RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
घर पहुँचने के बाद हमने श्री और श्रीमती देवरामनी जी से मुलाकात करी। उन्होंने हमारा कुशलक्षेम पूछा, कुछ इधर उधर की बात करी.. और फिर अंत में यह टिप्पणी करी की हम दोनों ही कौव्वे जैसे काले हो गए हैं! मैं और श्री देवरामनी, दोनों इस बात पर खूब हँसे.. लेकिन श्रीमती देवरामनी ने अपने पति को मीठी झिडकी लगायी। खैर, मैं उनको बताया की दो दिन बाद रश्मि को वापस उत्तराँचल भेज आऊँगा.. नहीं तो पढाई का बहुत नुकसान हो जाएगा। बेचारों को इस बात से बहुत दुःख हुआ, लेकिन इस बात से बहुत खुश हुए की एक महीने में ही रश्मि वापस भी आ जाएगी।
घर में आकर मैंने पास के ही एक होटल से खाना माँगा लिया। रश्मि चाहती थी की वह कुछ बनाए, लेकिन घर में कोई राशन पानी तो था ही नहीं... मैंने उसको कहा की कल हम दोनों मियां बीवी मिल कर लंच बनायेंगे, और पड़ोसियों को भी बुलाएँगे! मेरे इस सुझाव पर रश्मि बहुत खुश हुई।
जब तक खाना आता, रश्मि नहाने चली गई, और मैं हमारी देहरादून फ्लाइट के लिए टिकट बुक करने लगा। मजेदार बात यह दिखी की दो दिन बाद का टिकट, एक महीने के बाद वाले टिकट से सस्ता था! उसके बाद मैंने बॉस को फ़ोन करके कल के लंच के लिए आमंत्रित किया। उसके बाद मैंने अपने दोस्तों को बुलाया जो शादी में सम्मिलित हुए थे, और उनको साथ में खींची हुई तस्वीरें भी लाने को बोला। फिर अपने फोटोग्राफर को रिसेप्शन की तस्वीरें लाने को बोला। यह सब काम करने के बाद मैंने भी नहाया और इतने में ही खाना भी आ गया। दिन भर बहुत यात्रा हुई थी, इसलिए हम दोनों थक कर सो गए।
सवेरे मैं काफी जल्दी उठा। घर के पास ही सब्जी-हाट लगता है.. कभी कभी मैं वहां से सब्जियां लेता था। अच्छी बात यह है की वहां ताज़ी सब्जियां मिलती हैं। न जाने कितने ही दिनों बाद आज खरीददारी कर रहा था। वापस आते आते साढ़े सात बज गए थे – अभी भी सवेरा ही था। लेकिन वहां खरीदने वालो की भीड़ अच्छी खासी थी। वापस आते आते मैंने श्री देवरामनी को लंच पर आमंत्रित किया। घर आया तो देखा रश्मि अभी उठने के कगार पर ही थी। उठते ही उसने पूछा, आज खाने में क्या पकाएँगे?
एक बात आपको बता दूं, जब से उत्तराँचल – या यह कहिये की गढ़वाल से नाता जुड़ने वाली बात चली है, तब से मैंने वहां की ज्यादा से ज्यादा बाते जानने का ध्येय बना लिया है। खासतौर पर वहां के खाने का। जब मैंने रश्मि को बताया, की क्या बनने वाला है, तो वह बड़ी खुश हुई। आखिर, मैंने आज के लंच के लिए गढ़वाली और अवधी खानों का कोर्स तैयार किया था। लंच की तैयारी शुरू करने से पहले, मैंने रश्मि के तैयार होते होते हम दोनों के लिए आलू सैंडविच, और चाय तैयार कर दी।
“बाप रे! आपको तो कुकिंग भी आती है!”
“बिलकुल आती है.. आपको क्या लगा? इतने दिन ऐसे ही सर्वाइव कर लिया मैंने?”
“मुझे तो मालूम ही नहीं था!”
