवी पर भरोसा नहीं?”
“अरे! ऐसी बात नहीं है..”
“तो फिर प्रॉमिस करिए!”
“अच्छा बाबा! प्रॉमिस! मैं तुमको नहीं रोकूंगा!”
मेरे ऐसा बोलते ही सुमन एकदम से खुश हो गई। उसने मुझे बिस्तर पर एक तरफ बैठने को कहा। बाद में मैंने ध्यान दिया की उसने मुझे पूर्व की दिशा के सम्मुख बैठाया था। उसने कमरे की खिड़की और परदे भी खोल दिए। उस समय कोई साढ़े पांच हो रहे होंगे। बाहर अभी भी अँधेरा था – इसलिए सुमन ने कमरे की लाइट भी जला दी।
“बैठे रहिएगा... बस दो मिनट..” कह कर वो ऐसे नंगी ही, दबे पांव कमरे से बाहर निकल गई। घर में और लोग भी थे... लेकिन, अभी तो सभी सो रहे होंगे! मैं सोच रहा था की क्या करने वाली है! खैर, मेरे सोचते सोचते, जैसा की उसने कहा था, सिर्फ दो मिनट में वापस आ गयी। उसके हाथ में एक छोटी थाली थी – उसमे आरती का सामान था – दिया, चन्दन, फूल इत्यादि! मैं भौंचक्क था!
उसने आरती का दिया जलाया, फिर मेरे माथे पर चन्दन का एक लम्बा तिलक लगाया और फिर दिया जला कर मेरी आरती उतारी।
“आप ही मेरे भगवान् हैं.. मेरे सब कुछ!” कह कर वो मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गई और झुक कर मेरे पैरों पर अपना सर टिका दिया! मुझे तो जैसे काटो खून नहीं! ये क्या कर रही है! मैं इस लायक नहीं हूँ! लेकिन मैं कुछ भी कहने और करने की अवस्था में नहीं था। सुमन एक अलग ही दुनिया में थी – ऐसा लग रहा था!
“आप ही मेरे शिव हैं.. और ये मेरा शिव-लिंग!” कह कर उसने मेरे खड़े हुए लिंग पर भी टीका लगें और उसकी भी आरती उतारी, और उसको भी शीश नवाया। फिर उसने मेरे लिंग के सिरे को एक हल्का सा चुम्बन दिया। सुमन इतनी प्रसन्न लग रही थी, जैसे किसी बच्चे की मन मांगी मुराद पूरी हो जाती है!
“अब मैं आपसे एक विनती करूँगी – याद रहे, आपने प्रॉमिस किया था की आप मेरी बात मानेंगे! है न?”
मेरी तो जैसे तन्द्रा भंग हुई.. “बोलो!”
सुमन की मेरे लिए इतनी श्रद्धा देख कर मुझे डर सा लग गया।
“आपको मालूम है न, की सिर्फ शिव-लिंग की पूजा नहीं होती? जब तक वो एक योनि के साथ लिप्त न हो?”
मैंने हामी भरी।
“तो अगर आप शिव हैं, तो मैं हूँ पार्वती – और मेरी योनि सिर्फ आपके लिए है – आपके लिंग के लिए। आपको जब भी मन करे, ... आप जब भी चाहें, ... जब भी आप तैयार हैं, मैं तैयार हूँ!”
“नीलू... इधर आओ! मेरे पास... प्लीज!”
मैंने सुमन को अपने पास बुला कर अपनी जांघ पर बैठाया, और प्यार से उसके गाल को सहलाते हुए कहा,
“नीलू... तुमने बहुत बड़ी बात कर दी आज! बहुत सम्मान और बहुत प्यार दिया है! इसलिए मैं भी एक बात कहना चाहता हूँ... पत्नी सम्भोग का यन्त्र नहीं होती। कम से कम मेरे लिए तो बिलकुल नहीं! ऐसा नहीं है की मुझे सेक्स करना अच्छा नहीं लगता – बल्कि मुझे तो बहुत अच्छा लगता है.. लेकिन, ऐसा नहीं है की तुम्हारा उपयोग बस इसी एक काम के लिए है! मुझे भी तुमसे प्रेम है! और मैं भी तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ.. हम दोनों खूब सेक्स करेंगे! खूब! लेकिन, तभी जब हम दोनों ही मन से तैयार हों!”
