RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
बात तो सही थी – उसकी छोटी सी योनि में मेरा मोटा सा लिंग ऐसे ही लग रहा था! उसकी योनि का वाह्य हिस्सा इतना खिंच गया था, की वो अभी एक पतले छल्ले के समान लग रहा था। इसमें भला क्या आनंद आएगा किसी को? बेचारी को कितना दर्द हो रहा होगा!!
“दर्द होता है? निकाल दूं बाहर?” मैंने पूछा।
मैंने पूछ तो लिया, लेकिन मन ही मन सोच रहा था की बाहर निकालने को न बोले।
“न..नहीं! दर्द नहीं है.. पहले आप कर...” बोलते बोलते वो रुक गयी – अब यह शर्म थी, या उसकी वासना, या फिर थकान! अभी कहना मुश्किल है। वो अपने होंठ भींच कर, मुँह मोड़ कर होने वाले हमले के लिए तैयार थी।
“पहले आप “क्या” कर...? बोलो न?”
“अहह.. प्लीज छेडिये नहीं..”
“अरे! मुझसे क्या शरमाना? बोलो न?”
सुमन ने सर हिला के ‘न’ कहा।
“बोल दोगी, तो जोश आएगा मुझे! और फिर हम दोनों को ही मज़ा आएगा.. बोल न!”
“बोल न क्या करूँ?”
“ओह्हो!” फिर धीरे से, “सेक्स..”
“अबे हिन्दी वाला बोलो!” मैंने आगे छेड़ा।
“चुदा..ई”
“वैरी नाईस.. ये लो” कह कर मैंने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया। सुमन भी रश्मि के ही समान छोटे काठी की लड़की थी – जब मेरा लिंग पूरी तरह से उसके अन्दर घुस गया, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने उसके पूरे योनि मार्ग का नाप ले लिया हो! एक बात और थी –सुमन, रश्मि के मुकाबले कुछ अधिक साहसी और अभिव्यंजक थी। मैं जब धक्के लगा रहा था, तब वो स्वयं भी नीचे से धक्के लगा रही थी। सेक्स का मज़ा तो तभी है, जब दोनों साथी उसका आनंद एक साथ उठाएँ, नहीं तो बस वह इवाली बात है की एक का मज़ा और दूसरे की सज़ा!
मैं उसकी मखमली योनि का आनंद उठाने के साथ साथ उसके स्तनों को कस कर दबा और निचोड़ भी रहा था। कोई और समय होता, तो उसकी चीख पुकार और रोना धोना मच जाता.. लेकिन सम्भोग के समय शरीर का रक्त चाप और दाब इतना बढ़ जाता है की इस प्रकार की हरकतें दर्द देने के बजाय दरअसल उत्प्रेरक का कार्य करती हैं। सुमन भी इस प्रकार के मर्दन से उन्माद में तड़पने लगी और मस्त होकर अपने नितम्बों को और जोर शोर से ऊपर की तरफ ठेलने लगी। उसे अपनी पहले ही सम्भोग में पूर्ण आनंद मिल रहा था। और अचानक ही वो एक बार पुनः स्खलित हो गई। कमाल है! इतनी बार! मेरा अब भी नहीं हुआ था। जबकि मैं खुद भी अपने दूसरे स्खलन के कगार पर खड़ा हुआ था। संभवतः, सुमन ही बहुत जल्दी जल्दी स्खलित हो रही थी। खैर, मैंने धक्के लगाना जारी रखा। सुमन के आखिरी स्खलन के कोई दो तीन मिनट के बाद अंत में मेरा भी स्खलन हो गया।
पहले तो मैंने सोचा की बाहर निकाल देता हूँ... फिर लगा, की पहला वाला तो सुमन के अन्दर ही जाना चाहिए। ऐसा सोचते ही वीर्य एक विस्फोट के समान मेरे लिंग से बाहर निकल गया। पिछले कुछ दिनों से संचय हुआ सारा रस सुमन के गर्भ में समां गया। बहुत ही थका देने वाला सम्भोग किया था हमने! क्रिया समाप्त होते ही हम दोनों ही एक दूसरे की बाहों में थक कर यूँ ही पड़े रहे (दरअसल मैं उसके ऊपर ही पड़ा हुआ था, और मेरा लिंग अभी भी उसी के अन्दर था)। हाँलाकि मैं कुछ देर तक सुमन के शरीर के विभिन्न हिस्सों को सहलाता रहा, और चूमता रहा। हम दोनों की ही वासना अब धीरे धीरे शांत होने लगी थी। मेरा लिंग भी सिकुड़ कर स्वयं ही उसकी योनि से बाहर आ गया।
हम दोनों ही अब बिस्तर पर अगल बगल सट कर लेट गए। सुमन को भी अब शान्ति मिली होगी। उसने एक अंगड़ाई ली – अंगडाई में उसके रूप रंग की रौनक देखते बनती थी! उसने मुझे स्वयं को ऐसे आसक्त हो कर देखते हुए देखा तो मुस्कुरा दी। करवट लेकर मेरी पीठ सहलाने लगी। मैंने भी मुस्कुरा कर उसके होंठों पर एक चुम्बन लिया और कहा,
“नीलू, मज़ा आया?”
उसने उत्तर में मुस्कुरा दिया।
“तुमको दर्द तो नहीं हुआ न?”
पहले तो उसने ‘न’ में सर हिलाया और फिर कहा, “हुआ.. लेकिन आपने सब भुला दिया। अभी हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द है!”
