RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रात में खाने के बाद तक फरहत घर पर ही थी, और संभव है की देर रात अपने घर गयी हो। रात में मेरे आँख एक बार खुली थी, लेकिन मैंने उसको वहाँ नहीं देखा। सवेरे जब आँख खुली तो उसको अपने बगल बैठा पाया।
“गुड मोर्निंग!”
मैंने उसकी आँखों में देखा। वही मुस्कुराती हुई आँखें, खिला हुआ चेहरा! मैं भी मुस्कुरा उठा। बगल में सुमन भी खड़ी हुई थी.. मैंने साइड टेबल पर रखी घडी पर नज़र डाली तो देखा की सवेरे के छः बजे थे!
“गुड मोर्निंग! आप रात में घर चली गईं थीं?”
“जी..”
“अरे! इतने रात में क्यों? सेफ नहीं रहता!”
“आई नो.. लेकिन अब्बू को बताया नहीं था..”
“उनकी देखभाल कौन करता है?”
“वो कर लेते हैं.. और खाना पीना हमारे पड़ोसी पका देते हैं.. इसलिए दिक्कत नहीं होती।“
“फरहत.. ऐसे तो अगर आप रात में घर जायेंगे तो ठीक नहीं रहेगा.. आप दिन में जाइए.. लेकिन सेफ रहना ज़रूरी है..”
“हम्म..”
“इससे मुझे एक आईडिया आ रहा है.. आप अपना सामान ले कर यही क्यों नहीं आ जातीं? हमारा स्टोर-रूम एक हाफ रूम जैसा है, और खाली पड़ा हुआ है। खाने पीने की सारी व्यवस्था यहीं हो जायेगी! और सुमन भी पढाई लिखाई कर रही है.. वो कम से कम फ्री हो जायेगी।”
“आप ऐसे क्यों कहते हैं जैसे मुझे आपकी इस हालत से कोई मुश्किल है? मैं भी आपकी सेवा करना चाहती हूँ..”
“अरे नीलू.. तुम नाराज़ मत हो! तुम्हारे कारण ही तो मैं बच सका हूँ.. लेकिन तुम जानती हो न की मुझे ज्यादा ख़ुशी तब मिलेगी, जब तुम अपनी पढाई पर ज्यादा ध्यान लगाओगी! है न? और मेरा क्या? मैं तो यहाँ चौबीसों घंटे पड़ा रहूँगा! हा हा!”
“आप जल्दी से ठीक हो जाओ.. फरहत और मैं, दोनों ही आपको जल्दी से ठीक कर देंगे.. है न फरहत?”
“बिलकुल.. चलिए, मैं आपको मोर्निंग एक्टिविटीज के लिए रेडी करती हूँ..”
“मैं भी आपकी मदद करती हूँ..” सुमन ने कहा।
“नहीं नीलू.. प्लीज.. मैंने तुम्हारे सामने वो सब नहीं कर पाऊँगा.. प्लीज ट्राई टू अंडरस्टैंड!”
“जी.. ठीक है..” सुमन ने अनमने ढंग से कहा, और कमरे से बाहर निकल गयी।
फिर फरहत ने मुझे सहारा दे कर बाथरूम पहुँचाया। कल इतनी बार उसके सामने नंगा होना पड़ा था, की आज मुझे बहुत कम शर्म आ रही थी। खैर, इस स्थिति को मन ही मन ज़ब्त कर के मैंने अपनी नित्य क्रिया करी, और वापस बिस्तर पर आ लेटा। फरहत ने मेरी साफ़ सफाई कर के मुझे बिस्तर पर लिटाया। तब तक सुमन चाय और सैंडविच बना कर ले आई, जिसको हम तीनों ने साथ मिल कर खाया। उसका कॉलेज सवेरे जल्दी शुरू हो जाता था, इसलिए उसने जल्दी ही हमसे विदा ली।
इस बीच में हमारी कामवाली आ गयी, और खाना पकाने के कार्य में जुट गयी।
“रूद्र, चलिए, आपको स्पंज बाथ दे देती हूँ?”
