RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
इस पूरे कार्यक्रम के दौरान मैंने रश्मि को निर्वस्त्र नहीं किया, और न ही अपने ही कपडे उतारे। रश्मि आँखें बंद किए आनंद लेती रही, फिर कुछ देर बाद उसने आगे बढ़ कर मेरे लिंग को पकड़ने की कोशिश करी। मैं पूरी तरह उत्तेजित था।
“आआह्ह्ह्ह...! आज खूब देर तक कीजियेगा...” रश्मि ने उखड़ी हुई आवाज़ में मुझे निर्देश दिया।
मैंने रश्मि को अपनी गोद से उतारा और उसका हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले आया। वह अपने कपडे उतारने लगी तो मैंने मना कर दिया।
“नहीं... पहने रहो। आज ऐसे ही करेंगे..”
मैंने भाग कर आज खरीदा हुआ कंडोम का पैकेट निकाला, और एक कंडोम निकाल कर अपने लिंग पर चढाने लगा। पजामा मैंने अभी भी पूरा नहीं उतारा। तो हम लोग पूरे कपडे भी पहने हुए थे, और यथोचित नग्न भी!
“ये... क्या कर रहे हैं आप?”
“कंडोम!” फिर कुछ रुक कर, “प्रोटेक्शन...” कंडोम चढ़ाने के बाद मैंने रश्मि को बिस्तर से उठाया और अपनी गोदी में लेकर उसके नितम्बों को पकड़े हुए, उसकी पीठ को दीवार से लगा दिया। नया आसन! मैंने रश्मि को कहा की वह अपनी टांगो से मेरी कमर को जकड़ ले। रश्मि को कुछ कुछ समझ में आया की मैं क्या करना चाहता हूँ, और उसने निर्देशानुसार सहयोग किया। मैं बलिष्ठ हूँ, नहीं तो बहुत दिक्कत हो जाती।
मैंने उसकी चड्ढी को योनि से थोड़ा अलग हटाया, और बड़ी मुश्किल से अपने लिंग को उसकी योनि में प्रविष्ट कराया। दो तीन बार धक्का लगाने से मुझे समझ आ गया की नीचे से ऊपर धक्के लगाना मुश्किल है.. एक तो उसका भार सम्हालना, और ऊपर से यह सुनिश्चित करना की लिंग योनि के भीतर ही रहे! मैंने रश्मि को धक्*का लगाने को कहा। रश्मि ने उत्साहपूर्वक धक्के लगाने आरम्भ किए..
यह वाकई एक आनंददायक आसन था – मुश्किल, लेकिन आनंददायक! एक तो मेरा लिंग पूरी तरह से रश्मि के भीतर जा पा रहा था, और इससे एक नए तरह के घर्षण का अहसास हो रहा था। हर धक्के में रश्मि की पूरी चूत मेरे लिंग पर घर्षण रही थी... बहुत ही आनंददायक!
और इसका सबूत रश्मि की कामुक आहों में था, "आअह्ह्ह्ह.... मस्त लग रहा है...." उसकी साँसे उन्माद के कारण उखड रही थीं। हमने पूरे उत्साह के साथ मैथुन करना प्रारंभ कर दिया। रश्मि वैसे भी मुझे कामोत्तेजना के शिखर पर यूँ ही ले जा सकती है। लिहाजा, मेरा लिंग एकदम कड़क हो गया था और इस नए आसन की चुनौती से और भी दमदार हो गया था। रह रह कर मैं रश्मि के होंठ चूम लेता, या अपने सीने के रश्मि के स्तन कुचल देता।
चाह कर भी तीव्र गति में मैथुन संभव नहीं हो पा रहा था, इसलिए हम लोग बहुत देर तक एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था होते रहे! समय का कोई ध्यान नहीं.. लेकिन जब मैं स्खलित हुआ, तब तक रश्मि दो बार अपने चरम पर पहुँच चुकी थी, और उसका शरीर चरमोत्कर्ष पर आकर थरथरा रहा था, और वह रह रह कर कामुकता से चीख रही थी। स्खलन के बाद भी मेरा लिंग उन्माद में था, इसलिए मैंने रश्मि के शिथिल हो जाने पर धक्के लगाने शुरू कर दिए। कुछ और समय बीत जाने के बाद अंततः मेरे लिंग का कड़ापन समाप्त हुआ और मैंने अपना लिंग बाहर निकाला और रश्मि को प्रेम से वापस बिस्तर पर लिटा दिया। जब मैंने कंडोम को कचरा पेटी में, और अपने लिंग को साफ़ कर वापस बिस्तर पर आया, तो देखा की रश्मि थक कर सो गई थी।
अगले दिन सवेरे सवेरे ही हमने वापस उत्तराँचल की यात्रा आरम्भ कर दी। घर वापस जाने के कारण रश्मि ने साड़ी पहनी हुई थी। देहरादून में किराए पर SUV लेकर हमने रश्मि के घर की यात्रा आरम्भ करी। बीच में एक जगह रुक कर हमने लंच किया, और पुनः आगे चल पड़े। हवाओं में ठंडक काफी बढ़ गई थी। इसलिए मैंने SUV में हीटर चला दिया था, जिससे गर्मी रहे।
RSS पर मेरे कुछ साथियों ने मुझसे पूछा की पहाड़ों पर ड्राइव करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। तो मैंने सोचा की क्यों न इसको कहानी का हिस्सा ही बना दिया जाय!
