RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
“नौकरी या बिजनेस...”
“पता नहीं...”
“हम्म.. मेरे मन में यह बकवास करते करते एक ख्याल आया। क्यूँ न आप अपना खुद का बिजनेस शुरू करो? साथ में ग्रेजुएशन की पढाई करते रहना? अगर दिमाग में बढ़िया आईडिया हो, तो बिजनेस ज़रूर करना चाहिए। पैसे की जो ज़रुरत होगी, वो मैं करूंगा... मेरे बहुत से दोस्त भी है, अगर वो आपके बिजनेस आईडिया से सहमत हों, तो वो भी पैसे लगा सकते हैं। बैंगलोर वैसे भी उद्यमियों का शहर है! प्रोफेशनल हेल्प मिल जाएगी। सोचना... कोई जल्दी नहीं है! ओके?”
“बाप रे! आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं?”
“देखो, जानू, भरोसा तो मुझे आप पर है.. लेकिन जब तक आईडिया सॉलिड नहीं होगा, मैं पैसे नहीं लगाऊँगा!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“लेकिन... मुझे तो अभी तक कुछ मालूम ही नहीं! क्या करना है, क्या नहीं..”
“तो क्या हुआ.. अभी कोई जल्दी नहीं है.. अपना टाइम लीजिये.. जब समझ आयें तभी कुछ करेंगे! ओके?”
मैंने रश्मि के बालों में अपने हाथ से सहलाया.. और फिर आगे कहा, “देखो, यह बात सच है की कम उम्र में शादी करने से बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो जाती है। लेकिन मैं आपसे आज कुछ वायदे करता हूँ। पहला तो यह की आपको अपने व्यक्तितत्व के विकास के लिए पूरा समय, और सहयोग दूंगा। आपको जो भी कुछ करना है, जो भी कुछ बनना है, उसमें मैं पूरी मदद करूंगा। आप पर किसी भी तरह की पारिवारिक जिम्मे*दारी तब तक नहीं आने दूंगा, जब तक आप उसके लिए पूरी तरह से तैयार न हों – मतलब पढाई लिखाई पूरी करनी होगी, और उसके बाद आपका अगर मन हो तो आप अपना पूरा ध्यान कैरियर पर लगाइए। और बच्चा तभी जब आप तैयार हों।“
अब तक आसमान में जीवंत और चटक गुलाबी, लाल, नारंगी और पीले रंगों की छटा छा गई। सूरज का लाल गोला धीरे धीरे बादलों के पीछे से नीचे आ रहा था।
रश्मि ने मेरी तरफ उचक कर मेरे होंठों को चूम लिया।
“थैंक यू!” उसने कहा।
मैंने उसकी आँखों में देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “नो! थैंक यू!”
मैंने उसकी आँखों में ध्यान से देखा – आंसू से रश्मि की आँखें डबडबा गईं थीं। रश्मि कोशिश कर रही थी की आंसू न निकालें, लेकिन फिर भी एक-एक बूँद आँखों से निकल कर उसके गालों पर ढलक ही गई। मैंने बिना कुछ कहे रश्मि का हाथ थाम लिया... निशब्द भाषा में बस यह कहने के लिए की मैं उसके साथ हूँ... जीवन की कड़वी सच्चाईयाँ अभी दूर थीं... जो इस समय हमारे पास था वह था हम दोनों का साथ और यह सुन्दर सूर्यास्त!
“आई लव यू!” कहते हुए रश्मि का गला भर आया। उसने बड़े प्रयत्न से अपना गला साफ़ किया और स्वयं पर नियंत्रण किया।
“पता है आप मेरे कौन है?” भावुक माहौल था.. नहीं तो किसी न किसी तरह की चुहलबाजी ज़रूर करता।
“आप मेरे कृष्ण है! मेरे सम्पूर्ण पुरुष! जब ज़रुरत हुई तब प्रेमी, जब ज़रुरत हुई तब सारथी, और जब ज़रुरत हुई तब सखा! मैंने सच में कोई बहुत पुण्य के काम किए होंगे, जिसके कारण मुझे आप मिले।“
“बाप रे!”
“सच में!”
“आई लव यू!”
“आई लव यू टू!!”
मैंने रश्मि को अपनी बाहों के घेरे में कस कर दुबका लिया – जैसे मेरा आलिंगन उसके लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन जाय.. हम दोनों वैसे ही काफी देर तक सूर्यास्त का अद्भुत् नज़ारा देखते रहे। सूरज ढलने के साथ साथ ही धीरे धीरे सांझ का धुंधलका बढ़ने लगा, और उसके साथ ही आसमान में गहरे लाल, काले नीले इत्यादि रंग उभरने लगे। कई लोग अब जाने की तैयारी कर रहे थे और जो लोग रुके हुए थे, उनकी भी बस पार्श्व आकृति ही दिख रही थी।
“अभी कैसी हो जानू?” मैंने पूछा।
“मैं ठीक हूँ!”
“घर बात करना है?”
“मेरा घर तो आप हैं!”
“ओहो! मेरा मतलब माँ से? या सुमन से? ... बात करनी है वहाँ? वहां कॉल किए दो दिन हो गए शायद?”
“हाँ! मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा! आपके संग तो मैं सब कुछ भूल गई हूँ!”
“अच्छी बात है... ये लो फ़ोन.. बात कर लो!”
“आप नहीं करेंगे?”
“अरे.. कॉल मैं ही लगा कर आपको दे दूंगा.. ओके?”
मैंने उत्तराँचल कॉल लगाया। चूँकि फ़ोन तो भंवर सिंह जी के ही पास रहता है, इसलिए उनको ही उठाना था।
“हल्लो!” मैंने कहा..
“हल्लो रूद्र.. कैसे हैं आप बेटा?”
‘बेटा!’ रिश्ते में तो हम बाप-बेटा ही तो हैं! वो अलग बात है की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है।
“जी.. पापा..” मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “हम दोनों ठीक हैं..”
“स्वास्थ्य ठीक है आप दोनों का? मौसम कैसा है वहाँ?”
“स्वास्थ्य एकदम ठीक है... मुझे लगा था की ठन्डे गरम के कारण कहीं जुकाम न हो जाय, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहाँ का मौसम तो गरम ही है.. चारों ओर समुद्र से घिरा है, इसलिए बारहों मास ऐसे ही रहता है यहाँ। .. और आप कैसे हैं? माता जी कैसी हैं?”
“हम सब ठीक हैं बेटा.. आप लोगो की बहुत याद आती है। बस और क्या!”
मैं इसके उत्तर में क्या ही बोलता! “लीजिये, रश्मि से बात कर लीजिए..” कह कर मैंने रश्मि को फ़ोन थमा दिया।
लाडली बेटी का फ़ोन आते ही वहां पर सब लोग आह्लादित हो गए होंगे – मैंने सोचा।
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