“स्पंज बाथ?”
“हाँ.. नहायेंगे नहीं तो एक तो आपको बेड-सोर हो जाएगा, और ऊपर से बदबू आने लगेगी..” कह कर उसने अपने नाक सिकोड़ी..
“अरे.. मैं तो बस ये कह रहा था की मैं खुद ही..”
“ओह गॉड! नॉट अगेन! हमने कल ही तो इस बारे में बात करी है.. आप बिलकुल सब कुछ करियेगा, लेकिन पूरी तरह से ठीक होने के बाद.. ओके?”
फिर इधर उधर देख कर, “मैं अभी आती हूँ..”
कह कर फरहत कमरे से बाहर निकल गई.. ज़रूर रसोई में गयी होगी। क्योंकि जब वो वापस आई तो उसके हाथ में एक मुलायम तौलिया, एक साफ़ चद्दर और गुनगुने पानी से भरी एक बाल्टी थी। कामवाली एक और बाल्टी में में ठंडा पानी ले आई थी। उसके जाने के बाद फरहत ने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा बंद कर दिया और फिर मेरे कपड़े उतारने की प्रक्रिया करने लगी। मैं बुरी तरह से नर्वस था, लेकिन मैंने देखा की मेरी शर्ट उतारते समय फरहत के होंठों पर एक बहुत ही मंद मुस्कान थी, और उसकी आँखों में एक प्रसंशा भरी चमक। अगले पांच मिनट बाद, जब मैं पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया, तब उसकी बेहद मंद मुस्कान अब कुछ ज्यादा ही दिख रही थी।
“फरहत.. यू आर नॉट हेल्पिंग! आई ऍम नर्वस आलरेडी!!”
“ओह आई ऍम सॉरी! लेकिन आप नर्वस क्यों हैं?”
“अरे.. इस हालत में आपके सामने..”
“यू हैव अ नाईस मस्कुलर बॉडी! नर्वस तो.. मुझे होना चाहिए!” कह कर फरहत जोर से मुस्कुराई।
खैर, मैंने बात को आगे न खींचने का निर्णय लिया, और फरहत को उसका काम करने की छूट दे दी। वो तौलिये को भिगो कर मेरे पूरे शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ करने लगी। गर्दन, सीना, पेट और बाहें साफ़ होने के बाद उसने मुझे धीरे से करवट बदलवाई, और पीठ, कमर, पुट्ठों और जांघों को उतने ही सावधानी से स्पंज बाथ देने लगी। मैं अचानक ही उछल गया – वो मेरी रीढ़ पर बारी-बारी से गर्म और ठंडा स्पंज करने लगी थी। उसने मुझे बताया की ऐसा करने से दिल और साँस के केन्द्र उत्तेजित हो जाते हैं, यह कई तरह के रोगों के निवारण करने में मदद करता है। एक बार फिर से उसने मेरी करवट बदल कर मुझे पीठ के बल लिटाया, और एक अलग छोटे तौलिये से मेरा चेहरा और सर पोंछकर सुखाने लगी।
साधारणतः, मेरा मेरी उत्तेजना पर अच्छा नियंत्रण रहता है। लेकिन एक अरसे से किसी भी तरह की यौन क्रिया न करने के कारण, मेरा लिंग बेकाबू सा हो गया। जैसे उसमें खुद ही सोचने समझने की की शक्ति आ गयी हो। ऐसा हो ही नहीं सकता की उसको मेरा उत्तेजित लिंग न दिख रहा हो, लेकिन वो बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से मेरी सफाई कर रही थी। फरहत मगन हो कर जब मेरी सफाई कर रही थी, तब मैं उसके ही शरीर का जायजा ले रहा था – उसका कद कोई साढ़े पांच फ़ीट रहा होगा। चेहरा मोहरा तो साधारण ही था, लेकिन उसकी मुस्कान और जीवंत आँखें उसको सुन्दर बना देती थीं। उसकी यूनिफार्म तो आरामदायक थी, लेकिन फिर भी उसके स्तन और उनका आकार समझ में आ रहा था। उसने निप्पल भी खड़े हो कर यूनिफार्म के कपड़े को सामने से कुछ कुछ उभार रहे थे। उसने ज़रूर ही एक हल्का सा मेक-अप किया हुआ था.. कुल मिला कर वो सुन्दर लग रही थी।
इतने अरसे के बाद एक स्त्री का इस तरह का अन्तरंग सान्निध्य पा कर अब मेरा लिंग अपने पूरे तनाव पर पहुँच गया।
“अच्छा है ‘ये’ इस तरह से खड़ा हुआ है... सफाई करने में आसानी रहेगी!”
