Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:16 AM,
#60
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का परिप्रेक्ष्य

आज के दिन का मैं पिछले एक महीने से इंतज़ार कर रही थी। आज मेरे कृष्ण.. मेरे रूद्र से मिलने मुझे बैंगलोर की यात्रा जो करनी थी। जबसे मैं अपने मायके आई (देखिए न... कैसे ‘अपना पुराना घर’ मायका बन जाता है... यदि पति का ऐसा स्नेह मिले तो कुछ भी संभव है).. तभी से मुझे बस अपने पिया से मिलने की धुन सवार है। मैंने अनगिनत लड़कियाँ देखी हैं, जो शादी के बाद वापस अपने मायके आने के लिए मरती रहती हैं... और एक मैं हूँ जो वापस अपने पति के घर जाने के लिए मरी जा रही हूँ। ऐसा नहीं है की मुझे माँ पापा से कोई कम प्यार मिला – वो दोनों तो जान छिड़कते हैं। माँ तो मुझे घेर कर बैठ गई – ‘मेरे घर’ की हर बात के बारे में पूछा – क्या है, कैसा है, वहां के लोग कैसे हैं, रूद्र कैसे हैं, घर कैसा है, समुद्र कैसा होता है, अंडमान कहाँ है, हवाई जहाज में कैसा लगता है इत्यादि इत्यादि। एक दो दिन बाद माँ ने दबा-छुपा कर रूद्र और मेरे अन्तरंग संबंधो के बारे में भी पूछ लिया। मेरी शर्म भरी संतुष्ट मुस्कान और संकोच भरी वैवाहिक बातों से वे अवश्य ही संतुष्ट और प्रसन्न हुई होंगी।

वापस मायके आना तो मानो एक मिशन समान था। ढंग की उच्च माध्यमिक शिक्षा और अंक प्राप्त करने का मेरा उद्देश्य और बढ़ गया। ज्यादातर लड़कियाँ शादी के बाद अपनी शिक्षा की इतिश्री कर लेती हैं, लेकिन रुद्र के प्रोत्साहन, मेरी शिक्षा में उनकी रूचि और शिक्षा के लिहाज से उनके ‘लायक’ बनने की मेरी स्वेच्छा के कारण मैं इस एक महीने और आगे आने वाले समय में ठीक से पढाई करना चाहती थी। परीक्षा के लिए फार्म इत्यादि भरने का कार्य सम्पन्न हो गया था, और मैं अपने शिक्षकों और शिक्षिकाओं के साथ ज्यादातर समय पढ़ने में लगा रही थी। कुछ ही दिनों में छूटा हुस कोर्स मैंने पूरा कर लिया और वर्तमान कोर्स के बराबर आ गयी। मेरी देखा देखी सुमन भी पढाई में ही मन लगा रही थी, और यह सब कुछ हमारे माँ पापा को बहुत संतुष्ट कर रहा था। वो दोनों हमेशा की ही तरह हमारी सभी सुविधाओं का ध्यान रख रहे थे, जिससे हमारी पढाई लिखाई में व्यवधान न हो। इसका यह मतलब कतई नहीं की मैंने एक महीना सिर्फ पढाई ही करी – किसी पारिवारिक मित्र के यहाँ कोई प्रयोजन हो तो हम लोग वहाँ ज़रूर गए। सर्दियों में वैसे भी खाने पीने की प्रचुरता हो जाती है, तो मैंने खाने पीने में भी कोई कोताही नहीं बरती। रोज़ रूद्र से फोन पर बात हो ही जाती थी, इसलिए हर रोज़ मुझे अवलंब (सहारा) मिलता। 