“प्रिये, पति के गुण धीरे धीरे मालूम होने चाहिए। इससे प्रेम में प्रगाढ़ता आती है।“ मैंने फ़िल्मी डायलॉग बोल कर ठिठोली करी।
“ओके, प्राणप्रिय! तो फिर तैयारी करें?” रश्मि ने भी मेरी ठिठोली में अपना जुमला भी जोड़ा।
रसोई शुरू करने से पहले कपडे इत्यादि वाशिंग मशीन में धोने में डाल दिए, जिससे कल की यात्रा से पहले कोई दिक्कत न हो।
हमेशा से कहा जाता है की पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है। मेरे ख़याल से यह बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना सोच है, और खाने की तैयारी का सारा ठीकरा स्त्रियों के सर पर पटकने जैसा है। मेरा मानना यह है की यदि खाने का शौक हो, तो बनाने में भी पतियों को कुछ तो सहयोग करना ही चाहिए। जरा सोच कर देखिए, यदि रसोई में बढ़िया, स्वादिष्ट पकवान पति पत्नी साथ में बनाएँ, तो उनके बीच की नजदीकियां बढऩे लगती हैं। जब पति-पत्नी साथ साथ रसोई में पहुंच जाएं तो वो पल अभूतपूर्व अपनत्व में बदल जाते हैं। हमारे यहाँ कुकिंग को काम बना दिया गया है... लेकिन अगर ध्यान से देखें तो दरअसल कुकिंग तो एक कला है। नहीं तो कैसे संजीव कपूर जैसे लोग ‘मेस्ट्रो’ कहलाते? अगर पति-पत्नी साथ मिलकर इस कला में सहयोग करें, तो कुछ भी संभव है।
गढ़वाली व्यंजन बहुत अलंकृत और जटिल नहीं होते। लेकिन मोटे अनाजों के इस्तेमाल से उनका स्वाद अनोखा, और बहुत पौष्टिक होता है। अब चूंकि मेरा और रश्मि का मेल भी अनोखा था, इसलिए आज का कोर्स भी बहुत अनोखा था – रेशमी पनीर (पनीर, प्याज, रंग-बिरंगी शिमला मिर्चों पर आधारित सूखी सब्जी), फ़ानू (एक प्रकार की गढ़वाली पंचमेल दाल), लेसु (गेहूँ और रागी की रोटी), केसर हलवा, पुलाव और सलाद।
खाना बनाने में समय लगा, लेकिन मेहमानों के आने से पहले खाना तैयार हो गया, और हम लोग भी। भोज पर कुल मिला कर आठ लोग आये थे। मेरे दो दोस्त, उनमे से एक की पत्नी, बॉस, उनकी पत्नी और पुत्र, श्री और श्रीमती देवरामनी! ये सभी इतने अच्छे लोग थे, की अपने साथ कुछ न कुछ खाने पीने का सामान लाये थे – यह जानते हुए भी की भोज हमने आयोजित किया था। कुंवारा दोस्त तो अपने साथ वाइन की बोतल लाया था, लेकिन बॉस अपने साथ मिठाइयाँ, और पड़ोसी पुलियोगरे चावल (कर्नाटक का एक डिश) लाये थे। या फिर अपने घर से रश्मि ने कहा की वह सबको खिलने के बाद खा लेगी – लेकिन मैंने इस बात से साफ़ इनकार कर दिया। खायेंगे तो हम सब परिवार और मित्र एक साथ... नहीं तो खाने की कोई ज़रुरत नहीं। सप्ताहांत भोज अगर हित-मित्रो के साथ करने को मिले, तो इससे अच्छा क्या हो सकता है? कुछ ही देर में हम सभी गप्प लड़ाते हुए, घर में बने स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठा रहे थे। मेरी खूब खिंचाई हुई जब बॉस और पड़ोसियों ने रश्मि के परिवार वालो के द्वारा मेरी जांच पड़ताल की बाते उसको सुनायीं। बहुत मज़ा आया – देर तक (कोई तीन घंटे) चले इस भोज से मुझे पहली बार अपने पड़ोसियों, और बॉस को इतने करीब से जानने का मौका मिला।
जैसी की मुझे उम्मीद थी, सभी ने शादी, रिसेप्शन और हनीमून की तस्वीरें देखने की मांग की। मैंने पहले ही हम दोनों की अन्तरंग तस्वीरें अलग कर ली थीं, और दोस्तों की खींची हुई तस्वीरें अपने लैपटॉप में कॉपी कर के मैंने सबको सिलसिलेवार तरीके से तस्वीरें दिखा दीं। सभी ने एक बार तो ज़रूर कहा, की हम दोनों ही अंडमान की धूप में साँवले हो गए। खैर, इन सब बातो के बाद, मैंने सबको आने के लिए धन्यवाद दिया और फिर विदा किया।
हम दोनों टहलते घूमते पास के एक दूकान पर जा कर रश्मि के लिए दो जोड़ी शलवार कुर्ता खरीद लाये। हनीमून पर जो कुछ पहना था, अगर अपने घर पर पहनती तो वहां लोग विस्मित और नाराज़ दोनों हो जाते। सुमन के लिए कई प्रकार के कपड़े जिनमें स्कर्ट-टॉप, जीन्स-टी-शर्ट, और एक बहुत खूबसूरत सूट शामिल थे - आखिर मेरी एकलौती साली है। एक कलर-लैब से मैंने दो-तीन छोटे-बड़े एल्बम, और प्रिंट करने के लिए ग्लॉसी फोटोग्राफी पेपर, और कुछ कलर कार्ट्रिज खरीद लिए। मेरे घर में लेज़र प्रिंटर पहले से ही है, जिसका इस्तेमाल मैं विभिन्न कार्यों में करता रहता था। एक मेडिकल की दूकान से मैंने दो पैकेट सेनेटरी नैपकिन, और अपने लिए कंडोम खरीदा – रश्मि के जाते जाते एक बार और आनंद लेने की तो बनती थी। यह एक रिब्ड कंडोम था – उसके बाहर की तरफ उभरी हुई धारियां बनी हुई थीं... इसका फायदा यह था की घर्षण के समय आनंद और बढ़ सकता है।
डिनर में कुछ बनाने का काम नहीं था, क्योंकि दोपहर का खाना बचा ही हुआ था। घर आकर मैंने सबसे पहले लैपटॉप पर ख़ास ख़ास तस्वीरें चुन कर प्रिंट करने पर लगा दीं। कई सारी तस्वीरें थीं, इसलिए समय लगता। इसलिए मैंने एक बैग में रश्मि का सामान पैक किया और अपने लिए एक अलग छोटे बैग में। इस बीच में रश्मि नहाने चली गई – दीं भर प्रदूषण, और गर्मी!
