Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:16 AM,
#61
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने न जाने किस भावना में आकर यह सब कह दिया!

“आय हाय! मेरी बन्नो! तू तो पूरी वात्स्यायन बन गई है!”

“हा हा हा!” सभी ने अठखेलियाँ भरीं।

“रोज़ रोज़ कामसूत्र की नयी नयी कहानियाँ जो लिखती है...!”

“अच्छा, ये बता.. और क्या क्या करती है तू?”

“और क्या?”

“अब हमें क्या मालूम होगा? देख री, तेरी इस क्लास की हम सब स्टूडेंट्स हैं... जो भी कुछ मालूम है, और जो भी कुछ किया है, वो हमको बता दे प्लीज़! हमारा भी उद्धार हो जाएगा!!”

“अच्छा, एक बात बता तो! तुम दोनों पूरी तरह से नंगे हो जाते हो क्या?”

मैं फिर से शरमा गई, “तेरे जीजू का बस चले तो मुझे हमेशा नंगी ही रखें! बहुत बदमाश हैं वो!” 

“सच में? लेकिन तू तो इतनी बड़ी लड़की है, नंगी होने पर शरम नहीं आती?”

“आती तो है... लेकिन मैं क्या करूँ? वैसे भी.. अपने ही पति से क्या शरमाऊँ? वो अपने हाथों से मेरे कपड़े उतारते हैं, और मुझे पूरी नंगी कर देते हैं। लाज तो आती है, लेकिन रोमान्च भी भर जाता है।“

“हाँ! वो भी ठीक है! अच्छा, एक अन्दर की बात तो बता... तूने जीजू का .... लिंग ... छू कर देखा?”

“हा हा हा! अरे पगली, अगर छुवूंगी नहीं, तो सब कुछ कैसे होगा? हा हा!” इस नासमझ बात पर मुझे हंसी आ गयी। “शादी की रात को ही उन्होंने मुझे अपना लिंग पकड़ा दिया था... मेरी तो जान निकल गयी थी उसको देख कर...”

“कैसा होता है पुरुषों का लिंग?”

“बाकी लोगों का नहीं मालूम, लेकिन इनका तो बहुत पुष्ट है। इतना (मैंने हवा में ही उँगलियों को करीब सात इंच दूर रखते हुए बनाया) लम्बा, और मेरी कलाई से भी मोटा है!”

“क्या बात कर रही है? ऐसा भी कहीं होता है?”

“वो मुझे नहीं मालूम... लेकिन इनका तो ऐसा ही है। और तुझे कैसे मालूम की कैसे होता है? किस किस का लिंग देखा है तूने?“

“बाप रे! और वो तेरे अन्दर चला जाता है?” उसने मेरे सवाल की अनदेखी करते हुए पूछा।

“मैंने भी यही सोचा! उनका मोटा तगड़ा लिंग देख कर मैंने यही सोचा की यह मुझमे समाएगा कैसे! उस समय मुझे पक्का यकीन हो गया की आज तो दर्द के मारे मैं तो मर ही जाऊंगी! सोच ले, शादी करने के बाद लड़कियों को बहुत सी तकलीफ़ झेलनी पड़ती हैं। और मेरी किस्मत तो देखो.... उनका लिंग तो हमेशा खड़ा रहता है... कभी भी शांत नहीं रहता! जानती है, मेरी हथेली उनके लिंग के गिर्द लिपट तो जाती है, लेकिन घेरा पूरा बंद नहीं होता। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा मेरी पकड़ से बाहर निकला हुआ रहता है।” अब मैं भी पूरी निर्लज्जता और तन्मयता के साथ सहेलियों के ज्ञान वर्धन में रत हो गयी।

“अरे तो फिर ऐसे लिंग को तू अन्दर लेती कैसे है?”