वैसे तो यातायात के सारे नियमों का पालन करे, लेकिन कुछ और बातें भी ध्यान में रखनी चाहिए:
सबसे पहले गाडी के ब्रेक और टायर जांच ज़रूर कर लें। एक तो चढ़ाव-उतार पर चलाना होता है, इसलिए ब्रेक और टायर सबसे महत्वपूर्ण हैं। कोई अँधा मोड़ आये, तो हार्न ज़रूर बजा दें और मोड़ों पर कभी भी ओवरटेक न करें। गाड़ी को ओवरलोड न करें। वर्षा, हिमपात या भू-स्खलन की स्थिति में रुक जाना ही ठीक है, और रात में ड्राइव करना अवॉयड ही करें। गाड़ी पार्क कर के हैंड-ब्रेक ज़रूर लगायें। बर्फ और बारिश के समय कम गति से चलायें। सभी लोग सीट-बेल्ट ज़रूर पहनें। बाएं मोड़ की अपेक्षा दाएं मोड़ में ज्यादा सावधानी रखने की जरूरत होती है।
उम्मीद है की यह बाते आप ध्यान में रखेंगे।
रश्मि के घर हम लोग कोई चार बजे पहुँचे! एक बात तो कहना भूल ही गया, रश्मि के घर हमने किसी को भी इत्तला नहीं दी थी की हम आने वाले हैं! वो सभी लोग हमारे इस सरप्राइज से दंग रह गए और बहुत खुश भी हुए। मैंने ससुर जी को बताया की रश्मि की पढाई का हर्जा हो रहा था, इसलिए जब तक शीतकालीन अवकाश नहीं शुरू हो जाते, तब तक रश्मि यहीं रहेगी, और अब तक का कोर्स पूरा कर लेगी। और उसके बाद छुट्टियों में वापस बैंगलोर आ जाएगी, और फिर वापस आ कर एग्जाम इत्यादि लिख कर वापस बैंगलोर आ जायेगी। उनको सुन कर काफी तसल्ली हुई। उसका वापस आने का टिकट मैंने पहले ही बुक कर दिया था। इतनी सारी फ्लाइट लेने, और हवाई यात्रा करने के बाद मुझे उम्मीद थी की रश्मि खुद हवाई यात्रा करने में अब सक्षम थी।
मैं वापस निकलना चाहता था, लेकिन सभी ने रोक लिया। वैसे भी मेरी फ्लाइट कल दोपहर बाद की थी, इसलिए अभी शुरू कर के मुझे कोई खास फायदा नहीं होना था। इसलिए मैं रुक गया। मौसम काफी ठंडा हो गया था – और रात में ठंडक और बढ़नी ही थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे सत्कार में लग गईं – चाय पकोड़े इत्यादि! और उसके बाद रात का खाना। इसी बीच में हमने सभी को शादी इत्यादि के एल्बम दिखाए। रश्मि ने पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ एल्बम छुपा लिया था।
हमारे आने की खबर हमारे कसबे में आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ जब रश्मि की कई सारी सहेलियाँ मुझसे मिलने घर आईं। वो सभी रश्मि को चिढाने के लिए मुझसे बहुत देर तक हंसी मज़ाक करती रहीं,
‘जीजू, हमारी बहना को आपने ज्यादा सताया तो नहीं?’
