RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
हमने जब उसके घर में यह इत्तला दी, तो वहाँ भी सभी बहुत प्रसन्न हुए। उसकी माँ रश्मि को मायके बुलाना चाहती थीं, लेकिन रश्मि ने उनको कहा की मैं उसका खूब ख़याल रखता हूँ, और बैंगलोर में देखभाल अच्छी है। इसलिए वो यहीं रहेगी, लेकिन हाँ, वो बीच में एक बार मेरे साथ उत्तराँचल आएगी। सुमन यह खबर सुन कर बहुत ही अधिक उत्साहित थी। इसलिए रश्मि ने उसको अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बैंगलोर में मनाने को कहा। सुमन का अप्रैल के अंत में बैंगलोर आना तय हो गया। मुझे इसी बीच तीन हफ़्तों के लिए यूरोप जाना पड़ा – मन तो बिलकुल नहीं था, लेकिन बॉस ने कहा की अभी जाना ठीक है, बाद में कोई ट्रेवल नहीं होगा। यह बात एक तरह से ठीक थी, लेकिन मन मान नहीं रहा था। खैर, मैंने जाने से पहले रश्मि की देखभाल के सारे इंतजाम कर दिए थे और देवरामनी दंपत्ति से विनती करी थी की वो ज़रुरत होने पर रश्मि की मदद कर दें। इसके उत्तर में मुझे लम्बा चौड़ा भाषण सुनना पड़ा की रश्मि उनकी भी बेटी है, और मैंने यह कैसे सोच लिया की मुझे उनको उसकी देखभाल करने के लिए कहना पड़ेगा। रश्मि के एक्साम अप्रैल के मध्य में ख़तम हो गए, और अप्रैल ख़तम होते होते मैं भी बैंगलोर वापस आ गया।
जब घर का दरवाज़ा खुला तो मुझे लगा की जैसे मेरे सामने कोई अप्सरा खड़ी हुई है! मैं एक पल को उसे पहचान ही नहीं पाया।
"रश्मि! आज तुम कितनी सुन्दर लग रही हो।"
"आप भी ना..." रश्मि ने शर्माते हुए कहा।
रश्मि तो हमेशा से ही सुन्दर थी, लेकिन गर्भावस्था के इन महीनों में उसका शरीर कुछ ऐसे बदल गया जैसे किसी सिद्धहस्थ मूर्तिकार ने फुर्सत से उसे तराशा हो। बिलकुल जैसे कोई अति सुन्दर खजुराहो की मूरत! सुन्दर, लावण्य से परिपूरित मुखड़ा, गुलाबी रसीले होंठ, मादक स्तन (स्पष्ट रूप से उनका आकार बढ़ गया था), सुडौल-गोल नितंब, और पेट के सामने सौम्य उभार! हमारा बच्चा! और इन सबके ऊपर, एक प्यारी-भोली सी सूरत। आज वह वाकई रति का अवतार लग रही थी। और हलके गुलाबी साड़ी-ब्लाउज में वह एकदम क़यामत ढा रही थी। मैंने भाग कर बिना कोई देर किये अपना कैमरा निकला और रश्मि की ना-नुकुर के बावजूद उसकी कई सारी तस्वीरें उतार लीं। मैंने मन ही मन निर्णय लिया की अब से गर्भावस्था के हर महीने की नग्न तस्वीरें लूँगा... बुढापे में साथ में याद करेंगे!
तीन हफ्ते हाथ से काम चलाने के बाद मैं भी रश्मि के साथ के लिए व्याकुल था। मैंने रश्मि के मुख को अपने हाथों में ले कर उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए। रश्मि तुरंत ही मेरा साथ देने लगती है : मैं मस्त होकर उसके मीठे होंठ और रस-भरे मुख को चूसने लगता हूँ। ऐसे ही चूमते हुए मैं उसकी साड़ी उठाने लगता हूँ। रश्मि भी उत्तेजित हो गयी थी - उसकी सांसे अब काफी तेज चल रही थीं। उन्माद में आकर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया। चूमते हुए उसकी सांसो की कामुक सिसकियां मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगीं। मै इस समय अपने एक हाथ से उसकी नंगी जांघ सहला रहा था। इस पर रश्मि ने चुम्बन तोड़ कर कहा,
“जानू, बेड पर चलते हैं?”