उसने जिस अदा से यह बात कही, उससे मेरा लिंग पुनः कड़क हो गया।
“एक और राउंड हो जाए?” कह कर मैंने उसके एक स्तन को हल्का सा दबाया।
“बाप रे! आप फिर से रेडी?”
“और क्या? तुमको भली भांति चुदी हुई महिला जो बनाना है..”
“उफ्फ्फ़! ऐसी बात है तो फिर मैं भी चुदने को तैयार हूँ... आप शुरू कीजिए...”
कहते हुए उसने शरमा के अपने चेहरे को अपनी हथेली से ढँक लिया। अब बार बार क्या वर्णन किया जाय? हमारी सुहागरात की दूसरी चुदाई कोई आधा घंटा और चली। सुमन इतनी देर में तीन बार और स्खलित हुई। अगर वो हर बार ऐसे ही द्रव निकालती रही, तो उसको तो डी-हाइड्रेशन का खतरा हो जाएगा! खैर, जब हम दोनों भली भांति थक गए, तो निकट रखी बोतल से पानी पिया। उसके बाद एक दूसरे से लिपट कर सो गये।
नव विवाहित होना अपने आप में ही एक मादकता भरा अनुभव होता है। शरीर में एक भिन्न प्रकार की थकावट, ऊर्जा और इच्छा का अद्भुत सम्मिश्रण होता है। और इस भावना का सबसे अधिक जोर नव विवाहित युगल की पहली रात को होता है। ऐसा नहीं है की बाद में नहीं होता, लेकिन एक दूसरे के शरीर को देखने, महसूस करने और जानने की तीव्र इच्छा, एक दूसरे के स्पर्श का मादक अनुभव, और पहले पहले संसर्ग का अनुभव – विवाह के बाद की पहली रात को सचमुच अनोखा बना देती हैं।
मेरी आँख खुली तो देखा की सुबह की पांच बज रहे हैं। सुमन मेरे बाएँ बाजू पर सर रखे, और मुझसे लिपटी हुई सो रही थी – ठीक वैसे ही जैसे सोने से जाने से पूर्व – मतलब पूर्णतः नग्न। मैंने प्रेम भरी मुस्कान से सोती हुई सुमन को देखा। ईश्वर के खेल निराले होते हैं। पहले तो मेरे और सुमन के सारे सहारे छीन लिए, और फिर ऐसी परिस्थितियाँ बना दीं की आज हम दोनों एक दूसरे के ही सहारे बन गए हैं! कहते हैं न की सुबह सुबह अगर मन से प्रार्थना करी जाय, तो वह ज़रूर सार्थक होती है – तो मेरी ईश्वर से बस यही प्रार्थना है की मैं सुमन को हमेशा खुश रख सकूँ! उसको कभी भी उसके परिवार की कोई कमी न महसूस होने दूं! उसकी हर छोटी बड़ी ज़रुरत को पूरा कर सकूं, और... उसके शरीर को हमेशा यौन रस से सिंचित रख सकूँ!
ये आखिरी वाली प्रार्थना पर मेरा लंड तुरंत तैयार हो गया। मैं मुस्कुराया – अगर प्रार्थनाएँ इसी तरह से तुरंत स्वीकार हो जाएँ, तो क्या बात है! मन के कहीं किसी कोने में एक बार यह आवाज़ भी निकली की काश रश्मि भी आ जाय! लेकिन क्या कभी आशाओं पर ही निर्भर कोई कामना पूरी होती है भला? मैंने एक गहरी साँस छोड़ी – रश्मि के साथ साथ ही हमारे अनगिनत मधु-मिलन की कई सारी छवियाँ मेरे आँखों के सामने एक चलचित्र के समान चलने लगीं! सुमन को भोगने के लिए मैं एक बार पुनः तैयार था।
मैंने अपने दाहिने हाथ को नीचे की तरफ बढ़ाया, और उसकी उँगलियों की सहायता से सुमन की योनि के दोनों पटों को थोड़ा फैलाया। मुझे तो लगता है की योनि का स्त्री के मस्तिष्क में एक कोई ख़ास संयोजन होता है। इतनी बार मैंने देखा है की जैसे ही किसी स्त्री की योनि को छुओ, वो चिहुंक उठती है। सुमन भी चिहुंक गई – सोते सोते ही!
“उम्म्म्म!” उसने सोते हुए ही जैसे शिकायत करी हो!
मैं मुस्कुराया और बहुत सम्हाल कर उसके सर के नीचे से अपना हाथ निकाला, और उसके सर के नीचे तकिया रख दिया। मैं जल्दी से नीचे की तरफ लपका। सुमन अभी भी अल्हड़ता से सोती थी। मतलब – उसके पैर हमेशा इतने खुले हुए रहते थे जिससे उसकी योनि तक आसानी से पहुंचा जा सके। मतलब मुझे कुछ ख़ास करने की ज़रुरत नहीं थी – मैंने बस अपने होंठ उसके योनि के होंठों पर लगा दिए और जीभ को धीरे से अन्दर प्रवेश करने लगा।
“अह्ह्ह्ह... जानू!” सुमन सोते सोते ही बोली!
‘कमाल है! नींद में भी मालूम है की कौन है!’
मैंने मुस्कुराते हुए सोचा। खैर, काफी देर तक तबियत भर कर मैंने उसकी योनि को तब तक छेड़ा, जब तक उसमें से मीठा मीठा रस नहीं निकल आया। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान सुमन विभिन्न प्रकार की मादक आवाजें निकालती रही। जब मैंने उसकी चूत छोड़ी, तो वो मुस्कुराते हुए मुझसे बोली,
“सुबह सुबह उठते ही आपको इसकी याद आ गई?”
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