Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:15 AM,
#47
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैं इस सोच पर मुस्कुराई... एक हाथ अनायास ही मेरे स्तन पर चला गया। ‘ये दोनों जल्दी ही बड़े हो जाएँ!’ मन में एक विचार कौंधा। कैसा हास्यास्पद विचार है यह... कुछ दिनों पहले तक ही मैं सोचती थी की बड़े स्तन कितने तकलीफदेय हो सकते हैं... लेकिन जिस प्रकार से रूद्र मेरे दोनों स्तनों का भोग प्रयोग करते हैं.. यदि, ये थोड़े बड़े होते तो उनको और आनंद आता। और यदि ये दोनों मीठे मीठे दूध से भर जाएँ, और रूद्र जीवन भर उनका पान कर सकें! आह!

मेरे मन में एक शरारत उठी। मैंने रूद्र से सट कर, चद्दर के अंदर हाथ बढ़ा कर उनके लिंग पर धीरे से हाथ फिराया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसको मेरी छुवन का ही इंतज़ार था – मेरा हाथ लगते ही तुरत-फुरत उसका आकार अपने पूर्ण रूप में बढ़ गया।

‘ऐसा पुष्ट अंग! हाथ में ठीक से आता ही नहीं..! कितना सख्त हो गया है!’

मैंने पूरे हाथ को उनके लिंग पर कई बार फिराया और फिर उसको पकड़ कर हिलाने लगी। कुछ ही देर में उनका लिंग मेरी योनि में जाने के लायक एकदम खड़ा और सख्त हो गया।

दुर्भाग्य से मेरी योनि इस समय थकी हुई थी, और हमने सावधानी बरतने का प्रण भी किया था, इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न हाथ से ही इनको निवृत्त कर दिया जाय! मैंने रूद्र के लिंग को थोड़ा मजबूती से पकड़ कर अपनी मुट्ठी को उसकी पूरी लम्बाई पर आगे-पीछे चलाना आरम्भ कर दिया। सोते हुए भी रूद्र के गले से कामुक आहें निकलने लगीं! फिर मुझे याद आया की उनका वीर्य निकलेगा तो बिस्तर को ही खराब करेगा, अतः मैं घुटनों और कोहनी के बल इस प्रकार बैठ गई जिससे उनका लिंग मेरे मुंह के सामने रहे। कुछ देर और उनके लिंग को पकड़ कर आगे पीछे करने के बाद मैंने उसके सामने वाले हिस्से को अपने मुंह में भर लिया। अब हाथ की ही ले में मेरा मुंह भी उनके लिंग पर आगे पीछे हो रहा था। मैंने अपनी जीभ से उनके लिंग के आगे वाले चिकने हिस्से पर कई बार फिराया। 

रूद्र ‘आऊ आऊ’ करते हुये मेरे सिर को अपने हाथ से सहला रहे थे। ‘हो गया सोना!’

"यस बेबी! यस!!" उन्होंने बुदबुदाते हुए मेरा हौसला बढाया। 

मैंने उत्साह में आकर उनके लिंग को अपने मुंह के और भीतर जाने दिया – एक बार तो उबकी सी आ गई, लेकिन मैंने गहरी सांस भर कर उसको चूसना जारी रखा। उधर रूद्र भी उत्तेजना में आकर लेटे हुए नीचे से धक्के लगाने लगे – वो तो अच्छा हुआ की मैं अभी भी उसकी गति और भेदन नियंत्रित कर रही थी, नहीं तो मेरा दम घुट जाता। खैर, कुछ ही देर में मैं अपने मुंह में उनके लिंग की उपस्थिति और चाल की अभ्यस्त हो गई और अब मुझे इस प्रकार मैथुन करना अच्छा लगने लगा। मुझको यह क्रिया आरम्भ किये कोई चार-पांच मिनट तो हो ही गए थे.... अतः कुछ और झटके मारने के बाद वो स्खलित हो गये और मेरा मुख उनके गरम गरम वीर्य से भर गया, जिसको मैंने तुरंत ही पी लिया। कुछ ज्यादा नहीं निकला... संभवतः आज कुछ ज्यादा ही खर्च हो गया। एक अजीब स्वाद! हो सकता है की कुछ और बार ऐसे करने के बाद मैं उसकी भी अभ्यस्त हो जाऊं! रूद्र भी स्खलित होने के बाद निढाल से लेटे रहे। 

‘पता नहीं उनको क्या लगा होगा! सपना या हकीकत! हा हा!’ 