‘हाय राम, आपने तो इसका मुँह काला कर दिया!’
‘जिज्जू, इस बार अपने साथ आचार लेते जाइएगा!’
इत्यादि!
जब रश्मि की माँ ने उनको डांट लगाई, तो फिर जाते जाते मुझसे काफी सट कर तस्वीरें भी खिंचायीं, और एक गुस्ताख ने मेरा मुँह प्यार से नोंच कर चुम्बन दिया। बदमाश लड़कियाँ!
जाड़ों में, खासतौर पर पहाड़ों पर बहुत ही जल्दी सूर्यास्त और अँधेरा हो जाता है। इसलिए सासू माँ खाने की जल्दी कर रही थीं। खैर, डिनर करीब सवा सात बजे ही परोस दिया गया, और करीब आठ बजे तक अपने सास-ससुर से बात करने के बाद, रश्मि और मैं, रश्मि के (हमारे सुहागरात वाले) कमरे में आ गए। मैंने सुमन को भी कमरे में बुला लिया।
“क्या हुआ जीजू?”
“अरे, पहले अन्दर तो आओ... फिर बताएँगे!”
मैंने एक एक कर के सुमन के उपहार उसके सामने सजा कर रख दिए! सुमन नए नए कपड़ों को देख कर बहुत खुश हुई, “ये सब कुछ मेरे लिये हैं?”
“हाँ!”
“दीदी के लिए क्या लिया, आपने?”
“अरे! तुम अपना देखो न!” रश्मि बोली...
“नहीं.. बस ऐसे ही पूछा! ... थैंक यू, जीजू!” कहते हुए उसने मेरे दोनों गालो पर चुम्बन भी लिया। मेरे बगल में रश्मि मुस्कुराती हुई अपनी बहन को देख रही थी। सुमन ने फिर रश्मि को भी चूमा।
“इनको पहन कर देखो तो! ठीक फिट आते भी हैं, या नहीं?”
“ठीक है!” कह कर सुमन ने एक जोड़ी कपडा उठाया और दूसरे कमरे में चली गई। मैंने ध्यान नहीं दिया की कौन सा उठाया था.. रश्मि और मैं किसी बात में मशगूल हो गए और कुछ ही देर में सुमन कमरे में आई। मैंने देखा की वह सकुचाते हुए चल रही थी – ह्म्म्म उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। सकुचाने की वजह भी थी। यह स्कर्ट किसी और जगह के लिए मॉडेस्ट कहलाती, लेकिन यहाँ, इस छोटी जगह के लिए हो सकता है उचित न हो! स्कर्ट की लम्बाई उसके घुटने के ठीक नीचे तक ही आई। मैंने और रश्मि दोनों ने ही उसकी ड्रेस का जायजा लिया और फिर मैंने सुमन को मुड़ने का इशारा किया। पीछे मुड़ कर हमको पूरा जायज़ा करने देने के बाद सुमन ने पूछा, “ठीक है?”
मेरे बोलने से पहले रश्मि ने की कहा, “अरे बहुत बढ़िया! मैंने नहीं सोचा था की इतना अच्छा लगेगा, है न?”
“बिलकुल! यह तो बहुत ही अच्छा फिट हुआ है..” मैंने कहा, “अब ये जीन्स पहन कर दिखाओ।“
सुमन पूरे उत्साह से अपना अगला कपड़ा ले कर कमरे से बाहर निकल गई, लेकिन बहुत जल्दी ही वापस आ गई। उसने अभी भी स्कर्ट और टॉप ही पहना हुआ था।
“क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“वहाँ जगह नही है.. मम्मी पापा आ गए हैं। कल पहन कर दिखा दूं?”
“अरे! कल तो मैं सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे देखूँगा?“ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“नीलू, यही बदल ले न?” रश्मि ने सुझाया!
“यहीं? तुम दोनों के सामने?”
“हाँ! क्यों क्या हुआ?”
“धत्त! मुझे शर्म आएगी!”
