RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मृत्यु :
बहुत भयावह होता है जब आप देखते हैं की एक निश्चित मृत्यु आपकी तरफ आ रही है, और आपके पास उससे बचने का कोई उपाय नहीं है। तीव्र गति पर अचानक ही लगाम लगाये जाने पर टायरों से उठने वाली चीख, ब्रेक्स के जलने पर उठने वाली कसैली गंध.. और इन सब का उस भयावह सच की तरफ इशारा!! मेरे अंतिम क्षण में मेरे दिमाग में बस एक ही बात आई,
‘आ ही गई मौत!’
वैसे, मृत्यु से मुझे कोई डर वर नहीं लगता.. हाँ, उससे मुझे एक तरह की खीझ सी होती है। लेकिन, रश्मि के बाद मैं जी ही कहाँ रहा था – बस जीवित था। अपने आखिरी क्षण में मुझे बस यही ख़याल आया... और चैन भी। टक्कर बेहद भीषण थी। उस झटके से मेरा हृदय रुक गया, और दिमाग में अनगिनत रुधिर वाहिकाएँ फट गई। चेतना जाते हुए आखिरी बात जो मुझे याद है वह यह है की कार की चेसी कुचलती जा रही थी, और कार की फ़र्श पर मेरा लहू! मेरे सर में एक असहनीय दर्द हुआ, और चेतना लुप्त हो गई।
अगला ख़याल जो मुझे याद है वह यह है की मैं मर गया हूँ। सचमुच मृत! ...लेकिन, फिर दिमाग पर जोर लगाया तो समझ आया की अगर मैं मर गया हूँ, तो फिर सोच कैसे सकता हूँ? सोच तो दिमाग से होती है, और दिमाग जीवित शरीर में! मतलब अभी भी जीवित हूँ!
ग्रेट!
“रूद्र... रूऊऊऊद्र..!” मैंने आवाज तो सुनी, लेकिन पहचान नहीं पाया।
कैसी आवाज़ है? अच्छी आवाज है, लेकिन जानता नहीं..। मेरे सिर में भयंकर दर्द हो रहा था। सिर में ही क्या, पूरे शरीर में! तो क्या मैं उस अतिभारित ट्रक से हुई दुर्घटना से बच गया?
“रूद्र.. बेबी.. मरना नहीं। प्लीज़..? जागते रहो। तुम मुझे सुन रहे हो? मेरे साथ रहो। चिंता मत करो। मैं हूँ यहाँ तुम्हारे साथ। मुझे सुन रहे हो? मुझसे बात करो.. प्लीज़..?”
अरे भई.. कौन हो आप? कौन है मेरे साथ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मेरे सर में जैसे जैसे वो भयंकर दर्द बढ़ रहा था, वैसे वैसे मुझे यह समझ नहीं आ रहा था की ये रूद्र कौन है, और ये औरत (हाँ.. औरत की ही आवाज़ थी) कौन है! मैंने उठने की कोशिश करी.. एक अजीब सा अनुभव हुआ – जैसे चक्कर, उलटी, और एक और भयंकर दर्द की लहर.. ये सब एक साथ! मैं फिर से अचेत हो गया।
रह रह कर रश्मि की बातें याद आतीं.. एक बार मैंने सैंडविच बनाया। और खाते हुए उसको पूछा, “तुम्हारा बनाया हुआ इतना बढ़िया लगता है! ये कैसे हो सकता है!! एक जैसी चीज़ें ही तो डालते हैं – जो तुमने यूज़ करी, वही मैंने भी.. फिर ऐसा क्यों?”
रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा, “जानू.. मैं सैंडविच में प्यार भी डालती हूँ..”
रश्मि बिलकुल ऐसी ही थी। हर चीज़ में प्यार डालती थी। उसका किया हर काम बेहतर होता था! .. यह प्यार नहीं तो और क्या है...?