मजे की बात हो और सखी सहेलियों का जिक्र न हो, ऐसा नहीं हो सकता। उनकी हंसी-चुहल, और मेरी टांग खिंचाई पूरे महीने भर चली। अंततः बात मेरे यौन अनुभवों पर आ कर रुकी। माँ ने यौन संबंधों के बारे में जब मेरे साथ पहली बार (शादी के कुछ हफ़्तों पहले) चर्चा करी थी तो मुझे इतनी शर्म और हिचक महसूस हुई की मैं आपको बता नहीं सकती। ऐसे कैसे मन से ‘इन’ विषयों पर बात की जाय? अद्भुत है न? हमारे देश में इतने सारे विवाह, और इतने सारे बच्चे होते हैं... फिर भी इन विषयों पर माँ-बाप से बच्चे शायद ही कभी बात करते हैं। संभव है इसीलिए माँ ने पड़ोस की भाभियों को मुझे कुछ ज्ञान देने को कहा होगा। झिझक तो उनके साथ भी हुई, लेकिन कम... लेकिन सहेलियों के साथ इस विषय पर खुल्लम-खुल्ला बात हो जाती है। पिछले चौदह पन्द्रह साल से एक दूसरे के दोस्त होने के कारण हम लोग हम एक-दूसरे की कई सारी निजी बातें भी जानते हैं, और ज़रुरत पड़ने पर सलाह मशविरा भी लेते-देते हैं। हमारे बीच छेड़-छाड़ और हंसी-मज़ाक उम्र के साथ साथ बढ़ती चली गयी। तो आज जब सेक्स के बारे में उनको जानने बूझने का मौका मिला, तो मेरी तीन ख़ास सहेलियों ने तो मुझे घेर कर सब कुछ जानने और पूछने की ठान ली।

“शादी के बाद क्या-क्या धमाल किया मेरी बन्नो ने?” एक सहेली ने पूरी बेशर्मी से पूछा।

“अरी, शरमा मत मेरी लाडो! उस दिन हमने तुम्हारी आहें सुनी थीं... जीजू तुमको सवेरे सवेरे ही निबटाये डाल रहे थे! हाय! बता री! क्या क्या किया तुम दोनों ने?” दूसरी सखी ने पूछा – नमक मिर्च लगा कर।

“अरे बता दे! ऐसे क्यों नखरे कर रही है? अरे, हमें भी तो कुछ सीखने को मिले!” तीसरी ने और कुरेदा।

“क्यों री! तुम लोगो को कुछ ज्यादा ही हवा लग गई है जवानी की!” मैंने चुटकी ली। 

“अरे वाह! तू तो ब्याह कर के इतने मजे ले रही है.. अपने राजा के साथ महल में रह रही है... और हमको जवानी की हवा भी नहीं लगे! वाह भाई वाह!” तर्क वितर्क जारी था।

मुझे यह नहीं मालूम की पुरुष अपने यौन संबंधो की बाते अपने मित्रों से करते हैं या नहीं, लेकिन स्त्रियों के बीच ऐसी बातें करना बहुत स्वाभाविक सा लगता है। ज्*यादातर महिलाएं जब अपनी सहेलियों से मिलती हैं, तो अक्सर यौन संबंधों की बातें करती हैं। मेरी सारी सहेलियाँ मेरी हम-उम्र थीं, और एक दो की तो शादी की बातें भी चल रही थीं (यह कोई अनहोनी बात नहीं है... पिछड़े इलाकों में सत्रह अठारह की उम्र में शादी तो बहुत ही आम बात है)। उस उम्र में वैसे भी यौन इच्छाएँ अपने पूरे शबाब पर होती हैं – सभी लड़कियाँ अपने अपने (काल्पनिक) साथी के साथ अन्तरंग संबंधो की कल्पना कर रही होती हैं। वैसे, अब उन लड़कियों में मुझे ऊँचा दर्जा मिल गया था – मैं अनुभवी जो हो गई थी। बहुत देर तक न नुकुर करने के बाद मैंने उनको धीरे धीरे सुहागरात और हनीमून से लेकर, यहाँ वापस आने तक की सारी बातें सिलसिलेवार तरीके से बता दीं। इसमें क्या ही बुराई हो सकती है... वो कहते हैं न, ज्ञान बांटने से बढ़ता है। मैंने तो मानो साक्षात् कामदेव से यौन शिक्षा प्राप्त करी थी। इसलिए मैंने उनको सब कुछ विस्तार से बताया की कैसे मेरे पति ने मुझे हर दिन, दोनों हाथों से लूटा। उनको मैंने जब अंडमान के बीच पर सिर्फ अधोवस्त्रों में खुली धूप सेंकने के बारे में बताया तो, किसी ने यकीन ही नहीं किया। 