मैंने इस बात पर उसको अपनी दोनों बाहों में उठा लिया और उसको चूमते हुए बेडरूम तक ले जाकर, पूरी सावधानी से बिस्तर पर लिटा दिया। अब मैं आराम से उसके बगल लेट कर उसको चूम रहा था – अत्यधिक घर्षण, चुम्बन और चूषण से उसके होंठ सुर्ख लाल रंग के हो गए थे। हम दोनों के मुँह अब तक काफी गरम हो गए थे, और मुँह ही क्या, हमारे शरीर भी!
मैंने रश्मि की साड़ी पूरी उठा दी – आश्चर्य, उसने नीचे चड्ढी नहीं पहनी हुई थी। मैंने उसको छेड़ने के लिए उसकी योनि के आस-पास की जगह को देर तक सहलाता रहा – कुछ ही देर में वो अपनी कमर को तड़प कर हिलाने लगी। वह कह तो कुछ भी नहीं रही थी, लेकिन उसके भाव पूरी तरह से स्पष्ट थे – “मेरी योनि को कब छेड़ोगे?”
पर मैं उसकी योनि के आस पास ही सहला रहा था, साथ ही साथ उसको चूम रहा था। रश्मि की योनि में अंतर दिख रहा था – रक्त से अतिपूरित हो चले उसके योनि के दोनों होंठ कुछ बड़े लग रहे थे। संभव है की वो बहुत संवेदनशील भी हों! उसका योनि द्वार बंद था, लेकिन आकार बड़ा लग रहा था। अंततः मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि से सटाया और जैसे ही अपनी जीभ से उसे कुरेदा, तो उसकी योनि के पट तुरंत खुल गए। अंदर का सामान्यतः गुलाबी हिस्सा कुछ और गुलाबी हो गया था। यह ऐसे तो कोई नई क्रिया नहीं थी – मुख मैथुन हमारे लिए एक तरह से सेक्स के दौरान होने वाला ज़रूरी दस्तूर हो गया था.. लेकिन गर्भवती योनि पर मौखिक क्रिया काफी रोचक लग रही थी। कुछ देर रश्मि की योनि को चूमने चाटने के बाद,
“जानू, तेरी चूत तो क्या मस्त लग रही है... देखो, फूल कर कैसी कुप्पा हो गयी है!”
“आह्ह्ह! छी! कैसे गन्दी बात बोल रहे हैं! बच्चा सुनेगा तो क्या सीखेगा? जो करना है चुपचाप करिए!” मीठी झिड़की!
“गन्दी बात क्या है? चूत का मतलब है आम! ये भी तो आम जैसी रसीली हो गयी है..”
“हाँ जी हाँ! सब मालूम है मुझे आपका.. आप अपनी शब्दावली अपने पास रखिए.. ऊह्ह्ह!” मैंने जोर से उसके भगनासे को छेड़ा।
साड़ी का कपड़ा हस्तक्षेप कर रहा था, इसलिए मैंने उठ कर रश्मि का निचला हिस्सा निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसकी साड़ी और पेटीकोट दोनों ही उसके शरीर से अलग हो गए।
“इतनी देर तक, इतनी मेहनत करने के बाद मैंने साड़ी पहनी थी... एक घंटा भी शरीर पर नहीं रही..” रश्मि ने झूठा गुस्सा दिखाया।
“अच्छा जी, मुझे लगा की तुमको नंगी रहना अच्छा लगता है!”
“मुझे नहीं... वो आपको अच्छा लगता है!”
