Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:17 AM,
#64
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने रश्मि को बिस्तर पर चित लेटा कर अपने आलिंगन में भरा, और उसके पूरे शरीर को सहलाना और चूमना आरम्भ कर दिया। रश्मि भी कुछ ऐसे लेटी थी, जैसे उसकी दोनों टाँगे मेरी कमर के गिर्द लिपटी हुई थीं। मैं उसके होंठो को चूमते हुए, उसके पूरे शरीर पर हाथ फिराने और सहलाने लगा।

कुछ देर ऐसे ही प्यार करने के बाद, मैं बिस्तर पर रश्मि के एक तरफ लेट गया और उसकी जांघें यथासंभव खोल दीं, और फिर बारी बारी उसके होंठ और निप्पल चूमते हुए उसकी जाँघों को सहलाने लगा। उत्तेजना के मारे रश्मि की जाघें और खुल गईं। रश्मि के होंठ चूमते हुए मैंने उँगलियों से उसकी योनि का मर्दन आरम्भ कर दिया। योनि मर्दन करते हुए मैं रह रह कर उसके निप्पल भी चूमता और चूसता। रश्मि भी एक महीने से अतृप्त बैठी हुई थी ... इसलिए फोरप्ले के बहुत मूड में नहीं लग रही थी। फिर भी ऐसी क्रियाओं में सिर्फ आनंद ही आता है।

मैंने कुछ देर उसकी योनि से छेड़खानी करने के बाद वापस उसके स्तनों पर हमला किया। मैंने उसके दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों में कुछ इस प्रकार दबाया , जिससे उसके निप्पल पूरी तरह से बाहर निकल आयें, और फिर उनको बारी बारी से देर तक जी भर के पिया। रश्मि उत्तेजक बेबसी में रह रह कर सिर्फ मेरे बाल, पीठ और गाल सहला रही थी। मैं भी दया कर के बीच बीच में निप्पल छोड़ कर उसके होंठों को चूमने लगता। फिर भी स्तनों पर मेरी पकड़ नहीं छूटी।

शीघ्र ही रश्मि अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, और उसकी योनि से शहद की बारिश होने लगी। मैंने उसको बिस्तर पर ऐसे ही छोड़ा, जिससे वह अपनी साँसे संयत कर सके। जब वापस आया तो मेरे हाथ में माँ का दिया हुआ शहद का जार और एक चम्मच था।

मैंने दो चम्मच शहद अपने मुंह में डाला (लेकिन निगला नहीं), और वापस बिस्तर पर आ बैठा। बैठने से पहले जार को बिस्तर के साइड में नीचे की तरफ रख दिया था, जिससे आवश्यकतानुसार शहद का सेवन किया जा सके। वापस आकर मैंने संतृप्त रश्मि को अपनी गोद मैं बैठाया और आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। इस चुम्बन से माध्यम से मैं रश्मि को अति सुगन्धित पहाड़ी फूलों के रस से बने शहद को पिलाने लगा। सच कहता हूँ, बाजारू उत्पाद इस शहद का क्या मुकाबला करेंगे? ऐसा स्वाद, ऐसी सुगंधि और ऐसी संरचना! थोड़ी देर में मैंने रश्मि को लगभग पूरा शहद पिला दिया (मैंने थोड़ा ही पिया)। उसके बार पुनः बारी बारी से होंठों, और दोनो निप्पलों पर चुम्बन जड़ने लगा। कहने की आवश्यकता नहीं की रश्मि के स्तन मीठे हो गए थे। 

आज तो बीवी को तबियत से भोगने का इरादा था! मैंने वापस रश्मि को बिस्तर पर लेटाया और उसकी दोनों जांघे फैला कर रश्मि को रिलैक्स करने को कहा। शहद के जार से एक चम्मच शहद निकाल कर मैंने एक हाथ की उँगलियों की मदद से उसकी योनि के पटल खोले और मीठा गाढ़ा शहद रश्मि की योनि में उड़ेल दिया।

"क्क्क्क्या कर रहे हैं आप..?" रश्मि मादक स्वर में बोली।

"आपके योनि रस को और हेल्दी बना रहा हूँ... जस्ट वेट एंड वाच!"