“हाय! शर्म नहीं आती? ऐसे ही... सबके सामने?”

“अरे हम कैसे मान लें? कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर बोल देगी, और हम मान लेंगे?”

“नहीं मानना है तो मत मान! हमने जो किया, वो मैंने बता दिया!” कह कर मैंने हाथ झाड़ा, और उठने लगी।

“अरे! तू तो नाराज़ हो गई...” सहेली ने मुझे हाथ पकड़ कर वापस बैठाया, “मान लिया भई! ये तो बता, जीजू तेरे दुद्धू पीते हैं क्या? कामिनी कह रही थी की उसके भैया उसकी भाभी के पीते हैं... उसने उन दोनों को ऐसे करते हुए देखा था। अब तू ही बता भला! दूध पीने का काम तो बच्चों का है, बड़े लोगो का थोड़े ही!”

अन्तरंग सवालों का सिलसिला थमने वाला नहीं था।

“बोल न, रश्मि! जीजू पीते हैं क्या तेरे दूध?”

उत्तर में मैं सिर्फ मुस्कुरा दी।

“पीते हैं? क्या सच में! हाय राम!” उन सबको विश्वास नहीं हुआ।

“बाप रे! बोल री रश्मि! कैसा लगा था तुझे?”

“अरे! मुझे कैसा लगा, तुझे कैसे बताऊँ? सभी के अनुभव अलग अलग होंगे!” मैंने समझदारी दिखाई, और टालने का प्रयास भी किया।

“नखरे करने लगी फिर से! बोल दे न, जब जीजू ने तेरा दूध पिया तो तुझे कैसा लगा?”

“नखरे कैसे? तेरे पिए जायेंगे तो तुझे भी मालूम पड़ेगा!”

“अरे वो तो जब होगा, तब होगा! लेकिन तू भी तो कुछ बता न?”

मुझे शर्म आने लगी, “हाय! कैसे बताऊँ?”

“बन्नो रानी, तुझे करते और करवाते हुए तो शर्म नहीं आई.. लेकिन हमें बताते हुए आ रही है! अब बता भी दे... नहीं तो तेरे पाँव पड़ जाएँगी हम!”

“उम्म्म... ठीक है.. नहाते-धोते समय हम सबने अपने स्तन छुवे ही हैं... लेकिन जब ‘उनके’ गर्म होठों का स्पर्श... उस जैसा अनुभव कभी नहीं हो सकता! एकदम नया एहसास! मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई.. अभी भी वैसे ही होता है। मेरे चुचक तो उनके मुँह में जाकर मानों पत्थर जैसे कड़े हो जाते हैं। और वो बदमाश, उनको किसी बच्चे की ही तरह चूसते हैं.... मैं तो अपने होश ही खो देती हूँ। उनका हमला अक्सर यहीं से शुरू होता है... शायद उनको मेरे स्तन स्वादिष्ट लगते हों! सच बताऊँ, जब वो इनको पीते हैं तो मेरा भी मन नहीं भरता... बस यही लगता है की वे मेरे दोनों चुचक लगातार पीते रहें। दर्द की भी कोई परवाह नहीं होती... इतना आनन्द जो आता है! उसके सामने यह दर्द कुछ भी नहीं। आनंद आता है, लेकिन मेरा हाल भी बुरा हो जाता है... शरीर बुरी तरह कांपने लगता है और हर अंग से गर्मी छूटने लगती है और साँसे भारी हो जाती हैं। मुझे नहीं लगता की बच्चों को दूध पिलाने पर ऐसा लगेगा!”

