RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मेरा परिप्रेक्ष्य
जैसा पहले भी किया था (याद है न? बुग्याल पर? झील के बगल?), आज पुनः कुछ नया करने की इच्छा जाग गई थी। ठीक हैं, गंदे हो जायेंगे, लेकिन तो क्या? बाथरूम में ही हैं न? फिर से नहा लेंगे!
मैंने देखा की रश्मि की योनि के पटल खुल गए - वहां की माँस पेशियाँ रह रह कर खुल और बंद हो रही थीं (मूत्राशय को मुक्त करने का प्रयास)। सम्मोहक दृश्य!
कुछ ही पलों में मूत्र की धार छूट पड़ी। अनवरत धार! रश्मि अभी राहत की साँसे ले रही थी। उसकी आँखें बंद थीं। गरम गरम द्रव मेरे शरीर पर पड़ा – अनोखा अनुभव! काफी गरम! मूत्र गिर कर मेरे सीने पर से होकर फ़र्श पर रिसने लगा। और उसकी गंध! कोई तीक्ष्ण गंध नहीं। लेकिन ऐसी भी नहीं जिसको मन-भावन गंध कहा जाय। खैर, कुछ देर के बाद रश्मि का मूत्र त्यागना बंद हुआ। वह अभी भी आँखें बंद किये हुई थी - उसकी योनि की पेशियाँ सिकुड़ और खुल रही थीं और उसमें से मूत्र निकलना अब बंद हो चला था। इस अनुभव का एक असर मुझ पर हुआ – मेरा लिंग फिर से कड़ा होने लगा, और साथ ही साथ मुझे भी मूत्र की इच्छा होने लगी।
मैंने रश्मि के कंधे पकड़े, और उसी के सहारे उठ कर पहले तो उसको गले से लगा लिया। रश्मि खुद के ही मूत्र में सन गई। नहाने के अतिरिक्त अब कोई चारा नहीं था हम दोनों के ही पास। मैंने अपनी उंगली से उसकी योनि को कुछ देर टटोला, और फिर खड़ा हो गया।
रश्मि ने प्रश्नवाचक दृष्टि पहले मेरे चेहरे पर डाली और फिर मेरे लिंग पर, जो की उचक उचक कर जैसे सन्देश दे रहा हो। इसके पहले की वह कुछ कहती, या कोई प्रतिरोध करती, मैंने भी अपनी मूत्र की धार छोड़ दी। पहला छपाका उसके चेहरे पर ही पड़ा – स्वप्रतिक्रिया स्वरुप उसने आँखें और मुँह को कस कर भींच लिया। और अपने एक हाथ के सहारे से फ़र्श पर ही थोड़ा पीछे झुक गई। लेकिन इससे वो बचने वाली तो थी नहीं। मुझे भी अपना ब्लैडर खाली करना ही था। और साथ ही साथ मैं खिलवाड़ के भी मूड में था। मैंने लिंग को पकड़ कर उसके पूरे शरीर को अपने मूत्र से नहला दिया। और कुछ देर बाद मैं भी खाली हो गया।
रश्मि ने एक आँख खोल कर मुझे देखा, “छी गंदे! ये क्या है? बता तो देते!”
मैंने उत्तर में कुछ कहा नहीं। बस आगे बढ़ कर उसको फ़र्श पर लिटाया, और उसकी योनि को अपने मुंह में भर कर चूस चूस कर सुखा दिया। अब वह क्या ही शिकायत कर पाती भला? बस भावुक हो कर उसने मुझे जोर से अपने आलिंगन में जकड़ लिया और कहा, “आई लव यू!”
इस समय तक मैं एक बार पुनः सम्भोग के लिए तैयार हो गया था। इस बार मैंने न कोई औपचारिकता दिखाई, और न ही कोई फोरप्ले किया। बस इस समय रश्मि को एक और बार ‘चोदने’ का मन था। एकदम पाशविक इच्छा! वासना की नग्न अभिलाषा!
रश्मि का परिप्रेक्ष्य
यह मूत्र स्नान सुनने या सुनाने में भले ही बहुत ही गन्दा सा लगता हो, और संभव है की ज्यादातर युगल इसको नहीं आजमाते, लेकिन यह एक नए प्रकार का ही अनुभव होता है। मैं रूद्र की आँखों में वासना के डोरे साफ़ देख रही थी। अपने ऊदेश्य में स्पष्ट! इसमें प्रेमी जैसा भाव नहीं था – बस वही प्राचीन नर-मादा वाला भाव दिख रहा था। मतलब, आज तो मेरी जान निकल कर ही रहेगी!
