RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सुमन का परिप्रेक्ष्य
मैं कमरे में रखे हुए आईने में अपने प्रतिबिम्ब को निहार रही थी। जो दिखा बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाला था। वैसे भी जब कोई लड़की दुल्हन का परिधान धारण करती है, तो वो बिलकुल अलग सी ही लगने लगती है। और, मेरी सबसे प्रिय सहेली भानु ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी मुझको सजाने में... भानु की ही जिद थी कि मैं लहँगा-चोली पहनूँ। रंग भी उसी ने पसंद किया। वैसे तो मैं सब कुछ रूद्र की ही पसंद का पहनना चाहती थी, लेकिन रूद्र चाहते थे कि मैं अपनी ही पसंद का पहनूँ! अब ऐसे में कोई रास्ता कैसे निकलता? इस मतभेद के कारण न तो मेरी, और न ही रूद्र की चली... और मैं अब भानु की पसंद का ही पहन रही थी, और यह हम दोनों को ही आसान लगा।
मैंने रस्ट (जंग लगे लाल) रंग का लहंगा चोली पहना हुआ था – भानु के कहने पर चोली इस प्रकार सिली गयी थी जिसमे से पीठ का लगभग सारा हिस्सा एक गोल से दिखता था। ऐसे में मैं उसके अन्दर कुछ नहीं पहन सकती थी। इसलिए आगे की तरफ स्तनों को संबल देने के लिए पैडिंग लगाई गयी थी।चोली को पीछे की तरफ से बाँधने के लिए ऊपर नीचे डोरी की जोड़ी थी। नंगी पीठ को ढंकने के लिए सर पर उसी रंग की चुनरी थी। लहंगा कुछ कुछ अनारकली टाइप का था। पूरे परिधान पर कुंदन की कारीगरी की गई थी.. इस समय मैं वाकई किसी राजकुमारी जैसी लग रही थी।
ओह! एक मिनट! कहानी एकदम बीच से शुरू हो गयी! शुरू से बताती हूँ... अमर और फरहत की देखा देखी, हमने भी कोर्ट में शादी करने का फैसला किया। रूद्र चाहते थे की कुछ तो धूम धाम होनी चाहिए – दरअसल उनको मन में था की मेरे भी अपनी शादी को लेकर कई सारे अरमान होंगे। लेकिन उस उल्लू को यह नहीं समझ आया की जिस लड़की का अपने अरमानो के रजा के साथ विवाह हो, उसको किसी दिखावे की क्या आवश्यकता? हमने किसी को कुछ घूस इत्यादि नहीं दी – और एक महीने के बाद हमारी भी शादी हो गयी। शादी में मेरे प्रिंसिपल, सारे टीचर, मेरे कई दोस्त, भानु (वो तो मेरी सबसे ख़ास है), रूद्र के ऑफिस के कुछ मित्र, और श्रीमति देवरामनी आमंत्रित और उपस्थित थे। हमने एक दूसरे को वरमाला पहनाई! कोर्ट कचहरी की मारा मारी थी, इसलिए मैंने शलवार कुरता, और रूद्र ने टी-शर्ट और जीन्स पहनी हुई थी। यहाँ से वापस घर जा कर अपने राग रंग वाले परिधाना पहनने का प्लान था।
पिताजी धर्म परायण व संस्कारी व्यक्ति थे। जात, बिरादरी, गाँव, घर, धर्म-कर्म में उनकी गहरी रुचि थी। हमेशा से ही उनके लिए धर्म और रीति-रिवाजों की पालना करना परम कर्तव्य था। यदि वो आज जीवित होते तो क्या सोचते? क्या वो मुझे रूद्र के साथ शादी करने देते? शायद! या शायद नहीं! कुछ कहा नहीं जा सकता! एक ही आदमी को अपनी दोनों बेटियां क्या कोई सौंप सकता है? संभव भी हो सकता है – यदि पिता को मालूम हो की वो आदमी हर तरह से अच्छा है, और उनकी पुत्रियों को प्रेम कर सकता है! मुझे आज उनकी, माँ की, और दीदी की – सबकी रह रह कर याद आती रही। बस, दिल में यह सोच कर दिलासा कर लिया की वो सभी मुझे वहीँ ऊपर, स्वर्ग से आशीर्वाद दे रहे होंगे!