“मैंने बताया न... वो यह सब इतने प्यार से करते हैं की दर्द का पता ही नहीं चलता। वो बहुत देर तक मुझे प्यार करते हैं – चूमते हैं, सहलाते हैं, इधर उधर चाटते हैं। जब वो आखिर में अपना लिंग डालते हैं तो दर्द तो होता है, लेकिन उनके प्यार और इस काम के आनंद के कारण उसका पता नहीं चलता।“

ऐसे ही बात ही बात में न जाने कैसे मेरे मुंह से हमारी नग्न तस्वीरों वाली बात निकल पड़ी। कहना ज़रूरी नहीं है की ये सारी लड़कियां हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गईं की मैं उनको ये तस्वीरे दिखाऊँ। किसी तरह से अगले दिन कॉलेज के बाद दिखाने का वायदा कर के मैंने जान छुड़ाई।

अगले दिन कॉलेज के बाद हम चारों लडकियां हमारे बुग्याल/झील वाले झोपड़े की ओर चल दीं। मैं तो आराम से थी, लेकिन बाकी तीनों जल्दी जल्दी चल रही थीं, और मुझे तो मानों घसीट रही थीं। खैर, हम लोग वहां जल्दी ही पहुँच गए। 

“जानती हो तुम लोग... हम दोनों ने यहाँ पर भी.... हा हा!” मैंने डींग हांकी।

“क्या!!!? बेशरम कहीं की! और तुम ही क्या? तुम दोनों ही बेशरम हो! अब तो हमको यकीन हो गया है की तुम दोनों ने ऐसी वैसी तस्वीरें खिंचाई हैं। खैर, अब जल्दी से दिखा दे... देर न कर!“ तीनों उन तस्वीरों को देखने के लिए मरी जा रही थीं।

मैं भी उनको न सताते हुए ‘उन’ तस्वीरों को सिलसिलेवार ढंग से दिखाने लगी। शुरुवात हमारी उन तस्वीरों से हुई जब हम बीच पर नग्न लेटे सो रहे थे, और मौरीन ने चुपके से हमारी कई तस्वीरें खींच ली। उन तस्वीरों में हम पूर्णतः नग्न और आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे। रूद्र मेरी तरफ करवट करके लेटे हुए थे – उनका बायाँ पाँव मेरे ऊपर था, और उनका अर्ध-स्तंभित लिंग और वृषण स्पष्ट दिख रहे थे। मैं पीठ के बल लेटी हुई थी और मेरा नग्न शरीर पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। सच मानिए, तो कुछ ज्यादा ही प्रदर्शित हो रहा था।

“रश्मि! मेरी जान!” एक सहेली ने कहा, “तुझको मालूम है की तू कितनी सुन्दर है? तुझे देख कर मन हो रहा ही काश मैं मर्द होती तो मैं तुझसे शादी करती! सच में!” कहते हुए उसने मुझे चूम लिया।

“अरे ऐसा क्या है! तुम तीनों भी तो कितनी सुन्दर हो!”

“अगर ये सच होता, मेरी बन्नो, तो जीजू तुझे नहीं, हम में से किसी को चुनते! क्या पैनी नज़र है उनकी!” कह कर एक ने मेरे स्तन पर चिकोटी काट ली।

“चल, अब और सब दिखा..”

आगे की तस्वीरों में मैंने जम कर पोज़ लगाये थे... कभी मुस्कुराती हुई, कभी मादक अदाएं दिखाती हुई! कुछ तस्वीरों में मैं एक पेड़ के तने पर पीठ टिका कर अपने दाहिने हाथ से ऊपर की एक डाली को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर की तरफ खींच रही थी। यह तस्वीरें सबसे कामुक थीं – उनमें मेरा पूरा शरीर और पूरी सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर प्रदर्शित हो रही थी। कुछ तस्वीरों में मैं अपने चूचक उँगलियों से पकड़ कर आगे की ओर खींच रही थी – शर्म, झिझक, उत्तेजना और गर्व का ऐसा मिला जुला भाव मेरे चेहरे पर मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आगे की तस्वीरों में रूद्र अपने आग्नेयास्त्र पर प्रेम से हाथ फिरा रहे थे; फिर उनके लिंग की कुछ अनन्य तस्वीरें आईं, जिसमें पूरे लिंग का अंग विन्यास साफ़ प्रदर्शित हो रहा था।

और फिर आईं वह तस्वीरें जिनको देख कर मेरी सहेलिय दहल गईं। वे तस्वीरें थीं जिनमें मैं रूद्र का लिंग अपने मुंह में लेकर उसको चूम, चूस और चाट रही थी। मुख मैथुन का ऐसा उन्मुक्त प्रदर्शन तो मैंने भी नहीं देखा था पहले... सहेलियों की तो बात ही क्या? वो सभी मत्रमुग्ध हो कर वो सारे चित्र देख रही थीं... उनके लिंग के ऊपर से शिश्नग्रच्छद पीछे हट गया था, जिससे हलके गुलाबी रंग का लिंगमुंड साफ़ दिखाई दे रहा था। आगे की कुछ तस्वीरों में उनका लिंग मेरे मुख की और गहराइयों में समाया हुआ था।

“हाय रश्मि! तुझे गन्दा नहीं लगा?” 

