RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने उसके हाथ में अपना लिंग दिया। कमाल की बात है फरहत के मज़बूत, नर्स वाले हाथ इस समय मेरे लिंग पर काफी मुलायम और नाज़ुक महसूस हो रहे थे। उधर मैंने उसके शरीर को चूमना और चाटना जारी रखा। मैं चूमते हुए उसकी गर्दन से होते हुए उसके पेट, और फिर वहाँ से उसकी योनि को चूमने और चाटने लगा। मैं जीभ की नोक से उसकी योनि के भीतर भी चूम रहा था। अभी कुछ ही समय पहले रिसा हुआ योनि-रस काफी स्वादिष्ट था। अब मैं भी रुकने की हालत में नहीं था, लेकिन फिर भी मैंने जैसे तैसे खुद पर काबू रखते हुए उसकी योनि चाटता रहा। कुछ देर बाद वो तीसरी बार स्खलित हो गयी। उसकी योनि का रंग उत्तेजना से गुलाबी हो गया था।
खैर, अंततः मैंने अपना लिंग उसकी टाँगों के बीच योनि के द्वार पर टिकाया, और धीरे धीरे अंदर डालने लगा। उसकी योनि काफी कसी हुई थी। फरहत गहरी गहरी साँसे भरते हुए मेरे लिंग को ग्रहण करना आरम्भ किया। खैर मैंने धीरे धीरे लिंग की पूरी लम्बाई उसकी योनि में डाल दी, और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। न तो मेरे पैरों में इतनी ताकत ही, और न ही हाथों में, की वो मेरे शरीर का बोझ ठीक से उठा सके और धक्के भी लगाने में मदद कर सके.. लेकिन जब इच्छाएं बलवती हो जाती हैं तो फिर किस बात का बस चलता है मानुस पर? वैसे भी, कामोत्तेजना इतनी देर से थी की गिने चुने धक्को में ही मेरा काम हो जाना था। दिमाग में बस यही बात चल रही थी की कितनी जल्दी और कैसे अपना वीर्य फरहत के अन्दर स्खलित कर दूं। यह एक निहायत ही मतलबी सोच थी, लेकिन क्या करता? उस समय शरीर पर मेरा अपना बस लगभग नहीं के बराबर ही था। फरहत अगर मदद न करती, तो कुछ भी नहीं कर पाता.. उसी ने खुद-ब-खुद अपनी टाँगे इतनी खोल दी थीं जिससे मेरी गतिविधि आसान इसे हो जाय। मुझे नहीं मालूम की उसको अपने जीवन के पहले सम्भोग से क्या आशाएं थीं, लेकिन जब मैंने उसको देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और उसके चेहरे के भाव ने लग रहा था की उसको भी सम्भोग का आनंद आ रहा था।
मन में तो यह इच्छा हुई की बहुत देर तक किया जाय, लेकिन अपने शरीर से मैं खुद ही लाचार हो गया। कुछ ही धक्कों बाद मुझे महसूस हुआ की मैं स्खलित होने वाला हूँ। इसलिए मैंने तुरंत ही अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। फरहत चौंकी।
“क्या हुआ?”
“नहीं.. कहीं तुम्हारे अन्दर ही एजाकुलेट (वीर्यपात) न कर दूं इसलिए बाहर निकाल लिया.. कहीं तुम प्रेग्नेंट हो गयी तो?”
मेरी इस बात पर फरहत मुस्कुराई, और मुझे चूमते हुए बोली,
“आपको पता है, की आपकी इसी बात पर तो मैं आपसे ‘करने’ के लिए तैयार हुई। मुझे हमेशा से मालूम था की आप मेरा किसी भी तरीके से नुकसान नहीं होने देंगे.. लेकिन मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं है। मैं एक नर्स हूँ... एंड, आई नो हाऊ टू कीप सेफ! नाउ प्लीज, गो बैक इन..”
“आर यू श्योर, स्वीटी?”
“यस हनी! आई वांट योर सीमन इनसाइड मी! प्लीज डू इट!”