हम सबने एक पांच सितारा होटल में साथ में लंच किया। काफी देर तक गप्पे लड़ाई, और फिर घर आ गए।
सुहागरात आ ही गई। मेरी दूसरी सुहागरात! अपनी बीवी की छोटी बहन के साथ! मन में अजीब सा लग रहा था – एक अजीब सी बेचैनी! एक होता है प्रेम करना – बिना किसी तर्क के, बिना किसी वाद प्रतिवाद के, बिना किसी लाभ हानि के हिसाब के! रश्मि के साथ मैंने प्रेम किया था। सुमन से भी मुझे प्रेम था, लेकिन एक प्रेमी के जैसा नहीं! अभी तक नहीं। वो अभी भी मुझे रश्मि की छोटी बहन ही लगती – वो ही छोटी सी लड़की जो मुझे ‘दाजू’ कह कर बुलाती थी, और फिर जीजू कह कर! अब वही लड़की मुझे पति कह कर बुलाएगी? पति बना हूँ, तो पति धर्म भी निभाना पड़ेगा। रश्मि के साथ मुझे बहुत आत्म-विश्वास था, लेकिन सुमन के बारे में सोच सोच कर ही नर्वस होता जा रहा हूँ!
मुझे नहीं मालूम था की सुमन को सेक्स के बारे में कितना मालूम था। मैंने और रश्मि ने एक बार उसको कर के दिखाया था : उस दिन तो वो बहुत अधिक डर गई थी। उसने हमको कहा भी था, कि वो किसी के साथ भी ऐसे नहीं कर सकेगी! न करे तो ही ठीक है! अपनी से चौदह साल छोटी लड़की के साथ कोई कैसे सेक्स करे भला? लेकिन कुछ भी हो – एक लड़की का संग मिलने का सोच कर एक प्रकार का आनंद तो आ ही रहा था। साथ ही साथ मेरे मन में कई प्रका के सवाल भी उठ रहे थे – अगर सेक्स करने तक बात पहुंची, तो क्या सुमन मेरा लंड ले सकेगी? उसकी योनि कैसी होगी? उसे कितना दर्द होगा? इत्यादि! खैर, इन सब प्रश्नों का उत्तर तो रात के अंक (आलिंगन / आगोश) में समाहित थे – जैसे जैसे रात आगे बढ़ेगी, उत्तर आते जायेंगे!
खैर, अंततः मैं ‘हमारे’ कमरे में दाखिल हुआ। हमारा कमरा भानु, सुमन की दो अन्य सहेलियों – अनन्या और ऋतु, और श्रीमति देवरामनी के निर्देशन में सजाया गया था। कमरा क्या, एक तरह का पुष्प कुटीर लग रहा था! हर तरफ बस फूल ही फूल! दरवाज़ा खुलते ही पुष्पों की प्राकृतिक महक से मन हल्का हो गया। मन में जो सब अपराध बोध सा हो रहा था, अब जाता रहा। फर्श पर फूल, दीवारों पर फूल, बिस्तर पर फूल, खिडकियों पर फूल! पुष्पों की ऐसी बर्बादी देख कर मुझे थोड़ा निराशा तो हुई, लेकिन अच्छा भी लगा। गुलाब, गेंदे, रजनीगंधा, रात रानी और चंपा के पुष्प! मादक सुगंध! बिस्तर के बगल रखी नाईट टेबल पर पानी की बोतल और मिठाई का डब्बा रखा हुआ था। बिस्तर पर सुमन बैठी हुई थी, और अपनी सहेलियों के साथ गुप चुप बातें कर रही थीं!
मुझे देखते ही भानु चहकते हुए बोली, “जीजू मेरे, आइये आइये! आपका खज़ाना आपके इंतज़ार में कब से व्याकुल है!” फिर मेरे एकदम पास आ कर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोली, “ज़रा सम्हाल के चोदियेगा! बेचारी की चूत एकदम कोरी है!”