उन्होंने मेरी बाईं टांग को अपने कंधे के ऊपर रखा और अपने लिंग को मेरी योनि के बीच रखा। मैंने उनके लिंग को पकड़ लिया, जिससे वह अपने मार्ग पर ही रहे। उन्होंने ऐसे जोर के धक्के के साथ मुझमें कभी प्रवेश नहीं किया! मेरी चीख निकल गई। मैं सम्हलती, उससे पहले ही उन्होंने दूसरा धक्का लगाया – मैंने देखा उनका लिंग और मेरी योनि दोनों आपस में चिपके हुए थे। मुझे दर्द हुआ! लेकिन मैं उसको पी गई – यह अनुभव भी सही।
मैंने महसूस किया की मेरी योनि उनके लिंग को मसल रही है। मेरी सांसे तेज़ हो गईं। रूद्र समझ तो रहे थे की मुझे दर्द हुआ है, लेकिन वो बस चार पांच सेकंड ही रुके। और फिर उन्होंने अपनी कमर हिलानी शुरु कर दी। उनका लिंग तेजी से मेरी योनि के अंदर-बाहर होने लगा। देखते ही देखते उनकी गति तेज़ होती चली गई। तेज़ गति के कारण लिंग का विस्थापन कम ही हो रहा था, लिहाज़ा, पूरे समय, मेरी योनि में उनका लिंग लगभग पूरा ही समाया रहा। मूत्र ने संभवतः अन्दर से काफी चिकनाई निकाल दी थी, इसलिए कुछ कुछ टीस सी उठ रही थी। लेकिन मैं क्या करती – रूद्र मुझे वाकई ‘चोद’ रहे थे।
चूंकि वो कुछ ही मिनटों पहले स्खलित हुए थे, इसलिए मुझे लगा की उनका दुबारा स्खलित होने अभी दूर था। लेकिन गति इतनी तेज थी की दस मिनट के अन्दर ही वो अपनी मंजिल पर पहुँच गए। आश्चर्य मुझे इस बात का हुआ की स्खलित होने के बाद भी उनका कडापन कम नहीं हुआ और उन्होंने मुझे दो और मिनट तक भोगा। और मुझे एक और घोर आश्चर्य तब हुआ जब मैं आज पांचवीं बार रति के उच्चतम शिखर पर पहुंची। पाशविक सम्भोग का ऐसा नंगा नाच! और इनकी कुशलता तो देखिए! न जाने कैसी भूख! लेकिन इतना तो तय है की मैं पूरी तरह अघा गई थी।
हम दोनों बहुत देर तक यूँ ही विभिन्न शारीरिक तरलों से सने हुए, आलिंगनबद्ध फ़र्श पर पड़े रहे। अंततः रूद्र ने उठा कर फ़व्वारा चलाया, और हम दोनों ने फ़र्श पर बैठे बैठे ही एक बार और नहाया। और फिर अपने अपने शरीर पोंछ कर बिस्तर पर लुढ़क कर गहरी नींद सो गए।
अगले चार दिनों तक रश्मि के पीरियड्स थे। यह समय हमने बीच पर टहलने घूमने, नौका-विहार करने, लैपटॉप और टीवी पर फिल्म्स इत्यादि देखने में बिताये। मौरीन और आना हमारे बहुत अच्छे दोस्त बन गए – हमारे, मतलब मेरे और रश्मि दोनों के। रश्मि उन दोनों की ही आत्मनिर्भरता और बिंदास अंदाज़ से बहुत प्रभावित हुई, और उनसे उनके काम, जीवन इत्यादि के बारे में कई बार बातें करीं। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैंने उनके साथ दो बार स्कूबा डाइविंग करी।
स्कूबा डाइविंग बहुत ही अधिक रोमांचल खेल है। मौरीन और आना, दोनों ने ही मुझे बताया की उनकी हर डाइविंग में नयापन होता है – एकदम नए अनुभव, नयी चुनौतियाँ! अंडमान में चहुओर फैले जल क्षेत्र में प्रवाल भित्ति (कोरल रीफ) जल-पर्यावरण प्रणाली का घर हैं! एक और बात है, अंडमान में बहुत कुछ जो बना है, वह ज्वालामुखी की गतिविधियों के कारण बना है। उनके कारण डाइविंग के दौरान अभूतपूर्व अनुभव होता है। हम समुद्र में करीब करीब साथ फीट तक अंदर गए। इस दौरान मैंने प्रवाल और उनमे रहने वाली अनेकानेक मछलियाँ और उनकी अनोखी दुनिया को बहुत नजदीक से देखा। वाकई, यह एक अलग ही दुनिया थी। खैर, मैं तो बस रंग बिरंगी मछलियों के झुण्ड, नीले पानी, और अपने कानों में पानी की गुलगुलाहट सुन कर रोमांचित हो गया! छोटे बड़े, हर आकार की मछलियाँ प्रचुर मात्रा में बिना रोक टोक तैर रही थी। पानी के भीतर फोटोग्राफी भी करी। मुझे बताया गया था की शार्क की भी कई सारी प्रजातियाँ यहाँ होती हैं, लेकिन दिखी एक भी नहीं!
