RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैं सिर्फ मुस्कुराया। इतनी देर तक यह सब क्रियाएँ करने के कारण, मेरा लिंग अपने अधिकतम फैलाव और उत्थान पर था। मुझे मालूम था की बस दो तीन मिनट की ही बात है.. मैं बिस्तर से उठा और रश्मि को उसके नितम्ब पकड़ कर बिस्तर के सिरे की ओर खिसकाया। कुछ इस तरह जिससे उसके पैर घुटने के नीचे से लटक रहे हों, और योनि बिस्तर के किनारे के ऊपर रहे, और ऊपर का पूरा शरीर बिस्तर पर चित लेटा रहे। मैं रश्मि को घुटने के बल खड़ा हो कर भोगने वाला था। यह एक सुरक्षित आसन था – रश्मि के पेट पर मेरा रत्ती भर भार भी नहीं पड़ता।
सामने घुटने के बल बैठ कर, मैंने रश्मि की टांगों को मेरी कमर के गिर्द घेर लिया और एक जांघ को कस कर पकड़ लिया। दूसरे हाथ से मैंने अपने लिंग को रश्मि की योनि-द्वार पर टिकाया और धीरे धीरे अन्दर तक घुसा दिया। लिंग इतना उत्तेजित था की वो रश्मि की योनि में ऐसे घुस गया जैसे की मक्खन में गरम छुरी! इस समय हम दोनों के जघन क्षेत्र आपस में चिपक गए थे – मतलब मेरे लिंग की पूरी लम्बाई इस समय रश्मि के अन्दर थी। जैसे तलवार के लिए सबसे सुरक्षित स्थान उसका म्यान होती है, ठीक उसी तरह एक उत्तेजित लिंग के लिए सबसे सुरक्षित स्थान एक उतनी ही उत्तेजित योनि होती है – उतनी ही उत्तेजित... गरम गीलापन और फिसलन लिए! काफी देर से उत्तेजित मेरे लिंग को जब रश्मि की योनि ने प्यार से जकड़ा तो मुझे, और मेरे लिंग को को बहुत सकून मिला। हम दोनों प्रेमालिंगन में बांध गए।
इस अवस्था में मुझे बदमाशी सूझी।
मैंने रश्मि के पेट पर हाथ फिराते हुए कहा, “मेरे बच्चे, मैं आपका पापा बोल रहा हूँ! आपकी मम्मी और मैं, आपको खूब प्यार करते हैं... मैं आपकी मम्मी को भी खूब प्यार करता हूँ... उसी प्यार के कारण आप बन रहे हो!”
रश्मि मेरी बातों पर मुस्कुरा रही थी.. मैंने कहना जारी रखा, “जब आप मम्मी के अन्दर से बाहर आ जाओगे, तो हम ठीक से शेक-हैण्ड करेंगे... फिलहाल मैं आपको अपने लिंग से छू रहा हूँ.. इसे पहचान लो.. जब तक आप बाहर नहीं आओगे तब तक आपका अपने पापा का यही परिचय है..”
रश्मि ने प्यार से मेरे हाथ पर एक चपत लगाई, “बोला न, आप चुप-चाप अपना काम करिए!”
“देखा बच्चे.. आपकी माँ मेरा लंड लेने के लिए कितना ललायित रहती है?”
“चुप बेशरम..”
मैंने ज्यादा छेड़ छाड़ न करते हुए सीधा मुद्दे पर आने की सोची – मैं सम्हाल कर धीरे धीरे रश्मि को भोग रहा था। हलके झटके, नया आसन, और रश्मि की नई अवस्था! रह रह कर चूमते हुए मैं रश्मि के साथ सम्भोग कर रहा था। रश्मि ने इससे कहीं अधिक प्रबल सम्भोग किया है, लेकिन इस मृदुल और सौम्य सम्भोग पर भी वो सुख भरी सिस्कारियां ले रही थी... कमाल है! वो हर झटके पर सिस्कारियां या आहें भर रही थी!
‘अच्छा है! मुझे बहुत कुछ नया नहीं सोचना पड़ेगा!’
