RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का परिप्रेक्ष्य
कैसे सब कुछ इतनी जल्दी बदल जाता है! हफ्ता भर पहले ही मैं माँ पापा को छोड़ कर कहीं जाने की सोच भी नहीं सकती थी.. और आज का दिन यह है की उनकी याद भी नहीं आई! क्या जादू है! सहेलियों की बातों, कहानियों और फिल्मों में देखा सुना तो था की प्यार ऐसा होता है, प्यार वैसा होता है.. लेकिन, अब समझ में आया की प्यार कैसा होता है! प्यार का एहसास तो हमेशा ही नया रहता है - हमेशा ताज़ा!
पापा से कुछ देर बात करने के बाद माँ फ़ोन पर आई.. उनसे बात करनी शुरू ही की थी की ‘इनका’ हाथ मेरे स्तनों पर आ टिका! ‘हाय’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा। उधर से माँ ने पूछा की क्या हुआ.. अब उनको क्या बताती? मैं जैसे तैसे उनसे बात करने की कोशिश कर रही थी, और उधर मेरे पतिदेव मेरे स्तनों से खेल रहे थे – वो बड़े इत्मीनान से मेरे स्तन दबा और धीरे धीरे सहला रहे थे। चाहे कुछ भी हो, ऐसा करने से स्त्रियों के चूचक कड़े होने ही लगते हैं। मेरे भी होने लगे। शरीर में जानी पहचानी गुदगुदी होने लगी। मैं अन्यमनस्क सी होकर बाते कर रही थी, लेकिन सारा ध्यान उनके इस खेल पर ही लगा हुआ था। वे कभी मुझे चूमते, तो कभी मेरे बालों को सहलाते, तो मेरे स्तनों से खेलते! अंततः उनका हाथ मेरी पैंट के अन्दर और उनकी उंगली मेरी योनि की दरार पहुँच गई। उनके टटोलने से मैं बेबस होने लग गई.. माँ क्या कह रही थी और फिर कब सुमन फ़ोन पर आ गई, मुझे कुछ याद नहीं! मदहोशी छाने लगी। सच में मैं रूद्र की दासी हूँ.. अगर वो उस समय मुझे नग्न होने को कहते तो मैं तुरंत हो जाती... बिना यह सोचे की वहां पर और लोग भी उपस्थित थे। इतना तो तय है की मैं उनकी किसी बात का विरोध कर ही नहीं सकती!
खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ.. सुमन ने अपने जीजू से बात करने को कहा तो मैंने फ़ोन इनको दे दिया।
“मेरी एंजेल कैसी है?” इन्होने प्रेम और वात्सल्य भरी बात कही.. एक बात तो है, ये जो कहते हैं, उनकी आँखे भी वही कहती हैं। न कोई लाग लपेट, और न कोई फरेब! सच्चा इन्सान!
उधर से सुमन ने कुछ बात कही होगी, तो ये मुस्कुरा रहे थे.. बहुत देर तक मुस्कुरा कर सुनने के बाद इन्होने कहा, “अरे तो फिर हमारे पास आ जाओ! दो से भले तीन! है न?”
फिर उधर से सुमन ने कुछ कहा होगा, जिसके उत्तर में इन्होने ‘आई लव यू टू’ कहा, और बाय कर के फ़ोन काट दिया।
“क्या बाते हो रही थीं जीजा साली में? रोमांटिक रोमांटिक... ईलू ईलू वाली!” मैंने ठिठोली करी।
“हा हा हा! अरे जो भी हो रही हो... आपको इससे क्या? हमारी आपस की बात है! हा हा!” फिर कुछ देर रुक कर, “.. जानू, क्यों न एग्जाम के बाद वहां से सभी लोग यहीं बैंगलोर में रहें? सुमन की पढाई भी अच्छी जगह हो जायेगी.. और माँ पापा भी आराम से रह लेंगे! क्या कहती हो?”
“आप को लगता है की माँ पापा आयेंगे यहाँ?”
“क्यों! क्या प्रॉब्लम है?”
“वो लोग बहुत पुराने खयालो वाले हैं, जानू! बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते!”
“हंय! इसका मतलब वो लोग यहाँ आयेंगे तो कहीं और से पानी लाना पड़ेगा?”
“आप भी हमेशा मजाक करते रहते हैं! आप ट्राई कर लीजिए.. आ जाते हैं तो इससे अच्छा क्या?” मैंने कहा, और आगे जोड़ा, “... और अभी आप क्या कर रहे थे, बदमाश! माँ और सुमन ने क्या कहा, कुछ याद नहीं!”