“हाँ... वो बात तो है!” कह कर मैंने उसकी ब्लाउज के बटन खोलने का उपक्रम किया। कुछ ही पलों में ब्लाउज रश्मि की छाती से अलग हो गयी। रश्मि ने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी। मैंने एक पल रुक कर उसके बदले हुए स्तनों को देखा – रश्मि की नज़र मेरे चेहरे पर थी, मानो वो मेरे हाव भाव देखना चाहती हो। गर्भाधान के पहले रश्मि के स्तनाग्र गहरे भूरे रंग के थे, और बेहद प्यारे लगते थे। इस समय उनमें हल्का सा कालापन आ गया था – आबनूस जैसा रंग! और areola का आकार भी कुछ बढ़ गया था। सच कहता हूँ, किसी और समय ऐसा होता तो निराशा लगती, लेकिन इस समय उसके स्तन मुझे अत्यंत आकर्षक लग रहे थे। प्यारे प्यारे स्तन!
“ब्यूटीफुल!” कह कर मैंने अपने मुँह से लपक कर उसके एक निप्पल को दबोच लिया और उत्साह से उसको पीने लगा। रश्मि आह-आह कर के तड़पने लगी और मेरे बालों को कस के पकड़ने लगी।
“आह.. जानू जानू.. इस्स्स्स! दर्द होता है.. धीरे आह्ह... धीरे!” वो बड़बड़ा रही थी।
“स्स्स्स धीरे धीरे कैसे करूँ? कितनी सुन्दर चून्चियां हैं तेरी..” कह कर मैंने उसके स्तनाग्र बारी बारी से दाँतों के बीच लेकर काटने लगा।
“मैं तो इनमें से दूध की एक एक बूँद चूस लूँगा!”
“जानू! सच में.. आह! दर्द होता है.. कुछ रहम करो.. उफ़!”
रश्मि ने ऐसी प्रतिक्रिया कभी नहीं दी.. सचमुच उसको दर्द हो रहा होगा। मैंने उसके स्तनों को इस हमले से राहत दी। रश्मि दोनों हाथों से अपने एक एक स्तन थाम कर राहत की सांसे भरने लगी, और कुछ देर बाद बोली,
“अब आप इन पर सेंधमारी करना बंद कीजिए.. हमारे होने वाले बच्चे की डेयरी है यहाँ!”
“हैं? क्या मतलब? मेरा पत्ता साफ़? इतना बड़ा धोखा!!”
“ही ही ही...” रश्मि खिलखिला कर हंस पड़ी, “अरे बाबा! नहीं.. ऐसा मैंने कब कहा? सब कुछ आप का ही तो है... लेकिन एक साल तक आप दूसरे नंबर पर हैं... आप भी दूध पीना.. लेकिन हमारे बच्चे के बाद! समझे मेरे साजन?” कह कर उसने दुलार से मेरे बालों में हाथ फिराया।
“बस.. एक ही साल तक पिलाओगी?”
“हाँ.. उसको बस एक साल... लेकिन उसके पापा को, पूरी उम्र!”
“हम्म... तो अब मुझे जूनियर की जूठन खानी पड़ेगी..”
“न बाबा... खाना नहीं.. बस पीना...”
रश्मि की बात पर हम दोनों खुल कर हंसने लगे।
“ठीक है... मम्मी की चून्चियां नहीं तो चूत ही सही..” कह कर मैंने रश्मि की योनि पर हमला किया।
“जानू...!” रश्मि चिहुंक उठी, “लैंग्वेज! ... बिलकुल बेशरम हो!”