मैंने नीचे से लिंग की क्रिया के साथ साथ, रश्मि के मुख, गालों, और गर्दन पर चुम्बन, चूषण और कतरन जारी रखी। और हाथों से उसके मांसल स्तनों का मर्दन भी! चौतरफा हमला! अभी केवल तीन चार मिनट ही हुए थे, और जैसे मैंने सोचा था, मैं रश्मि के अन्दर ही स्खलित हो गया। कोई उल्लेखनीय तरीके से मैंने आज सम्भोग नहीं किया था, लेकिन आज मुझे बहुत ही सुखद अहसास हुआ! रश्मि ने मुझे अपने आलिंगन में कैद कर लिया... और मैंने उसे अपनी बाँहों में कस कर भींच लिया।
“जानू हमरे...” कुछ देर सुस्ताने के बाद रश्मि ने कहा, “... आज वाला.. द बेस्ट था..” और कह कर उसने मुझे होंठों पर चूम लिया।
मैंने उसको छेड़ा, “आज वाला क्या?”
“यही..”
“यही क्या?”
“से...क्स...”
“नहीं.. हिन्दी में कहो?”
“चलो हटो जी.. आपको तो हमेशा मजाक सूझता है..” रश्मि शरमाई।
“मज़ाक! अरे वाह! ये तो वही बात हुई.. गुड़ खाए, और गुलगुले से परहेज़! चलो बताओ.. हमने अभी क्या किया?”
“प्लीज़ जानू...”
“अरे बोल न..”
“आप नहीं मानोगे?”
“बिलकुल नहीं...”
“ठीक है बाबा... चुदाई.. बस! अब खुश?”
“हाँ..! लेकिन... अब पूरा बोलो...”
“जानू मेरे, आज की चुदाई ‘द बेस्ट’ थी!”
“वैरी गुड! आई ऍम सो हैप्पी!”
“मालूम था.. हमारा बच्चा अगर बिगड़ा न.. तो आपकी जिम्मेदारी है। ... और अगर इससे आपका पेट भर गया हो तो खाना खा लें?“
सुमन इस घटना के एक सप्ताह बाद बैंगलोर आई। अकेले नहीं आई थी, साथ में मेरे सास और ससुर भी थे। एक बड़ी ही लम्बी चौड़ी रेल यात्रा करी थी उन लोगों ने! सुमन के लिए तो एकदम अनोखा अनुभव था! खैर, गनीमत यह थी की उनकी ट्रेन सवेरे ही आ गई, और छुट्टी के दिन आई, इसलिए उनको वहाँ से आगे कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा! रेलवे स्टेशन पर मैं ही गया था सभी को रिसीव करने... रश्मि घर पर ही रह कर नाश्ता बनाने का काम कर रही थी।
घर आने पर हम लोग ठीक से मिले। अब चूंकि वो दोनों पहली बार अपनी बेटी के ससुराल (या की घर कह लीजिए) आये थे, इसलिए उन्होंने अपने साथ कोई न कोई भेंट लाना ज़रूरी समझा। न जाने कैसी परम्परा या पद्धति निभा रहे थे... भई, जो परम्पराएँ धन का अपव्यय करें, उनको न ही निभाया जाए, उसी में हमारी भलाई है। वो रश्मि के लिए कुछ जेवर और मेरे लिए रुपए और कपड़ों की भेंट लाये थे। घर की माली हालत तो मुझे मालूम ही थी, इसलिए मैं खूब बिगड़ा, और उनसे आइन्दा फिजूलखर्ची न करने की कसमें दिलवायीं। इतने दिनों बाद मिले, और बिना वजह की बात पर बहस हो गयी। खैर! ससुर जी ने कहा की इस बार फसल अच्छी हुई है, और कमाई भी.. इसलिए देन व्यवहार तो करने का बनता है.. और वैसे भी उनका जो कुछ भी है, वो दोनों बेटियों के लिए ही तो है! अपने साथ थोड़े न ले जायेंगे! रुढ़िवादी लोग और उनकी सोच!
सुमन अब एक अत्यंत खूबसूरत तरुणी के रूप में विकसित हो गयी थी.. इतने दिनों के बाद देख भी तो रहा हूँ उसको! वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही थी।
मैंने आगे बढ़कर उसकी एक हथेली को अपने हाथ में ले लिया, “अरे वाह! कितनी सुन्दर लग रही है मेरी गुड़िया... तुम तो खूब प्यारी हो गई हो..!” कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। सुमन शरमाते हुए मेरे सीने में अपना मुँह छुपाए दुबक गई। लेकिन मैंने उसको छेड़ना बंद नहीं किया,
“मैं तुम्हारे गालों का सेब खा लूँ?”
