RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने धीरे से उसके नितम्बों पर चूम लिया, और अपनी जीभ को उसकी दरार पर फिराया। मजा आया और रोमांच भी! सुमन सच में एक जवान कली थी, और उस पर अभी जवानी का पूरा रंग चढ़ना बाकी था। लेकिन फिर भी उसके शरीर में रस भरा हुआ था – जैसे फूलों में सार भरा हुआ होता है! वैसा ही! उस रस का मद मुझ पर चढ़ गया था – मेरे हाथ से उसका लहँगा छूट गया।
सुमन ने नीचे भी कुछ नहीं पहना हुआ था – कोई अधोवस्त्र नहीं! सच में! क्यों झंझट करना? एकदम से उसके सुडौल, विकसित, गोर गोर गोल नितम्ब मेरी आँखों के सामने प्रस्तुत हो गए। सच में मुझसे रहा नहीं गया! मैंने अपने पूरे मुँह और चेहरे का प्रयोग करते हुए उसके नितम्बों का भोग लगाना आरम्भ कर दिया! उनका चुम्बन, चूषण और लेहन करते समय कब वो घूम कर मेरी तरफ हो गई, उसका ध्यान नहीं रहा। लेकिन जब मांसल गुम्बजों के बजाय मेरे सामने दो मीठे मालपुए आ गए तब समझ आया की सुमन अब मेरी तरफ मुखातिब है।
सुमन की योनि के दोनों होंठ फूले हुए थे – जैसा मैंने पहले भी कहा, मीठे मीठे मालपुओं के समान (जो ऊपर नीचे रखे हुए थे)! उन होंठों पर कोई बाल नहीं था – एकदम चिकनी। और उनमें से रस तो जैसे बाँध छोड़ कर निकल रहा था। सच में, अब तो बस एक ही काम बाकी था। मैं भी उस काम में अब देर नहीं लगाना चाहता था।
मैंने सुमन की योनि के दोनों फूले हुए पटों के बीच एक जोरदार चुम्बन जड़ा, और उसको चूमने लग गया। कुछ देर चूमने के बाद मैंने उसके पटों को उँगलियों की मदद से कुछ फैलाया, और जीभ डाल कर चूसने लगा। मीठा रस! सच में! जैसे किसी ने उसकी योनि रस में हल्का सा शहद मिला दिया हो!
“कठोर पीनस्तन भारनम्रा सुमध्यमा चंचल खंजनाक्षी, हेमन्तकाले रमिता न येन, वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम्..”
सुमन अभी मुझसे इस श्लोक का अर्थ पूछने की हालत में नहीं थी, इसलिए मैंने खुद ही बताना शुरू कर दिया, “हेमंत ऋतु में, ठोस और भरे हुए स्तनों के भार से झुकी हुई, पतली कमर वाली, चंचल और धारदार चाकू जैसी नैनों वाली स्त्री से जिस किसी पुरुष ने संभोग नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ ही चला गया..”
“त..तो करिए न...”
मैं मुस्कुराया। मैंने सुमन को बिस्तर पर लिटाया। सिर्फ आभूषण, चूड़ियाँ, पायल इत्यादि पहने हुए वो बहुत प्यारी लग रही थी। कोई भी स्त्री लगेगी! सच में। मेरी बात का यकीन न हो, तो अपनी पत्नियों या प्रेमिकाओं को पूर्णतया नग्न होने को कहिए, लेकिन वो अपने गहने इत्यादि पहने रहें! फिर बताइयेगा!
जब वो लेट गई, तब मैंने अपने कपड़े भी उतारने शुरू किए – एक मिनट के अंदर ही मैं भी तैयार था। सुमन एक टक मेरे लिंग को ताक रही थी।
“नीलू रानी, सिर्फ देखो ही नहीं, इसको छू भी सकती हो! इसके साथ खेल भी सकती हो! अब से यह तुम्हारा है.. और सिर्फ तुम्हारी ही सेवा करेगा!” मैंने उसको छेड़ा, “.. लाओ अपना हाथ.. इसे महसूस करो..”