वो मुझे सुना रही थी, या खुद से बात कर रही थी?
उसने मेरा लिंग अपने हाथ में पकड़ा और उसकी सफाई करने लगी। उसके छूते ही मुझे एक झटका सा लगा.. वैसे यह झटका मुझे ही नहीं, उसको भी लगा। जब मेरा लिंग पूरी तरह से जीवंत होता है, तो उसका आकार, उसका घनत्व और उसकी दृढ़ता कभी कभी मुझे भी आश्चर्यचकित कर देती है। मुझे यह तो नहीं मालूम, की फरहत ने ऐसा लिंग... या फिर कोई भी लिंग कभी भी अपने हाथ में पकड़ा है या नहीं, लेकिन इतना तो तय है की उस पर असर बखूबी हो रहा था।
अभी तक इतने आत्म-विश्वास के साथ मेरी सफाई करने के बाद, उसकी भी घबराहट दिखाई देने लगी। उसने धीरे धीरे, मानो डरते हुए, मेरे लिंग को गीले तौलिये से साफ़ करना शुरू किया। मानो न मानो, मुझे उसका यह बदला हुआ रूप अब बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे अपने लिंग, और उसके बल में बहुत भरोसा था, और मुझे लगता था की उसमें एक जादुई शक्ति है। जो भी लड़कियाँ मेरे जीवन में आईं, वो उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। फरहत के हाथों का स्पर्श बड़ा ही आनंददायक साबित हो रहा था। लेकिन कुछ होता, उससे पहले ही मेरे लिंग और अण्डकोषों की सफाई हो गई, और फरहत जल्दी से तौलिया और बाल्टी उठा कर कमरे से बाहर हो गई।
आने से पहले उसने मुझे खुद को संयत करने का समुचित समय दिया। कुछ देर की निष्क्रियता के बाद ताना हुआ लिंग वापस शिथिल हो गया। फरहत कुछ देर बाद वापस कमरे में आई.. वो हमेशा की तरह मुस्कुरा नहीं रही थी.. लग रहा था की जैसे कुछ तनाव में हो। लेकिन मुझसे जैसे ही उसकी आँखें मिलीं, उसकी मुस्कान वापस आ गयी।
उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और एक आरामदायक कुर्सी पर बैठाया और चद्दर बदला। फिर मुझे वापस लिटा कर, एक नए चद्दर से ढक कर, मेरे और अपने लिए नाश्ता ले आई, और हम दोनों नाश्ता करते हुए वापस बातें करने लगे।
उसने मुझे उस दिन के बारे में बताया, जब उसको बतौर नर्स पहली नौकरी मिली थी। बंधी हुई तनख्वाह और अब्बू की मदद करने के ख़याल से ही रोमांच हो गया था उसको। कितनी खुश थी वह नौकरी पा कर! पहली बार नौकरी के लिए वो सफ़ेद यूनिफार्म पहनना, और फिर आइने के सामने खड़े होकर खुद को निहारना.. उसको आज भी याद है!