मैं उसकी बात से थोड़ा भावुक हो गया, उसको कुछ देर प्यार से देखा, और वापस उसकी योनि की फाँकों को अपनी उँगलियों की सहायता से अलग कर के अपना लिंग अन्दर डाल दिया। इस घर्षण से फरहत की पुनः आहें निकल गईं। अब बस चंद धक्कों की ही बात थी.. मेरे भीतर का महीनो से संचित (वैसे ऐसा होता नहीं.. समय समय पर शरीर खुद ही वीर्य को बाहर निकाल देता है, और इस क्रिया को नाईट फाल भी कहते हैं) वीर्य बह निकला और फरहत की कोख में समां गया।
मैं वीर्य छोड़ने, और फरहत वीर्य को ग्रहण करने के एहसास से आंदोलित हो गए.. हम दोनों ही आनंद में आहें भरने लगे। उत्तेजना के शिखर पर पहुँचने का मुझ पर एक और भी असर हुआ.. स्खलित होते ही मेरे हाथ पांव कांप गए.. और मेरा भार सम्हाल नहीं पाए। ऐसे और क्या होना था? मैंने भदभदा कर फरहत के ऊपर ही गिर पड़ा, जैसे तैसे सम्हालते हुए भी मेरा लगभग आधा भार उस बेचारी पर गिर गया! संभव है की उत्तेजना के उन क्षणों में रक्त संचार और रक्त दाब इतना होता हो की उसको कुछ पता न चला हो, लेकिन मेरी बेइज्जती हो गयी!
“गाट यू.. गाट यू...” उसने मुझे सम्हालते हुए कहा। वाकई उसने मुझे सम्हाल लिया था.. उसकी बाहें मेरे पीठ पर लिपटी हुई थीं, और उसकी टाँगे मेरे नितम्बों पर।
“सॉरी” मैं बस इतना की कह पाया!
“सॉरी? किस बात का? आपने आज मुझे वो ख़ुशी दी है जिसके बारे में मैं ठीक से सोच भी नहीं सकती थी! सो, थैंक यू! आज आपने मुझे कम्पलीट कर दिया! आई ऍम सो हैप्पी!”
“तुमको दर्द तो नहीं हुआ!”
“हुआ.. लेकिन.. हम्म.. शुरू शुरू में मैं यह नहीं करना चाहती थी.. लेकिन फिर अचानक ही मुझे ऐसा लगा की मुझे यह करना ही है! और यह एकसास आते ही दर्द गायब हो गया!”
मैंने उसके माथे पर एक दो बार चूमा और कहा, “आर यू श्योर.. आई मीन, आर यू ओके विद आवर न्यू रिलेशनशिप?”
फरहत मुस्कुराई, “आई ऍम! आपको जब मन करे, मुझे बताइयेगा! और मुझे लगता है की मुझे भी इसकी (मेरे लिंग की तरफ इशारा करते हुए) बहुत ज़रुरत पड़ने वाली है! ही ही ही!”
सुमन का परिप्रेक्ष्य
फरहत के अथक प्रयासों का फल अब दिखने लग गया था। समय समय पर दवाइयाँ वगैरह देना, रूद्र की पूरी देखभाल करना, उनको व्यायाम करवाना और उनकी फिजियोथेरेपी करना। इन सब के कारण रूद्र की अवस्था अब काफी अच्छी हो गयी थी। मैंने एक और बात देखी - बहुत दिनों से देख रही हूँ की रूद्र और फरहत की नजदीकियां बढ़ती जा रही हैं। रूद्र स्पष्ट रूप से पहले से काफी खुश दिखाई देते हैं। उत्तराखंड त्रासदी के बाद से पहली बार उनको इतना खुश देखा है। मुझे ख़ुशी है की उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार है, और यह भी लग रहा है की वो भावनात्मक और मानसिक अवसाद से अब काफी उबर चुके हैं।
उनके स्वास्थ्य में कई सारे सकारात्मक सुधार भी हैं.. रुद्र चल फिर पाते हैं... आज कल घर से ही अपने ऑफीस का काम भी कर लेते हैं... वैसे डॉक्टर ने उनको कुछ भी करने से माना किया है, लेकिन वो जिस तरह के व्यक्ति हैं... खाली नही बैठ सकते इसलिए एक तरह से अच्छी बात है की वो अपने काम में मशगूल रहते हैं. सवेरे उठने के बाद वो कुछ देर टहलते भी हैं।
लेकिन दुःख इस बात का है की मैं उनके इस सुधार का कारण नहीं बन पाई हूँ। यह सब कुछ फरहत के कारण है – उसके आने से वाकई घर की स्थिति में बहुत सारे सकारात्मक सुधार आये हैं। वो आई तो रूद्र की नर्स बन कर थी, लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी देखभाल के साथ ही साथ मेरी भी देखभाल करती थी – मेरे खाने पीने, सोने, स्वास्थ्य, और पढाई लिखाई में रूद्र के बराबर ही रूचि लेती थी और यह भी सुनिश्चित करती थी की सब कुछ सुचारू रूप से हो। घर के संचालन में फरहत को अपार दक्षता प्राप्त थी। फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जैसे ही घर में घूम घूम कर, ढूंढ ढूंढ कर काम करती! मुझे भी कभी कभी लगता था की जैसे मेरी दीदी या माँ ही फरहत के रूप में वापस आ गए हैं! सच में! बहुत बार तो फरहत को दीदी या मम्मी कह कर बुलाने का मन होता! मेरे मन से यह बात कि वो नर्स है, कब की चली गई!