यू-ट्यूब पर मैं “आगे भी जाने न तू.. पीछे भी जाने न तू..” वाला गाना सुन रहा था। रश्मि को यह गाना बहुत पसंद था। मैं भी साथ में गाने लगा.. रश्मि की याद हो आई.. गला भर गया। और आँखों से आंसू आ गए। मैं रोने लगा – इस तरह मैं कभी नहीं रोया। कम से कम एक घंटा रोने के बाद सारी ऊर्जा क्षीण हो गयी। कब सोया कुछ भी याद नहीं!
‘ब्लिप... ब्लिप... ब्लिप...’
‘ये क्या चिढ़ाने वाला शोर हो रहा है! और.. रश्मि कहाँ है? अभी तो यहीं थी...’
मैंने आँख खोलने की कोशिश करी। लेकिन बहुत ही असह्य दर्द हुआ। मृत्यु? अह्ह्ह्हहाँ! मतलब मरा तो नहीं हूँ। जैसे जैसे चेतना लौट रही थी, और मैं जाग रहा था, तो मुझे समझ आने लगा की मैं शायद अचेत था।
अचानक ही मेरा संसार निशब्दता से गुंजायमान की तरफ चल दिया। मुझे सुनाई भी दे रहा था, और सुंघाई भी दे रहा था.. लेकिन, दिखाई क्यों नहीं दे रहा है?
मैंने आँख खोलने की कोशिश करी। इस कोशिश में मेरी हर चीज़ दर्द करने लगी – सर, आँख! मेरी कराह निकल गई।
“इनको होश आ गया..” कोई चिल्लाया।
मेरी आँखें उनको खोलने में मेरा साथ ही नहीं दे रही थीं। जैसे तैसे जब वो खुलीं, तो रोशनी की एक तीखी लकीर प्रविष्ट हो गयी। मैंने तुरंत ही आँखें बंद कर लीं.. यह सोच कर, की अभी तो नहीं खोलूँगा। सोचने की कोशिश करने पर दिमाग में सब गड्ड-मड्ड हो गया.. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैंने महसूस किया की आँखें बंद होने के बावजूद मुझे मेरे इर्द गिर्द का सारा संसार धुंधला होता महसूस हो रहा था। और मैं एक बार फिर से सस्ते टंगस्टन के बल्ब के समान बेहोश हो गया।
जब मैं जागा तो काफी रौशनी हो रही थी। आँख बंद होने के बावजूद मैं रौशनी महसूस कर सकता था। मैंने काफी प्रयत्न करने के बाद अपनी आँखें खोलीं, और अपने बिना सर हिलाए, सिर्फ आँखें घुमा कर जायजा लिया। मुझे समझ आया की मैं एक कमरे में हूँ... संभवतः.. नहीं संभवतः नहीं.. निश्चित तौर पर एक अस्पताल के कमरे में। कमरे में सूर्य की रौशनी से ही उजाला हो रहा था। जीवित होने, और उसके एहसास से मुझे अच्छा लगा! कुछ क्षण के लिए मुझे अपने शरीर की विभिन्न हिस्सों से उठने वाले दर्द पर से ध्यान हट गया।
फिर अचानक ही सब याद आ गया। मेरे शरीर ने झटके खाए होंगे..
“श्श्शशह्ह्ह”
‘हँ..? कौन?’ मैंने महसूस किया की किसी ने मेरा हाथ थाम रखा है। मैंने उसी तरफ अपना सर घुमाया और कहा,
“हाय!” मेरे इतना कहने मात्र से ही वो बहुत खुश हो गई। कौन है ये? धुंधला सा दिख रहा है.. लेकिन लगता है की जान पहचान की है.. पता नहीं..! थोड़ा अपनी आँखें फोकस करीं तो उस स्त्री का चेहरा दिखा.. स्त्री नहीं.. लड़की। मेरे ज़हन में जो पहली बात आई, वो यह थी की यह लड़की बहुत थकी हुई लग रही थी.. और.. बहुत.. सुन्दर भी! सुन्दर... रश्मि जैसी!