कह कर मैंने जैसे ही अपनी जीभ उसकी योनि में प्रविष्ट करी, तो उसकी एक तेज़ सिसकारी निकल गई। मैंने जीभ को रश्मि की योनि के भीतर घुसेड़ दिया – योनि के प्राकृतिक सुगंध की जगह पर अब फूलों की भीनी भीनी और मीठी सुगंध आ रही थी... और स्वाद भी.. बिलकुल मीठा! रश्मि इस एकदम नए अनुभव के कारण कामुक किलकारियाँ मारने लगी थी। उसने अपने नितम्ब उठाते हुए अपनी योनि मेरे मुँह में ठेल दी, और मेरे सिर को दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ कर अपनी योनि की तरफ भींच लिया। सिर्फ इतना ही नहीं, उत्तेजना के आवेश में रश्मि ने अपने पाँव उठा कर मेरे गले के गिर्द लपेट लिया। ऐसा करने से मुझे उसकी पूरी की पूरी योनि को अपने मुँह में भरने में आसानी होने लगी। अगले कोई पांच मिनट तक मैंने इस अद्भुत योनि रस को जी भर के पिया – दो चम्मच शहद, जो मैंने डाला था, और दो चम्मच खुद रश्मि का! रश्मि तड़प रही थी, और काम की अंतिम क्रीड़ा करने के लिए अनुनय विनय कर रही थी। लेकिन, उसको और भोगा जाना अभी बाकी था। रश्मि इसी बीच में एक बार और चरम सुख को प्राप्त कर लिया।

खैर, अंत में वह समय भी आया जब हम आखिरी क्रिया के लिए एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था हो गये और एक दूसरे को कसकर पकड़ कर होंठों से होंठ मिला कर एक दूसरे का स्वाद लेने लगे। एक महीने की प्यास अब पूरी हो रही थी। मीठे होंठों और मुँह से! चूसते और चूमते हुए हम लोग जीभ से जीभ लड़ा रहे थे, रह रह के मैं उसके स्तनों को चूम, चूस और दबा रहा था, तो कभी उसकी गर्दन को चूम और चाट रहा था। मैंने जल्दी से अपने बचे खुचे कपड़े उतारे, और रश्मि की योनि में मैंने अपने लिंग की करीब तीन इंच लम्बाई एक झटके में अन्दर घुसा दी। रश्मि दर्द से ऐंठ गई, और उसकी चीख निकल गई। 

‘यह क्या हुआ?’ संभव है, की एक महीने तक यौन सम्बन्ध न बनाने के कारण, योनि की आदत और पुराना कुमारी रूप वापस लौट आया हो! मतलब, एक और बार एकदम नई योनि को भोगने का मौका! मैंने उसकी कमर पकड़ ली जिससे वो दर्द से डर कर मना न कर दे। मैंने और धक्के लगाने रोक लिए, और लिंग को रश्मि की योनि में ही कुछ देर तक डाले रखा – एक दो मिनट के विश्राम के बाद जब रश्मि को कुछ राहत आई, तब मैंने धीरे-धीरे नपे-तुले धक्के लगाने शुरु किए, और लिंग को पूरा नहीं घुसाया। 

मैंने रश्मि को और आराम देने के लिए उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया लगा दिया, और पहले उसके होंठों को हलके हलके चूमा और फिर दोनों होंठ अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। रश्मि अब पूरी तरह से तैयार हो गयी थी - उसने भी नीचे से हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरु कर दिए। मैंने अंततः अपने लिंग को एक ज़ोरदार धक्का लगा कर पूरे का पूरा उसकी योनि में घुसा दिया। रश्मि ने घुटी-घुटी आवाज़ में चीख़ भरी। 

मैंने कहा, “जानू, वाकई क्या बहुत दर्द हो रहा है?” 