जहाँ उसको काम मिला था, वो एक नर्सिंग होम था। वहाँ पहले से काम करने वाली नर्स ने उसे धीरे-धीरे काम समझाना और सिखाना शुरू कर दिया। शुरू शुरू में वो मरीजों को इंजेक्शन देती थी, उनके चार्ट देख कर दवाई देती, आपरेशन के समय रोगियों को सम्हालती थी। वो ऑपरेशन होने पर शरीर से निकला कचरा और लोथड़े उठा कर फेंकने का भी काम करती। कई बार उस कचरे में साबूत बच्चा भी होता। सोचिए.. एक पूरा सबूत बच्चा! शुरू शुरू में इस काम में उबकाई आती, जी मचलाता और वापस काम पर आने का मन नहीं करता। लेकिन, धीरे धीरे वह इसकी आदी हो गई। अब वो सब बर्दाश्त कर लेती थी।
लेकिन उससे यह बात छुपी नहीं की यह और ऐसे कई नर्सिंग होम इस शहर का गटर थीं.. किस धड़ल्ले से यहाँ अवैध गर्भपात किया जाता है। जानते सभी हैं, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं। नर्सिंग होम में काम करने वाले सारे कर्मचारी गूंगे और अंधे बन कर रहते हैं। फरहत ने भी ऐसे ही कुछ ही महीनों में कम बोलना सीख लिया... चुप रहना सीख लिया... और चेहरे को सपाट बनाना सीख लिया था। जल्दी ही उसका मन उकता गया और उसने वह नौकरी छोड़ दी, और रोगियों के साथ रह कर उनकी देखभाल करने का काम करने लगी।
यह सब बताने के बाद उसने मेरे बारे में पूछा। मैंने उत्तर में अपने काम के बारे में उसको बताया।
उसने फिर कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछे..
“आपकी और मैडम की लव मैरिज हुई थी न?” उसने दीवार पर टंगी रश्मि की तस्वीर सीखते हुए कहा।
“हाँ.. मैंने उसको उत्तराँचल में देखा था पहली बार... लव ऐट फर्स्ट साईट!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा..
“आप उनसे बहुत प्यार करते हैं..”
रश्मि के बारे में याद आते ही उदासी छाने लगी।
“आप उदास हैं...” उसने कहा।
जब मैंने काफी देर तक कुछ नहीं कहा तो,
“आई ऍम सॉरी..”
“नहीं फरहत! डोंट से सॉरी! लेकिन.. रश्मि के जाने के बाद बहुत अकेला हो गया। न कुछ करने का मन होता, न ही जीने का.. जब एक्सीडेंट हो रहा था, तो लगा की अब इस दुःख से छुट्टी मिल जायेगी.. लेकिन.. लगता है की और जीना लिखा है किस्मत में!”
“अरे! आप ऐसे कैसे बोल रहे हैं? ज़रा सोचिये, जन्नत से मैडम आपको इस हालत में देखेंगी, तो क्या उनको अच्छा लगेगा? वो तो आपके लिए बस ख़ुशियाँ ही चाहती रही होंगी.. आपको ऐसे दुःख में देख कर उनको भी तो बहुत दुःख होगा न?”
“लेकिन फिर भी.. उसकी बहुत याद आती है..”
“याद तो आनी ही चाहिए! लेकिन उनको याद करके उदास मत होइए.. बल्कि खुश होइए.. साथ बिताये हुए ख़ुशी के मौके याद करिए.. और.. आप ऐसे ही उदास मत होइए। मैं हूँ न? मैं आपकी अच्छी दोस्त बन सकती हूँ! आप मुझसे दोस्ती करेंगे?”
“फरहत! आप पहले ही मेरी दोस्त बन चुकी हैं!” मैं मुस्कुराया।
बस.. ऐसे ही मेरे सुधार की गाडी आगे चल निकली। अस्पताल में तो समय बीतता ही नहीं था.. लेकिन यहाँ पर फरहत मेरे साथ मेरी छाया की तरह बनी रहती। लगता ही नहीं था की वो नर्स है.. बल्कि लगता की वो.. की वो.. मेरी पत्नी है! मेरी हर ज़रूरत को मुझसे भी पहले महसूस कर पूरा करने की कोशिश करती, हर लिहाज से मेरा पूरा ख़याल रखती।
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