भानु को ऐसे नंगेपन औए बेशर्मी से बात करते देख कर मुझे हल्का सा गुस्सा आया। कैसी कैसी लड़कियों से दोस्ती है सुमन की?
“तुझे इतनी फिकर है तो आ, पहले तुझे ही निबटा दूं?”
लेकिन मुझे उसकी बेशर्मी का ज्ञान नहीं था। मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोली, “आय हाय जीजा जी, आपकी बीवी बिस्तर पर बैठी है, और आप उसकी सहेली की मारना चाहते हैं! वैरी बैड!! पहले उसकी सील तो खोल दीजिए... जब आप बाहर निकलेंगे, तो मैं भी ‘खोल’ कर रखूंगी! ही ही ही!”
भानु की गन्दी बातों से मूड ऑफ हो गया!
“कैसी बेहया लड़की है तू?”
“जीजू! आपकी साली हूँ! हमारे रिश्ते में छेड़खानी करने का बनता है न?” मेरी डांट के डर से उसका चहकना कुछ कम तो हुआ। मुझे भी लगा की आज के दिन किसी को डांटना नहीं चाहिए।
“सॉरी!” मैं बस इतना ही कह पाया।
“सॉरी से काम नहीं चलेगा! सुमन की हम सब रखवाली हैं.. रोकड़ा निकालिए, रोकड़ा... तब अन्दर जाने को मिलेगा! ऐसा थोड़े ही है की कोर्ट में शादी कर लोगे, तो हमको हमारी नेग नहीं मिलेगी! क्यों लड़कियों?”
अन्दर से सभी लड़कियों ने एक स्वर में भानु की इस बात का समर्थन किया। मैंने कुछ देर तक उन सबको छेड़ा और विरोध किया – लेकिन फिर उन तीनो को हज़ार हज़ार रुपए पकड़ाए और,
“चल .. दफा हो!” कह कर मैंने उनको कमरे से बाहर निकाल दिया।
"हाँ हाँ! जाइए जाइए.. अपने कबाब को खाइए.. हमारी क्या वैल्यू!!" कह कर वो ठुनकते हुए बाहर चली गयी। बाकी दोनों भी उसके पीछे पीछे मुस्कुराते हुए हो ली। मैं कुछ करता, उसके पहले ही मेरे पीछे उन दोनों में से किसी ने दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं धीरे धीरे चलते हुआ जब बिस्तर के निकट, सुमन के पास पहुंचा, तो उसने बिस्तर से उठ कर मेरे पैर छूने की कोशिश करी। मैंने उसको कंधे से पकड़ कर रोक लिया,
“नीलू, हम दोनों पति पत्नी हैं – मतलब दोनों बराबर हैं!”
“लेकिन आप तो मुझसे बड़े हैं न...”
“शादी में दोनों बराबर होते हैं!”
“लेकिन आप तो..”
“अगर तुम मुझसे बड़ी होती, तो क्या मुझे भी तुम्हारे पैर छूने पड़ते?”
उसने तुरंत न में सर हिलाया।
“इसी लिए कह रहा हूँ, कि हम दोनों बराबर हैं! तुम्हारी जगह मेरे दिल में है! आओ इधर..”
कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। उसको इस तरह से गले से लगाने से मुझे पहली बार उसके स्तनों का आभास हुआ – कैसे ठोस गोलार्द्ध! अचानक ही मन की इच्छाएँ जागृत हो गईं!
मैंने उसको वापस बिस्तर पर बैठाया, और उसके पास ही बैठ गया।
“देखने दो मेरी छोटी सी दुल्हनिया को!”