“बाप रे! पहली बार जैसा फील हुआ! आप करिए ... मैं ठीक हूँ!”

“पक्का?”

“हाँ पक्का! आप करिए न... आगे तो बस आनन्द ही आनन्द है।“

फिर क्या? चिरंतन काल से चली आ रही क्रिया पुनः आरम्भ हो गयी। रश्मि बस मज़े लेते हुए मेरे बाल सहला रही थी। उसके अन्दर कुछ करने की शक्ति नहीं बची थी। वो भले ही कुछ न कर रही हो, लेकिन उसकी योनि भारी मात्रा में रस छोड़ रही थी। इस कारण से लिंग के हर बार अन्दर-बाहर जाने से अजीब अजीब प्रकार की पनीली ध्वनि निकल रही थी। खैर, मेरा भी यह प्रोग्राम देर तक चलाने का कोई इरादा नहीं था। इतना संयम तो नहीं ही है मुझमें! कोई चार मिनट बाद ही मेरे लिंग से वीर्य की पिचकारियाँ निकलने लगीं। रश्मि ने जैसे ही वीर्य को अपने अन्दर महसूस किया, उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और मेरे होंठों, आँखों और गालों को कई बार चूमने लगी। थक गया! एक महीने का सैलाब थम गया! मैं उसकी बाँहों में लिपटा हुआ अगले लगभग दस मिनट तक उसके ऊपर ही पड़ा रहा। 

जब रश्मि नीचे कसमसाई, तो मैं मानो नींद से जागा! रश्मि ने मेरे होंठों पर दो-तीन चुम्बन और जड़े और कहा, “गन्दे बच्चे! मन भरा? ... अब जल्दी से हटो, नहीं तो मेरी सू सू निकल जायेगी!” कहते हुए उसने उँगलियों से मेरी नाक पकड़ कर प्यार से दबा दी।

“चलो, मैं तुमको ले चलता हूँ..” मैंने रश्मि को गोद में उठाया और बाथरूम की ओर ले जाने लगा। रश्मि तृप्त, अपनी आँखें बंद किये हुए और मुस्कुराती हुई, अपनी बाँहें मेरे गले में डाले हुए थी। उसको बाथरूम में कमोड पर मैंने ही बैठाया। जैसे उसको किसी असीम दर्द से छुट्टी मिली हो! रश्मि आँखें बंद किये, और गहरी आँहें भरते हुए मूत्र करने लगी। मैं मंत्र मुग्ध सा होकर उस नज़ारे को देखने लगा – उसके योनि से मूत्र की पतली, लेकिन तेज़ धार निकल रही थी, और अभी-अभी कूटी जाने के कारण योनि के होंठ सूज गए थे – बढ़े हुए रक्त चाप के कारण उसकी रंगत अधिक लाल हो गयी थी। 

रश्मि को इस प्रकार मूतते देख कर मुझे भी इच्छा जाग गई। मैंने उसके सामने खड़ा होकर अपने लिंग को निशाने पर साधा, उसके शिश्नाग्रच्छद (फोरस्किन) को पीछे की तरफ सरकाया और मैंने भी अपने मूत्र की धार छोड़ दी। निशाना सच्चा था – मेरी मूत्र की धार रश्मि की योनि की फाँकों के बीच पड़ने लगी। इस अचानक हमले से रश्मि की आँखें खुल गईं।

“गन्दा बच्चा! ... क्या कर रहा है! उफ्फ्फ़!” संभव है की मेरे मूत्र में ज्यादा गर्मी हो!

“तुमको मार्क कर रहा हूँ, मेरी जान...! शेर अपने इलाके को ऐसे ही मार्क करता है न! हा हा!”