“नहीईई.. ही ही ही..” कह कर हँसते हुए वो मेरे आलिंगन से बाहर निकलने के लिए कसमसाने लगी..
“अरे! क्यों भई, मुझे पप्पी नहीं दोगी?”
सुमन शर्म से लाल हो गई, और बोली, “जीजू, अब मैं बड़ी हो गयी हूँ।“
“हंय? बड़ी हो गयी हो? कब? और कहाँ से? मुझे तो नहीं दिखा!” साफ़ झूठ! दिख तो सब रहा था, लेकिन फिर भी, मैंने उसको छेड़ा! लेकिन मेरे लिए सुमन अभी भी बच्ची ही थी।
“उम्म्म... मुझे नहीं पता। लेकिन मम्मी मुझे अब फ्रॉक पहनने नहीं देती... कहती है की तू बड़ी हो गयी है...”
“मम्मी ऐसा कहती है? चलो, उनके साथ झगड़ा करते हैं! ... लेकिन उससे पहले...” कहते हुए मैंने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए उसके दोनों गालों पर एक-एक पप्पी ले ही ली। शर्म से उसके गाल और लाल हो गए और वो मुझसे छूट कर भाग खड़ी हुई।
रश्मि इस समय सबके आकर्षण का केंद्र थी, इसलिए मैंने कुछ काम के बहाने वहाँ से छुट्टी ली, और बाहर निकल गया। सारे काम निबटाते और वापस आते आते दोपहर हो गई.. और कोई डेढ़ बज गए! सासु माँ के आने का एक लाभ होता है (मेरे सभी विवाहित मित्र इस बात से सहमत होंगे) – और वह है समय पर स्वादिष्ट भोजन! वापस आया तो देखा की सभी मेरा ही इंतज़ार कर रहे हैं। खैर, मैंने जल्दी जल्दी नहाया, और फिर स्वादिष्ट गढ़वाली व्यंजनों का भोग लगाया। और फिर सुखभरी नींद सो गए।
शाम को चाय पर मैंने सुमन से उसके संभावित रिजल्ट के बारे में पूछा। उसको पूरी उम्मीद थी की अच्छा रिजल्ट आएगा। मैंने ससुर जी और सुमन से विधिवत सुमन की आगे की पढाई के बारे में चर्चा करी। स्कूल और एक्साम की बातें करते करते मुझे अपना बचपन और उससे जुडी बातें याद आने लगीं। पढाई वाला समय तो जैसे तैसे ही बीतता था, लेकिन परीक्षा के दिनों में अलग ही प्रकार की मस्ती होती थी। दिन भर क्लास में बैठने के झंझट से पूरी तरह मुक्ति और एक्साम के बाद पूरा दिन मस्ती और खेल कूद! मजे की बात यह की न तो टीचर की फटकार पड़ती और न ही माँ की डांट! बेटा एक्साम दे कर जो आया है! पूरा दिन स्कूल में रहना भी नहीं पड़ता। और बच्चे तो एक्साम से बहुत डरते, लेकिन मैं साल भर परीक्षा के समय का ही इंतज़ार करता था – सोचिये न, पूरे साल में यही वो समय होता था जब भारी-भरकम बस्ते के बोझ से छुटकारा मिलता था। एक्साम के लिए मैं एक पोलीबैग में writing pad, पेंसिल, कलम, रबर, इत्यादि लेकर लेकर पहुँच जाता। उसके पहले नाश्ते में माँ मुझे सब्जी-परांठे और फिर दही-चीनी खिलाती ताकि मेरे साल भर के पाप धुल जायें, और मुझ पर माँ सरस्वती की कृपा हो! पुरानी यादें ताज़ा हो गईं!