कह कर मैंने उसके हाथ में अपना लिंग पकड़ा दिया। रक्तचाप के कारण लिंग पूरी तरह से तना हुआ था, और तप रहा था। वो तो जैस जड़ हो गई – बस लिंग को हाथ में पकडे हुए हतप्रभ सी देख रही थी। मैंने उसके हाथ को अपने लिंग पर पीछे की तरफ सरकाया। ऐसा करने से उसकी चमड़ी पीछे की तरफ खिंच गयी, और लाल गुलाबी सुपाड़ा भी उसको दिखने लगा। जो वीर्य निकला हुआ था, उसका कुछ शेष अभी भी बूंदों के रूप में बाहर निकल रहा था।
“कुछ बोलो भी...”
“अभी.. तो... बस...”
“हाँ हाँ.. बोलो न?”
“बस.. सेवा कीजिए..” उसने शरमाते हुए कहा।
“जो आज्ञा देवी!” कह कर मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। सुमन मुस्कुरा दी। पति-पत्नी में सबसे पहला महत्वपूर्ण कार्य है उन दोनों का संयोग! दोनों का मिलन! अब हम दोनों के मन की यही इच्छा थी।
मैंने उसको बिस्तर से उठाया, आयर अपनी गोद में ले कर बिस्तर पर बैठ गया। सुमन मेरी गोद में ही अपनी टाँगे दोनों तरफ लिए बैठी हुई थी। रक्त-चाप के कारण मेरा लिंग बार बार झटके लेता, और उसकी योनि का चुम्बन लेता! मैंने उसको अपनी बाहों में ले कर एक गहरा सा चुम्बन लिया। सुमन कामुकता की सीमा पर खड़ी हुई थी। उसके रस भरे, और महकते हुए होंठों का स्वाद स्वयं को भुला देने वाला था। सुमन भी मुझसे पूरी तरह से लिपट गयी थी – उसके दहकते स्तन मेरे सीने पर चुभ रहे थे।
अब हम दोनों ही अपने काबू में नहीं थे। ऐसे आलिंगन में बंधे हुए हम दोनों को एक दूसरे के शरीर का पूरी तरह से संज्ञान हो रहा था। हम दोनों ही अब तैयार थे। मैंने सुमन की गर्दन पर चुम्बन लिया – जैसे ही मैंने उसकी गर्दन पर जीभ फिराई, वो तड़पने लगी। स्त्री का शरीर पूरी तरह से काम से भरा हुआ होता है। कहीं भी छू लो, कहीं भी चूम लो.. लगभग एक जैसा ही परिणाम आता है। कुछ देर उसकी ग्रीवा चूमने के बाद मैंने जैसे ही उसकी कानों की लोलकी को अपने मुँह में लिया, वह अपने काबू में नहीं रही। उसका हाथ अनायास ही मेरे लिंग पर आ गया, और उसे सहलाने लगा।
इतना इशारा काफी था। हम दोनों ही कुछ देर में पागलों की तरह एक दूसरे के शरीर के अंगों को सहला, छू और मसल रहे थे। मैंने पुनः अपनी जीभ उसके एक स्तन के चूचक पर फिराया – सुमन अब निर्लज्ज हो कर जोरों से सीत्कार करने लगी। अगर बाहर कोई जाग रहा होगा, तो उसको सुमन की कामोत्तेजक आवाजें सुनाई दे रही होंगी! वैसे इससे क्या फर्क पड़ता है? अगर यह सब आज नहीं, तो कब होगा? उसने मेरा लिंग पकड़ लिया, और उसको सहलाने लगी।
मैं भी एक चंचल बच्चे की भांति कभी तो उसका बाएँ स्तन का भोग लगाता, तो कभी दाएँ स्तन का! हम सब पुरुष, और काफी सारी स्त्रियाँ भी, इस बात से सहमत होंगे की एक युवा स्त्री के स्तन, इस पूरे संसार के सबसे स्वादिष्ट, सबसे मीठे फल होते हैं! भले ही आम को फलों का राजा माने, लेकिन एक स्त्री के उन्नत आमों के सामने उनका स्वाद फीका ही है! मैं पुनः सुमन के स्तन रुपी आमों का रसास्वादन करने लगा। इतने में सुमन पुनः स्खलित हो गयी।