‘हा हा,’ मैंने सोचा, ‘वापस जा कर पानी छूने की भी हिम्मत नहीं पड़ेगी!’ उत्तराँचल में ठंडक तो अब अपने पूरे शबाब पर होगी! पैक करते समय मेरा मन बहुत ख़राब हो रहा था – यह सोच कर की ‘मेरी जान’ कल जाने वाली है... लेकिन क्या ही करता? मेरे पास दो फोन थे – एक ऑफिस के लिए, और एक मेरा पर्सनल। रश्मि जब वापस आई, तो मैंने पर्सनल वाला रश्मि को दे दिया, जिससे वह मुझसे जब भी मन करे, बात कर सके। यह सुन कर हाँलाकि रश्मि का गला भर आया, लेकिन उसके रोने से पहले ही मैंने उसको मना लिया और संयत कर दिया। कुछ देर तक हमने बालकनी में जाकर बात चीत करी, और फिर मैं भी नहाने चला गया। वापस आकर देखा, की सारी तस्वीरें प्रिंट हो गई हैं। एक बड़े एल्बम में हम दोनों मिल कर अपने शादी, रिसेप्शन, और अंडमान की तस्वीरें लगाने लगे, जिसको रश्मि घर पर दिखा सके। एक छोटे एल्बम में मैंने हमारी बेहद अन्तरंग और नग्न तस्वीरें लगाईं – सिर्फ रश्मि के लिए... जब उसको हमारी ‘वैसी’ वाली याद आये तो उन तस्वीरों को देख कर धैर्य धर सके।
मैंने कहा, “जानू, तुम्हारा मन तो अपनी किताबो के साथ बहल जाएगा... हो सकता है की पढाई, घर और सहेलियों के साथ मेरी याद भी न आए... लेकिन मैंन तुम्हारे बिना एक दिन भी न रह पाऊँगा!”
रश्मि मेरी बात पर भावुक हो गई और मुझसे आकर लिपट गई... मैंने भी अपनी बांहें उसके चारों ओर कस दीं।
“आपको ऐसा लगता है की मुझे आपकी याद नहीं आएगी? मुझे आपकी बहुत याद आएगी!!” रश्मि भावुक हो कर बोली। “... लेकिन मैं बहुत जल्दी ही आपकी बाहों में फिर से आ जाऊंगी!”
मैं बेबसी में मुस्कुराया, “अच्छा, मुझे प्रोमिस करो की अपना खूब अच्छे से ख्याल रखोगी!”
“प्रोमिस! आप भी रखना..”
“आई लव यू!” बिछोह के गहरे दर्द का अहसास करते हुए मैंने कहा। फिर आगे सोच कर कहा, “अच्छा, जाते जाते ‘गुडबाय किस’ तो दो!”
“अरे मैं अभी कहाँ जा रही हूँ? कल सवेरे जाना है न?”
“अरे तो मुझे भी कौन सा आपके होंठों पर किस करना है?” मैंने इतने ग़मगीन माहौल में भी शैतानी नहीं छोड़ी। लेकिन आगे जो रश्मि ने किया, वो मेरी उम्मीद के विपरीत था।
रश्मि ने एक टेडी नाइटी पहनी हुई थी। मेरे कहते ही उसने अपनी टेडी का निचला घेरा ऊपर उठा लिया – और उसकी चड्ढी से ढकी योनि मेरे सामने परोस गई। ऐसा आमंत्रण हो तो भला कौन मना कर पाए? मैंने रश्मि को चूमने के लिए उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खीचा, और मेरी बाहों में आते ही उसके स्तन मेरे सीने से टकराए। उसने प्यार से मेरे गले में बाहें डाल दी, और मुँह में मुँह डाल कर मुझे चूमने लगी। कुछ देर चूमने के बाद मैंने रश्मि की टेडी के ऊपर से ही उसके स्तनों का पान आरम्भ कर दिया। उनको बारी बारी से देर तक चूसा, चुभलाया और चूमा। टेडी का कपडा रेशमी और नायलॉन मिला हुआ था (मतलब मुलायम नहीं था), इसलिए मेरी मुँह की हरकतों का प्रभाव उसके निप्पलों और स्तनों पर कई गुणा अधिक हो रहा था। टेडी के ऊपर से ही मैंने जीभ की नोक से उसके निप्पलों को छेड़ा.. मेरे हर वार से उसकी सिसकारी निकल जाती। इसी बीच मैंने अपने खाली हाथ को उसकी चड्ढी के अन्दर डाला और योनि को टटोला - वह पहले ही गीली हो चली थी। कुछ देर वहां सहलाने के बाद मैंने अपनी उंगली रश्मि की योनि में डाल कर अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया।
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