‘रश्मि जैसी?’ ये ख़याल ज़हन में कैसे आया? जो भी हो, ख़याल तो सच था। यह लड़की वाकई सुन्दर थी.. सौम्य सुन्दर! आकर्षक! वो मुस्कुराई,
“ओह! हेल्लो!” मानों मेरी आवाज़ सुन कर उसकी जान में जान आई हो.. “आपको नहीं मालूम आपको ठीक होता देख कर मैं कितनी खुश हूँ! जब मुझे खबर मिली आपके एक्सीडेंट की तो मेरी तो जान ही निकल गयी थी.. सब को तो खो चुकी हूँ.. और आपको भी नहीं खोना चाहती.. भगवान का लाख लाख शुक्र है!”
‘आपको भी? मतलब? मतलब.. ये लड़की मुझे जानती है? लेकिन मुझे क्यों नहीं समझ आ रही है? क्यों नहीं याद आ रही है? मेरा नाम क्या है?’
“मैं... कहाँ हूँ? (इसका उत्तर तो खैर मुझे मालूम है) मेरा.. एक्सीडेंट.. कितना बुरा है? (हाँ.. यह ठीक है..) घर.. कब तक?”
“सब बताऊंगी.. लेकिन पहले डॉक्टर को बुला कर लाती हूँ...” कह कर वो लड़की लगभग भागते हुए कमरे से बाहर चली गयी।
जिस गति से वो लड़की बाहर गई थी, उसी गति से भागते हुए डॉक्टर ने भी कमरे में प्रवेश किया। आते ही उसने मेरी कलाई थाम ली (नब्ज़ लेने के लिए), और मेरे चार्ट का मुआयना किया।
“आपको कैसा लग रहा है?” उसने पूछा।
‘मुझे कैसा लग रहा है? हा! कैसा लग रहा है!! मेरी पिछली याद मरने की है साहब! मरने की.. सुना? मृत्यु! निर्जीव! शव! यह है मेरी पिछली याद.. और आप पूछ रहे हो की कैसा लग रहा है! मर के वापस लौट आया हूँ.. कितनी शिद्दत से मरने की इच्छा थी.. लेकिन अभी लग रहा है की अच्छा हुआ की वापस लौट आया! लेकिन अभी कुझे डर भी लग रहा था.. एक बार मरना कैंसिल हो जाय, तो जीने की चाह बहुत बढ़ जाती है!’
न जाने कैसे कैसे ख़याल आ रहे थे दिमाग में! मुझे खुद को नियंत्रण में रखना चाहिए.. यह सब कोई सुनना नहीं चाहता! कम से कम इतनी तो कोशिश करनी ही चाहिए की सामान्य प्रश्नों का सामान्य उत्तर तो दिया ही जाय! वैसे लगता तो है की कुछ कुछ याददाश्त चली गयी है.. खैर...!
प्रत्यक्ष में मैंने कहा, “सब दुःख रहा है! सर में दर्द है.. एक्चुअली, पूरे शरीर में ही दर्द है.. लेकिन फिर भी चलने फिरने का मन करता है। लेकिन सब कुछ स्टिफ भी लग रहा है.. ऐसे लग रहा है की सब कुछ टूट जाएगा!”
फिर कुछ रुक कर, “कुछ खाने को है? बहुत भूख लग रही है.. और पानी भी चाहिए.. मैं तो कम से कम एक लीटर पानी पी सकता हूँ अभी!”