“अरे, इसमें शरम वाली क्या बात है? हम दोनों को तुम पहले ही ‘वैसे’ देख चुकी हो... और ‘ये’ तो तुम्हारे जीजू ही हैं।”
सुमन ने कुछ देर तक रश्मि की बात को तौला – संभवतः वह यह बात माप रही हो की अपने जीजा के सामने कपड़े बदलना, या निर्वस्त्र होना – क्या यह एक सहज क्रिया है? दीदी तो ऐसे ही कहती हुई मालूम हो रही है... अगर उसको कोई दिक्कत नहीं है, और मुझे नहीं है, तो फिर बिलकुल किया जा सकता है। लेकिन ये लोग कहीं शरारत में किसी को इसके बारे में कुछ बता न दें!
“पक्का? आप दोनों किसी को बताओगे तो नहीं? पापा को मालूम पड़ गया तो मेरी टाँगें तोड़ देंगे।“ ये सुमन ने मुझसे कहा था... बहुत विश्वास चाहिए, ऐसे कामों के लिए! मुझे अच्छा लगा की सुमन हम दोनों पर इतना विश्वास करती है। ठंडक में इतनी देर तक ऐसे कम कपड़े पहने रहने के कारण वह थोड़ा कांपने भी लग गई थी।
“अरे, हम लोग क्यों बताएँगे? बस जल्दी जल्दी चेंज कर के दिखा दो। ठीक है?” मैंने कहा।
“ठीक है!”
कह कर सुमन ने जा कर कमरे का दरवाज़ा बंद दिया, और वापस आ कर कपड़े बदलने का उपक्रम करने लगी। अब यदि कोई ऐसा काम करे तो कोई कैसे न देखे। रश्मि और मैं दोनों की सुमन को कपड़े बदलते हुए उत्सुकता से निहारने लगे। किसी के सामने निर्वस्त्र होना उतना आसान नहीं है, जितना कहने सुनने में लगता है। पति पत्नी भी पहली बार बार जब एक दूसरे के सामने निर्वस्त्र होते हैं तो अपनी नग्नावस्था के बोध से कई बार सेक्स नहीं कर पाते।
“जीजू, आप उधर देखिए न? मैं कपड़े बदल लूँ!” सुमन ने स्कर्ट का हुक खोलते हुए मुझसे कहा।
“रहने दे न! अगर मैं देख सकती हूँ, तो तेरे जीजू के देखने में क्या बुराई है?” रश्मि ने प्रतिरोध किया।
“एक मिनट! नीलू, अगर तुमको मेरे देखने में शर्म आती है तो एक बार फिर से कहो। मैं आँखें बंद कर लूँगा। बोलो बंद कर लूं?”
सुमन ने मुझे एक बार देखा, दो पल यूँ ही चुप रही, और फिर उसने शर्माते हुए नजरे नीचे कर ली और सर हिला कर ‘न’ कहा। और अपनी स्कर्ट को नीचे सरका दिया। सुमन ने एक साधारण सी चड्ढी पहनी हुई थी। मैं और रश्मि दोनों की सुमन को ऐसे देख रहे थे। मुझे मज़ा आने लगा। सुमन ने धीरे से अपना टॉप भी उतार दिया। उसने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था – लिहाजा, सुमन हमारे सामने सिर्फ चड्ढी पहने खड़ी हुई थी...
पहला विचार जो मुझे सुमन के स्तनों (?) को देख कर आया, वह यह था की कुछ समय बाद ये बड़े हो जायेंगे, और फिर किसी दिन ये स्तन किसी बच्चे को दूध पिलायेंगे। उम्र के हिसाब से उसके स्तन भी अभी छोटे ही थे – और उसके निप्पल, रश्मि के निप्पलों से एकदम अलग थे। वह गहरे भूरे रंग के थे, मानो चॉकलेट रंग के... और निप्पल के बगल का परिवेश (जिसको अंग्रेजी में areola कहते हैं), न के बराबर था। एक पचास पैसे का सिक्का उसके निप्पल को ढक सकता था। उसी में से छोटे छोटे सख्त निप्पल बाहर की ओर निकले हुए थे। सुमन मेरी नज़र में एक बच्ची ही है, अतः मुझे उसके छोटे स्तनों, और उसके शरीर से किसी भी प्रकार का आकर्षण नहीं हुआ...
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