मेरी बात पर सुमन मुस्कुराई। सचमुच सुमन बेहद सुन्दर लग रही थी। साधारण सा मेकअप किया गया था – लेकिन उसका परिणाम जबरदस्त था! उसकी सुन्दर लाल रंग की, बूते लगी लहंगा चोली, माथे पर बेंदी, नाक में नथ, कानो में मैचिंग बालियाँ, और गले में स्वर्ण-माला! माथे पर छोटी सी लाल रंग की बिंदी, और होंठों पर उसी रंग की लाली! कुल मिला कर एक बहुत की सुन्दर कन्या! उसके कजरारे बड़े बड़े नयन! और मुस्कुराता हुआ चेहरा.. जैसा मैंने पहले भी कहा है, भारतीय दुल्हनें, साक्षात रति का रूप होती हैं! न जाने कैसे मुझे ऐसी दो दो रतियों का साथ मिला! ऐसी लड़की पर तो स्वयं कामदेव का भी दिल आ जाय!!
उसका एक हाथ देख कर मैंने कहा,
“अरे वाह! ये मेहंदी तो बहुत सुन्दर रची है...”
“आपको अच्छी लगी?”
“बहुत!” कह कर मैंने कुछ देर ध्यान से उसकी मेहंदी की डिज़ाइन देखी... जैसे की अक्सर होता है, दुल्हनो की मेहंदी में पति का नाम भी लिखते हैं.. कुछ देर की मशक्कत के बाद मुझे अपना नाम लिखा हुआ दिख गया!
“अरे वाह! यहाँ तो मेरा नाम भी लिखा हुआ है!”
सुमन हौले से मुस्कुराई।
“और भी कहीं लगवाई है मेहंदी?”
“हाँ! पांव पर भी..” कह कर उसने अपना पांव आगे बढ़ाया। पांव और आधी टांग पर मेहंदी सजी हुई थी। कुछ देर वहां की डिज़ाइन का निरीक्षण करने के बाद मुझे लगा कि अब चांस लेना चाहिए।
“यहाँ नहीं लगवाया?” मैंने उसके स्तनों की तरफ इशारा किया। पति पत्नी के बीच तो ऐसे न जाने कितने ही अनगिनत छेड़खानियाँ होती हैं, लेकिन मुझे ऐसे बोलते हुए कुछ अप्राकृतिक सा लगा।
मेरी बात पर सुमन बुरी तरह शर्मा गयी, और न में सर हिलाया।
“ऐसे कैसे मान लूं? आओ.. देखूं तो ज़रा..” कह कर मैंने उसके सर से चुनरी अलग कर दी। चोली के कोमल कपडे से ढके उसके युवा स्तनों का आकार दिखने लगा।
“यह ब्लाउज का कपड़ा बहुत कोमल है.. लेकिन, यहाँ (उसके स्तनों की तरफ इशारा करते हुए) से अधिक यह यहाँ (बिस्तर के किनारे की तरफ इशारा करते हुए) ज्यादा अच्छा लगेगा!”
वो शर्म से मुस्कुराई।
“आपको एक बात मालूम है?” उसने अचानक ही कहा।
“क्या?”
“ब्लाउज उतारने से पहले, बीवी को कुछ पहनाना भी होता है?”
अरे हाँ! वो मुँह-दिखाई की रस्में! कैसे भूल गया! मुझे तो एक्सपीरियंस भी है!
“ओह हाँ! याद आया.. एक मिनट!”
कह कर मैं उठा, और अलमारी की तरफ जा कर, सेफ के अन्दर से एक जड़ाऊ हीरों का हार निकाला। यह हार ऐसा बना हुआ था जैसे की दो मोर पक्षी अपनी गर्दनों से आपस में छू रहे थे, और उनके पंख विपरीत दिशा में दूर तक फैले हुए थे। मोर के ही रंग की मीनाकारी की गई थी। यह मैंने स्पेशल आर्डर दे कर सुमन के लिए बनवाया था। मेरे हिसाब से एक नायाब उपहार था। उम्मीद थी, की उसको यह ज़रूर पसंद आएगा।
मैं मुस्कुराते हुए सुमन के पास आया, और उसके सामने एकदम नाटकीय तरीके से वो हार प्रस्तुत किया,
“टेन टेना!”
उसको देख कर सुमन की आँखें विस्मय से फ़ैल गईं।
“ये क्या है?? बाप रे!”
“ये है.. आपको पहनाने के लिए.. पहना दूं?”
“ल्ल्लेकिन.. मेरा ये मतलब नहीं था...”
