Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:18 AM,
#74
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि ने एक कामुक किलकारी भरी, “उईई माँ! आप तो पूरा अन्दर तक घुस गए! आह्ह्ह!” 

इस कथन में किसी भी तरह की शिकायत, या दर्द जैसा कुछ नहीं था, इसलिए मैंने इसको सम्भोग आरम्भ करने की अनुमति के रूप में लिया, और उसकी सूजी हुई योनि की कुटाई आरंभ कर दी। रश्मि ने मेरे लिंग के घर्षण के साथ ही अपना आनंद भरा विलाप करना आरम्भ कर दिया। उधर मैंने पीछे से ही उसके स्तनों को दबाना, मसलना चालू कर दिया, और आराम से धक्के लगाने लगा। पीछे से सम्भोग करने से नितम्बों की पूरी संरचना स्पष्ट दिखाई देती है.. कमाल की बात यह है की इतने सारे आसन और पोजीशन ट्राई करने के बाद भी यह वाला बचा रह गया! रश्मि के नितम्ब! मैंने उंगली से उसकी गुदा को छुआ और फिर उसके छेद पर अपनी अंगुली फिराने लगा। कुछ प्रतिक्रिया न देखने पर मैंने धीरे से अपनी उंगली अंदर डाली। रश्मि चिहुंक गई, “ओउईई! म्म्मत क्क़करो..” 

मैं रुक गया और कुछ और जोर से धक्के लगाने लगा। पहले स्खलन के बाद मेरा स्टैमिना काफी बढ़ गया था। इस नए काम युद्ध को करते हुए कोई दस-बारह मिनट के ऊपर तो हो ही गए होंगे। और अब मुझे भी लग रहा था की मंजिल निकट ही है। इस बीच में रश्मि एक बार निवृत्त हो चुकी थी। मैं अब ज़ोर का धक्का लगाने लगा – रश्मि भी अपनी तरफ से अपने नितम्ब आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही देर में मेरे अन्दर का लावा फ़ूट पड़ा। स्खलन के उन्माद में मैंने अपनी कमर को कस कर रश्मि के नितम्बो से पूरी तरह चिपका लिया। 
सम्भोग का नशा उतरा तो याद आया की सुमन भी घर पर होगी! लेकिन रश्मि ने बताया की वो अभी बाहर गयी हुई है किसी काम से। मैंने राहत की साँस ली – कमाल है! सोचा भी नहीं की घर में हमारे अलावा एक और प्राणी रहता है। आगे से सजग रहना होगा।

यात्रा वाले दिन: 

रश्मि : “जानू, आप भी साथ आते तो मज़ा आता।“ 

सुमन : “हाँ जीजू! आप भी न.. मौके पर धोखा देते हैं!”

मैं : “मौके पर धोखा! हा हा हा!”

सुमन : “और क्या! अब बताइए.. ये सारा लगेज हम दो बेचारी लड़कियों को खुद ही ढोना पड़ेगा..”

मैं : “अच्छा जी.. तो मैं तुम दोनों का कुली हूँ?”

सुमन : “नहीं नहीं.. आप तो मेरी दीदी के ‘जाआआनू’ हैं.. (सुमन ने मुझे चिढ़ाया) और मेरे प्याआआरे जीजू! लेकिन.. सामान उठाने वाला भी तो कोई चाहिए! ही ही ही!!!”

मैं : “देख रही हो जानेमन.. इस लड़की को सामान उठाने वाला चाहिए.. लगता है की इसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर देना चाहिए..”

सुमन : “धत्त जीजू! आपके होते हुए मुझे कोई और क्यों चाहिए?” उफ्फ्फ़! इस लड़की से जीतना मुश्किल है!

मैं (सुमन की बात को नज़रंदाज़ करते हुए): “क्या बताऊँ जानू.. मेरा भी तो कितना मन है आपके साथ आने का! लेकिन यह मीटिंग्स! ये तो अच्छा है की मेरा काम दिल्ली में है.. बस, काम जल्दी से निबटा कर तुरंत आ जाऊँगा। बस यही तीन चार दिन की ही तो बात है... आप लोग एक दो दिन एक्स्ट्रा रह लेना वहाँ.. या एक दो दिन बाद चली जाना। मैं वहीँ सबको मिलूंगा! ओके?“

रश्मि मुस्कुराई, और फिर मेरे पास आ कर दबी आवाज़ में बोली, “वो तो ठीक है.. लेकिन, ये दूध कौन पिएगा?”

सुमन : “हाँ हाँ.. सुनाई दे रहा है मुझे!” सुमन अँधेरे में तीर मार रही थी।

मैं : “क्या सुन रही है तू?”