मैं कुछ देर तक उनका सिकुड़ता हुआ लिंग मुंह में लिए ऐसे ही लेटी रही, और फिर अलग हट कर सिरहाने की छोटी मेज पर रखी बोतल से पानी पीने लगी। और फिर उनके चेहरे पर नज़र डाली... वो मुस्कुरा रहे थे। क्या ये जाग गए हैं और उनको मेरी इस हरकत का पता चल गया? या वो इसको एक सपना ही सोच कर मगन हो रहे हैं! क्या पता!

'आज की रात क्यों अनोखी हो भला?' यह सोचते हुए मैंने अपने सारे कपड़े उतारे, और अपने पिया से चिपक कर लेट गई.. रात में कब नींद आई, कुछ भी याद नहीं।

आज सुबह से ही बदली वाला मौसम था – सूरज बादलो के साथ लुका-छिपी खेल रहा था। हल्की बयार और ढले हुए तापमान से मौसम अत्यंत सुहाना हो गया। मन में आया की क्यों न अगर ऐसे ही मौसम रहे, तो आज दिन भर बीच पर ही आराम किया जाय? आखिर आये तो आराम करने ही है! मैंने रश्मि को यह बात बताई तो उसको बहुत पसंद आई – वैसे भी हिमालय की हाड़ कंपाने वाली ठंडक से छुटकारा मिलने से वह वैसे भी बहुत खुश थी। रश्मि ने भी कहा की आज बस आराम ही करने का मन है... खायेंगे, सोयेंगे और हो सका तो रात में फिल्म देखेंगे, इत्यादि... मेरे लिए आज का यह प्लान एकदम ओके था।

हमने जल्दी जल्दी फ्रेश होने, और ब्रश करने का उपक्रम किया। ब्रेकफास्ट के लिए आज मैंने रिसोर्ट के सार्वजानिक क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया – कम से कम कुछ और लोगों से बातचीत करने को मिलेगा। नाश्ते पर हमारे साथ एक तमिल जोड़ा बैठा। हमारी ही तरह उनकी भी अभी अभी ही शादी हुई थी और वे हनीमून के लिए आये थे। उनसे बात करते हुए पता चला की दोनों ही बंगलौर में काम करते हैं! लड़का लड़की दोनों की उम्र पच्चीस से सत्ताईस साल रही होगी। खैर, हमने अपने फ़ोन नंबर का आदान प्रदान किया और मैंने शिष्टाचार दिखाते हुए उन दोनों को अपने घर आने का न्योता दिया। नाश्ता कर के हम होटल के रिसेप्शन पर चले गए और उनसे प्लान के बारे में पूछा। 

वहां पर रिसेप्शनिस्ट ने बताया की बहुत से लोग आज यही प्लान कर रहे हैं.. उसने हमको काला-पत्थर बीच जाने को कहा.. एक तो वहां बहुत भीड़ भी नहीं रहेगी और दूसरा वह रिसोर्ट से आरामदायक दूरी पर था। आईडिया अच्छा था। फिर मेरे मन में एक ख़याल आया – मैंने रिसेप्शनिस्ट से पूछा की दो साइकिल का इन्तेजाम हो सकता है? क्यों न कुछ साइकिलिंग की जाय – वैसे भी इतने दिनों से किसी भी तरह का व्यायाम नहीं हुआ था.. बस आराम! खाओ, पियो, सोवो, और सेक्स करो! ऐसे तो कुछ ही दिन में तोन्दूमल हो जायेंगे हम दोनों।

रिसेप्शनिस्ट ने कहा की है और कुछ ही देर में हमारे सामने दो साइकिल (एक लेडीज और एक जेंट्स) मौजूद थीं। बहुत बढ़िया! रश्मि को पूछा की उसको साइकिल चलाना आता है? उसने बताया की आता है.. उसने छुप छुपा कर सीखी है। भला ऐसा क्यों? पूछने पर रश्मि ने कहा की पहले तो माँ, और फिर पापा दोनों ही उसको मना करते थे। माँ कहती थीं की लड़कियों की साइकिल नहीं चलानी चाहिए... उससे ‘वहाँ’ पर चोट लग जाती है। कैसी कैसी सोच! न जाने क्यों हम लोग अपनी ही बच्चियों को जाने-अनजाने ही, दकियानूसी पाबंदियों में बाँध देते हैं! 