ये सब अच्छी बातें थीं.. लेकिन मुझे एक बात ज़रूर खटकती थी। और वो यह, की मेरा पत्ता साफ़ हो रहा था.. जवानी में मैंने सिर्फ एक ही पुरुष की चाह करी थी, और वो है रूद्र! लेकिन अब वो ही मेरी पहुँच से दूर होते जा रहे थे। मुझे शक ही नहीं, यकीन भी था की फरहत और रूद्र में एक प्रेम-सम्बन्ध बन गया है। वो अलग बात है की मेरे घर में रहने पर ऐसा कुछ होता नहीं दिखता था... संभवतः वो दोनों सतर्क रहते थे। फरहत हमारे घर पर ही रहती थी (अभी वो सप्ताह में एक दिन अपने घर जाने लग गयी थी), और अब इतने दिनों के बाद हमारे परिवार का ही अभिन्न हिस्सा बन गयी थी।
एक रोज़, सप्ताहांत में, मैं सवेरे सवेरे उठी – उस रोज़ कुछ जल्दी ही उठ गयी थी। आज के दिन फरहत अपने घर जाती थी। मैंने सोचा की क्यों न आज काम-वाली बाई के बजाय मैं ही नाश्ता और चाय बना दूं और सब लोग साथ मिल कर आलस्य भरे सप्ताहांत का आरम्भ करें। मैं अपने कमरे से बाहर निकल कर दालान में आई ही थी, की मुझे रूद्र के कमरे से दबी दबी, फुसफुसाती हुई आवाजें सुनाई दी। हल्की हलकी सिसकियों, दबी दबी हंसी और खिलखिलाहट, और चुम्बन लेने की आवाजें।
प्रत्यक्ष को भला कैसा प्रमाण? मैं समझ गयी की इस समय अन्दर क्या चल रहा है। लेकिन फिर भी मन मान नहीं रहा था – हृदय में एक कचोट सी हुई।जो काम मैं खुद रूद्र के साथ करना चाह रही थी, वही काम कोई और उनके साथ कर रही थी।दुःख भी हुआ, और उत्सुकता भी! उत्सुकता यह जानने और देखने की की ये दोनों क्या कर रहे हैं!
मैं दबे पांव चलते हुए रूद्र के कमरे तक पहुंची, और दरवाज़े पर अपने कान सटा दिए।
“उम्म्म्मम्म.. ये गलत है..” ये फरहत थी।
“कुछ भी गलत नहीं..”
“गलत तो है.. आह... शादीशुदा न होते हुए भी यह सब.. ओह्ह्ह्ह.. धीरेएएए..!” फरहत ठुनकते हुए कह रही थी।
“जानेमन... मेरे लंड का तुम्हारी चूत से मिलन हो गया...शादी में इससे और ज्यादा क्या होता है?”
“छिः! कैसे कैसे बोल रहे हो! गन्दी गन्दी बातें! आअऊऊऊ! आप न, बड़े ‘वो’ हो.. अभी, जब आपके हाथ पांव ठीक से नहीं चल रहे हैं, तब मेरी ऐसी हालत करते हैं.. जब सब ठीक हो जाएगा तो...”
“अच्छाआआआ... तो ये नर्स मेरे ठीक होने के बाद भी मुझे नर्स करना चाहती है?”
फरहत को शायद रूद्र के शरारत भरे प्रश्नोत्तर का भान नहीं था।
“हाँ... क्यों? ठीक होने के बाद मुझसे कन्नी काट लोगे क्या?” फरहत ने शिकायत भरे लहजे में कहा।
“अरे! बिलकुल नहीं!”