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बीच से मैंने सीधा मेडिकल शॉप का रुख लिया। रश्मि के पूछने पर उसको बताया की उसके लिए सेनेटरी नैपकिन लेने जा रहे हैं। मुझे यह जान कर घोर आश्चर्य हुआ की उसको नैपकिन के बारे में हाँलाकि मालूम तो था, लेकिन उसका प्रयोग रश्मि ने कभी नहीं किया था। कुछ देर तक उससे प्रश्नोत्तर करने के बाद सब कुछ समझ में आ गया। एक तो छोटा सा क़स्बा, और उसमें निम्न मध्यम वर्गीय और रूढ़िवादी परिवार! पुराने रूढ़िवादी विचार, रीति-रिवाज और अंध-विश्वासों को मानने के कारण उसकी माँ ने भी रश्मि को वही सब सिखाया था।
बाद में और पढने पर मुझे समझ आया की यह हालत खली एक रश्मि की ही नहीं है... देश की कम से कम सत्तर प्रतिशत लड़कियाँ, और महिलाएं सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं – या तो खर्च वहन नहीं कर सकने के कारण, और या तो अपने रूढ़िवादी विचारों के कारण! हालत यह है की भारत की अनगिनत महिलाएं और लड़कियाँ आज भी पीरियड के दौरान गंदे कप़ड़े का उपयोग करती हैं, जिसके कारण वे संक्रमण की चपेट में आ जाती हैं। ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की एक बहुत ब़ड़ी वजह यौनांग की साफ-सफाई न होना है।
जहाँ तक रश्मि का प्रश्न है, पीरियड्स के दौरान उसके और सुमन के साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है। दोनों लडकियां पूजाघर और रसोई से दूर रहती हैं। रक्त-स्त्राव रोकने के लिए रद्दी कप़ड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। इस कारण से हर महीने तीन चार दिन पढने भी नहीं जा पाती। ऐसा नहीं है की रश्मि के परिवार वाले उसके लिए सेनेटरी पैड खरीद नहीं सकते थे – सस्ते उत्पाद तो मौजूद ही हैं। लेकिन पुरानी परम्पराओं को जैसे का तैसा निभाना, और यह सोचना की दूकान पर जाकर पैड खरीदने से परिवार की प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा.. यह दोनों सबसे बड़े कारण बने – न खरीदने के।
खैर, यहाँ पर जब हम मेडिकल शॉप पहुंचे, तो दुकानदार ने नैपकिन के पैकेट को अखबार में लपेटकर, काली पोलीथिन बैग में डाल कर दिया.. जैसे वह मुझे दारू बेच रहा हो! सच में! देश की महिलाओं को क्या कुछ सहना पड़ता है! दुकानदार से क्या बहस करता? बस, सामान लेकर वापस रिसोर्ट आ गए।
वापस आकर देखा तो रिसेप्शन पर मौरीन और आना खड़े थे... वहां पर उनसे कुछ देर बात चीत की। मौरीन ने मुझे आँख के इशारे से कुछ न कहने को कहा था, इसलिए मैंने किसी भी तरह से आना को यह अहसास नहीं होने दिया की मौरीन और हमारे बीच में कुछ भी हुआ था। वैसे भी यह कोई ऐसी बात नहीं थी जिसको मैं याद रखना चाहता।
रात में ऐसा कुछ उल्लेखनीय नहीं घटा। बस खाया पिया, और आराम से सो गए।
सवेरे उठा, तो अपने ऊपर एक अतिरिक्त भार महसूस हुआ। आँखें खुलीं तो देखा की रश्मि मुझसे पूरी तरह चिपकी सो रही थी – करवट के कारण उसका बायाँ पाँव मेरे जांघों के ऊपर आराम कर रहा था। मैंने उस पर प्यार से हाथ फिराया तो समझ आया की वह पूर्ण-रूप से निर्वस्त्र है।
मैं मुस्कुराया, ‘बढ़िया!’
और उसको अपने आलिंगन में समेट कर उसके माथे पर जोरदार चुम्बन दिया। मेरी इस हरकत से उसकी नींद भी खुल गई। मैंने अपनी घड़ी में देखा.. सवेरे के सात बज रहे थे।
“उठो जानू! आज का प्रोग्राम क्या है?” मैंने रश्मि के दोनों नितम्बों के बीच में अपना हाथ फिराते हुए पूछा। पांव मेरे ऊपर इस प्रकार रखने के कारण उसका योनि द्वार थोड़ा खुल गया था, इसलिए मेरी तर्जनी उंगली अनायास ही उसके योनि के अन्दर दो-तीन मिलीमीटर चली गई।
“उई अम्मा!” रश्मि चिहुंक गई, “धत्त! आप भी न.. जब देखो तब इसी में घुसना चाहते हैं..” अपनी उनींदी आवाज़ में रश्मि ने कहा।
“जानेमन, जब इसके जैसी नरमी, इसके जैसी गरमी और इसके जैसा स्वाद मिले, तो मैं कहीं और क्यों घुसूँ? यहीं न घुसूँ?” (मैंने ‘आपकी पारखी नज़र और निरमा सुपर’ वाले प्रचार की तर्ज पर अपना जुमला ठोंक दिया।)
“धत्त...!” वह शर्मा कर मेरे सीने में छुप गई।
“मेरी जान, मेरी ऐसी हरकतों में मेरी कोई गलती नहीं। तुम्हारी चूत वाकई बहुत खूबसूरत है!” मैंने सफाई पेश करी। उसने कोई उत्तर नहीं दिया... बस मेरे सीने में सर छुपा कर हंसने लगी।
“अच्छा, एक बात बताइए... आपको शेविंग करनी आती है?” मैंने पूछा।
“शेविंग करना? नहीं.... क्यों? मुझे क्या ज़रुरत है, शेविंग करने की? मुझे दाढ़ी थोड़े न आती है!”
“दाढ़ी नहीं... ये तो आती है न?” कह कर मैंने उसके योनि पर उगे बालों को उंगली से पकड़ कर खींचा – ऐसे नहीं की रश्मि को दर्द हो, बस इतना जिससे रश्मि को उनका एहसास हो जाय।
“हाय राम! इसकी शेविंग?”
“हाँ! और क्या? आपको अच्छे लगते है क्या ये बाल?”
“नहीं, ऐसे कोई अच्छे तो नहीं लगते!”
“तो फिर इनको साफ़ क्यों नहीं करती?”
“मैं कैसे साफ़ करूँ?”
“अरे! रेज़र से.. या फिर कैंची से!”
“बाप रे!”
“बाप रे?”
“और क्या? कहीं कट गया तो?”
“हम्म... तो ठीक है... चलो, मैं ही काट देता हूँ। क्या कहती हो?” मैं हंसने लगा।
“नहीं जी, रहने दीजिये! जैसा है, उसी से काम चलाइए!” रश्मि ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।
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