RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
खैर, तो मैं यह कह रही थी, की इस गाने में कुछ ख़ास बात है जो मुझे रूद्र से पहली बार मिलने, और हमारे मिलन की पहली रात की याद दिलाती है। सब खूबसूरत यादें! रूद्र ने वायदा किया था की वो आज जल्दी आ जायेंगे – अगले दो दिन तो शनिवार और रविवार हैं... इसलिए कहीं बाहर जाने का भी प्रोग्राम बन सकता है! उन्होंने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया। लेकिन उनका जल्दी भी तो कम से कम पांच साढ़े-पांच तो बजा ही देता है!
मैं कुर्सी पर आँखें बंद किए, सर को कुर्सी के सिरहाने पर टिकाये रेडियो पर बजने वाले गानों को सुनती रही। और साथ ही साथ रूद्र के बारे में भी सोचती रही। इन दो सालों में उनके कलम के कुछ बाल सफ़ेद हो (पक) गए हैं.. बाकी सब वैसे का वैसा ही! वैसा ही दृढ़ और हृष्ट-पुष्ट शरीर! जीवन जीने की वैसी ही चाहत! वैसी ही मृदुभाषिता! कायाकल्प की बात करते हैं.. इससे बड़ी क्या बात हो सकती है की उन्होंने अपने चाचा-चाची को माफ़ कर दिया। उनके अत्याचारों का दंड तो उनको तभी मिल गया जब उनके एकलौते पुत्र की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी। जब रूद्र को यह मालूम पड़ा, तो वो मुझे लेकर अपने पैत्रिक स्थान गए और वहाँ उन दोनों से मुलाकात करी।
अभी कोई आठ महीने पहले की ही तो बात है, जब रूद्र को किसी से मालूम हुआ की उनके चचेरे भाई की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी। रूद्र ने यह सुनते ही बिना एक मिनट देर किये भी उन्होंने मेरठ का रुख किया। हम दोनों ही लोग गए थे – उस दिन मैंने पहली बार इनके परिवार(?) के किसी अन्य सदस्य को देखा था। इनके चाचा की उम्र लगभग साठ वर्ष, औसत शरीर, सामान्य कद, गेहुंआ रंग... देखने में एक साधारण से वृद्ध पुरुष लग रहे थे। चाची की उम्र भी कमोवेश उतनी ही रही होगी.. दोनों की उम्र कोई ऐसी ख़ास ज्यादा नहीं थी.. लेकिन एकलौते पुत्र और एकलौती संतान की असामयिक मृत्यु ने मानो उनका जीवन रस निचोड़ लिया था। दुःख और अवसाद से घिरे वो दोनों अपनी उम्र से कम से कम दस साल और वृद्ध लग रहे थे।
उन्होंने रूद्र को देखा तो वो दोनों ही उनसे लिपट कर बहुत देर तक रोते रहे... मुझे यह नहीं समझ आया की वो अपने दुःख के कारण रो रहे थे, या अपने अत्याचारों के प्रायश्चित में या फिर इस बात के संतोष में की कम से कम एक तो है, जिसको अपनी संतान कहा जा सकता है। कई बार मन में आता है की लोग अपनी उम्र भर न जाने कितने दंद फंद करते हैं, लेकिन असल में सब कुछ छोड़ कर ही जाना है। यह सच्चाई हम सभी को मालूम है, लेकिन फिर भी यूँ ही भागते रहते हैं, और दूसरों को तकलीफ़ देने में ज़रा भी हिचकिचाते नहीं।