सुमन मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दी।
“और एक बात.. अगर तुम मुझे अपना भगवान मानती हो, तो मैं भी तुमको अपना भगवान मानता हूँ!” कह कर मैंने उसके माथे को चूम लिया, और नीचे झुक कर उसके पैरों को छू कर अपने माथे पर लगा लिया। सुमन मेरी इस हरकत पर सिसक उठी,
“आह.. आप मुझे पाप लगवाओगे!”
“कोई पाप वाप नहीं लगेगा!”
सुमन कुछ देर तक चुप हो कर मुझे देखती रही। मुझे लगा कि वो कुछ कहना चाहती है।
“क्या हुआ? कुछ कहना चाहती हो?”
उसने हामी में सर हिलाते हुए कहा, “हाँ.. मैं ‘इसको’ एक बार ठीक से देख लूं?” उसने मेरे लिंग की तरफ इशारा किया।
मैं मुस्कुराया, “तुम्हारा ही तो है.. अच्छे से देखो.. एक बार ही नहीं, बार बार..”
वो मुस्कुराती हुई, लगभग उछल कर मेरी गोद से नीचे उतरी, और उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपने हाथ में लेकर उसका निकटता से निरीक्षण करने लगी। इस तरह से छूने-टटोलने से वो कुछ ही देर में पुनः स्तंभित हो गया।
“बाप रे! कितना बड़ा है आपका!”
“आपने किसी और का भी देखा है?”
“नहीं.. किसका देखूँगी भला?”
“देखना है?”
“न बाबा.. जिसके हाथ में ऐसा वाला हो, उसको किसी और ‘के’ की क्या ज़रुरत?”
“हा हा! आपको पसंद है?”
“हाँ! बहुत! लेकिन सचमुच.. बहुत बड़ा है!”
“बड़ा है, तो बेहतर है..”
“हाँ हाँ.. कहना आसान है.. अन्दर लेना पड़े, तो समझ आये!”
“एक बार तो हो गया.. आगे अब आसान रहेगा!”
“भगवान करे कि ऐसा ही हो!” फिर कुछ रुक कर, “मुझे तो लगता है.. जब आपने ‘ये’ पूरा अन्दर डाल दिया था, तो मेरा वज़न कम से कम एक किलो तो बढ़ ही गया होगा!”
“चल... ये गधे का थोड़े ही है..”
“ही ही! आप भी न..” कह कर वो पुनः निरीक्षण में लग गई।
“आपके यहाँ (उसने शिश्नाग्र के नीचे इशारा किया) और यहाँ (मेरे दाहिने वृषण की तरफ इशारा किया) पर तिल है...”
“हम्म म्म्म! तो? उससे क्या?”
“कहते हैं यदि पुरुष के गुप्तांग पर तिल हो तो वह पुरूष अत्यधिक कामुक होता है.. और एक से अधिक स्त्रियों के संसर्ग का सुख पाता है।“
“अच्छा जी! ऐसा है क्या? ह्म्म्म.. और इसका क्या मतलब है?” कहते हुए मैंने सुमन के दाहिने स्तन के बाहरी तरफ के दो तीन तिलों की तरफ इशारा किया।
वो शरमाती हुई बोली, “इसका यह मतलब है की जिसके सीने के दाहिनी तरफ तिल होता है, उसको सुन्दर जीवनसाथी मिलता है...”
“ओह्हो... फिर तो गड़बड़ हो गई! तुमको तो मैं मिल गया!!” मैंने सुमन को छेड़ा।
“अरे क्या गड़बड़? आप तो कितने सुन्दर..” कहते कहते सुमन रुक गई और उसका चेहरा शरम से लाल हो गया।
“अच्छा जी! ऐसा है?”
“जी हाँ.. मैंने तो जब पहली ही बार आपको देखा था, तभी आप मुझे बहुत पसंद आ गए थे!”
“अच्छा! ऐसी बात है? तो फिर आपने कुछ कहा क्यों नहीं?”
“क्या कहती? मैं तो छोटी थी, और आपको दीदी पसंद थी! तो मैंने सोचा की आपके जैसा ही कोई चाहिए मुझको! लेकिन फिर दीदी के जाने के बाद...”
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