खैर, जैसा की मैंने पहले लिखा है, मैंने सुमन और ससुर जी को यहाँ की पढाई की गुणवत्ता, और इस कारण, सीखने और करियर बनाने के अनेक अवसरों के बारे में समझाया। उनको यह भी समझाया की आज कल तो अनगिनत राहें हैं, जिन पर चल कर बढ़िया करियर बनाया जा सकता है। बातें तो उनको समझ आईं, लेकिन वो काफी देर तक परम्परा और लोग क्या कहेंगे (अगर लड़की अपनी दीदी जीजा के यहाँ रहेगी तो..) का राग आलापते रहे।
मैंने और रश्मि ने समझाया की लोगों के कहने से क्या फर्क पड़ता है? अच्छा पढ़ लिख लेगी, तो अपने पैरों पर खाड़ी हो सकेगी.. और फिर, शादी ढूँढने में भी तो कितनी आसानी हो जायेगी! हमारे इस तर्क से वो अंततः चुप हो गए। सुमन को भी मैंने काफी सारा ज्ञान दिया, जो यहाँ सब कुछ लिखना ज़रूरी नहीं है.. लेकिन अंततः यह तय हो गया की सुमन अपनी आगे की पढाई यहीं हमारे साथ रह कर करेगी। सासु माँ ने बीच में एक टिप्पणी दी की दोनों बच्चे उनसे दूर हो जाएँगे.. जिस पर मैंने कहा की आपकी तो दोनों ही बेटियाँ है.. कभी न कभी तो उन्हें आपसे दूर जाना ही है.. और यह तो सुमन के भले के लिए हैं.. और अगर उनको इतना ही दुःख है, तो क्यों न वो दोनों भी हमारे साथ ही रहें? (मेरी नज़र में इस बात में कोई बुराई नहीं थी) लेकिन उन्होंने मेरी इस बात बार तौबा कर ली और बात वहीँ ख़तम हो गयी।
शाम को हमने पड़ोसियों से भी मुलाकात करी – देवरामनी दम्पत्ति सुमन को देख कर इतने खुश हुए की बस उसको गोद लेने की ही कसर रह गयी थी! सुमन वाकई गुड़िया जैसी थी!
मेरे सास ससुर बस तीन दिन ही यहाँ रहने वाले थे, इसलिए मैंने रात को बाहर जा कर खाने का प्रोग्राम बनाया – जिससे किसी को काम न करना पड़े और ज्यादा समय बात चीत करने में व्यतीत हो। सुमन ख़ास तौर पर उत्साहित थी – उसको देख कर मुझे रश्मि की याद हो आती, जब वो पहली बार बैंगलोर आई थी। सब कुछ नया नया, सम्मोहक! जो लोग यहाँ रहते हैं उनको समझ आता है की बिना वजह का नाटक है शहर में रहना! अगर रोजगार और व्यवसाय के साधन हों, तो छोटी जगह ही ठीक है.. कम प्रदूषण, कम लोग, और ज्यादा संसाधन! जीवन जीने की गुणवत्ता तो ऐसे ही माहौल में होती है। एक और बात मालूम हुई की अगले दिन सुमन का जन्मदिन भी था! बहुत बढ़िया! (मुझे बिना बताये हुए रश्मि ने सुमन के जन्मदिन के लिए प्लानिंग पहले ही कर रखी थी)।
खैर, खा पीकर हम लोग देर रात घर वापस आये। मेरे सास ससुर यात्रा से काफी थक भी गए थे, और उनको इतनी देर तक जागने का ख़ास अनुभव भी नहीं था। इसलिए हमने उनको दूसरा वाला कमरा सोने के लिए दे दिया और सुमन को हमारे साथ ही सोने को कह दिया। उन्होंने ज्यादा हील हुज्जत नहीं करी (क्योंकि हम तीनों पहले भी एक साथ सो चुके हैं) और सो गए।
“भई, आज तो मैं बीच में सोऊँगा!” मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा।
“वह क्यूँ भला??” रश्मि ने पूछा!
“अरे यार! इतनी सुन्दर दो-दो लड़कियों के साथ सोने का मौका बार बार थोड़े न मिलता है!”
“अच्छा जी! साली आई, तो साहब का दिल डोल गया?”
“अरे मैं क्या चीज़ हूँ! ऐसी सुंदरियों को देख कर तो ऋषियों का मन भी डोल जाएगा! हा हा!”
“नहीं बाबा! दीदी, तुम ही बीच में लेटो! नहीं तो जीजू मेरे सेब खायेंगे!” सुमन ने भोलेपन से कहा। मैं
और रश्मि दो पल एकदम से चुप हो गए, और फिर एक दूसरे की तरफ देख कर ठहाके मार कर हंसने लगे (सुमन का मतलब गालों के सेब से था.. और हमने कुछ और ही सोच लिया)।
“मेरी प्यारी बहना! तू निरी बुद्धू है!”
कहते हुए रश्मि ने सुमन के दोनों गालों को अपने हाथों में लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन दे दिया।
“आई लव यू!”
“आई लव यू टू, दीदी!” कह कर सुमन रश्मि से लिपट गयी।
“हम्म.. भारत मिलाप संपन्न हो गया हो तो अब सोने का उपक्रम करें?”