रूद्र को इतना शांत मैंने इन दो सालों में कभी नहीं देखा था! उनके मन में अपने चाचा चाची के लिए किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था, और न ही इस बात की ख़ुशी की उनको सही दंड मिला (एकलौते जवान पुत्र की असमय मृत्यु किसी भी अपराध का दंड नहीं हो सकती)! बस एक सच्चा दुःख और सच्ची चिंता! रूद्र ने एक बार मुझे बताया था की उनका चचेरा भाई अपने माता पिता जैसा नहीं है... उसका व्यवहार हमेशा से ही इनके लिए अच्छा रहा। रूद्र इन लोगो की सारी खोज खबर रखते रहे हैं (भले ही वो इस बात को स्वीकार न करें! उनको शुरू शुरू में शायद इस बात पर मज़ा और संतोष होता था की रूद्र ने उनके मुकाबले कहीं ऊंचाई और सफलता प्राप्त करी थी। लेकिन आज इन बातो के कोई मायने नहीं थे)। रूद्र ने उनकी आर्थिक सहायता करने की भी पेशकश करी (जीवन जैसे एक वृत्त में चलता है.. अत्याचार की कमाई और धन कभी नहीं रुकते.. इनके चाचा चाची की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी), लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया की जब ईश्वर उन दोनों को उनके अत्याचारों और गलतियों का दंड दे रहे हैं, तो वो उसमे किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं करेंगे। उनके लिए बस इतना ही उचित है की रूद्र ने उनको माफ़ कर दिया। मुझसे वो दोनों बहुत सौहार्द से मिले... बल्कि यह कहिये की बहुत लाड़ से मिले। जैसे की मैं उनकी ही पुत्र-वधू हूँ... फिर उन्होंने मुझे सोने के कंगन और एक मंगलसूत्र भेंट में दिया। बाद में मुझे मालूम हुआ की वो माँ जी (मेरी स्वर्गवासी सास) के आखिरी गहने थे। उस दिन यह जान कर कुछ सुकून हुआ की हमारे परिवार में कुछ और लोग भी हैं।
रूद्र में बदलाव तो थे ही, मुझमें खुद भी बहुत से बदलाव हो रहे थे। मैं तो बढ़ती युवती तो हूँ ही – खान पान की गुणवत्ता, दैनिक व्यायाम और पुरुष हार्मोन की नियमित खुराक से (रूद्र कभी कभी कंडोम का प्रयोग करना ‘भूल?’ जाते हैं...) मेरी देह अभी भी भर रही है। मेरे स्तन अब 34C के माप के हैं, कमर में कटाव, और नितम्बों में उभार साफ़ दिखता है। जब कभी नहाने के बाद मुझे फुर्सत होती है, तो मैं स्वयं का अनावृत्त शरीर देख कर प्रसन्न हो जाती हूँ! कभी कभी लगता है की किसी और को देख रही हूँ - कसे-भरे स्तन, छोटे कंधे, उन्नत नितंब, सपाट पेट, और करीने से कटे केशों से टपकती पानी की बूंदें! मैं कभी कभी खुद के शरीर पर मुग्ध हो जाती हूँ! किसकी कामना नहीं हो सकती ऐसी देह! मुझे गर्व है, की रूद्र मेरा भोग पाते हैं!
स्त्रियों को अक्सर ही छुईमुई जैसा शरमाया, सकुचाया सा दर्शाया जाता है, और उनसे इसी प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा भी करी जाती है। इतने बदलावों के बाद भी मैं अभी तक वैसी ही हूँ.. लेकिन अचरज तब होता है जब मैं रूद्र के साथ प्रणय करते समय बिल्कुल भी नहीं सकुचाती हूँ, बल्कि मैं तो उनकी सहयोगिनी ही बन जाती हूँ! कैसे होता है यह सब? कभी कभी सोचती हूँ तो लगता है की एक स्त्री किसी पुरुष के साथ ऐसा व्यवहार तभी कर सकती है जब वो पुरुष उस स्त्री का प्रिय हो। जिसकी वो हमेशा कामना करे! जो न केवल उसके सपनों का अधिष्ठाता हो, बल्कि उसका सच्चा साथी बन कर स्त्री के जीवन के हर सुख दुःख को बाँट कर सही अर्थों में सहचर बने!
रूद्र ने एक दिन मुझे कहा था, “तुमने कभी खजुराहो की मूर्तियां देखी है? यू हैव अ बॉडी लाइक खजुराहो आइडोल्स!”