मेरी बात पर डॉक्टर हंसने लगा, और वो लड़की (कौन है भई?) राहत की सांस भरती है, “... अब मुझे पक्का यकीन है की आप बिलकुल ठीक हो जायेंगे!” उसकी हंसी में खिलखिलाहट और संतोष का मिला-जुला भाव आ रहा था.. और यह भाव बेहद मनमोहक था।
डॉक्टर ने मुझसे एक दो सवाल पूछे जैसे की मैं किस शहर में हूँ, क्या समय है.. बेहद सामान्य प्रश्न यह जानने के लिए की मेरा दिमाग तो ठीक ठाक चल रहा है.. दिन के सवाल पर मैं उत्तर नहीं दे सका.. उसने पूछा की अंतिम कौन सा दिन याद है.. तो मैंने दुर्घटना वाला दिन बता दिया। उसने संतोषप्रद तरीके से सर हिलाया। फिर काफी देर तक वो मुझे बताता रहा की मैं कितना भाग्यशाली हूँ, और यह कितना अविश्वसनीय है की ऐसी दुर्घटना हो जाने पर, जब मुझे ऐसी भयंकर चोटें आने पर भी मैं बहुत जल्दी रिकवर कर रहा हूँ।
“सच कहता हूँ..” उसने कहा, “आप ऑपरेशन टेबल पर.. यू वोंट बिलीव मी, .. मर गए थे!”
‘क्या सच में! इंटरेस्टिंग!’
उसने कहना जारी रखा, “लेकिन एक मिनट बाद जब आपकी धड़कन वापस चलने लगी तो वो तो मुझे बिलकुल करिश्मा ही लगा! मैंने और मेरे साथियों ने ऐसा कमाल होते कभी नहीं देखा!”
मैं मुस्कुराया।
“नहीं.. आप मजाक मत समझना इसको! यह वाकई अनयूसुअल है! आपके सर पर सबसे ज्यादा चोटें आईं थीं.. हमने उम्मीद छोड़ दी। फिर जब आपके दिल ने धड़कना बंद कर दिया तो हम समझ गए की आब क्या कर सकते हैं.. लेकिन फिर.. करिश्मा नहीं तो और क्या है! लेकिन आपकी पत्नी ने आपका साथ नहीं छोड़ा..”
‘मेरी पत्नी? ... रश्मि! कहाँ हो तुम?’
“.. यहाँ नर्सें कह रही हैं की वो आपको वापस ले आईं.. जैसे सावित्री ले आईं थीं सत्यवान को! हो सकता हो की यह सच भी हो!”
‘सावित्री? रश्मि!!’
“आप भले मेरी बात को मज़ाक मानिए, लेकिन मैंने यह सब कहना अपना फ़र्ज़ समझा.. आगे इनका खूब ख़याल रखिएगा.. यू शुडन्ट भी अलाइव!”
“डॉक्टर.. एक मिनट..” ये लड़की कह रही थी, “मैं इनकी पत्नी नहीं.. साली हूँ....” उसने धीरे से कहा।
‘साली? मेरी साली?’ मेरे दिमाग में घूर्णन शुरू हो गया, ‘मतलब... नी...ल..म?’
“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा की आप इनकी बीवी हैं.. ऐसी चिंता, ऐसी सेवा तो आज कल बीवियां भी नहीं करतीं।”
“इट इस ओके!” सुमन ने धीरे से कहा।
“नीलू?” मैंने कमज़ोर आवाज़ में उसको पुकारा। दिल के सारे ज़ख्म हरे हो गए। मेरी प्यारी बीवी नहीं है.. वो तो कब की मुझे छोड़ कर चल दी है.. आँखों से आंसू ढलक गए।
“जी?” उसने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा।
“थैंक यू!”