“पहली बार तो कुछ उबकाई आई... लेकिन जब इनको गन्दा नहीं लगता (मेरा मतलब रूद्र द्वारा मुझे मुख-मैथुन करने से था) तो मुझे क्यों लगेगा?”

“अरे जीजू को तो मज़ा आ ही रहा होगा!” फिर उसका दिमाग चला, “एक मिनट... उनको क्यों गन्दा लगेगा?” उसने पूछा।

“नहीं.. मेरा मतलब वो नहीं था.. तेरे जीजू भी तो मुझे वहाँ चू...” कहते कहते मैं शर्मा कर रुक गयी।

“क्या? सच में? हाय! रश्मि! तू सचमुच बहुत लकी है!”

आगे की तस्वीरों में रूद्र मुझे भोगने में पूरी तरह से रत थे - वे कभी मेरे होंठो को चूमते, तो कभी मेरे स्तनों को। और फिर आया आखिरी पड़ाव – उनका लिंग मेरी योनि के भीतर! 

“बाप रे! ऐसे होता है सम्भोग?!” सहेलियां बस इतना ही कह सकीं।

जब तस्वीरें ख़तम हो गईं, तब मेरी सभी सखियाँ भी शांत हो गईं। आज उनको ऐसा ज्ञान मिला था, जो वो अपने उम्र भर नहीं भूल सकेंगी। 

मैंने उनको प्यार से समझाया की सेक्स विवाह का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है। अगर सिर्फ उसी पर ध्यान लगेगा तो दिल टूटने की पूरी जुन्जाइश है! विवाह तो बहुत ही विस्तीर्ण विषय है... उनका प्यार... वो जिस तरह से मुझे सम्मान देते हैं और मेरी हर इच्छा की पूर्ती करते हैं, वह ज्यादा बड़ी बात है। इसी कारण से उनकी हर इच्छा पूरी करने का मेरा भी मन होता है। जीवन भर के इस नाते को निभाने के लिए पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति वफादार होना बहुत आवश्यक है। सुख तो तभी होता है। अगर विवाह की नींव बस काम वासना की तृप्ति ही है, तो बस, फिर हो गया कल्याण! ये तो मुझे और पढ़ने, आगे बढ़ने और यहाँ तक की अपना खुद का काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। और मुझे मेरे खुद के व्यक्तित्व को निखारने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं। ...वो मुझे कैसे न कैसे हंसाने की कोशिश करते रहते हैं.. ऐसा नहीं है की उनकी हर बात, या हर जोक पर मुझे हंसी आती है... लेकिन वो कोशिश करते हैं की मैं खुश रहूँ.. यह बात तो मुझे समझ में आती है! अपने माँ बाप का घर छोड़ कर, उस अनजान जगह पर, अनजान परिवेश में, एक अनजान आदमी के साथ मैं रह सकी, और रहना चाह रही हूँ, अपने को सुरक्षित मान सकी, और उनको मन से अपना मान सकी तो उसके बस यही सब कारण हैं... यह सब कुछ सिर्फ मन्त्र पढ़ने, और रीति रिवाज़ निभा लेने से तो नहीं हो जाता न! 

मेरी सहेलियों ने मेरी इस बात को बहुत ध्यान से सुना। उनके मन में क्या था, यह मुझे नहीं मालूम... लेकिन जब मेरी बात ख़तम हुई, तो सभी ने मुझे कहा की वो मेरे लिए बहुत खुश हैं! और चाहती हैं, और भगवान् से यही प्रार्थना करती हैं की हमारी जोड़ी ऐसे ही बनी रहे, और हम हमेशा खुश रहें।

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