मुझे समझ आया की उसके साथ क्या हो रहा है – ऐसे में मैं उसको अपनी गोद में ही लिए चूमता रहा, जब तक वो अपने काम के ज्वार से नीचे नहीं उतर गयी। कुछ देर सुस्ताने के बाद मैंने उसको वापस नीचे, बिस्तर पर लिटाया। सुमन की साँसे अभी भी गहरी गहरी चल रही थीं। मैं उसको लिटा कर नीचे की तरफ खिसक आया।
मैंने उसकी टाँगे कुछ फैलाईं जिससे उसकी योनि का अभिगम कुछ आसान हो सके। उसकी योनि तो अब तक न जाने कितना सारा रस निकाल चुकी थी – वहां का गीलापन साफ़ दिख रहा था। इसके बाद मैं उसकी मालपुए के सामान मीठी, रसीली और मुलायम योनि का रसास्वादन करने लगा। मैंने अपनी जीभ उसकी नर्म गर्म योनि में प्रवेश कराया – सुमन किसी जानवर की तरह भर्राती गुर्राती हुई कराह निकालने लगी। मैंने अपनी जीभ को उसमें जल्दी जल्दी अंदर बाहर कर के उसके आगे आने वाले प्रोग्राम के बारे में अवगत कराया। सुमन तो आज जैसे वासना रुपी परमाणु बम के भण्डार पर बैठी हुई थी – एक के बाद एक चरमोत्कर्ष प्राप्त कर रही थी। कुछ ही देर में अनवरत जिह्वा-मैथुन के बाद, सुमन पुनः कांपते, कराहते आहें भरने लगी। मुझे अपने मुँह में पुनः गर्म द्रव का अनुभव हुआ। मैं समझ गया कि सुमन फिर से स्खलित हो गई है।
उसको मैंने कुछ देर आराम करने दिया। मुझे खुद पर भी नियंत्रण नहीं था। इतना देर भला कब तक चलता? मेरे अन्दर का लावा भी ब्नाहर निकलने को उद्धत था। मैं अंततः उसके ऊपर आ गया। मैंने लिंग को उसकी योनि मुझ पर टिकाया और एक धक्के से उसकी योनि में प्रवेश करा दिया। सुमन की कोरी, कुँवारी योनि बहुत छोटी भी थी। धक्के के कारण मेरा करीब दो इंच लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया – लेकिन उधर उसकी चीख निकल पड़ी। गलती यह हुई की मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ नहीं रखे। अब तक तो सभी को मालूम हो गया होगा, की सुमन अब लड़की नहीं रही!
मैंने उसको दो तीन चुम्बन दिए, और उसके गालों को सहलाते हुए बोला, “शाबाश नीलू! बस.. अब हो गया! वेलकम टू वुमनहुड! बस.. कुछ ही देर में सब ठीक हो जाएगा! ओके हनी? अभी मज़ा आने लगेगा! बाकी अन्दर जाने दो! डोंट रेसिस्ट! अब और तकलीफ़ नहीं होगी। ठीक है?”
सुमन ने सर हिला कर जवाब दिया।
मैंने आगे कहा, “अगर दर्द हो, तो बता देना! ओके हनी?”
उसने फिर से सर हिलाया। मैंने हल्का सा बाहर निकाल कर पुनः अन्दर की तरफ धक्का लगाया – उसको पुनः दर्द हुआ, लेकिन उसने किसी तरह से दर्द को ज़ब्त कर लिया। इस धक्के का परिणाम यह हुआ की अब बस एक डेढ़ इंच ही बाहर निकला हुआ था। मैंने नीचे की तरफ देखा, और फिर वापस सुमन को बोला,
“देख नीलू... सब अन्दर हो गया.. देख न?”
सुमन ने बड़ी कठिनाई से नीचे भौंचक्क रह गई।
“ब्ब्ब्बाप रे! अआआपने इसकी शकल बिगाड़ दी! उफ़...” मैंने लिंग को बाहर खींचा।
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