सुमन : “आप दोनों मेरे खिलाफ कोई साजिश कर रहे हैं..” 

रश्मि : “तेरे कॉलेज में कहूँगी की रोज़ तेरे कान उमेठें जाएँ.. सारी चबड़ चबड़ निकल जायेगी!”

सुमन : “ठीक है! ठीक है! कर लो आप दोनों पर्सनल बातें! मैं क्यूँ कबाब में हड्डी बनूँ?” कहते हुए सुमन कमरे से बाहर निकल गयी।

मैं (मुस्कुराते हुए) : “इसको सम्हाल कर रखिएगा... मैं इत्मीनान से पियूँगा, जब आपसे मिलूंगा!”

रश्मि (खिलवाड़ करते हुए), “गन्दा बच्चा...!” और फिर अचानक गंभीर हो कर, “... जानू.. आपके बिना मेरा मन कहीं नहीं लगता! आप रहते हैं तो ज़िन्दगी में मज़ा रहता है!”

मैं : “क्या जानू.. बस तीन चार ही दिनों की तो बात है! मैं आ जाऊँगा! .. और फिर, मुझे ये डेयरी भी तो खाली करनी है! न्यूट्रीशन!! हेह हेह!”

रश्मि : “मेरा तो बस यही मन रहता है की इनमें लबालब दूध भरा रहे.. जिससे मैं आपको जब मन करे, दूध पिला सकूं!”

केदारनाथ की चढ़ाई काफी कठिन है। करीब सात हज़ार फुट की चढ़ाई चढ़ कर केदारनाथ मन्दिर तक पहुंचते हैं। केदारनाथ जाने की प्रबल इच्छा क्यों थी इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे वैसे तो किसी तीर्थ पर जाने में कोई ख़ास रुचि नहीं है। लेकिन, इन लोगो की आस्था, और उनके परिवार की एक प्रकार की परम्परा के कारण मैंने कोई विरोध नहीं किया। वैसे भी रश्मि की डॉक्टर ने बताया था की इस यात्रा में कोई दिक्कत नहीं है, अगर बस कुछ ख़ास सावधानियाँ बरती जाएँ! मैंने यह सख्त निर्देश दिए थे, की रश्मि को चढ़ाई चढ़ने न दिया जाय – पालकी कर ली जाय, जिससे आसानी रहेगी। यह भी निर्देश दिया की रश्मि लगातार मुझसे बात करती रहे, जिससे मुझे वहाँ की परिस्थिति का मालूम होता रहे। इस पर रश्मि ने कहा की वो दिन में पांच छः बार मुझसे फ़ोन पर बात ज़रूर करेगी। 

दोनों लड़कियों को मैंने बैंगलोर विमानपत्तन तक छोड़ा, और वापस काम पर चला गया। दो दिन बाद मुझे दिल्ली के लिए निकलना था, और वहाँ चार ज़रूरी मीटिंग्स कर के देहरादून, और वहाँ से केदारनाथ की यात्रा करनी थी। रश्मि, सुमन के जाने के बाद घर खाली खाली सा लगने लगा तो मेरा ज्यादातर समय ऑफिस में ही बीत रहा था। रश्मि मुझे हर समय फ़ोन या एस ऍम एस पर अपनी जानकारी देती रहती। दिल्ली में मीटिंग्स वगैरह करते हुए मुझे रश्मि ने बताया की केदार घाटी में काफी बारिश हो रही है। मैंने उसको सावधानी बरतने को कहा, और जल्दी मिलने का वायदा करके फोन काट दिया। देहरादून के लिए अगले दिन सवेरे की फ्लाइट थी।

रात में सोने से पहले मैंने रश्मि का नंबर लगाने की कोशिश करी – कई बार कोशिश किया, लेकिन नम्बर नहीं मिला। फिर उसके पापा और होटल का भी नंबर लगाया.. कहीं भी फ़ोन नहीं लग रहा था। निराश हो कर मैं सोने चला गया – रात भर ठीक से नींद नहीं आई। अजीब अजीब सपने आते रहे, और सवेरे उठने के बाद बुरे बुरे ख़याल आते रहे। उठते ही मैंने फिर से फ़ोन लगाने की कोशिश करी, लेकिन अभी भी फ़ोन नहीं लग रहा था। ऐसे ही बुरे मूड में मैं दिल्ली विमानपत्तन पहुंचा और वहाँ जा कर मालूम हुआ की केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई हुई है। मेरे पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन ही खिसक गई – पेट में जैसे गाँठ पड़ गयी! मन अज्ञात आशंकाओं से घिर गया। 