रश्मि ने कुछ नहीं कहा। हाँलाकि उसका पेशाब मुझसे पहले ही बन्द हो गया था, फिर भी वो उसी अवस्था में बैठी रही जब तक मैं मूत्र करना न बंद कर दूं! रश्मि मेरे मूत्र को भी ठीक उसी प्रकार ग्रहण और स्वीकार कर रही थी, जैसे मेरे वीर्य को! जब मैंने मूत्र करना बंद किया तो वह सीट से उठी, और फिर पांव की उँगलियों के बल उचक कर उसने मेरे होंठ चूम लिए। अब ऐसे मार्किंग (चिन्हित) करने के बाद तो हम लोग बिस्तर पर नहीं लेट सकते थे.. इसलिए हमने साथ ही हल्का शॉवर लिया और बदन पोंछ कर बिस्तर पर आ गए। मैंने लेटने से पहले कमरे की लाइट बंद कर दी थी – खिड़की के बाहर से आती हुई चाँदनी से कमरे में हल्का उजास था। रश्मि मेरे हाथ के ऊपर सर रखे हुए थी, और मेरे गले में बाहें भी डाले हुए थी। हमने उस रात कुछ और नहीं कहा – बस एक दूसरे के होंठों को चूमते, चूसते सो गए!

मुझसे मेरे दोस्त अक्सर पूछते हैं की मैं और रूद्र कब मिले, कैसे मिले.. शादी के बाद का प्यार कैसा होता है, कैसे होता है... आदि आदि! उनको इसके बारे में बताते हुए मुझे अक्सर लगता की कभी मैं और रूद्र एक साथ बैठ कर इसके बारे में बात करेंगे और पुरानी यादें ताज़ा करेंगे! अभी दो दिन पहले मैं रेडियो (ऍफ़ एम) पर एक बहुत पुराना गीत सुन रही थी – हो सकता है की आप लोगों में भी कई लोगों ने सुना हो!

और आज घर वापस आकर मैंने जैसे ही रेडियो चलाया, फिर वही गाना आने लगा:

“चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाएँ हम दोनों!”

मेरे ख़याल से यह दुनिया के सबसे रोमांटिक दस बारह गानों में से एक होगा...! 

मुझे पता है की अब आप मुझसे पूछेंगे की रश्मि, आज क्या ख़ास है जो रोमांटिक गानों की चर्चा हो रही है? तो भई, आज ख़ास बात यह है की आज रूद्र और मेरी शादी की दूसरी सालगिरह है! जी हाँ – दो साल हो गए हैं! इस बीच में मैंने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की, और कुछ इस कारण से और कुछ रूद्र की जान-पहचान के कारण से मुझे बैंगलोर के काफी पुराने और जाने माने कॉलेज में दाखिला मिल गया। आज मैं बी. ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा हूँ, और समाज विज्ञान की पढाई कर रही हूँ। शुरू शुरू में यह सब बहुत ही मुश्किल था – लगता था की कहाँ आ फंसी! इतने सारे बदलाव! अनवरत अंग्रेज़ी में ही बोल चाल, नहीं तो कन्नड़ में! मेरी ही हम उम्र लड़कियाँ मेरी सहपाठी थीं... लेकिन उनमे और मुझमे कितना सारा अंतर था! कॉलेज के गेट के अन्दर कदम रखते ही नर्वस हो जाती। दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगता। लेकिन रूद्र ने हर पल मुझे हौसला दिया – मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक! हर प्रकार का! वो अपने काम में अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद मुझसे मेरे विषयों के बारे में चर्चा करते, जब बन पड़ता तो पढ़ाते (वैसे हमारे पड़ोसियों ने मुझे पढ़ाने में बहुत सहयोग दिया है.. आज भी मैं श्रीमति देवरामनी की शरण में ही जाती हूँ, जब भी कहीं फंसती हूँ)। और तो और, सहेलियां भी बहुत उदार और दयालु किस्म की थीं – वो मेरी हर संभव मदद करतीं, मुझे अपने गुटों में शामिल करतीं, अपने घर बुलातीं और यथासंभव इन नई परिथितियों में मुझे ढलने के लिए प्रोत्साहन देतीं। इसका यह लाभ हुआ की मेरी क्लास के लगभग सभी सहपाठी मेरे मित्र बन गए थे। शिक्षक और शिक्षिकाएँ भी मेरी प्रगति में विशेष रूचि लेते। वो सभी मुझे ‘स्पेशल स्टूडेंट’ कह कर बुलाते थे। मैंने भी अपनी तरफ से कोई कोर कसार नहीं छोड़ी हुई थी – मैं मन लगा कर पढ़ती थी, और मेरी मेहनत का नतीजा भी अच्छा आ रहा था। कहने की कोई ज़रुरत नहीं की मुझे अपना नया कॉलेज बहुत पसंद आया...। सुमन के लिए भी रूद्र और मैंने अपने प्रिंसिपल से बात करी थी। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया था की अगर सुमन में प्रतिभा है, तो वो उसे अवश्य दाखिला देंगे। सुमन इस बार इंटरमीडिएट का एक्साम् लिखेगी, और उसके बाद रूद्र उसको भी बैंगलोर ही लाना चाहते हैं, जिससे उसकी पढाई अच्छी जगह हो सके। 