“कोई चिढ़ गया है लगता है...” रश्मि ने मेरी खिंचाई करी।
“हाँ दीदी! जलने की गंध भी आ रही है... ही ही!”
“और नहीं तो क्या! अच्छा खासा बीच में सोने वाला था! मेरा पत्ता साफ़ कर दिया!”
“हा हा!”
“हा हा!”
“अच्छा... चल नीलू, सोने की तैयारी करते हैं। तू चेंज करने के कपड़े लाई है?”
“हैं? नहीं!”
“कोई बात नहीं.. मैं तुमको नाईटी देती हूँ.. वो पहन कर सो जाना। ओके?” कह कर रश्मि ने अलमारी से ढूंढ कर एक नाईटी निकाली – मैंने पहचानी, वो हमारे हनीमून के दौरान की थी! अभी तक सम्हाल कर रखी है इसने!
सुमन ने उसको देखा – उसकी आँखें शर्म से चौड़ी हो गईं, “दीदी, मैं इसको कैसे पहनूंगी? इसमें तो सब दिखता है!”
“अरे रात में तुमको कौन देख रहा है.. अभी पहन लो, कल हम तुमको शौपिंग करने ले चलेंगे! ठीक है?”
“ठीक है..” सुमन ने अनिश्चय से कहा, और नाईटी लेकर बाथरूम में घुस गयी। इसी बीच रश्मि ने अपने कपड़े उतार कर एक कीमोनो स्टाइल की नाईटी पहन ली (यह सामने से खुलती है, और उसमें गिन कर सिर्फ दो बटन थे। और सपोर्ट के लिए बीच में एक फीता लगा हुआ था, जिसको सामने बाँधा जा सकता था – ठीक नहाने वाले रोब जैसा), और मैंने भी रश्मि से ही मिलता जुलता रोब पहना हुआ था (बस, सुमन के कारण अंडरवियर अभी भी पहना हुआ था, जिसको मैं रात में बत्तियां बुझने पर उतार देने के मूड में था)। खैर, कोई पांच मिनट बाद सुमन वापस कमरे के अन्दर आई।
सुमन का परिप्रेक्ष्य
जीजू बिस्तर के सिरहाने पर एक तकिया के सहारे पीठ टिकाये हुए एक किताब पढ़ रहे थे। दूसरी तरफ दीदी अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने बालों में कंघी कर रही थी।
‘दीदी के स्तन कितने बड़े हो गए हैं पिछली बार से!’ मैंने सोचा। बालों में कंघी करते समय कभी कभी वो बालों के सिरे पर उलझ जाती, और उसको सुलझाने के चक्कर में दीदी को ज्यादा झटके लगाने पड़ते.. और हर झटके पर उसके स्तन कैसे झूल जाते! हाँ! उसके स्तनों को निश्चित रूप से पिछली बार से कहीं ज्यादा बड़े लग रहे थे। उसके पेट पर उभार होने के कारण थोड़ा मोटा लग रहा था, और उसके कूल्हे कुछ और व्यापक हो गए थे। कुल-मिला कर दीदी अभी और भी खूबसूरत लग रही थी। मैं मन्त्र मुग्ध हो कर उसे देख रही थी : अचानक मैंने देखा की दीदी ने आईने से मुझे देखते हुए देख लिया... प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर वही परिचित मीठी मुस्कान आ गई।
“आ गई? चल.. अभी सो जाते हैं.. जानू.. बस.. अब पढ़ने का बहाना करना बंद करो! हे हे हे!” दीदी ने जीजू को छेड़ा।
यह बिस्तर हमारे घर में सभी पलंगों से बड़ा था। इस पर तीन लोग तो बहुत ही आराम से लेट सकते थे। जीजू ने कुछ तो कहा, अभी याद नहीं है, और बिस्तर के एक किनारे पर लेट गए, बीच में दीदी चित हो कर लेटी, और मैं दूसरे किनारे पर! मैं दीदी से कुछ दूरी पर लेटी हुई थी, लेकिन दीदी ने मुझे खींच कर अपने बिलकुल बगल में लिटा लिया। कमरे में बढ़िया आरामदायक ठंडक थी (वातानुकूलन चल रहा था), इसलिए हमने ऊपर से चद्दर ओढ़ी हुई थी। कमरे की बत्तियों की स्विच जीजू की तरफ थी, जो उन्होंने हमारे लेटते ही बुझा दी।
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