मन में अनजाने डर, और ह्रदय में ढेर सारी प्रार्थनाएँ लिए पूरी यात्रा बीती। लेकिन देहरादून विमानपत्तन पर पहुँचते ही सारे के सारे डर हकीकत में बदल गए। वहाँ मैंने टैक्सी करने की कोशिश करी, तो लोगों ने बताया की केदारनाथ में किसी भी ड्राईवर से उनका संपर्क नहीं हो पा रहा है। पूछने पर उसने आगे जाने से मना कर दिया, यह कह कर की ले तो जा सकता है, लेकिन सड़क की क्या हाल है, और बारिश में न जाने क्या क्या हो सकता है कुछ नहीं मालूम! आज का दिन यूँ ही निकल गया – एक एक मिनट.. एक एक पल ऐसा लग रहा है जैसे की एक एक सदी बीत रही हो! बॉस का भी दिन में कई बार कॉल आ चूका – वो रश्मि के बारे में पूछते हैं! मैं क्या जवाब दूं! एक बार तो मेरी आंखों में आंसू छलक पड़े! मेरी चुप्पी और खामोश रुदन उन्होंने शायद सुन लिया हो! फ़ोन पर मुझे धाड़स बंधाते हुए उन्होंने कहा की उम्मीद मत छोड़ना, और मेरी हर तरह से मदद करने का आश्वासन किया। मुझे इतना तो मालूम पड़ गया की उन्होंने उत्तराखंड आपदा कंट्रोल रूम और अधिकारियों से संपर्क करने की हर संभव कोशिश की है। 

एक दिन।

दो दिन।

तीन दिन।

चार दिन।

हर एक दिन गुजरने के बाद मुझे मेरे परिवार के लौटने की आशा भी धूमिल होती नजर आ रही थी। एक एक पल इंतजार की करना मुश्किल होता जा रहा था। न तो भोजन का कोई कौर गले के अन्दर जा पाता, और न ही हलक से पानी की एक बूँद! न जाने उन लोगों ने कुछ खाया पिया होगा या नहीं, बस यही सोच कर कुछ खाने पीने की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी। 

ज्यादातर टैक्सी वाले अब मुझे पहचानने लग गए। मुझे देखते ही वह कहते हैं, “साहब, ऊपर के इलाकों में सड़कें ख़त्म हो चुकी हैं... और गाँव के गाँव साफ़ हो गए हैं। हमारे किसी भी साथी की कोई खोज खबर नहीं है। अब तो बस भगवान्, और सेना का ही सहारा है। आप बस प्रार्थना करिए की आपका परिवार सही सलामत आपको मिल जाय।“

रात में होटल वाले ने जबरदस्ती एक रोटी मुझे खिला दी। दिन भर आपदा कार्यालय के चक्कर लगाता, फ़ोन की घंटी बजने का इत्नाजार करता, और समाचार में मृतकों की बढ़ती हुई संख्या देख कर मन ही मन मनाता की मेरा कोई अपना न हो! इतनी बेबसी मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं महसूस करी। इतनी बेबसी, और इतनी खुदगर्जी! 

इस आपदा में हुई और हो रही जान-माल की क्षति का आंकड़ा विकराल रूप से बढ़ता ही जा रहा है! मन में बस अब एक ही ख़याल आता है की अब बस! अब ये गिनती ख़त्म करो भगवान्! इतने दिन हो गए, और किसी से कोई संपर्क ही नहीं हो पाया है!

'काश! ये लोग ठीक हों! ओह रश्मि! प्लीज प्लीज! काश! तुम ज़िंदा हो..!'

छठा दिन:

राहत और बचाव कार्य बाधित हो रहा है, क्योंकि घाटी में फिर से तेज बारिश हो रही है, और धुंध छाई हुई है। सेना के हेलिकॉप्टर उड़ान ही नहीं भर पा रहे हैं! खबर आई थी की एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया! बचने गए वीर युवक, खुद ही पहाड़ों की भेंट चढ़ गए! एक अफसर से बात हुई, उन्होंने मुझे साफगोई से कह दिया, 

“साहब, यह तो एक तरह से 'रेस अगेन्स्ट टाइम' है... मौसम खराब है, हर तरह के जोखिम हैं और अब तो महामारी का खतरा भी पैदा हो गया है... लोग अब बीमारी और भूख–प्यास से मर रहे हैं! कितनी मौतें हुईं, कितने लापता हुए और कितने लोग सुरक्षित निकाले गए - इस पर अब कोई भी बात बेमानी लग रही है, क्योंकि यहाँ कोई समन्वय नज़र नहीं आ रहा है, और न ही कोई एक सूची है। सच्चाई यह भी है कि खुद प्रशासन का कितना नुकसान हुआ है, इसका अंदाजा ठीक-ठीक अभी उन्हें भी नहीं है। इसके शिकार हुए लोगों का पता लगाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन गयी है। हज़ारों की तादाद में लोग मदद की आस लगाए बैठे हैं। आप भी उम्मीद न छोडिए.. कुछ भी हो सकता है!” 