आप लोग अब इस बात की शिकायत न करिए की कहानी से दो साल यूँ ही निकाल दिए, बिना कुछ कहे सुने! इसका उत्तर यह है की अगर लोग खुश हों तो समय तो यूँ ही हरहराते हुए निकल जाता है। और रोज़मर्रा की बातें लिख के आपको क्या बोर करें? अब यह तो लिखना बेवकूफी होगा की ‘जानू, आज क्या खाना बना है?’ या फिर, ‘आओ सेक्स करें!’ ‘आओ कहीं घूम आते हैं.. शौपिंग करने!’ इत्यादि! यह सब जानने में आपको क्या रूचि हो सकती है भला?

इतना कहना क्या उचित नहीं की यह दो साल तो न जाने कैसे गुजर गए! व्यस्तता इतनी है की अब उत्तराँचल जाना ही नहीं हो पाता! इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के बाद सिर्फ दो बार ही जा पाई, और रूद्र तो बस एक बार ही जा पाए! उनको इस बीच में दोहरी पदोन्नति मिली है। जाहिर सी बात है, उनके पास समय की बहुत ही कमी हो गयी है... लेकिन यह उन्ही का अनुशासन है, जिसके कारण न केवल मैं ढंग से पढाई कर पा रही हूँ, बल्कि सेहत का भी ढंग से ख़याल रख पा रही हूँ। सुबह पांच बजे उठकर, नित्यक्रिया निबटा कर, हम दोनों दौड़ने और व्यायाम करने जाते हैं। वहाँ से आने के बाद नहा धोकर, पौष्टिक भोजन कर के वो मुझे कॉलेज छोड़ कर अपने ऑफिस चले जाते हैं। मेरे वापस आते आते काम वाली बाई आ जाती है, जो घर का धोना पोंछना और खाना बनाने का काम कर के चली जाती है। मैं और कभी कभी रूद्र, सप्ताहांत में ही खाना बनाते हैं.. व्यस्त तो हैं, लेकिन एक दूसरे के लिए कभी नहीं!

उधर पापा ने बताया की खेती में इस बार काफी लाभ हुआ है – उन्होंने पिछली बार नगदी फसलें बोई थीं, और कुछ वर्ष पहले फलों की खेती भी शुरू करी थी। इसका सम्मिलित लाभ दिखने लग गया था। रूद्र ने अपने जान-पहचान से तैयार फसल को सीधा बेचने का इंतजाम किया था.. सिर्फ पापा के लिए नहीं, बल्कि पूरे कसबे में रहने वाले किसानो के लिए! बिचौलियों के कट जाने से किसानो को ज्यादा लाभ मिलना स्वाभाविक ही था। अगले साल के लिए भी पूर्वानुमान बढ़िया था।
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RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - by sexstories - 12-17-2018, 02:17 AM

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