खैर, साइकिल चलाने और चलाना सीखने का मेरा खुद का भी ढेर सारा आनंददायक अनुभव रहा है। जब मैं छोटा था, उस समय मेरठ में वैसे भी साइकिल से स्कूल जाने का रिवाज था। स्कूल ही क्या, लोग तो काम पर भी साइकिल चलाते हुए जाते थे उस समय तक! लड़का हो या लड़की... ज्यादातर बच्चे साइकिल से ही स्कूल जाते थे। पांचवीं में था, और उस समय मैंने साइकिल चलाना सीखी।

शुरू शुरू में मोहल्ले के कई सारे मुंहबोले भइया और दीदी मुझे साइकिल चलाना सिखाने लगे - कैसे पैडल पर पैर रखकर कैंची चलते है... कैसे सीट पर बैठते है... कैसे साइकिल का हैंडल सीधा रखते हैं... इत्यादि इत्यादि! शुरू शुरू में कोई न कोई पीछे से कैरियर पकड़ कर गाइड करता रहता... साईकिल चलाते समय यह विश्वास रहता की अगर बैलेंस बिगड़ेगा तो कोई न कोई मुझे गिरने से बचा ही लेगा। ऐसे में न जाने कब बड़े आराम से अपने मोहल्ले मे साइकिल चलाना सीख लिया... पता ही नहीं चला।

एक वह दिन था और एक आज! न जाने कितने बरसों के बाद आज साइकिल चलाने का मौका मिलेगा! कभी कभी कितनी छोटी छोटी बातें भी कितने मज़ेदार हो जाती हैं! मैंने हाफ-पैन्ट्स और टी-शर्ट पहनी, चप्पलें पहनी और एक बैग रखा.. जिसमें फ़ोन, सन-स्क्रीन लोशन, कैमरा, किताब, मेरा आई-पोड, पानी की बोतलें, चादर और खाने का सामान था। रश्मि ने हलके आसमानी रंग का घुटने तक लम्बा काफ्तान जैसा पहना हुआ था और उसके अन्दर नारंगी रंग की ब्रा और चड्ढी पहनी हुई थी.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी! बालों को उसने पोनीटेल में बंद लिया था – उसकी मुखाकृति और रूप लावण्य अपने पूरे शबाब पर था। 

कोई पंद्रह बीस मिनट की साइकिलिंग थी.. तो मैंने सोचा की रस्ते में इसको चुटकुले सुनाते चलूँ...

हरयाणवी जाट का बच्चा साइकिल चलाते-चलाते एक लड़की से टकरा गया। लड़की बोली: क्यों बे! घंटी नहीं मार सकता क्या? जाट का बच्चा कहता है: री छोरी, बावली है के? पूरी साइकिल मार दी इब घंटी के अलग ते मारुं के?

रश्मि: “हा हा! ये तो बहुत मज़ेदार जोक था! .... आप तो सुधर गए!”

मैं: “सुधर गया मतलब? अरे मैं बिगड़ा ही कब था?”

रश्मि: “आपके ‘वो’ वाले जोक्स की केटेगरी में तो नहीं आता यह!”

मैं: “अच्छा! तो आपको ‘वो’ जोक सुनना है? तो ये लो... 

रश्मि: “नहीं नहीं बाबा! आप रहने ही दीजिये!”

मैं: “अरे आपकी फरमाइश है..! अब तो सुनना ही पड़ेगा.. शादी के फेरे लेने के बाद लड़की ने झुक कर पंडित जी के पैर छुए और कहा "पंडित जी कोई ज्ञान की बात बता दीजिए।" पंडित जी ने उत्तर दिया "बेटी, ब्रा अवश्य पहना करो.. क्योंकि जब तुम झुकती हो तो ज्ञान और ध्यान, दोनों ही भंग हो जाते हैं।“”

“हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!”

ऐसे ही हंसी मज़ाक करते हुए कुछ देर बाद हम दोनों काला पत्थर बीच पर पहुँच जाते हैं। वहाँ पर हमारे अलावा कोई चार पांच जोड़े और मौजूद थे.. लेकिन सभी अपने अपने आनंद में लिप्त थे।
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