सातवाँ दिन: 

अब तो कोई उम्मीद ही नहीं बची है.. बस यंत्रवत रोज़ रोज़ राहत शिविर के दफ्तर पहुँच जाता हूँ। वहाँ लोगों से कई बार प्रार्थना भी करी है की मुझे भी सेवा का अवसर दें.. लेकिन वहाँ किसी के पास समय नहीं है। कई सारे लोग बचाए भी जा चुके हैं, लेकिन इन लोगों का कोई नामोनिशान ही नहीं है! 

‘अरे! फ़ोन बज रहा है..’

कोई अनजाना नंबर था। स्थानीय! दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगा।

“हेल्लो?” मैंने बहुत उम्मीद से बोला।

“जीजू..?” यह तो सुमन की आवाज़ थी।

“सुमन?” 

“जीजू... हू हू हू..” वो बेचारी रोने लगी! 

‘हे भगवान्!’

“नीलू.. तुम ठीक तो हो न?”

“जीजू.. प्लीज आप मुझे ले चलो.. हू हू हू..” रोते हुए उसकी हिचकियाँ बांध गईं।

“हाँ नीलू.. बताओ कहाँ हो? बाकी लोग कैसे हैं?”

उत्तर में सुमन सिर्फ रोती रही। 

“साहब, आप फलां फलां जगह पहुँच जाइए.. एक्सट्रैक्शन वही हो रहा है..”

“जी हाँ.. जी.. ठीक है.. मैं आ रहा हूँ..” 

“ओह भगवान्! तेरा लाख लाख शुक्र है!” 

कह कर मैं बिलख बिलख कर रोने लगा। कोई देखे या नहीं.. मुझे कोई परवाह नहीं! जब सब उम्मीदें छूट गईं, तब देखिए! कैसे खुशखबरी आई! कोई तीन घंटे की मशक्कत के बाद मैं राहत शिविर / एक्सट्रैक्शन कैंप में पहुंचा। वहाँ की हालत तो और भी दयनीय थी। बचाए गए सभी लोगों की आँखों में राहत और आस की नमी थी। साफ़ दिख रहा था की वो सभी बेहद भूखे और बेबस थे, और अब उनके अन्दर किसी भी तरह की शक्ति नहीं बची हुई थी। वाजिब भी है - इन लोगों को एक हफ्ता हो गया, कुछ भी खाने को नहीं मिला था.. और पीने के लिए भी सिर्फ गन्दा पानी ही नसीब हुआ होगा। ज़मीन पर एक व्यक्ति लेटा हुआ था... उसकी हालत देखकर मुझे नहीं लगा की उसके बचने की कोई उम्मीद होगी। सभी के कपड़े फटे हुए और मैले-कुचैले हो गए थे... या तो वो खड़े थे, या फिर लेटे हुए थे। 

एक वृद्ध मुझे देखते ही बोला, “हे बबुआ, हम हाथ जोड़ित है.. हमका हियाँ से ले चला।” 

बेचारे को लगा होगा की मैं उसका पुत्र या कोई सगा सम्बन्धी हूँगा! एक तरफ कुछ लोग उल्टियाँ कर रहे थे। 

‘ये लोग दिख क्यूँ नहीं रहे हैं?’ अचानक मेरी नज़र एक तरफ ज़मीन पर लेटी हुई लड़की पर पड़ी.. ‘सुमन!’

“सुमन?” ‘हे भगवान्! क्या हालत हो गयी है इसकी! इतनी प्यारी बच्ची.. और ये दशा?’ उसके कपड़े बुरी तरह से फटे हुए थे। बुरी तरह से मैली कुचैली, ज़ख़्मी, बेदम!

“जीजू? ओह जीजू!” कहते हुए वो मुझसे लिपट गयी। 

“तुम ठीक तो हो नीलू?”

उसने सर हिला कर हामी भरी। 

“बाकी लोग कहाँ हैं?”
Reply


Messages In This Thread
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - by sexstories - 12-17-2018, 02:18 AM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,548,912 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 549,767 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,252,609 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 947,157 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,681,993 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,104,095 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,991,005 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,187,285 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,080,649 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 289,526 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)