“आऊऊऊऊऊ..” यह फरहत थी।
“कम.. लेट मी नर्स यू.. उम्म्म!”
“आऊऊऊऊऊ... आराम से! ही ही ही!!”
दोनों की बातचीत की मैं सिर्फ कल्पना ही कर सकती थी... मेरे दिमाग में एक चित्र खिंच गया की रूद्र ने फरहत के एक निप्पल को अपने मुंह में भर लिया होगा। अद्भुत और आनंददायक होता होगा न, ऐसे सम्भोग करना? अपनी प्रेयसी की स्तनों को चूसते हुए अपने लिंग को उसकी योनि में लगातार ठोंकते रहना। है न? लेकिन मुझे पता नहीं कैसा लगा – अजीब सा, रोमांच, गुस्सा, उत्सुकता... ऐसे न जाने कितने मिले जुले भाव!
मुझसे रहा नहीं जा रहा था... मैं वाकई देखना चाहती थी की अन्दर क्या चल रहा है – सिर्फ सुन कर उत्सुकता कम नहीं, बल्कि बढ़ने लगती है। मैंने की-होल से अन्दर देखने की कोशिश करी – छेद था तो, लेकिन कुछ ऐसा था की अन्दर बिस्तर का कोई हिस्सा नहीं दिख रहा था। तभी मुझे ख़याल आया की ड्राई बालकनी से मास्टर बाथरूम के रास्ते अन्दर का नज़ारा देखा जा सकता है। मैं भागी भागी उसी तरफ गयी... उम्मीद के विपरीत मुझे सीधा तो कुछ नहीं दिखाई दिया, लेकिन बाथरूम के अन्दर लगे आदमकद आईने से बेडरूम के खुले दरवाज़े के अन्दर का दृश्य साफ़ नज़र आ रहा था।
फरहत रूद्र की सवारी करते हुए सम्भोग कर रही थी। उसके नितम्ब के बार बार ऊपर नीचे आने जाने पर रूद्र का लिंग दिखाई देता था – फरहत की योनि रस से सराबोर वह लिंग कमरे की लाइट और बाहर की रौशनी से बढ़िया चमक रहा था। फरहत रूद्र के ऊपर झुकी हुई थी, जिससे रूद्र उसके स्तन पी सकें। हो भी वही रहा था – रूद्र के मुंह में उसका एक निप्पल था, और दूसरे स्तन पर उनका हाथ! मैं वही खड़े खड़े रूद्र और फरहत के संगम का अनोखा दृश्य देख रही थी।
“जानू.. जानू.. बस.. ब्ब्ब्बस्स्स.. आह! दर्द होने लगा अब... अब छोड़ अआह्ह्ह.. दो!”
‘जानू? वाह! तो बात यहाँ तक पहुँच गयी है? नीलू... तू क्या कर रही है??’
“क्या छोड़ दूं?” रूद्र ने फरहत का निप्पल छोड़ कर कहा (बेचारी का निप्पल वाकई लाल हो गया था), “चूसना, मसलना या फिर चोदना?”।
रूद्र को ऐसी भाषा में बात करते हुए सुन कर मुझे बुरा सा लगा – उनके मुंह से ऐसी भाषा वाकई शोभा नहीं देती है।
“चूसना और मसलना.. तीसरा वाला तो मैं ही कर रही हूँ.. आप तो आराम से लेटे हो!”
“ठीक है फिर.. चलो, यह शुभ काम अब मै ही करता हूँ.. अब खुश?”
कह कर रूद्र बिस्तर से उठने लगे, और साथ ही साथ फरहत को लिटाने लगे।उसके लेट जाने के बाद, रूद्र अब फरहत के होंठो को बड़े अन्तरंग तरीके से चूमने लगे। फरहत भी बढ़ चढ़ कर उनका साथ देने लगी। ऐसे ही चूमते हुए रूद्र ने अपनी एक उंगली फरहत की योनि में डाली, और उसे अन्दर बाहर करने लगे। फरहत की सिसकारियाँ मुझे साफ़ सुनाई दे रही थीं। वह आह ओह करते हुए, रूद्र के बालों को नोंच रही थी। रूद्र ने अब अपनी उंगली उसकी योनि से निकाल के उसके मुंह में डाल दी। वो मज़े ले कर अपनी ही योनि का रस चाटने लगी।
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