रश्मि और मैंने पहले स्नोर्केलिंग की थी – यूँ तो दोनों ही वॉटर स्पोर्ट हैं, लेकिन दोनों में काफी अंतर है। स्कूबा शब्द अंग्रेजी में सेल्फ कंटेंड अंडरवॉटर ब्रीदिंग अपरेटस (SCUBA) का शॉर्ट फॉर्म है। स्कूबा डाइविंग में ऑक्सीजन टैंक, तैराकी पोशाक और मास्क इत्यादि पहनकर पानी की काफी गहराई में उतरना होता है, जबकि स्नोर्केलिंग में छोटा मास्क पहना जाता है। सांस लेने के लिए इस मास्क का एक हिस्सा पानी की सतह से बाहर निकला रहता है, और तैराकी के दौरान तैराक सतह पर तैरता है, और मुँह की सहायता से सांस लेता है। स्कूबा डाइविंग एक बार में कम से कम आधे घंटे तक तो चलती ही है। स्नोर्केइलिंग में पानी के दो-तीन फीट अंदर ही जाते हैं, जबकि स्कूबा डाइविंग में तो लोग सौ फीट से भी अन्दर तक चले जाते हैं, और पानी की गहराई में उतरकर अन्दर के तमाम नजारों को करीब से देख सकते हैं। मैंने मन ही मन सोचा की स्कूबा डाइविंग की ट्रेनिंग ज़रूर लूँगा।
इतने में हमारे हनीमून का समय भी लगभग समाप्त हो गया और वापस आने का दिन भी पास आने लगा।
इस बीच मैंने रश्मि के कॉलेज में कॉल कर के उसके प्रिंसिपल से बात करी। उन्होंने मेरी उम्मीद और सारी दलीलों के विपरीत रश्मि को होम-स्कूल करने से मना कर दिया, और यह याद भी दिलाया की उसकी उपस्थिति कम हो जाएगी, और एग्जाम लिखने में दिक्कत होगी। फिर उन्होंने मुझे बताया की यदि वो अगले हफ्ते तक वापस आ जाय, तो उसको शीतकालीन अवकाश के पहले करीब चार हफ्ते मिल जायेंगे, जिसमें काफी कोर्स निबटाया जा सकता है। फिर वो छुट्टी में बंगलौर जा सकती है, और कोर्स रीवाइज कर सकती है। मैंने छुट्टी के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया की दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में होगी, और जनवरी के मध्य तक चलेगी।
कोई बुराई नहीं थी.. मैंने मन में सोचा। वैसे भी रश्मि बंगलौर में रुक कर क्या ही करती, इसलिए मैंने सोचा की वापस जा कर एक दो दिन में ही रश्मि को उत्तराँचल भेज दूंगा। वो अपना अब तक का कोर्स भी कर लेगी, और घर वालो से मिल भी लेगी। उसके बाद तीन हफ्ते मेरे पास.. और फिर बोर्ड एग्जाम के बाद परमानेंट मेरे पास!! मैंने रश्मि को बताया तो उसका मुँह उतर गया। रोने धोने की ही कमी थी बस.. लेकिन जैसे तैसे उसको समझाया बुझाया और राजी कर लिया।
खैर, रिसोर्ट में रहने के आखिरी दिन मैंने जो भी बिल था, वो भरा और फिर हेवलॉक द्वीप से विदा ली। क्रूज़ बोट से वापस पोर्ट ब्लेयर आ गए। शाम की फ्लाइट थी, सो विमानपत्तन पर ही खाना पीना किया, और यादगार के लिए कुछ सामान खरीदा। वीर सावरकर विमानपत्तन काफी छोटा है, और उसके लिहाज से वहां बहुत भीड़ होती है। उस दिन तो वहां ठीक से खड़े होने की भी जगह नहीं थी। खैर, वहां से उड़ान भरने के कोई छः घंटे के अन्दर, रश्मि और मैं बंगलौर पहुँच गए।
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