खजुराहो आइडोल्स? मैंने पहले कभी खजुराहो के चित्र नहीं देखे थे.. हम लोग कभी वहाँ नहीं गए... लेकिन रूद्र ने जब ऐसा कहा तो मेरा मन नहीं माना! इन्टरनेट पर खजुराहो के बारे में ढूँढा और वहाँ के मंदिरों और उन पर उकेरी गयी मूर्तियों की तस्वीरों को देखा! स्त्री जीवन के न जाने कितने रूप, न जाने कितने रंग उन शिल्पियों ने पत्थरों में गढ़ डाले थे! और तो और, सभी एकदम जीवंत से लगते! स्त्रियां ही स्त्रियां! उनके हर प्रकार के हाव-भाव, उनके शरीर की हर बनावट, अंगों के लोच, भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन – यह सब कुछ हैं वहाँ! स्त्री चित्त के हर रंग को साकार कर दिया था शिल्पियों ने इस प्राचीन स्वप्नलोक में! इन चित्रों को देखा, तो रूद्र की बात और समझ में आई! मैं पुलक उठी! यह उपमा तो उन्होंने निश्चित रूप से अपनी चाहत दर्शाने के लिए मुझे दी थी।
मैं आँखें बंद किए पुराने गीतों का आनंद ले रही थी, और उस दिन की याद कर रही थी जब रूद्र पहली बार मेरे घर आये थे। एक मजेदार बात है (आप लोगो ने भी कभी न कभी नोटिस किया ही होगा), किसी घटना के हो जाने के बाद (ख़ास तौर पर जब वो महत्वपूर्ण घटना हो) जैसे जैसे समय बीतता जाता है, उस घटना के कई सारे पहलू, या यह कह लीजिये की हमारे देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है। मधुर संगीत के प्रभाव में अभी मुझे ऐसे जान पड़ रहा था की उस दिन रेडियो पर कोई रोमांटिक गाना बज रहा था। संभव है की ऐसा न हो! लेकिन इससे क्या ही बदल जाएगा? बस, वो यादें और मधुर बन जाएँगी।
ऐसा नहीं है की हम दोनों सिर्फ एक दूसरे को हमेशा इलू इलू ही बोलते रहते हैं.. अन्य विवाहित जोड़ों के समान ही हम में भी झगड़े होते हैं। लेकिन ऐसे झगड़े नहीं जिनमें मन मुटाव होता हो.. ज्यादातर बनावटी झगड़े! अरे भई, कहते हैं न.. इस तरह के झगड़े विवाहित जीवन में स्वाद भरते हैं! या फिर कभी कभी ‘आज फिर से टिंडे बने हैं?’ वाले। मारा-पीटी भी होती है (अक्सर रूद्र ही मारते हैं मुझे..) – ओह लगता है आप गलत समझ गए। ये वो वाली बनावटी मार है, जिसमे मुक्का मेरे शरीर के पास आता तो तेज़ से है, लेकिन मुझको छूता ऐसे है जैसे मेरी मालिश की जा रही हो... मारने से पहले रूद्र मुझे अपने आलिंगन में कस कर बाँध लेते हैं और ऐसे मारते हुए वो अपने मुंह से वो ‘ए भिश्श.. ए भिश्श..” जैसी बनावटी आवाजें भी निकालते हैं। मतलब ऐसी मार जो, चोट तो बिलकुल नहीं देती, उल्टा गुदगुदी लगाती है। मैं हँसते हँसते लोट पोट हो जाती हूँ! कोई वयस्क हमको यह सब करते देखे तो अपना सर पीट ले! इतना प्यार! इतना दुलार! यह सब सोच सोच कर मेरी आँखें भर गईं!
यह दो साल कितनी जल्दी बीत गये! कुछ पता ही नहीं चला!! हम दोनों ने अपने दाम्पत्य जीवन के हर पहलू का आनंद उठाया था! आज भी, अगर रूद्र अपनी पर आ जाए (जो की अक्सर सप्ताहांत में होता ही है), तो मुझे पूरी रात सोने ही नहीं देते – मानो पूरे हफ्ते की कसर निकालते हैं। उनकी प्रयोगात्मक सोच के कारण, घर का कोई ऐसा कोना नहीं बचा जहाँ पर हमने सेक्स नहीं किया हो! बिस्तर पर तो होता ही है, इसके अलावा बाथरूम में, दीवारों पर, बालकनी में, फर्श पर, और रसोईघर में भी हमने सम्भोग किया था। कभी कभी लगता की अति हो रही है.. इस वर्ष मैंने यूँ ही मज़ाक मज़ाक में यह गिनना शुरू किया की हम कितनी बार सेक्स करते हैं... तीन सौ का आंकड़ा पार करते करते मैंने गिनती करनी बंद कर दी। ठीक है.. समझ आ गया की मेरे पति मेरे यौवन को दोनों हाथों से लूट रहे हैं! हा हा!