सुमन मेरे हाथ को अपने दोनों हाथों में थाम कर अपने आंसुओं से भिगोने लगी।
सुमन का परिप्रेक्ष्य
मेरी आँखों के सामने एक एक कर मेरी माँ, मेरे पिता, और फिर मेरी प्यारी बहन – जिसका दर्जा बहन से भी ऊपर था – और उसकी संतान कष्टप्रद मृत्यु को प्राप्त हो गए। बहुत से ज्ञानियों को अक्सर यह कहते सुना है की यदि किसी के साथ कुछ बुरा होता है तो उसके द्वारा किये गए पापों के कारण होता है। मैंने बहुत बार सोचा की इन लोगों ने किसका और क्या बुरा किया था, जो इनको इस प्रकार की मृत्यु मिली! माँ ने अपनी तरफ से पूजा पाठ, धार्मिक और सामाजिक कार्यों में कभी भी किसी भी प्रकार की कोर कसर नहीं रखी। पिता जी ने भी सदा ही अपनी मेहनत और इमानदारी का ही खाया, न कभी किसी के साथ बुरा किया और न कभी किसी का बुरा सोचा। और तो और, जितना उनका बस चला औरों की मदद ही की। और माँ उनके सभी कामों में बराबर की संगिनी बन कर चलीं। तो उनको इस प्रकार मृत्यु? यह किस तरह ठीक है? और दीदी! उसने तो अभी अपने जीवन में देखा ही क्या था? उसकी तो हंसती खेलती ज़िन्दगी तो बस शुरू ही हुई थी। उसके जैसी दयावान लड़की मैंने कभी नहीं देखी.. लोग क्या, वो तो पंछियों और जानवरों के लिए भी अच्छा और भला सोचती थी। और उस अजन्मे बच्चे का क्या, जो अपनी माँ के साथ ही तड़पता चल बसा?
और सोचती हूँ, तो लगता है की दरअसल यह उन तीनों को सजा नहीं, हम दोनों को सजा थी। मेरे पापों के बदले मेरे हृदय में त्रिशूल भोंक दिया गया और रूद्र के हृदय में एक दो-धारी तलवार! हाँ! यही तर्क उचित है.. हमने ज़रूर कुछ ऐसा किया है जिसके कारण भगवान ने हमसे हमारे सबसे प्रिय लोग छीन लिए। और दंड स्वरुप हम दोनों को उनका चिर-वियोग सहन करना लिख दिया। खैर, इस दुर्घटना को चाहे किसी भी दृष्टि से देखा जाय, सच तो यह है की मेरे हृदय में एक बड़ा सा हिस्सा अब खाली हो गया है, और लगता है की जैसे मेरे सीने पर एक भारी सिल रख दिया गया हो। यह भी सच है की उम्र भर, इन तीनों के वियोग की पीड़ा नहीं जाने वाली!
कभी कभी मन में एक ग्रंथि सी बनती लगती है.. सोचती हूँ की हो न हो, रूद्र यह यह बात तो ज़रूर सोचते होंगे की अगर उनकी रश्मि की जगह अगर मैं होती तो? अगर मैं मर जाती, तो आज उनके पास कम से कम उनका परिवार तो होता। मुझे पक्का यकीन है की जब भी वो मुझे देखते होंगे, तो उनको यह विचार तो ज़रूर आता होगा। उस दिन जिस तरह से वो उस मामूली बात से मुझ पर गुस्सा हुए थे, उससे मुझे सौ प्रतिशत यकीन हो गया है की वो मुझसे नफरत करते हैं। लेकिन उनका दिल अच्छा है, इसलिए मुझे बेघर होने, और दर-दर की ठोंकरें खाने से बचाने के लिए अपने घर में पनाह दी। और पनाह ही क्या, मेरी पढाई, लिखाई, खाने, पीने, रहने और हर खर्चे का इंतज़ाम भी किया। बस, कभी मुझसे खुल कर बात नहीं कर सके।
नई जगह, नया कॉलेज.. इन सबके कारण इस झंझावात को सहने की हिम्मत मिली। सहारा – मेरा मतलब, भावनात्मक सहारे से है – तो कोई था नहीं। तो कभी अनवरत अश्रु-धाराओं, तो कभी प्रिंसिपल महोदय के परामर्श और उत्साहवर्धन, तो कभी बस रूद्र के आभासी सान्निध्य को ही अपना अवलंब (सहारा) बना लिया। पड़ोसी श्रीमति देवरामनी ने भी कोशिश करी, लेकिन उनकी बात ही समझ नहीं आती.. और अब तो पड़ोस भी खाली है!