मैंने नए अंदाज़ में रश्मि की योनि चाटनी शुरू की – जैसे बाघ पानी पीता है न? लपलपा कर! ठीक उसी प्रकार मेरी जीभ भी रश्मि की योनि से खेल रही थी... रश्मि की सांसें प्रतिक्रिया स्वरुप तेजी से चलने लगी.. उत्तेजना में वो कसमसा मुझे प्रोत्साहन देने लगी.. वह उत्तेजना के चरम पर जल्दी जल्दी पहुँच रही थी, और इस कारण उसका शरीर पीछे की ओर तन गया था – धनुष समान! उसके हाथ मेरे सर पर दबाव डाल रहे थे। मैने उसके हाथों को अपने सर से हटा कर, उसकी उँगलियों को बारी बारी से अपने मुंह में ले कर चूसने चाटने लगा। रश्मि उन्माद में कराह उठी – उसकी कमर हिलाने लगी... ठीक वैसे ही जैसे सम्भोग के दौरान करती है। उसके हाथों को छोड़ कर मैंने जैसे ही उसकी योनि पर वापस जीभ लगाई उसकी योनि से सिरप जैसा द्रव बहने लगा, और उसके बदन में कंपकंपी आने लगी। मै धीरे धीरे, स्वाद ले लेकर उस द्रव को चाट रहा था। बढ़िया स्वाद! नमकीन, खट्टा, और कुछ अनजाने स्वाद – सबका मिला-जुला।
रश्मि मुँह से अंग्रेजी का ओ बनाए हुए तेजी से साँसे ले रही थी – इस कारण हलकी सीटी सी बजती सुनाई दी। मैंने सर उठा कर उसकी तरफ देखा – रश्मि ने आंखे कस कर मूंदी हुई थी, और कांप रही थी। मैने वापस उसकी योनि का मांस अपने होठों के बीच लिया और होंठों की मदद से दबाने, और चाटने लगा। इस नए आक्रमण से वो पूरी तरह से तड़प उठी। मैंने विभिन्न गतियों और तरीकों से उसकी योनि के दोनों होंठों और भगनासे को चाट रहा था। उसी लय में लय मिलाते हुए रश्मि भी अपनी कमर को आगे-पीछे हिला रही थी। रश्मि दोबारा अपने चरम के निकट पहुँच गई। लेकिन उसको प्राप्त करवाने के लिए मुझे एक आखिरी हमला करना था – मैंने उसकी योनि मुख को अपनी तर्जनी और अंगूठे की सहायता से फैलाया, और अपने मुँह को अन्दर दे मारा। जितना संभव था, मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि के भीतर तक ठेल दिया – उसकी योनि की अंदरूनी दीवारें मानो भूचाल उत्पन्न कर रही थीं – तेजी से संकुचन और फैलाव हो रहा था। शीघ्र ही उसकी योनि के भीतर का ज्वालामुखी फट पड़ा। मुझे पुनः नवपरिचित नमकीन-खट्टा स्वाद एक गरम द्रव के साथ अपनी जीभ पर महसूस हुआ। मै अपनी जीभ को यथासंभव उसकी योनि के अंदर तक डाल देता हूँ।
“आआह्ह्ह्ह!” रश्मि चीख उठती है। उत्तेजनावश वो अपने पैरों से मेरी गरदन को जकड़ लेती है और कमर को मेरे मुंह ठेलने की कोशिश कर रही थी। मैं अपनी जीभ को अंदर-बाहर अंदर-बाहर करना बंद नहीं करता। उसका रिसता हुआ योनि-रस मैं पूरी तरह से पी लेता हूँ। रश्मि का शरीर एकदम अकड़ जाता है; रति-निष्पत्ति के बाद भी उसका शरीर रह रह कर झटके खा रहा होता है। जब उत्तेजना कुछ कम हुई तो रश्मि की सिसकारी छूट गई, “स्स्स्स...सीईइइ हम्म्म्म”
अंततः मैं उसको छोड़ता हूँ, और मुस्कुराते हुए देखता हूँ। रश्मि संतुष्टि और प्रसन्नता भरी निगाहों मुझे देखती है। मैंने ऊपर जा कर उसको एक बार फिर से चूमा, और उसके सर पर हाथ फिराते हुए बोला,
“जानू.. लंड ले सकोगी?”
रश्मि ने सर हिला कर हामी भरी और फिर कुछ रुक कर कहा, “जानू... बच्चा सुनता है!”
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