मेरी सहेलियाँ मेरी बातों से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गईं।

“तू है ही इतनी सुन्दर! जीजू ही क्या.. अगर मैं होती तो मैं ही तेरे दुद्धू पीती रहूँ!”

“हट्ट बेशरम! इसीलिए ये सब बातें नहीं करनी चाहिए... कैसे कैसे ख़याल आने लगते हैं!” मैंने फिर से समझदारी से कहा।

मेरी सहेली मेरी बात से हतोत्साहित नहीं हुई.. और मेरे सीने को देखते हुए बोली, “सच रश्मि! एक बार इन्हें छू लूँ क्या... बुरा तो नहीं मानोगी न?”

“नहीं रे! पागल हो गई है क्या? अब ये तेरे जीजू की अमानत हैं!”

लेकिन वो लगता है सुन ही नहीं रही थी। उसने संकोच करते हुए मेरे स्तन पर हाथ लगाया, और फिर कुछ देर हाथ फ़ेर कर सहलाया। 

“हाय रे! कितने कड़े हैं तेरे दुद्धू!” उसने कहा। उसकी बात सुन कर जैसे सभी को मेरे स्तन छूने का लाइसेंस मिल गया हो – सभी ने बारी बारी से छुआ और सहलाया।

“अब बस! दूर रहो मुझसे तुम सब!” मैंने उनको प्यारी झिड़की दी।

सहेलियां मान गईं... और फिर एक सहेली दबी आवाज़ में बोली, “अच्छा, एक बात तो बताना, पहली बार में बहुत दर्द होता है क्या?”

अब मैं इस बात का क्या जवाब दूँ! जवाब दूँ भी की न दूँ? मैंने अनजान बनने की सोची,

“पहली बार? बताया तो! जब वो पीते हैं तो दर्द तो होता है... इतनी देर तक जो पीते हैं, इसलिए।“

“अरे यार! जब दूध पीने की बात नहीं कह रही हूँ, जब वो ‘डालते’ हैं, तब दर्द होता है – ये पूछ रही हूँ?” उसने पूरी नंगई से अपनी बात स्पष्ट करी।

“देख... जब उनके जैसा पति तुझे मिलेगा, तब तू समझेगी!” मैंने समझदारी से बात को टालते हुए कहा।

“उनके जैसा मतलब? जीजू का... बहुत बड़ा है क्या?” दूसरी सहेली ने अटखेली करी।

“हट्ट बेशरम!”

“अरी बोल न!! देख, जीजू हैं भी तो कितने हट्टे कट्टे! बहुत बड़ा होगा उनका तो! कैसे सहती है? बोल दे! कौन सा हम उनको नंगा देखे ले रहे हैं?” लड़कियाँ तो ज़िद पर अड़ गईं थीं।

“अच्छा, तो सुन! मुझे देख.. मैं तो हूँ इतनी दुबली पतली सी.. और जैसा तूने कहा, तेरे जीजू हैं एकदम हट्टे कट्टे! तो उनका अंग बहुत बड़ा है मेरे लिए... लेकिन वो इतने प्यार से करते हैं की दर्द का ज्यादा पता नहीं चलता। उनकी कोशिश हमेशा मुझे खुश करने की होती है.. इसलिए बहुत देर तक मुझे प्यार करते हैं। अगर वो ऐसे ही अपने अंग को मेरे में घुसेड़ दें तो मैं तो मर ही जाऊं! इसलिए ऐसे न सोचना की बड़ा और मोटा लिंग होगा तभी तुमको बहुत मज़ा आएगा... तुम्हारे पति को ढंग से करना आना चाहिए, तभी मज़ा आएगा!”
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RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - by sexstories - 12-17-2018, 02:16 AM

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