“मतलब? मैं समझा नहीं..”
“आपने अभी तक सिन्दूर नहीं डाला! और मंगलसूत्र...” उसकी आँखें कुछ नम सी हो गईं।
हे देव! ये तो गुनाहे अज़ीम हो गया मुझसे! एकदम से मेरी भी बोलती बंद हो गई। मैंने जल्दी से इधर उधर देखा – सिन्दूर दान तो बगल टेबल पर दिख गया। मैंने उसको उठाया। वो सौ ग्राम का डब्बा कितना भारी प्रतीत हो रहा था उस समय, मैं यह बयां नहीं कर सकता। कोर्ट में एक दूसरे को वरमाला पहनाना, और यहाँ पर उसकी मांग में सिन्दूर डालना – दो बिलकुल भिन्न बातें थीं। सुमन की मांग को भरते समय मुझे अचानक ही नई जिम्मेदारी का भान होने लगा। ऐसा नहीं की कोर्ट की शादी का कोई कम मायने है.. लेकिन सिन्दूर जैसी परम्पराएँ बहुत गंभीर होती हैं। मैंने देखा की सुमन के होंठ भावनाओं के आवेश में कांप रहे थे।
“मंगल...” उसने इशारा कर के टेबल की दराज खोलने को कहा। बात पूरी नहीं निकली। लेकिन मैं समझ गया।
मैंने दराज खिसकाई तो उसमें छोटे छोटे काले मोतियों से सजा सोने का मंगलसूत्र दिखा। सच कहूं, यह मेरे लाये गए हार से कहीं अधिक सुन्दर था। सरल, सादी चीज़ों का अपना अलग ही आकर्षण होता है। मेरे खुद के हाथ अब तक हलके से कांपने लग गए थे। मैंने सुमन को मंगलसूत्र भी पहना दिया – हाँ, अब हो गयी वो पूरी तरह से मेरी पत्नी!
“अब आपको जो मन करे, उतार लीजिए!” उसने आँखें नीची किये हुआ कहा।
मुझे यकीन नहीं हुआ जब उसने ऐसा कहा।
“सच में?”
अब वो बेचारी क्या कहती? मैं भी क्या ही करता? ऐसी सुन्दर, अप्सरा जैसी पत्नी अगर मिल जाय, तो कोई कैसे खुद पर काबू रखे? इतना तो समझ आ रहा था कि उसकी चोली पीछे से खुलेगी। लेकिन मैं अपना नाटक कुछ देर और करना चाहता था। और मैंने बटन ढूँढने के बहाने उसकी चोली के सामने की तरफ कुछ देर तक पकड़म पकड़ाई करी। वैसे, सुमन को इस प्रकार से छेड़ने में मुझे अभी भी सहजता नहीं आई!! फरहत के साथ तो आराम से हो गया था.... फिर अभी क्यों..?
उधर, सुमन की हालत देख कर लग रहा था की उसका इतने में ही दम निकल जाएगा। उसने न जाने कैसे कहा,
“प प प्प्पीछे से...”
हाँ! पीछे से ही डोरी खुलनी थी। चोली की डोर पीछे से चोलने के दो तरीके हैं – या तो लड़की की पीठ को अपने सामने कर दो, या फिर लड़की के सामने से चिपका कर! मैंने दूसरा रास्ता ठीक समझा, और सुमन से चिपक कर उसकी चोली की डोर खोलने का उपक्रम शुरू किया। दो गांठें खोलने में कितना ही समय लगता है? झट-पट सुमन की पीठ नंगी हो गई। लेकिन मैंने आगे जो किया, उससे सुमन भी आश्चर्यचकित हो गई होगी – मैं पहले ही उससे चिपका हुआ था, और फिर उसी अवस्था में मैंने सुमन को जोर से अपने सीने से लगाया। ऐसा करते ही अचानक ही मेरे अन्दर प्रेम की भावना बलवती हो गई – मैंने कहा प्रेम की, न की भोग की! मैंने सुमन को दिल से धन्यवाद किया – हर काम के लिए, जो उसने मेरे लिए किया था।
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