लेकिन ऐसा हो भी क्यों न? उनके छूने से मुझे सुख मिलता है। मन की व्यग्रता, शंकाएँ और कष्ट – सब तुरंत दूर हो जाते हैं। जिस तरह से वो मुझे देखते हैं... एक मादा के जैसे नहीं, बल्कि एक प्रेमिका के जैसे... जैसे मैं किसी स्पर्धा में प्राप्त पुरस्कार हूँ! बेहद इच्छित! उनकी छुवन में एक सकारात्मक ऊर्जा होती है – ऐसा नहीं है की उनकी छुवन लोलुपता विहीन होती है (ऐसा कभी नहीं महसूस हुआ), लेकिन वो लोलुपता निष्छल और ताज़ी होती है। सड़क चलते पुरुषों वाली नहीं... उनमे मैंने वो ज़हरीली लोलुपता देखी है.. कैसे वो अपनी आँखों से ही सामने दिखती महिलाओं और लड़कियों को निर्वस्त्र करते रहते हैं। उनको मेरे शरीर में लिप्सा है, लेकिन ऐसा नहीं है की वो मेरी इज्ज़त नहीं करते!
रूद्र के लिए मेरे दोनों स्तन दिलचस्प रचना के सामान हैं.. जैसे एक जोड़ी खिलौने! जब कभी भी हम दोनों अगल बगल बैठते हैं (कहने का मतलब हर रोज़, कम से कम पांच से दस बार), वे उनको उँगलियों की सहायता से छेड़ते हैं और सहलाते हैं। और मेरे शरीर की प्रतिक्रिया भी देखिए – उनके छूते ही मेरे दोनों निप्पल सूजने लगते हैं। सेक्स हो या न हो, सप्ताह के हर दिन (मेरा मतलब रात), रूद्र मेरे स्तनों को चूसते हुए ही सो जाते है – कहते हैं की बिना स्तनपान किये उनको नींद ही नहीं आती। हो सकता हो की उनके यह कहने में अतिशयोक्ति हो, लेकिन मेरा भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है – उनके लिंग को पकडे हुए ही मैं सोती हूँ.. रात में जब भी कभी किसी भी कारणवश उनका लिंग जब मेरे हाथ से छूट जाता है, तो मेरी नींद खुल जाती है। इसलिए मैं बिना हील हुज्जत के उनको अपनी मनमानी करने देती हूँ।
उनका लिंग! बाप रे! शायद ही कभी शांत रहता हो! मैंने पढ़ा है की रक्त प्रवाह बढ़ने से लिंग में स्तम्भन होता है.. अरे भई, कितना रक्त प्रवाह होता है? इनका तो लगभग सदा ही स्तंभित रहता है। मैं सोचते हुए मुस्कुरा दी। इससे मेरा एक अजीब सा नाता है – उसको इस प्रकार अपने भीमकाय रूप में देख कर भय भी लगता है, और प्रसन्नता भी होती है। जी हाँ – शादी के दो साल बाद भी। लगभग रोज़ ही इसको ग्रहण करने के बावजूद जिस प्रकार से उनका लिंग मेरी योनि का मर्दन करता है, वो अनुभव अनोखा ही है! मेरे लिए उनका लिंग ठीक वैसा ही खिलौना है, जैसे की मेरे स्तन उनके लिए। उनके गठे हुए शरीर से निकलती यह मोटी नलिका... जोशपूर्ण और वीर्यवान! वो खुलेआम निर्वस्त्र होकर घर में घूमते हैं... और उनके हर कदम पर उनका स्तंभित लिंग हलके हलके हिचकोले खाता है। हम्म्म्म...!
अचानक ही मेरे फ़ोन की घंटी बजी – रूद्र!
“हाउ आर यू, डार्लिंग?” और मेरा उत्तर सुने बिना ही, “जानू, जल्दी से तैयार हो जाओ – सरप्राइज है! मैं तुमको घंटे भर में पिकअप कर लूँगा.. ओके.. बाय!” कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया!
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