वैसे भी मुझे पड़ोसियों से किसी प्रकार के सहारे, और मदद की कोई उम्मीद नहीं है। शुरू शुरू में सभी ने (ख़ास तौर पर पड़ोस की महिलाओं ने) हमारे दुःख में मगरमच्छी आंसू बहाए, लेकिन तीन चार महीने के बाद ही मुझे ऐसे देखने लगे जैसे किसी तरह से मैं इस दुर्घटना के लिए उत्तरदाई हूँ! जैसे मैंने रूद्र का घर उजाड़ा हो! जैसे, रश्मि के जाने के बाद उनमे से किसी का चांस था, लेकिन मैं उस चांस का सूपड़ा साफ़ कर रही हूँ रूद्र पर डोरे डाल कर! यह सब सोच सोच कर दिल और गला भर आता है.. लेकिन यह सब बातें किससे कहूँ? सहेलियों को कितनी बातें बताई जा सकती हैं? हम दो जने एक छत के नीचे रहते हैं, लेकिन मानो बस दो अजनबी हों!
धीरे धीरे अपने गम का इलाज मैं स्वयं ही होती गई। बात तो सच है, की अगर मन में दृढ़ता न बढ़े, तो जीवन मुश्किल हो जाए.. इसलिए मैंने इस अनुभव को जीवन की लम्बी पाठशाला का एक और पाठ समझ कर खुद में समाविष्ट कर लिया। समय के साथ धीरे धीरे मेरा दुःख कम होता गया, और मैं भविष्य के लिए आशान्वित होने लगी। उधर रूद्र अभी तक अपनी इस हानि से उबर नहीं सके हैं.. मैंने अक्सर उनको रात में रोते हुए सुना है। लेकिन उनके कमरे में जाने की मेरी हिम्मत नहीं होती..! कैसे इस शानदार, आकर्षक पुरुष कान्तिविहीन हो जाता है, उसका उदाहरण था रूद्र का क्षय! उनका चेहरा दुःख से खुरदुरा हो गया था; बाल पकने लग गए थे; नींद, आराम और मनःशांति की कमी के कारण वो महज एक वर्ष में ही बूढ़े से लगने लग गए थे। वैसे भी रूद्र ने अपने गम से निबटने का रास्ता ढूंढ लिया है। वो काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहते हैं। हर व्यक्ति का अपने अपने दुखों से निबटने का अपना अपना तरीका है.. और मुझे नहीं लगता की वो अपनी से बहुत कम उम्र की लड़की से इस विषय में कोई चर्चा करना चाहते हैं। तो अगर, वो ठीक हैं, तो मैं कुछ भी नहीं कहूँगी। मेरे लिए बस इतना ही काफी है!
इसी बीच मुझे एक तरह का आत्म उद्भेद (self discovery) हुआ।
पिछले कुछ महीनों के तनाव, अवसाद और व्यस्त ता के कारण शरीर में बहुत थकावट सी हो गयी थी। उस दिन जब मैं कॉलेज से बाहर निकली तो आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे। काफी अँधेरा हो गया था। रूद्र बैंगलोर से बाहर गए हुए थे, और मैं घर में बिलकुल अकेली थी। बारिश का अंदेशा तो था ही.. मंद मंद ठंडी हवा बह रही थी। सप्ताहांत होने के कारण वैसे भी कुछ राहत सी लग रही थी। बिल्डिंग पहुँच कर मैं लिफ्ट के बजाय सीढ़ी चढ़ कर घर पहुंची। रूद्र तो आज आने ही वाले नहीं हैं... दो दिन खुद से! हम्म्म... दीदी होती तो हम दोनों शौपिंग करने जाते। यह सोच कर कुछ दुःख तो हुआ, लेकिन मैंने जल्दी ही उस पर काबू कर लिया।
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